अठारह दिसम्बर 2016 को तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने आधा दर्जन मंत्रियों की उपस्थिति में जिस अंतरराष्ट्रीय खेल स्टेडियम का लोकार्पण करते हुए इसे युवाओं को दिया गया नायाब तोहफा करार दिया था, लगभग दो सौ करोड़ की लागत से बना यह खेल परिसर सरकारी तंत्र की उपेक्षा का शिकार हो अब अंतरराष्ट्रीय होने का टैग खोने की कगार पर जा पहुंचा है। सत्तर एकड़ के विशाल भूभाग पर बने इस स्टेडियम को गौला नदी में आई बाढ़ से बड़ा खतरा पैदा हो गया है। खतरे की घंटी एक वर्ष पूर्व 2023 में मानसून काल के दौरान ही बजने लगी थी लेकिन डबल इंजन की सरकार इसे नजरअंदाज करती रही। गौला के रौद्र रूप ने स्टेडियम की दो हेक्टेयर भूमि को लील लिया है जिसका सीधा असर खेल परिसर को मिले अंतरराष्ट्रीय दर्जे से जुड़ता है। मानक अनुसार 35 हेक्टेयर भूमि वाले खेल परिसरों को ही अंतरराष्ट्रीय खेल परिसर का दर्जा दिया जा सकता है। यदि अब भी राज्य सरकार नहीं चेती तो राज्य भर के खिलाड़ियों के सपने भी ध्वस्त हो जाएंगे
जब राजनीतिक दृष्टि साफ न हो और सिस्टम भी उसी राजनीतिक नजरिए के साथ कदम ताल करने लगे तो समझ जाना चाहिए कि राजनीति और सिस्टम का ये घालमेल अपनी जवाबदेही से बचता नजर आएगा। ऐसा ही कुछ हल्द्वानी के इंदिरा गांधी इंटरनेशनल स्पोर्ट्स स्टेडियम के साथ हो रहा है। गौला नदी के पानी से हुए भूकटाव के चलते स्टेडियम नदी के मुहाने तक पहुंच गया है। सरकारी तंत्र और उसके मंत्री कई चेतावनियों को नजरअंदाज करते हुए इतने बेपरवाह रहे कि भारी बारिश के चलते गौला नदी भूकटाव करते हुए स्टेडियम तक पहुंच गई लेकिन खेल विभाग की मंत्री रेखा आर्य भारी वर्षा में ‘खली’ के कार्यक्रम का उद्घाटन करने तो हल्द्वानी पहुंची लेकिन उन्होंने स्पोर्ट्स स्टेडियम की तबाही की ओर एक नजर डालने की जहमत नहीं उठाई। मनोरंजन और तबाही के बीच मनोरंजन उनकी प्राथमिकता में रहा। ये सरकार और उनके मंत्रियों की प्राथमिकताओं को दिखाता है ऐसा तब जबकि रेखा आर्य नैनीताल जिले की प्रभारी मंत्री भी हैं।
2016 में वजूद में आया हल्द्वानी का इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स स्टेडियम कांग्रेस की कद्दावर नेता स्व. इंदिरा हृदयेश के उन सपनों में से एक था जिनके जरिए वो हल्द्वानी को देश के अग्रणी शहरों में शुमार करना चाहती थीं। अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम, अंतर्राज्यीय बस अड्डा और विश्वस्तरीय चिड़ियाघर उनकी उन योजनाओं में था जिनके लिए उन्होंने मंत्री रहते लंबी लड़ाई लड़ी थी। अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम को तो वो वित्त मंत्री रहते काफी हद तक धरातल में उतार गई थीं। जहां तक अंतरर्राज्यीय बस अड्डे की बात है तो वो पहले कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति का शिकार हुआ लेकिन 2016 में उसके शिलान्यास होने के बाद 2017 में भाजपा की सरकार आने के बाद वो दलीय राजनीति का शिकार हो गया। अंतर्राज्यीय बस अड्डे की जमीन और उसके निर्माण का इंतजार हल्द्वानी वासियों को ही नहीं बल्कि समूचे कुमाऊं की जनता को भी है। इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स जिसे सामान्य तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम भी कहा जाता है, गौला नदी के किनारे 37 हेक्टेयर में 190 करोड़ की लागत से बनाया गया है।
विश्वस्तरीय सुविधाओं से युक्त ये स्टेडियम अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाया गया है। इसमें क्रिकेट, फुटबॉल का मैदान, दौड़ के लिए एक टैªक, एक हॉकी फील्ड, बैडमिंटन कोर्ट, स्वीमिंग पूल, लॉनटेनिस कोर्ट और बॉक्सिंग रिंग के साथ अन्य खेलों के लिए भी सभी सुविधाएं हैं। क्रिकेट स्टेडियम की क्षमता 10 हजार की है। सरकारी हीलाहवाली और अपनी जवाबदेही से बचते सिस्टम के चलते न सिर्फ इस स्टेडियम के अस्तित्व पर खतरा पैदा हो गया है, बल्कि इसके अंतरराष्ट्रीय दर्जा बरकरार रहने पर भी सवाल उठने लगे हैं। गौला नदी के किनारे बने इस स्टेडियम की सुरक्षा के लिए ठोस व स्थाई उपाय करने के स्थान पर अस्थाई कार्यों से बस लीपापोती का काम किया जा रहा है। इस स्पोर्ट्स स्टेडियम के पास बहने वाली गौला नदी ने पहली बार कहर नहीं बरपाया है। 2023 के मानसून में भी गौला नदी भूकटाव करते हुए स्टेडियम की तरफ बढ़ रही थी। तब सरकारी तंत्र भूकटाव रोकने के लिए खानापूर्ति में लगे रहे। 2023 में पूरे खेल कॉम्पलेक्स के आस-पास काफी नुकसान पहुंचा था। क्रिकेट स्टेडियम की सुरक्षा दीवार के साथ सड़क बह गई थी। इसमें दीवार का एक बड़े हिस्से को नदी गौला ने अपनी चपेट में ले लिया था।
क्रिकेट स्टेडियम के पास पार्किंग और जॉगिंग टैªक भी गौला की बाढ़ की चपेट में आ गए थे। लेकिन सरकारें, खेल विभाग और सिंचाईं विभाग लापरवाह बने रहे। पिछले साल वायरक्रेट से बनाई गई अस्थाई व्यवस्था का अधिकांश हिस्सा इस बार की बाढ़ में समा गया है। इस वर्ष मानसून के शुरुआती दौर में जुलाई में ही आई बारिश के चलते स्टेडियम के किनारे 400 मीटर का एक हिस्सा भूस्खलन की चपेट में आ गया था। उस वक्त नदी की दूरी स्टेडियम से 40 मीटर थी। सितम्बर में हुई बारिश के चलते भूकटाव के कारण ये दूरी महज 20 मीटर रह गई है। कई जगह पर तो नदी से स्टेडियम कॉम्पलेक्स की दूरी महज कुछ सौ कदमों की रह गई है। अगर इस सीजन में वर्षा ने अपना फिर रौद्र रूप दिखाया और गौला नदी का रूख स्टेडियम की ओर रहा तो क्रिकेट स्टेडियम के एक बड़े हिस्से को खतरा पैदा हो सकता है। अंतराष्ट्रीय स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स की ओर जिस प्रकार गौला नदी का बहाव हो रहा है उसका एक कारण पिछले वर्ष रेलवे लाइन को नुकसान से बचाने के लिए गौला के बहाव को बदलना है। उस वक्त स्टेडियम को होने वाले संभावित नुकसान की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। इस बार जब नदी स्टेडियम के एकदम करीब पहुंच गई तो स्टेडियम को भारी नुकसान पहुंचना शुरू हो गया। 37 हेक्टेयर में बने इस स्टेडियम की 2 हेक्टेयर से ज्यादा जमीन गौला लील चुकी है।
अगर भूकटाव का दौर यूं ही जारी रहा तो ये 35 हेक्टेयर के मानक से नीचे आ सकता है जिसके चलते इसके अंतरराष्ट्रीय दर्जा बरकरार रहने पर सवाल खड़े हो सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो इस वर्ष 38वें राष्ट्रीय खेलों के आयोजन पर भी सवालिया निशान लग जाएगा। 2023 के बाद स्टेडियम को हुए नुकसान के बाद प्रशासन व सिंचाई विभाग कोई पहल करते नहीं नजर आ रहे हैं। खेल विभाग और सिंचाई विभाग के अधिकारियों का काम मात्र प्रस्ताव देना रह गया प्रतीत होता है। शासन स्तर पर प्रस्तावों को ठंडे बस्ते में डाल देने की कुपरंपरा भी इस स्टेडियम की बदहाली के लिए जिम्मेदार है। सिंचाई विभाग ने इस बार 65 करोड़ का प्रस्ताव तैयार किया है। सवाल यहां पर सुरक्षा संबंधी कार्य का ही नहीं है जो भूमि गौला में समा गई है उसको रिकवर करना भी जरूरी है क्योंकि जो भूमि बह गई है उसमें पार्किंग, शूटिंग रेंज की भूमि का बड़ा हिस्सा है। इस प्रस्ताव पर शासन ने लगभग 21 करोड़ की मंजूरी तो दे दी है लेकिन स्टेडियम की दीर्घकालिक सुरक्षा के लिए 21 करोड़ का बजट शायद पर्याप्त नहीं है। इसके लिए बजट में किसी भी प्रकार की कटौती स्टेडियम के लिए भविष्य में खतरा ही पैदा करेगी।
मानसून के जाने के बाद गौला नदी अपने पुराने स्वरूप में आ जाएगी लेकिन उससे हुए नुकसान का आकलन करते हुए स्टेडियम की सुरक्षा के उपायों पर शासन-प्रशासन को ध्यान रखने की जरूरत है। शासन-प्रशासन की सुस्ती आपदा बाद होने वाले पुनर्निर्माण कार्यों पर हमेशा भारी पड़ी है। नदी को चैनलाइज करने का जो काम 2023 की आपदा के बाद शुरू हो जाना चाहिए था उस पर शासन-प्रशासन की उदासीनता कई सवाल खड़े करती है। आपदाओं का इंतजार करना सिस्टम का एक नियमित व्यवहार सा हो गया है। अगर शासन-प्रशासन इस बार भी स्टेडियम के सुरक्षा कार्यों के लिए हीलाहवाली करता है तो अगला मानसून पूरे स्टेडियम के अस्तित्व को लील जाएगा।
बात अपनी-अपनी
सरकार को स्टेडियम बोझ लग रहे हैं। हमने अपने कार्यकाल में गौला का रिवर फ्रंट बनाना मंजूर किया था। लेकिर रिवर फ्रंट को नहीं बनाया गया। आज इसके परिणाम सामने आ रहे हैं। जिस तरह गौला में खनन हो रहा है उससे गौला पुल तो है ही, बाईपास रोड भी खतरे में है। मैं जब पिछली बार यहां गया था तो मैंने कह दिया था कि यह सब ठीक नहीं हो रहा है। गौला नदी ने इस बार स्टेडियम तक पहुंचकर तीसरी बार वार्निंग दे दी है। अगर अभी भी ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में इसके परिणाम चिंताजनक होंगे।
हरीश रावत, पूर्व मुख्यमंत्री
इसको हमने आपदा न्यूनीकरण में शामिल कर लिया है। इसका प्रोटेक्शन किया जाना जरूरी है। स्टेडियम की एक हेक्टेयर जमीन को भी हमें रिक्लेम करना है। गौला नदी की सबसे बड़ी समस्या इस क्षेत्र में यह है कि यहां नदी लेवल बढ़ गया है। जिसे चैनलाइज किया जाना है। लेकिन समस्या यह है कि यह नदी क्षेत्र वन निगम के प्लान में नहीं है। जबकि नदी का मेटेरियल हटाना जरूरी है। अब हमें रेलवे, एनएचएआई और वन निगम से मिलकर इसका स्थाई समाधान करना है।
दीपक रावत, कमिश्नर, कुमाऊं मंडल
हल्द्वानी को देश में ही नहीं विदेशों में भी पहचान मिले इसलिए दिवंगत नेता इंदिरा हृदयेश जी ने अंतरराष्ट्रीय स्टेडियम स्थापना का सपना देखा था। लेकिन सरकार की सौतेलापूर्ण नीति के चलते यह सपना अब धराशायी होने की कगार पर जा पहुंचा है। अगर हम देहरादून और हल्द्वानी स्टेडियम की बात करें तो देहरादून स्टेडियम में खेलों की शुरुआत हो चुकी है। लेकिन हल्द्वानी स्टेडियम की हालत खस्ता है। यहां के हालात इतने खराब हैं कि कुर्सियां तक गिरने लगी हैं। डबल इंजजन की सरकर क्षेत्र के साथ भेदभव कर रही है। इससे आम इंसान में काफी रोष है।
सुमित हृदयेश, विधायक, हल्द्वानी
इस सम्बंध में मुझसे किसी अधिकारी ने कोई बात नहीं की है। स्टेडियम की स्थिति फिलहाल क्या है उसे देखने मैं जाऊंगाा इसके बाद ही पूरी बात बता पाऊंगा।
राजीव मेहता, पूर्व जनरल सेक्रेटरी, भारतीय ओलम्पिक संघ
खेल स्टेडियम को कोई नुकसान नहीं हुआ है। गौला नदी की बाढ़ से इतना जरूर हुआ है कि स्टेडियम की पार्किंग की बाउंड्री ढह गई है। इससे खेलों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। मैंने इस बाबत मामला सरकार के संज्ञान में डाला है। सरकार ने बाउंड्री इत्यादि बनाने के लिए 45.65 करोड़ रुपए स्वीकृत कर दिए हैं जिसका स्टीमेट भी बनाकर भेज दिया गया है। जल्द ही इस पर कार्य शुरू हो जाएगा।
महेश नेगी, अध्यक्ष, उत्तराखण्ड ओलम्पिक संघ