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महिला फिल्मकारों का बढ़ता जलवा

पिछले दिनों लाॅस एंजिल्स में 19वें फिल्म फेस्टिबल का आयोजन हुआ। यह 20 मई से 27 मई तक चला। इसमें 17 भाषाओं की 40 फिल्मों का आयोजन हुआ जिसमें 16 महिला निर्देशकों की फिल्मों को स्थान मिला जो दिखाता है कि बाॅलीवुड में महिला फिल्मकारों का दखल तेजी से बढ़ रहा है। रतनबाई से शुरू हुआ यह सफर अब कहीं आगे निकल आया। रतनबाई एवं फातिमा बेगम द्वारा उठाए गए कदम मील का पत्थर साबित हुए हैं। भारतीय फिल्म इतिहास की सबसे पहली फिल्म निर्मात्री रतनबाई को माना जाता है। उन्होंने कोहिनूर नामक फिल्म कंपनी बनाई लेकिन उन्होंने खुद किसी फिल्म का निर्देशन नहीं किया। फिल्म निर्देशन में पहला कदम फातिमा बेगम ने रखा। उन्होंने फातिमा फिल्म काॅरपोरेशन का गठन किया। 1926 में पहली फिल्म ‘बुलबुले परिस्तान’ बनाई। यह एक मूक फिल्म थी। इसके बाद ‘शकुंतला’, ‘चन्द्रावती’, ‘हीर-रांझा’, ‘मिलन’, ‘दीवार’, ‘नसीब की देवी’ ‘नसीब का चक्कर’ आदि का निर्देशन किया। इसके बाद ‘जद्दनबाई’ जो प्रसिद्ध अभिनेत्री नरगिस की मां थी। उन्होंने 1934-35 में एक संगीत फिल्म बनाई। इनके द्वारा निर्देशित पहली फिल्म ‘तलाशेहक’ थी। इसके बाद देविका रानी, गौहर, प्रतिभा दास गुप्ता आदि महिलाएं निर्देशन के क्षेत्र से जुड़ीं।

महिला फिल्मकारों एवं उनकी फिल्मों पर नजर डालें तो फातिमा बेगम ने 1922 में फिल्म ‘वीर अभिमन्यु’ के जरिए भारतीय फिल्म जगत में प्रवेश किया। इसके बाद ‘बुलबुले परिस्तान’ बनाई। यह एक मूक फिल्म थी। इसके बाद ‘शकुंतला’, ‘चन्द्रावती’, ‘हीर-रांझा’, ‘मिलन’, ‘दीवार’, ‘नसीब की देवी’ ‘नसीब का चक्कर’, ‘शकुन्तला’ फिल्मों का निर्माण किया। इसके बाद जद्दनबाई ने ‘तलाशेहक’, ‘फैशनेबल मैडल’, ‘हृदय- मंथन’, ‘जीवन स्वप्न’ फिल्मों का निर्देशन किया। भानुमति ने ‘अता मन मयिके’ बनाई तो सावित्री ने ‘चिन्नार पापलु’, ‘मारुदेवत’, ‘चिरंजीवी’ का निर्देशन किया। विजया निर्मला ने ‘मीरा’, प्रतिभा दास गुप्त ने 1949 में झरना एवं 1950 में ‘पागल’ फिल्म निर्देशित की।

वीणाकुमारी ने 1949 में ‘शौहर’, शोभना समर्थ ने 1950 में ‘हमारी बेटी’, 1960 में ‘छबीली’ निर्देशित की तो लीला चिटणीस ने ‘आज की बात’, नसीम बानो ने ‘रात के राही’, अरुंधति बानो 1967 में बंगाली में ‘छुटि’, मंजू डे ने 1969 में ‘अभिशप्त चंबल’, साधना नैय्यर ने 1974 में ‘गीता मेरा नाम’, सुलभा देश पाण्डे ने 1979 में ‘राजा रानी को पसीना चाहिए’ फिल्म निर्देशित की। अरुणा राजे ने ‘शक’, ‘गहराई’, ‘रिहाई’, सई परांजपे ने ‘चश्मेबद्दूर’, ‘कथा’, ‘स्पर्श’, ‘दिशा’, ‘अंगूठा छाप’, ‘चूड़ियां’, विजया मेहता ने ‘स्मृति चित्रे’, ‘राव साहब’, ‘पेस्तनजी’, ‘रूक्मावती की हवेली’, ‘इंडियन कैबरे’, ‘सलाम बाॅम्बे’, ‘मिसीसिपी मसाला’, ‘कामसूत्र’ ‘मानसून बैंडिंग’ बनाई।

वहीं चर्चित फिल्म निर्देशक दीपा मेहता ने ‘फायर’, ‘1947-अर्थ’, कल्पना लाजमी ने ‘एक पल’, ‘रूदाली’, अर्पणा सेन ने ‘36 चैरंगी लेन’, ‘परमा’, ‘सती’, ‘पिकनिक’, ‘मिस्टर एंड मिसेज अय्यर’, नचिकेत जयू ने ‘22 जून 1887’, ‘अनन्त यात्रा’ बनाई। मशहूर फिल्म अभिनेत्री हेमा मालिनी ने भी फिल्म निर्देशन में हाथ आजमाया एवं वर्ष 1992 में ‘दिल आशना है’, ‘मार्ग’ जैसी फिल्मों का निर्देशन किया। पाॅमेला रुक्स ने 1993 में ‘मिस बेट्रीज चिल्ड्रन्स’ बनाई। गोपी देसाई ने ‘मुझसे दोस्ती करोगे’, पद्या खन्ना ने 1994 में भोजपुरी में ‘हे तुलसी मैया’ का निर्देश किया।

स्मिता तल्बलकर ने ‘सावत माझी लड़की’, ‘कलत न कख्त’, प्रेमाकारंभ ने ‘फणियम्मा’, तनुजा चन्द्रा ने ‘दुश्मन’, ‘संघर्ष’, ‘सुर’, सुहासिनी ने तमिल में ‘सुहासिनी’ और फराह खान ने ‘मैं हूं न’ तो गुरिन्दर चड्ढा ने ‘बैंडिट लाइक बैकम’, ‘प्राइड एंड ग्रेजुडिससफल’ निर्देशन किया। वहीं अगर महिला मुद्दों पर आधारित फिल्मों की बात करें तो वर्ष 1915 में ‘अहिल्या उद्धार’ बनी थी। इसके बाद ‘सती अनसूइया’, ‘सती महानका’, ‘सती मदाभसा’, ‘सती नागकन्या’, ‘सती अनुपूर्णा’, ‘सुहागन’, ‘सती परीक्षा’, ‘दुल्हन’ ‘मैं सुहागन हूं’, ‘डायमंड क्वीन’, ‘पंजाब मेल’, ‘बाॅम्बे वाली’, ‘संगम’, ‘प्रिंसेस’, ‘डाॅक्टर आॅफ हंटरवाली’, ‘सीता और गीता’, ‘गुडिया’, ‘दुनिया न माने’, ‘दहेज’, ‘स्वयं सिद्धा’, ‘परिणीता’, ‘बिराज बहू’, ‘बसंतसेना’, ‘अनारकली’, ‘मुगल-ए-आजम’, ‘देवदास’, ‘प्यास’, ‘ठाकुर’, ‘मंथन’, ‘एक औरत जैसी नारी’ प्रधान फिल्मों का निर्माण हुआ जो वर्तमान में भी लगातार जारी है।

सड़क समस्या पर फिल्म

‘फायर द माउंटेन’ पहाड़ों में सड़क समस को केंद्र पर रखकर बनाई गई फिल्म है। इस फिल्म को लाॅस एंजिल्स में आयोजित 19वें भारतीय फिल्म फेस्टिवल में ‘बेस्ट फीचर फिल्म’ का आडियंस अवार्ड से सम्मानित किया गया। इस फिल्म की शूटिग पिथौरागढ़, मुनस्यारी एवं अल्मोड़ा में हुई। वर्ष 2019 में इसकी शूटिंग हुई थी। इस फिल्म की को-प्रोड्यूसर मौली सिंह हैं। अभी तक यह फिल्म तीन पुरस्कार हासिल कर चुकी है। इस फिल्म में पहाड़ों में सड़क की समस्या के चलते किस तरह बच्चे एवं बीमार लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता, उसे उकेरा गया है।

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