उत्तराखण्ड कांग्रेस इन दिनों भीतर से ही खदबदा रही है। प्रदेश अध्यक्ष करण माहरा को लेकर असंतोष खुलकर सामने आ रहा है। पार्टी के भीतर एक गुट उन्हें नेतृत्व से हटाने की खुली मांग कर रहा है और सूत्रों का दावा है कि कुछ नेता दिल्ली दरबार की दहलीज पर दस्तक भी दे चुके हैं। इन आरोपों में संगठनात्मक निष्क्रियता से लेकर रणनीतिक विफलता तक कई बातें शामिल हैं। इस पूरी उथल-पुथल के बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत लगभग अकेले ही सड़क पर डटे हैं। सरकार की नीतियों के खिलाफ आंदोलन करने से लेकर जनभावनाओं को भांपने तक का जिम्मा उन्होंने खुद उठाया है। हालिया दिनों में उन्होंने ‘गंगा सम्मान यात्रा’ के जरिए कांग्रेस को फिर से जनता के बीच लाने की कोशिश की, लेकिन संगठन का कमजोर ढांचा उनके साथ नहीं चल पा रहा है। कांग्रेस के इस अंतर्विरोध का राजनीतिक लाभ सत्तारूढ़ भाजपा चुपचाप उठाती दिख रही है। सत्ता पक्ष के खेमे में यह चर्चा गर्म है कि दो से तीन और कांग्रेस विधायक ‘सम्पर्क में’ हैं। यदि राजनीतिक परिस्थितियां अनुकूल रहीं, तो इन विधायकों की ‘घर वापसी’ कराई जा सकती है। राज्य के राजनीतिक गलियारों में यह भी गपशप तैर रही है कि भाजपा 2027 विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को पूरी तरह बिखेरने की रणनीति पर काम कर रही है। हरीश रावत जैसे नेता अगर संगठन से अलग-थलग पड़े रहे तो यह काम और आसान हो जाएगा। हालात ऐसे हैं कि कांग्रेस के कुछ पुराने नेता अब सार्वजनिक मंचों से यह कहते सुने जा रहे हैं कि ‘कांग्रेस का संकट विपक्ष से नहीं, अपने भीतर से है।’ इन हालातों में कांग्रेस के लिए संगठन को संवारना और जनसंपर्क मजबूत करना बड़ी चुनौती बन गया है।
बर्बादी की कगार पर उत्तराखण्ड कांग्रेस
