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नौकरशाही पर फिर उठे सवाल

 उत्तराखण्ड में नौकरशाहों और जनप्रतिनिधियों के बीच अक्सर विवाद होते रहे हैं। ताजा मामला प्रदेश के ऊर्जा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम और बेरोजगार संघ के अध्यक्ष बॉवी पंवार के बीच का है। यह विवाद यूपीसीएल के महाप्रबंधक अनिल कुमार यादव के सेवा विस्तार से जुड़ा है। फिलहाल विपक्ष ने इस मुद्दे को केदारनाथ उपचुनाव से जोड़कर राजनीतिक चौसर बिछा दी है

प्रदेश में जन प्रतिनिधियों और नौकरशाहों के बीच विवाद थम नहीं रहे हैं। प्रदेश के वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट आर मिनाक्षी सुंदरम और बेरोजगार महासंघ के अध्यक्ष बॉबी पंवार के बीच हुए विवाद ने इस सवाल को फिर उठा दिया है कि आखिर क्यों नौकरशाहों और जनप्रतिनिधियों के बीच विवाद होते हैं? प्रदेश की शासन व्यवस्था को चलाने वाला सचिवालय फिलहाल विवादों में है। ताजा मामला भी कुछ इसी तरह का है जिसमें मुकदमा तक दर्ज करवाया जा चुका है।

बेरोजगार महासंघ के अध्यक्ष और टिहरी लोकसभा सीट से निदर्लीय उम्मीदवार रहे बॉबी पंवार उत्तराखण्ड ऊर्जा निगम के महाप्रबंधक अनिल कुमार यादव पर कथित घोटाले करने और उनकी अवैध सम्पत्तियों को लेकर पूर्व से ही मुखर रहे हैं। इसी बीच अनिल कुमार यादव को दो वर्ष के लिए सेवा विस्तार दिए जाने के बाद 6 नवम्बर की शाम सवा छह बजे के लगभग बॉबी पंवार ऊर्जा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम से इस बारे में बात करने गए तो बातचीत के दौरान इस कदर गरमागरमी हुई कि मामला विवादास्पद हो गया। ऊर्जा सचिव ने पंवार को कार्यालय से बाहर निकालने का आदेश अपने विभागीय अधिकारियों को दिया। मामला इतना बढ़ गया कि आर मीनाक्षी सुंदरम के नजी सचिव द्वारा देहरादून के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के समक्ष बॉवी पंवार और उनके दो साथियों पर मुकदमा दर्ज करा दिया गया।

बहरहाल बॉबी पंवार पर मुकदमा दर्ज होने के बाद प्रदेश के युवाओं और बेरोजगारों में भारी नाराजगी देखी जाने लगी है। इसका विरोध राज्य स्थापना दिवस के दिन 9 नवम्बर को देहरादून में सैकड़ों की संख्या में एक बड़ा जुलूस भी निकाला गया। दूसरी तरफ बॉवी पंवार द्वारा ऊर्जा सचिव के साथ दुर्व्यहार के बाद सचिवालय संघ ने भी अपना विरोध जताते हुए आधे दिन का कार्य बहिष्कार किया और इस मामले में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मुलाकात करके सचिवालय में अधिकारियों की सुरक्षा और बाहरी लोगों के सचिवालय में आने पर कठोर नियम बनाए जाने की मांग की। अब इस प्रकरण की असल कहानी को देखें तो यह मामला एक जनप्रतिनिधि और शासन नौकरशाह के बीच हुए विवाद का कोई सामान्य मामला नहीं है। इस मामले की गहराई में राज्य बनने के बाद से लेकर ऊर्जा विभाग के तीनांे निगमांे में व्याप्त कथित घोटाले और फर्जीवाड़े का है। चर्चा है कि 20 वर्षों के अंतराल में करीब हजार करोड़ का घोटाला ऊर्जा विभाग के तीनों निगमांे में हो चुका है। कई बार भ्रष्टाचार के प्रमाण सामने आने के बावजूद कभी कोई कार्यवाही नहीं की गई और अधिकारियांे को सेवानिवृत्ति के बाद सेवा विस्तार तक दिया जाता रहा है। भाजपा और कांग्रेस दोनांे ही सरकारों में ऊर्जा विभाग के भ्रष्टाचार को राजनीतिक संरक्षण मिलता रहा है।

बॉवी पंवार ने जिस अनिल कुमार यादव पर भ्रष्टाचार के गंभीर अरोप लगाए हैं वह आरोप भी नए नहीं हैं। पूर्व में ऊर्जा सचिव रहीं राधा रतूड़ी जो कि वर्तमान में राज्य की मुख्य सचिव भी हैं, के समय में ऊर्जा निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार के मामलो में जांच के आदेश भी दिए थे लेकिन उनके ऊर्जा सचिव पद से हटने के बाद उक्त आदेश को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। इससे यह साफ हो जाता है कि ऊर्जा निगमों के अधिकारी कितना ताकतवर हो चुके हैं कि अपने ही विभागीय सचिव के आदेशांे को भी रद्दी की टोकरी में डाल दिया जाता है।

गौर करने वाली बात यह है कि ऊर्जा सचिव आर मीनाक्षी सुंदरम को भी बॉबी पंवार ने वही सब दास्तावेज एक माह पूर्व सौंपे थे जो उन्होंने पूर्व ऊर्जा सचिव राधा रतूड़ी को दिए थे। ऊर्जा सचिव ने उन दस्तावेजों की जानकारी से ही साफ इनकार कर दिया।

इस प्रकरण के बाद 11 नवम्बर को बॉवी पंवार ने देहरादून प्रेस क्लब में प्रेसवार्ता कर पूरे प्रकरण की तस्वीर सामने रखते हुए ऊर्जा निगमों में फर्जीवाड़े और बड़े पैमाने पर भर्ती घोटाले के आरोप लगाए हैं। इनमें वर्ष 2001 से लेकर 2003 तक ऊर्जा निगमों में नियम विरुद्ध सहायक अभियंताओं को नियुक्त किए जाने के आरोप हैं। जिसे राज्य बनने के बाद पहला भर्ती घोटाला बताते हुए बॉबी पंवार ने आरोप लगाया कि 2005 में भी अधिशासी अभियंताओं की सीधी भर्ती की गई जो कि विभागीय नियमावली के खिलाफ थी। यहां तक कि मेरिट में नहीं आने वाले लोगांे को निगम के दूसरे निगमों में सहायक अभियंता के तौर पर भर्ती किया गया। इस तरह से भर्ती हुए अधिकारी वर्तमान में निगमों की कई बड़ी-बड़ी परियोजनाओं में महाप्रबंधक के पद पर प्रमोशन पाकर कार्यरत हैं। इस बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा गया है। जिसमें ऊर्जा निगमांे में भ्रष्टाचार और भर्ती घोटाले पर कार्यवाही करने की मांग की गई है।

इस विवाद की छाया केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव में भी पड़ने की संभावनाएं जताई जाने लगी है। बॉवी पंवार केदारनाथ उपचुनाव में भाजपा के खिलाफ वोट करने की अपील कर चुके हैं। बेरोजगार महासंघ ने केदारनाथ सीट पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है साथ ही
भ्रष्टाचारियों का संरक्षण करने जैसे मामलांे पर जनता के बीच जाने की बात कह सरकार और संगठन को सकते में डाल चुके हैं। इसका एक बड़ा कारण यह भी माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पास ऊर्जा विभाग है और अनिल कुमार यादव जिन पर करोड़ों के भ्रष्टाचार के आरोप लगाए जा रहे हैं उनको दो वर्ष का सेवा विस्तार दिया गया है तो इसमंे मुख्यमंत्री को भी घेरने की राणनीति पर विपक्ष लग गया है। ऐसे में अगर केदारनाथ उपचुनाव में कांग्रेस और बरोजगार महासंघ जनता के बीच इस मुद्दे को लेकर जाएगी तो भाजपा को परेशानी हो सकती है।

नौकरशाहों संग पहले भी होते रहे हैं विवाद
प्रदेश की नौकरशाही पर बेलगाम होने और मनमर्जी के फैसले लेने के आरोप हमेशा से लगते रहे हैं। यहां तक कि विभागीय मंत्रियों के साथ-साथ मुख्यमंत्री और मुख्य सचिवांे के आदेशों का पालन समय पर और सही तरीके से न करने के आरोप नौकरशाही पर लगना एक सामान्य बात हो चुकी है। जनप्रतिनिधियों के साथ नौकरशाही के विवाद और मारपीट की घटनाएं पहले भी कई बार सामने आ चुकी है जिससे न सिर्फ प्रदेश की शासन व्यवस्था पर सवाल खड़े हुए हैं, बल्कि प्रदेश सरकार को भी कठघरे में खड़ा होना पड़ा है।

जनप्रतिनिधि पूर्व में भाजपा सरकर के समय खाद्य आपूर्ति विभाग के सचिव पीसी शर्मा के साथ हुए विवाद को पहला विवाद माना जा सकता है। इस मामले में मिट्टी तेल के कोटे को लेकर कांग्रेस नेता हरक सिंह रावत और रणजीत रावत सचिव पीसी शर्मा के साथ बात करने गए लेकिन वहां मामला इतना बिगड़ा कि मारपीट की नौबत तक आ गई। तीनों के बीच भारी विवाद हुआ। बताया जाता है कि तब पीसी शर्मा के कार्यालय की मेज तक पलट दी गई थी।

इस तरह की दूसरी घटना सचिव एसएस संधुु के साथ भी हुई। द्वाराहाट के विधायक मदन बिष्ट द्वारा अभद्रता का मामला सामने आया था। जिसमें मदन बिष्ट पर आरोप लगा था कि उनके द्वारा सचिव के साथ गाली-गलौच तक की गई थी और कार्यालय में हंगामा काटा गया था। कांग्रेस की पहली सरकार में उद्यान मंत्री रहे गोविंद सिंह कुंजवाल के निजी सचिव के साथ लक्सर के निदर्लीय विधायक कुंवर प्रणव सिंह चैम्पियन का विवाद भी खासी सुर्खियों में रहा था। बताया जाता है कि विधायक इतने नाराज थे कि उन्होंने निजी सचिव के साथ मारपीट तक की थी।

जिला पासपोर्ट अधिकारी के कार्यालय में पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत और उनके तत्कालीन निजी सचिव विनोद रावत द्वारा मारपीट की घटना भी सामने आ चुकी है। इस मामले के फोटो तक समाचार पत्रों में छापे गए थे जिसमें विनोद रावत जिला पासपोर्ट अधिकारी को उनकी कुर्सी से कॉलर पकड़ कर खींचते हुए दिखाई दिए थे और हरक सिंह रावत विनोद रावत के साथ ही खडे़ थे।

वर्तमान मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी त्रिवेंद्र रावत सरकार में तत्कालीन प्रमुख सचिव लोक निर्माण ओमप्रकाश से अपने क्षेत्र में सड़कों के निर्माण और मरम्मत को लेकर बात करने गए थे। धामी अपने साथ सड़कांे की फाइल लेकर गए थे। बताया जाता है कि प्रमुख सचिव द्वारा ‘‘अभी बजट नहीं है जब होगा तब देखेंगे’’ कहते हुए फाइल को मेज पर ही पटक दिया था। इससे पुष्कर सिंह धामी खासे नाराज हो गए और उन्होंने ओम प्रकाश को जमकर खरी-खोटी भी सुनाई। इस मामले में खासा हंगामा भी हुआ। हालांकि इस प्रकरण को सत्ताधारी भाजपा के विधायक और नौकरशाही के बीच होने के चलते ज्यादा तूल नहीं दिया गया और मामला बाहर आने से पहले ही शांत कर दिया गया था।

बॉबी पंवार और सचिव आर मिनाक्षी संुदरम के बीच हुए विवाद में सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात यह है कि सचिवालय संघ के पूर्व अध्यक्ष रहे दीपक जोशी सोशल मीडिया में एक वीडियो बनाकर सार्वजनिक किया जिसमें वे यह कहते नजर आए हैं कि ‘सचिवालय में इस तरह के तत्वों पर पूरी तरह से रोक लगाई जानी चाहिए और बाहरी लोगांे को सचिवालय में पूरी तरह से प्रतिबंध कर देना चाहिए और अधिकारियों के साथ अभद्रता करने वालांे पर कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए।’ लेकिन पूर्व में इन्हीं दीपक जोशी पर सचिव आर.के. सुधांशु के साथ अभद्रता करने के आरोप भी लग चुके हैं। तब दीपक जोशी सचिवालय संघ के अध्यक्ष थे और उनका आर.के. सुधांशु के साथ बड़ा भारी विवाद हुआ जिसकी गूंज सचिवालय से लेकर सत्ता गलियारों में भी जमकर गूंजी थी। इस मामले में तो बाहरी आदमी सचिवालय में नहीं गया था।

पुरोला विधायक दुर्गेश लाल, वन मंत्री सुबोध उनियाल तथा प्रदेश के मुख्य वन संरक्षण के बीच विवाद भी खूब सुर्खियां बटोर चुका है। इस मामले में विधायक दुर्गेश लाल मंत्री आवास में ही अपने समर्थकों के साथ धरने पर बैठ गए थे। पुरोला वन प्रभाग के डीएफओ के स्थानांतरण की मांग के लिए मंत्री आवास में गए जहां अनूप मलिक भी मंत्री के बुलाने पर आए। मलिक द्वारा डीएफओ पुरोला के मामलांे में जांच के आदेश पत्र भी मंत्री को दिखाया जिसको विधायक ने फाड़ दिया। वन विभाग के सर्वोच्च पद पर बैठे अधिकारी के हाथांे से पत्र लेकर फाड़ने का प्रकरण भी खासा चर्चाओं मे रहा और इस मामले को लेकर भाजपा प्रदेश संगठन को भी कड़ा रुख अपनाना पड़ा।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ जनप्रतिनिधियों द्वारा ही आपा खोया गया है। कांग्रेस सरकार में सहकारिता मंत्री रहे प्रीतम सिंह पंवार द्वारा अपने क्षेत्र में एक तहसीलदार को थप्पड़ जड़ने का मामला भी काफी सुर्खियां बटोर चुका है। क्षेत्र में जनता की समस्या सुनने के लिए बहुद्देशीय शिविर में तहसीलदार की कार्यशैली पर जनता द्धारा नाराजगी जताने से मंत्री प्रीतम पंवार इतने नाराज हुए कि भरी सभा में ही उन्होंने उक्त तहसीलदार को थप्पड़ रसीद कर दिया था। हालांकि इस मामले ने कोई खास तूल नहीं पकड़ा था।

 

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