वर्ष 1960 के दशक में देश गम्भीर खाद्यान्न संकट से जूझ रहा था और आयातीत गेहूं, चावल तथा दालों पर निर्भर था। ऐसे कठिन समय में प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने हरित क्रांति का सपना देखा। उनके इस सपने को द्वितीय प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय ‘जय जवान – जय किसान’ का नारा दे आगे बढ़ाया। 1966 में कृषि उपज मंडी अधिनियम बना जिसके अंतर्गत मंडी परिषदों के जरिए किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना, कृषि उपज की खरीद- बिक्री के लिए आवश्यक सुविधाएं प्रदान करना है। उत्तराखण्ड मंडी परिषद् के वर्तमान अध्यक्ष अनिल कपूर ‘डब्बू’ लेकिन किसानों के बजाय बिल्डरों के हित साधने की कवायद करते नजर आ रहे हैं। उन्होंने इन दिनों प्रदेशभर में मंडी की जमीनों का व्यवसायीकरण करने की मुहिम शुरू कर दी है। डब्बू इन जमीनों में रिसॉर्ट और मॉल बनाने की बात कह रहे हैं। नैनीताल जनपद के शहर रामनगर में व्यवसायिक दृष्टि से खासी कीमत वाली जमीन पर दशकों से काबिज लकड़ी व्यापारियों को यह कहते हुए कि यहां पर शीतगृह बनाया जाएगा, डब्बू के निर्देश पर जमीन बेदखली के नोटिस दे दिए गए हैं। ऐसा तब जबकि इन व्यापारियों से लाखों का राजस्व मंडी को मिलता है। रामनगर में शीतगृह बनाए जाने की न तो किसानों ने कोई मांग की है और न ही इसकी जरूरत है। इसी प्रकार हल्द्वानी स्थित मंडी की एक जमीन पर डब्बू मॉल बनाने की बात भी कह रहे हैं। ‘दि संडे पोस्ट’ की पड़ताल इशारा करती है कि सारा ‘खेला’ मंडी की जमीनों को खुर्द-बुर्द करने का है
‘पिछले ढ़ाई दशक से अधिक समय से हम दर्जनों व्यापारी मंडी में लकड़ी का कारोबार कर रहे हैं। लकड़ी लाकर जहां रखते हैं वह जमीन बकायदा हमें मंडी समिति के द्वारा दी गई थी। इसकी एवज में हम लाखों रुपए का शुल्क देते हैं। फिर भी हमें इस जमीन से बेदखल किया जा रहा है, अगर हम से यह जमीन छीनी गई तो हमारे परिवारों की भूखे मरने की नौबत तो आएगी साथ ही काफी संख्या में मजदूर, आरा मशीन चलाने वाले लोग, ट्रक ड्राइवर जो लकड़ियों को लाने-ले जाने में लगे रहते हैं और फर्नीचर बनाने वाले कारीगरों के चूल्हे जलने बंद हो जाएंगे। इसी लकड़ी के पीछे सब अपनी जीविका पार्जन कर रहे हैं।’
यह कहना है लकड़ी मंडी एसोसिएशसन रामनगर के अध्यक्ष संजीव कुमार का। संजीव पिछले कई सालो से नैनीताल जनपद के रामनगर की मंडी समिति परिसर में स्थित लकड़ी मंडी के अस्तित्व को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। वे शासन-प्रशासन से लेकर कोर्ट कचहरी तक इस मुद्दे पर अपनी फरियाद लेकर पहुंच रहे हैं। हालांकि हाईकोर्ट ने मंडी परिषद के उस फैसले पर फिलहाल रोक लगा दी है जिसमें लकड़ी मंडी की जमीन को खाली कर वहां शीतगृह बनाने की योजना प्रस्तावित की गई है। हाईकोर्ट ने लकड़ी व्यापारियों का पक्ष सुनते हुए प्रदेश के मंडी सचिव को उन्हें सुनने का आदेश दिया है। गत् 19 अक्टूबर को लकड़ी मंडी एसोसिएशन के अध्यक्ष संजीव कुमार सहित सादिक अहमद (चीफ साहब), मणि भारद्वाज, साहिल हुसैन देहरादून में मंडी सचिव से मिले और अपना पक्ष रखा।
रामनगर मंडी समिति परिसर में दर्जनों लकड़ी व्यापारियों को जमीन दी गई है। सभी को 850 से लेकर 1100 फुट तक की जमीन दी गई है। लकड़ी व्यापारियों में सबसे वरिष्ठ सादिक अहमद जिन्हें लोग चीफ साहब कहकर पुकारते हैं, बताते हैं कि पिछले 50 सालों से रामनगर के लकड़ी व्यापारी लकड़ी की खरीद और बिक्री के व्यापार में हैं। क्योंकि जिला नैनीताल का रामनगर हमेशा से लकड़ी के सामान का प्रमुख व्यापारिक केंद्र रहा है। रामनगर तक रेलवे लाइन पहुंचाने के पीछे भी अंग्रेजी शासनकाल का यही मकसद था कि वे यहां की लकड़ी दिल्ली, कलकत्ता और देश-विदेशों तक ले जाते थे। यहां के व्यापारी लकड़ी को वन निगम से खरीदते हैं। पहले खरीदी हुई लकड़ी को स्टॉक करने का स्थान रामनगर रेलवे स्टेशन पर रेलवे की खाली पड़ी जमीन हुआ करती थी। दशकों तक यहीं पर लकड़ी का स्टॉक करके व्यापारी लकड़ी का व्यापार करते रहे। लेकिन सन् 1998 में रामनगर रेलवे स्टेशन के विस्तारीकरण के चलते हमारे सभी व्यापारियों को यहां से जमीन खाली करनी पड़ी।
सादिक अहमद के अनुसार 12 मार्च 2000 को उत्तर प्रदेश में रहते हुए सभी व्यापारी तत्कालीन उपजिलाधिकारी जो उस दौरान मंडी समिति रामनगर के अध्यक्ष का प्रभार भी संभाल रहे थे से मिले। व्यापारियों ने उनसे मंडी समिति में लकड़ी रखने के लिए जगह मुहैया कराने की मांग की। सभी लाइसेंसधारी लकड़ी व्यापारियों को लकड़ी के भंडारण के लिए छोटे भूखंडो में खाली पड़ी भूमि आवंटित कराने की एवज में इसके किराए के रूप में एक राशि निर्धारण की भी मांग की गई। अहमद आगे बताते हैं कि इसके बाद 11 सितम्बर 2000 को हमें मंडी समिति परिसर में लकड़ी रखने की इजाजत दी गई। जबकि इसका प्रस्ताव 23 मई 2000 को हो चुका था। इसके तहत सभी लाइसेंसधारी लकड़ी व्यापारियों को इस शर्त के साथ भूखंड आवंटित किए गए कि उन्हें यहां कोई भी निर्माण नहीं कर सकते हैं और अपनी लकड़ियां रखकर कारोबार कर सकते हैं। इसके बाद से हर साल हम सभी व्यापारी आवंटन का नवीनीकरण करते हैं, साथ ही लकड़ी रखने की एवज में वार्षिक किराया भी देते हैं। नवंबर 2023 से जनवरी 2024 की तिमाही मंडी शुल्क की ही बात करें तो लकड़ी व्यापरियों ने 12 लाख 6 हजार 165 रुपए का भुगतान किया है। यह तो सिर्फ तीन माह का ही मंडी शुल्क है वार्षिक शुल्क की बात करें तो वह 50 लाख के करीब होगा। वे कहते हैं कि मंडी समिति द्वारा मंडी के अन्य लाइसेंसधारी व्यापारियों को अनेक सुविधाएं दी जाती हैं लेकिन लकड़ी व्यापारियों को कोई सुविधा प्रदान नहीं की जा रही है। जबकि इस सम्बंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा वर्ष 1977 में केवल कृष्ण पुजारी बनाम पंजाब राज्य व अन्य में 4 मई 1979 द्वारा पारित निर्णय के अनुसार किसी भी फीस जैसे मंडी शुल्क के बदले शुल्क देने वाले को कोई भी सुविधा शेष नहीं रह जाएगी।
लकड़ी व्यापारी मणि भारद्वाज की मानें तो हमारे पास उत्तर प्रदेश कृषि उत्पादन मंडी अधिनियम 1964 की धारा 9 के तहत जारी वैध मंडी लाइसेंस है जिसका उत्तराखण्ड कृषि उत्पादन अधिनियम 1964 के प्रावधानों के तहत नवीनीकरण किया जाता रहा है। भारद्वाज दावा करते हैं कि जो लोग यह सोचते हैं कि लकड़ी का कारोबार कृषि क्षेत्र में नहीं आता है उनके व्यापारियों को कृषि मंडी में कैसे जगह दे दी गई उन्हें बताना जरूरी है कि उत्तराखण्ड कृषि उत्पादन विपणन (विकास एवं विनियमन) अधिनियम 2011 की अनुसूची के अनुसार लकड़ी को वन उत्पादन की श्रेणी में शामिल किया गया है। इस चलते लकड़ी को कृषि उत्पाद के रूप में भी शामिल किया गया है, जिस पर मंडी शुल्क लगाया जा सकता है। भारद्वाज बताते हैं कि इस तथ्य के बावजूद कि भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 2(4) के अनुसार लकड़ी एक वन उपज है। बावजूद इसके हमें लकड़ी को लाने के लिए सीमा शुल्क देना पड़ता है। यही नहीं बल्कि उसी लकड़ी पर हमें अतिरिक्त रूप से मंडी शुल्क भी देना पड़ता है। पहले हम व्यापारी लोग सीधे मंडी शुल्क का भुगतान करते थे। लेकिन 30 अगस्त 2022 को एक आदेशानुसार मंडी समितियों ने वन विकास निगम के नीलामी डिपो में ही मंडी शुल्क की वसूली सुनिश्चित की है। जबकि इस बाबत 9 मई 2022 को ही लकड़ी व्यापारियों द्वारा राज्य सरकार से मंडी अधिनियम में संशोधन करने की मांग की थी ताकि लकड़ी पर दोहरे शुल्क से बचा जा सके। उनकी इस मांग पर विचार तो किया नहीं गया, बल्कि उल्टे उन्हें जमीन खाली करने के नोटिस दे दिए गए।
22 जुलाई 2024 को उत्तराखण्ड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड के प्रबंध निदेशक बीएस चलाल ने सफीक अहमद निवासी रामनगर बनाम रामनगर मंडी समिति के सचिव के मामले में आदेश करते हुए कहा ‘मंडी समिति रामनगर के क्षेत्र में कोई शीतगृह नहीं है। मंडी स्थल रामनगर में लकड़ी के व्यापारियों को आवंटन किए गए फंड को रिक्त करवाकर उक्त स्थान पर शीतगृह का निर्माण किए जाने का प्रस्ताव है। इससे आम, लीची एवं अदरक का उत्पादन करने वाले उत्पादकों को शीतगृह की सुविधा सुलभ हो सकेगी। उपरोक्त स्थिति में नवीन मंडी स्थल में आधुनिकीकरण के कार्य की आवश्यकता को दृष्टिगत रखते हुए मंडी स्थल में लकड़ी व्यापारियों को आवंटित फंडों का आवंटन निरस्त किया गया है जो कृषक एवं उत्पादकों के हित में है।’ हालांकि इससे पूर्व ही सभी लकड़ी व्यापारियों को 31 जनवरी 2024 को ही इस बाबत नोटिस जारी कर दिए गए थे। इसके बाद अगला नोटिस 22 जनवरी तथा 27 जनवरी 2024 को भी जारी किया गया। इसके बाद व्यापारी इस मुद्दे पर हाईकोर्ट की शरण में गए जहां यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए गए।
शीतगृह के बहाने रिसार्ट बनाने की तैयारी?
रामनगर के किसानों की मानें तो यहां उनका कभी भी इतना फल या सब्जी नहीं बचती है जिसे वे शीतगृह में रखने के लिए सरकार से मांग कर सके। सवाल है कि जब किसानों ने शीतगृह बनवाने की मांग उत्तराखण्ड कृषि उत्पादन विपणन बोर्ड से नहीं की तो ऐसे में लकड़ी व्यापारियों को उजाड़कर शीतगृह बनाने की बात कहां से आई? लकड़ी व्यापारी लईक अहमद की मानें तो मंडी समिति की इस जमीन पर मंडी परिषद के अध्यक्ष अनिल कुमार डब्बू की नजर है। वे शीतगृह के नाम पर हमसे जमीन छीनकर यहां रिसोर्ट बनाने के सपने देख रहे हैं। लेकिन लकड़ी व्यापारी उनका यही सपना पूरा नहीं होने देंगे। अहमद कहते हैं कि ‘डब्बू’ आजकल मंडी समितियों में इसीलिए निरीक्षण कर रहे हैं कि कहां से जमीन ली जाए और उसके नाम पर वारे-न्यारे किए जाए? वे आगे कहते हैं कि अगर ऐसा नहीं होता तो हमें सूचना अधिकार अधिनियम के तहत मिली जानकारी में यह स्पष्ट नहीं होता कि मंडी समिति की जमीन पर शीतगृह का कोई सुझाव ही नहीं है। किसी भी प्रोजेक्ट को बनाने के लिए पहले इस्टीमेट बनाया जाता है लेकिन यहां शीतगृह के लिए ऐसा कोई इस्टीमेट नहीं बना है।
आदेशों के 35 साल बाद भी व्यापारियों को नहीं मिली जमीन
वर्ष 1990 में जब लकड़ी व्यापारियों को रेलवे की जमीन से हटाया जा चुका था और उन्हें अपनी लकड़ियों के भंडारण की जगह नहीं मिल रही थी तब व्यापारियों ने उत्तर प्रदेश सरकार से उन्हें जमीन देने की मांग की थी। जिसके बाद 5 फरवरी 1991 में इस मांग पर विचार करते हुए रामनगर के तत्कालीन परगनाधिकारी डी.के. सिंह जो उस समय मंडी समिति के अध्यक्ष का प्रभार भी देख रहे थे। उन्होंने व्यापारियों के हित में एक लिखित आदेश दिया। जिसमें कहा गया कि मंडी समिति के पास वर्तमान में 3.92 एकड़ भूमि खाली है। जिसमें बाग है। बाग में आम के 75 लीची के 60 कटहल के 30, अमरूद के 22, आंवला के 16, शरीफा का एक तथा नींबू के 3, अनार के तीन, शीशम के 30, जामुन के 4 तथा सेमल का एक पेड़ है। इस बाग का अधिग्रहण नवीन मंडी स्थल निर्माण हेतु ही किया गया था इसलिए बाग कटवाने की अनुमति वन विभाग से लेनी पड़ेगी। समिति को मंडी शुल्क की आय का 30 प्रतिशत लकड़ी के व्यापार से ही प्राप्त होता है। यदि समिति की 3.92 एकड़ भूमि पर लकड़ी मंडी बना दी जाए तो लकड़ी उत्पादन, विक्रेता एवं व्यापारी को काफी सुविधा होगी। इसी के साथ तत्कालीन परगनाधिकारी डी.के. सिंह द्वारा कहा गया कि मंडी समिति ने अपने नवीन मंडी स्थल की 3.92 एकड़ जमीन जिसमें बाग है पर लकड़ी मंडी निर्माण कराए जाने का प्रस्ताव कर दिया। यही नहीं बल्कि डी.के. सिंह द्वारा कृषि उत्पादन मंडी समिति रामनगर के सचिव को निर्देश दिए कि वह बाग कटवाने के लिए वन विभाग की अवश्य कार्यवाही करे। लेकिन उसके बाद कोई कार्यवाही नहीं हुई। 35 साल बाद आज भी डी.के. सिंह के आदेश प्रभावी नहीं हो सके। आज भी उक्त 3.92 एकड़ जमीन पर बाग खड़ा हुआ है और लकड़ी व्यापारी बेदखल होने के कगार पर हैं।
बात अपनी-अपनी
मंडियों का आधुनिकीकरण का कार्य किया जा रहा है जिससे उनके राजस्व बढ़े। मंडियों का राजस्व भी बढ रहा है, साथ में उनका विकास हो रहा है जिसके लिए कई अहम परिवर्तन किए जा रहे हैं जिसमें रामनगर की मंडी भी शामिल है। इस मंडी में जो लकड़ी व्यापारी करोड़ों रुपए की जमीन को मात्र 20 से 30 रुपए महीने के हिसाब से कब्जाए बैठे हैं वहां हमें शीतगृह बनाकर किसानों के हित में कार्य करना है। इसलिए लकड़ी व्यापारियों को वहां से हटाया जा रहा है। लकड़ी व्यापारी सिर्फ नाम मात्र की लकड़ी डालकर जमीन कब्जाए बैठे हैं। उनका कब्जा भी हटाना है। क्योंकि यह जमीन मंडी की है तो मंडी के विस्तारीकरण में इस जमीन का सदुपयोग किया जाना जरूरी है।
अनिल कपूर ‘डब्बू’, अध्यक्ष मंडी परिषद उत्तराखण्ड
जब हमसे आरटीआई में पूछा गया था कि शीतगृह बनाने का क्या प्रस्ताव है और इसकी डीपीआर की बाबत पूछा गया था तब शीतगृह का कोई प्रस्ताव ही नहीं था, न ही कोई डीपीआर बनी थी, लेकिन वर्तमान में शीतगृह का प्रस्ताव भी बन चुका है और डीपीआर भी तैयार की जा चुकी है। रिसॉर्ट का प्रस्ताव बाग में दिया गया था। लेकिन उसे बोर्ड द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया।
साहिल अहमद, मंडी सचिव रामनगर, नैनीताल
रामनगर क्षेत्र में शीतगृह की कोई जरूरत ही नहीं है। यहां शीतगृह रखने के लिए आलू या सेव आदि कोई भी सब्जी या फल इतनी बड़ी मात्रा में नहीं उगाया जाता है जिसके लिए कोल्ड स्टोर बनाना पड़े। किसानों के नाम पर मंडी समिति अपने हितों को साधने का काम कर रही है। जिस रिसॉर्ट को यहां बनाने की चर्चा है उस रिसॉर्ट में भी किसान नहीं, बल्कि नेताओं का आरामगृह बनाया जाएगा। मंडी समिति को यह जमीन लकड़ी व्यापारियों को ही देनी इसलिए जरूरी है क्योंकि इनकी रोजी-रोटी यहां से चलती है।
दीवान कटारिया, अध्यक्ष, भारतीय किसान संघ