पूर्व में भगवान राम की नगरी अयोध्या और विष्णु स्थली बद्रीनाथ में करारी हार के बाद अब सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा भोले के दर केदारनाथ पर जीत दर्ज कर हिंदुत्व का वर्चस्व बनाए रखने में जी-जान से जुटी है। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट रहा केदारनाथ मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के लिए भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन चुका है। धामी के लिए यह सीट जीतना अपनी नाक और साख बचाने का सवाल है। भाजपा ने टिकट की आस लगाए बैठे बागी नेताओं को लॉलीपॉप देकर फिलहाल शांत कर दिया है। जबकि दूसरी तरफ मंगलौर और बद्रीनाथ उपचुनाव जीतने के बाद कांग्रेस अब केदारनाथ के दरबार में अपना परचम लहराने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है। टिकट बंटवारे में हुई गुटबाजी को दूर कर कांग्रेस इस चुनाव को 2027 का रिहर्सल मानकर चल रही है। भाजपा विकास के पैमाने को आगे कर मजबूती से मैदान में है तो कांग्रेस एंटी इनकम्बेंसी पर अपनी जीत का आधार बनाए हुए है। हालांकि दोनों ही पार्टियों के लिए इस चुनाव में भीतरघात होने का खतरा मंडरा रहा है। अपने घर के भीतरघातियांे से निपटना भी भाजपा और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती है। बहरहाल, भाजपा-कांग्रेस में कांटे की टक्कर है
भारतीय जनता पार्टी ने इस बार उत्तराखण्ड में हो रहे उपचुनाव में पुराना मिथक तोड़ नई परिपाटी शुरू की है। अब तक तो होता यह आया था कि उपचुनाव में सहानुभूति अर्जित करने के लिए भाजपा दिवंगत नेता के ही परिजनों को टिकट देती रही है। इस नाते केदारनाथ की पूर्व विधायक शैला रानी रावत की पुत्री ऐश्वर्या रावत दावेदार थी। जिसने बाकायदा जनता के बीच जाना और अपने नाम के आगे शैलपुत्री लिख कर सहानुभूति प्राप्त करने का राजनीतिक इस्तेमाल भी करना शुरू कर दिया था। इसके अलावा भाजपा में एक-दूसरे सशक्त उम्मीदवार कुलदीप रावत भी थे जो यहां से दो बार के विधानसभा चुनाव में निर्दलीय चुनाव लड़कर दूसरे नंबर पर आते रहे वह गत लोकसभा चुनाव में यहां से उम्मीदवार बनने की आस में भाजपा में आ गए थे लेकिन भाजपा ने दोनों दावेदारों को दरकिनार करते हुए यहां की पूर्व विधायक आशा नौटियाल को टिकट थमा कर आशा की नई किरण पैदा कर दी। जबकि कांग्रेस ने पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत और कुंवर सजवाण की दावेदारी को साइड करते हुए यहां से पूर्व विधायक मनोज रावत पर भरोसा जताया। वर्ष 2017 में प्रचंड मोदी लहर के बावजूद केदारनाथ सीट से पहली बार विधायक बने रावत को 2022 के विधानसभा चुनावों में तीसरे स्थान पर रहना पड़ा था। रावत ने पत्रकारिता के क्षेत्र से राजनीति में कदम रखा है।
केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव भाजपा के लिए साख और नाक का सवाल बना हुआ है। हाल ही में हुए दो उपचुनाव भाजपा के लिए बेहद
निराशाजनक रहे थे। पार्टी को मंगलौर और बदरीनाथ विधानसभा सीट हारनी पड़ी थी। जिसके बाद भाजपा ने अब केदारनाथ विधानसभा उपचुनाव को अपने अहम की लड़ाई मान लिया है। भाजपा संगठन ने केदारनाथ विधानसभा सीट उपचुनाव के लिए प्रदेश महामंत्री आदित्य
कोठारी के साथ ही कई मंत्रियों की ड्यूटी लगाई है। खुद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी इस चुनाव में पल-पल की खबर ले रहे हैं। धामी ने अपने आपको केदारनाथ का चुनाव होने तक यहां का विधायक कहा है।
दूसरी तरफ कांग्रेस ने जहां केदारनाथ प्रतिष्ठा रक्षा यात्रा में पुरजोर तरीके से केदारनाथ मंदिर सोने की परत और दिल्ली में बनाए जा रहे केदारनाथ मंदिर स्वरूप का मामला उठाया तो वहीं उपचुनाव से पहले से ही अपने अपने समर्थकों को टिकट दिलाने की कोशिशों चलते कांग्रेस की गुटबाजी ने इस मेहनत पर पानी फेर दिया है। ऐसे में माना जा रहा है कि हाईकमान के फैसलों से केदारनाथ उपचुनाव को लेकर प्रदेश अध्यक्ष और शीर्ष नेतृत्व व उत्तराखण्ड कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच समन्वय की कमी है। हाईकमान यानी प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा की तरफ से वर्चुअल बैठक या देहरादून में कार्यकर्ताओं के साथ कोई बैठक नहीं किया जाना कांग्रेस की हताशा और निराशा को दर्शा रहा है।
भाजपा के लिए केदारनाथ सीट का महत्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि यह सीट पहले से उसके पास थी, बल्कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं से भी जुड़ी हुई है। केदारनाथ धाम का पुनर्निर्माण प्रधानमंत्री मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट्स में से एक रहा है। बीते कुछ समय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केदारपुरी का पुनर्निर्माण करके इसे नए रूप में निखारा गया है। ऐसे में भाजपा के लिए यह सीट सिर्फ एक विधानसभा सीट नहीं, बल्कि प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है।
एक तरफ हरियाणा में यह माना जा रहा था कि कांग्रेस वहां सरकार बनाने जा रही है लेकिन अंदरूनी गुटबाजी की वजह से कांग्रेस की सरकार वहां बनते बनते रह गई। कांग्रेस के ही नेताओं की मानें तो कुमारी शैलजा के पास उत्तराखण्ड में होने जा रहे केदारनाथ विधानसभा के उपचुनाव में भूल सुधार किए जाने का बेहतरीन मौका था, लेकिन उनकी निष्क्रियता के कारण कांग्रेस पार्टी के लिए केदारनाथ उपचुनाव भी पार्टी के लिए चुनौती बनता जा रहा है। पार्टी सूत्रों का यह भी कहना है कि प्रदेश प्रभारी बनने के बाद उनके जितने भी उत्तराखण्ड दौरे हुए वो मात्र कुछ घंटे के ही रहे हैं। एक दिन भी उन्होंने कार्यकर्ताओं ,संगठन से जुड़े पदाधिकारियों के साथ संवाद स्थापित करने की जहमत नहीं उठाई। दिल्ली में वातानुकूलित कमरों में उनकी ओर से पार्टी के नेताओं के साथ बैठकें की गई, लेकिन जमीनी कार्यकर्ताओं से उन्होंने मिलना भी मुनासिब नहीं समझा।
केदारनाथ सीट के उपचुनाव को लेकर जहां भाजपा अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए पूरी ताकत झोंक रही है, तो दूसरी तरफ कांग्रेस इस मौके को अपने पक्ष में करने के लिए संघर्षरत है। दोनों ही दल इस सीट को जीतने के लिए अलग-अलग रणनीतियों पर काम कर रहे हैं। हालांकि इसका पता तो आगामी 23 नवंबर को चुनाव परिणाम के दौरान ही चलेगा कि किसकी रणनीति कामयाब रही। अब तक हुए पांच विधानसभा चुनाव में यहां तीन बार भाजपा और दो बार कांग्रेस जीत चुकी है। यह सीट वैसे तो ठाकुर बाहुल्य है। इस चलते एक बार लोकसभा चुनावों में सतपाल माहराज ने सतपाल सिंह रावत नाम से पोस्टर चिपकवाए थे। लेकिन यहां कभी जातिवाद का मुद्दा नहीं चला है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी विकास के रास्ते इस सीट को जितने के उम्मीद लगाई बैठे हैं। शायद यही वजह है कि उन्होंने चुनाव से पूर्व ही केदारनाथ में करोड़ों की योजनाओं की घोषणा की है। जिनमें नई सड़कों और शौचालयों के निर्माण से लेकर ऑडिटोरियम और खेल मैदानों के विकास तक शामिल है। धामी ने पिछले कुछ महीनों में केदारनाथ के लिए करीब 39 नई परियोजनाओं की घोषणा की है। इसके अलावा, धामी ने श्री बद्रीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) के अस्थायी कर्मचारियों को नियमित करने की भी घोषणा कर मंदिर समिति की नाराजगी को कम करने का प्रयास किया है।
इस बावत अध्यापिका सरिता पंवार कहती है कि मुख्यमंत्री ने वन टाइम सेटलमेंट समझौते के तहत बीकेटीसी के अस्थायी कर्मचारियों को नियमित करने की घोषणा की है। धामी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार इस अवसर का उपयोग राज्य में स्थिरता बनाए रखने के लिए विकास की अपनी नीतियों और योजनाओं को पेश करने के लिए करना चाहती है। बहुत कम समय में मुख्यमंत्री ने विधानसभा क्षेत्र के लिए तीन दर्जन से अधिक परियोजनाओं की घोषणा कर विकास की तस्वीर बनाई है।
फिलहाल उपचुनाव प्रतिष्ठा की लड़ाई बन गया है, क्योंकि कांग्रेस सीधे तौर पर भाजपा से भिड़ रही है और उस पर ‘केदारनाथ चुनाव से पहले हिंदू-मुस्लिम तनाव भड़काने’ का आरोप लगा रही है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आरोप लगाया कि हार के डर से भाजपा विभाजनकारी राजनीति कर रही है और वोट के लिए धर्म का इस्तेमाल कर रही है। इसने ‘लैंड जिहाद’, ‘लव जिहाद’ और ‘थूक जिहाद’ जैसे मुद्दे उठाए हैं। अक्टूबर की शुरुआत में धामी ने धर्मांतरण के अलावा इन मुद्दों पर विस्तार से बात की और कहा कि उत्तराखण्ड की देवभूमि (पवित्र भूमि) में ऐसी गतिविधियों की अनुमति नहीं दी जाएगी।
केदारनाथ के वरिष्ठ पत्रकार हरीश गुसाई की मानें तो इस बार भाजपा ने सबको साध लिया है। चाहे वह पूर्व विधायक शैला रानी रावत की पुत्री ऐश्वर्या रावत हो या पूर्व में दो बार निर्दलीय चुनाव लड़कर तेरह-तेरह हजार वोट पाने वाले कुलदीप रावत हो। दोनों को भाजपा ने फिलहाल आगामी दिनों में चुनाव लड़ाने और महत्वपूर्ण दायित्व का पद देने का आश्वासन देकर संतुष्ट कर दिया है। कुलदीप रावत तो अब भाजपा के साथ मंच भी शेयर कर रहे हैं। पिछले दिनों तिलवाड़ा में हुई एक जनसभा में कुलदीप रावत ने अपने सभी समर्थकों को बुलाकर भाजपा नेताओं के समक्ष यह तक कह दिया कि वह अपने सारे समर्थकों को अब आशा नौटियाल जी के चुनाव जिताने के लिए मैदान में उतर रहे हैं। हालांकि ऐश्वर्या रावत के समर्थक अभी तक भाजपा के पक्ष में एकजुट नहीं है। इसकी वजह वह अभी तक खुलकर पार्टी के पक्ष में प्रचार नहीं कर रही है। हरीश गुसाई यह बताना नहीं भूलते हैं कि भाजपा ने हरक सिंह रावत को हल्का करने के लिए उनकी बहू अनुकृति गुसाई को पार्टी प्रत्याशी आशा नौटियाल के साथ लगा दिया है जो कांग्रेस कल तक हरक सिंह रावत के लच्छेदार भाषणों पर फूलें नहीं समा रही थी वह अब हरक सिंह की बहू के भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में उतर जाने पर पशोपेश में है।
पत्रकार हरीश गुसाई की मानें तो कांग्रेस का प्लस प्वाइंट यह है कि भाजपा के द्वारा किए गए अतिक्रमण हटाओ अभियान से जनता काफी खफा है। जबकि कांग्रेस की सबसे बड़ी कमजोरी यह है कि वह अपने ही नेताओं की आपसी गुटबाजी को अभी तक नहीं थाम पाई है। सब जानते हैं कि पार्टी द्वारा उम्मीदवार घोषित किए जाने से पहले केदारनाथ में दो धड़े खुलकर आमने-सामने थे। गणेश गोदियाल वर्सेस करण माहरा की यह लड़ाई हालांकि अब मंच पर तो दिखाई नहीं देती है लेकिन दोनों के मन में कहीं न कहीं एक टीस जरूर है। प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा औपचारिकता की भूमिका में है तो दूसरी तरफ गणेश गोदियाल इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा बना चुके हैं। इसकी वजह भी यह है कि गणेश गोदियाल ने मनोज रावत को टिकट दिलाने के लिए पूरी जान लगा दी थी। वह टिकट वितरण के मामले में प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा पर भारी पड़े हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि अगर मनोज रावत यह चुनाव जीते तो कांग्रेस गणेश गोदियाल को इस जीत के तोहफे के रूप में उन्हें पुनः प्रदेश अध्यक्ष की कमान सौंप देगी।
अगस्त मुनि के राज्य आंदोलनकारी गजेंद्र रौतेला कहते हैं कि इस बार केदारनाथ में मनोज रावत मजबूती के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। मनोज रावत ने यहां के लोगों का 2018 में ही उस समय दिल जीत लिया था जब वे विधायक रहते विधानसभा में भू कानून के मुद्दे पर भाजपा सरकार पर जमकर बरसे थे। उन्होंने इस मामले को न केवल जोर-जोर से उठाया था, बल्कि आने वाले दिनों में पहाड़ी अस्मिता के साथ खिलवाड़ वाला मुद्दा भी करार दिया था। आज जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भू कानून लाने की तैयारी कर रहे हैं तो ऐसे में मनोज रावत के 2018 में इस मुद्दे पर विधानसभा में दिए गए भाषण की चर्चा आम है। उन्हें पहाड़ के लोगों द्वारा विशेष अहमियत दी जा रही है। यहां भाजपा के खिलाफ केदारनाथ की यात्रा का रूट परिवर्तन का मुद्दा मुख्य है। जिसमें यात्रा से आजीविका चलाने वाले दुकानदार नाराज है। दुकानदारों के साथ ही होटल व्यवसायी और चाय की दुकान चलाने वाले लोग भाजपा से इसलिए भी नाराज है कि उनके अतिक्रमण के नाम पर रोजगार के साधनों पर बुलडोजर चलाया गया, जबकि दूसरी तरफ देहरादून की मलिन बस्ती को बचाने के लिए भाजपा द्वारा अध्यादेश लाया गया। यह मुद्दा आज भाजपा सरकार के लिए बड़ी मुसीबत बनकर सामने आ रहा है।
गजेंद्र रौतेला यह भी बताते हैं कि गौरीकुंड व्यापार संघ के अध्यक्ष राम गोस्वामी जैसे नेता जो संघ पृष्ठ भूमि से है वह भी इस बार भाजपा से खार खाए हुए हैं। साथ ही बद्री केदार समिति भी भाजपा से इसलिए नाराज है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने केदारनाथ का शिलान्यास दिल्ली के बुराड़ी में किया था। इसी नाराजगी को कांग्रेस भुनाने की कोशिश कर रही है।