भारत में क्रिकेट प्रमियों की भरमार है, जिसे देखो वही क्रिकेट मैच की चर्चा करता रहता है या फिर मोबाइल, टीवी, लैपटॉप में क्रिकेट देखते नजर आता है। लेकिन उसी क्रिकेट पर बनी फिल्में देखने के लिए दर्शक सिनेमाघरों तक नहीं पहुंचते। ऐसी कई फिल्में हैं जो उन क्रिकेटरों बनी हैं जिन्हें स्टेडियम में तो खूब तालियां मिली मगर बॉक्स ऑफिस पर कोई ताली बजाने वाला ही नहीं मिला। ऐसे में क्रिकेट की पृष्ठभूमि पर बनी फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ को कमजोर कहानी और लचर निर्देशन होने के बावजूद दर्शकों का खूब प्यार मिल रहा है
भारत में क्रिकेट प्रेिमयों की भरमार है, जिसको देखो वो मोबाइल, टीवी, लैपटॉप में क्रिकेट मैच देखते हुए दिखाई दे सकता हैं लेकिन उसी क्रिकेट पर बनी फिल्म को देखने के लिए दर्शक सिनेमा घर का रुख नहीं करते हैं। ऐसी कई फिल्में हैं जो उन क्रिकेटरों को लेकर बनी हैं जिन्हें स्टेडियम में तो खूब तालियां मिली लेकिन बॉक्स ऑफिस पर कोई ताली बजाने वाला ही नहीं मिला। ऐसे में फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज माही’ जैसी कमजोर कहानी वाली फिल्म को दर्शकों से खूब प्यार मिल रहा है। भले ही इस फिल्म की पृष्ठभूमि क्रिकेट की हो लेकिन इस फिल्म की असल कहानी प्रेम, त्याग और अहंकार की है।
फिल्म की कहानी
हरदयाल (कुमुद मिश्रा) की जयपुर बीच बाजार में क्रिकेट के सामान की दुकान है। महेंद्र (राजकुमार राव) हरदयाल का बेटा है जो क्रिकेटर बनना चाहता है लेकिन उसके पिता दुकान संभालने को कहते हैं। महेंद्र क्रिकेटर बनने के लिए अपने पिता से सिर्फ दो साल मांगता है। लेकिन इन दो सालों में उसका क्रिकेट टीम में चयन नहीं हो पाता है और उसका सपना अधूरा रह जाता है। दूसरी ओर महिमा (जाह्नवी कपूर) भी क्रिकेट से लगाव रखती हैं लेकिन माता पिता के भारी दबाव के कारण वो डॉक्टर बन जाती हैं।
महेंद्र और महिमा दोनों की अरेंज मैरिज शादी होती है। शादी की पहली रात को ही महिमा को पता चलता है कि महेंद्र को क्रिकेट से लगाव है तो वह उसे फिर से क्रिकेट के लिए प्रोत्साहित करती है। पत्नी के कहने पर महेंद्र अपने कोच बेनी दयाल शुक्ला (राजेश शर्मा) से मिलता है, लेकिन उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाता है। बेनी महेंद्र को कोच बनने का सुझाव देते हैं। जिसे महेंद्र स्वीकार कर लेता है। तभी महेंद्र की नजर महिमा पर पड़ती है जो उसी मैदान पर चौके-छक्के लगा रही होती है। यह देखकर महेंद्र चौंक जाता है। वह खुद क्रिकेटर बनने का सपना छोड़ महिमा को कोचिंग देने लगता है और महिमा का स्टेट टीम में चयन भी करा देता है। समय के साथ बीवी की सफलता को देख महेंद्र अपने आप को असुरक्षित महसूस करता है। उसे लगता है कि महिमा तो फेमस हो गई, लेकिन वो वहीं का वहीं रह गया। इसका असर दोनों के वैवाहिक जीवन पर पड़ता है और रिश्ते में खटास पैदा हो जाती है। अब दोनों की जिंदगी किस करवट बदलती है, इसके लिए आपको यह फिल्म देखनी पड़ेगी।
कैसा रहा कलाकारों का अभिनय
राजकुमार राव एक मंझे हुए अभिनेता हैं उन्होंने अपने अभिनय से इस फिल्म में जान डालने की कोशिश की लेकिन कमजोर कहानी की वजह से उसे संभाल नहीं पाए हैं। जाÐवी कपूर ने अपने अभिनय से निराश किया है। पूरी फिल्म में उनका भाव लगभग एक जैसा ही रहा हैं। फिल्म में उन्होंने क्रिकेटर का रोल निभाया है। इस रोल में ढलने के लिए उन्हें थोड़ा और अभियास करने की जरूरत थी। क्रिकेट खेलते हुए वह सहज नहीं लग रही थी। कुमुद मिश्रा ने एक सख्त पिता के रूप में अपना असर छोड़ा है।
म्यूजिक और डायरेक्शन
फिल्म का गीत संगीत ऐसा है कि सिनेमाघर से बाहर निकलते ही उसके याद रहने की कोई गुंजाइश नहीं है। बैकग्राउंड म्यूजिक फिल्मों मेें जान डालने का काम करती है। लेकिन इस फिल्म में वो भी सही नहीं हैं बस एक गाना ‘तेनु पहली-पहली बार’ जो की फिल्म ‘कभी खुशी कभी गम’ से इस फिल्म में रीक्रिएट किया गया है, थोड़ा सुनने में अच्छा लगता है। रही बात फिल्म के डायरेक्शन की तो डायरेक्टर शरण शर्मा फिल्म की कहानी में दिलचस्पी पैदा करने में सफल नहीं हुए हैं। डायलॉग्स भी बहुत कमजोर लिखे गए हैं। फिल्म में क्रिकेट का अनुक्रम भी बिल्कुल नकली लगता है। डायरेक्टर इस फिल्म में कुमुद मिश्रा और जरीना वहाब जैसे सरीखे कलाकार से भी बेहतर अभिनय नहीं करवा पाए।