पिछले दिनों दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का फिल्मी अंदाज में बोला गया यह डॉयलाग काफी चर्चा में रहा था जिसमें वह मशहूर अभिनेता अमिताभ बच्चन व शशि कपूर द्वारा ‘दीवार’ फिल्म में बोले गए संवादों की तर्ज पर अपनी बात रखते हैं। बात राजनीतिक थी लेकिन कहने का अंदाज पूरी तरह फिल्मी था। केजरीवाल बीजेपी पर हमला करते हुए फरमाते हैं कि आज बीजेपी वाले दिल्ली वालों को सरे आम धमकी दे रहे हैं। कहते हैं कि आपके पास ईडी है। सीबीआई है। इनकम टैक्स है। दिल्ली पुलिस है। सारी दौलत है। हर जिले में बड़े-बड़े आफिस हैं। तुम्हारे पास क्या है? आगे वह फरमाते हैं कि दिल्ली की जनता कहती है कि हमारे पास केजरीवाल बेटा है। इस संवाद को हम वर्षों पूर्व आई फिल्म ‘दीवार’ के संवाद का नया वर्जन कह सकते हैं। फिल्म ‘दीवार’ जिसमें अमिताभ अपने भाई शशि से कहते हैं कि मेरे पास गाड़ी है। बंगला है। तुम्हारे पास क्या है? शशि पलटकर कहते हैं कि मेरे पास मां है। कुछ इसी तरह केजरीवाल भी बीजेपी पर हमलावर होते समय इस डॉयलाग का सहारा लेते हैं। यानी आम हो या खास अक्सर जब लोगों को अपनी बात दमदार व अर्थपूर्ण तरीके से कहनी हो तो वह फिल्मी डॉयलाग का सहारा लेता है।
अदायगी का भी अपना एक तरीका होता है। छोटा-सा संवाद भी कभी-कभी अमर हो जाता है। या यूं कहें कि वह ऐतिहासिक हो जाता है। कई-कई पीढ़ियों के लोग इसे अपनी जुबान में लाते रहते हैं। वैसे भी फिल्मों के निर्माण में संवादों का अहम योगदान होता है। इसके बगैर फिल्में अधूरी- सी लगेंगी। फिल्मों के बोले गए ये डॉयलाग आम लोगों की जुबान पर ही नहीं सीधे उनके दिलो-दिमाग पर असर डालते हैं। लोग नई-नई फिल्में देखते हैं फिर उन फिल्मों के संवादों को अपने जीवन में रख अपनी बात दमदार तरीके से कहने की कोशिश करते हैं। यह डायलॉग इतने प्रभावी होते हैं कि क्या बच्चे, क्या बड़े इनका आंनद रस लेकर करते हैं। वैसे भी फिल्मों में बोले गए संवाद एक तरह के नहीं होते इन्हें हम मोटिवेशनल, रोमांटिक, कॉमेडी, एवरग्रीन, देशभक्ति आदि संवादों में विभक्त कर सकते हैं। अब अगर मोटिवेशन यानी प्रेरक संवादों पर नजर डालें तो फिल्म ‘दिल है तुम्हारा’ में आलोकनाथ द्वारा कहा गया यह संवाद कि ‘जिंदगी में हमेशा अपना फायदा नहीं देखना चाहिए, कभी-कभी कुछ काम दूसरों की भलाई के लिए भी करने चाहिए।’ फिल्म ‘एक विलेन’ में श्रद्धा कपूर कहती हैं कि ‘नफरत को नफरत नहीं, सिर्फ प्यार मिटा सकता है। बस जरूरत है किसी के हाथ की-जो खींचकर उसे अंधेरों से उजालों की तरफ ला सके।’ फिल्म ‘ओह माई गॉड’ में परेश रावल का यह संवाद कि ‘जहां सत्य है, वहां धर्म की जरूरत नहीं है।
इसी तरह रोमांटिक डॉयलागों पर नजर डालें तो फिल्म ‘जब तक है जान’ का यह संवाद कि ‘हर इश्क का वक्त होता है- वो हमारा वक्त नहीं था पर इसका यह मतलब नहीं कि वो इश्क नहीं था।’ फिल्म ‘दिलवाले’ का यह संवाद प्यार-मोहब्बत करने वालों की तबीयत खुश कर सकता है। कि ‘दिल तो हर किसी के पास होता है लेकिन सब दिलवाले नहीं होते।’ फिल्म ‘दिल चाहता है’ का किरदार कहता है कि ‘प्यार सोच समझकर नहीं किया जाता, बस हो जाता है।’ फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ का यह संवाद कि ‘दोस्ती का एक वसूल होता है, मैडम- नो सॉरी, नो थैंक यू।’ रोमांटिक संवादों की तरह कुछ फनी डॉयलाग भी होते हैं। जैसे फिल्म ‘थ्री इडियट’ का यह संवाद देखें ‘दोस्त फेल हो जाए तो दुख होता है, दोस्त फर्स्ट आ जाए तो और भी दुख होता है।’ फिल्म ‘शोले’ का यह फनी संवाद कि ‘तुम्हारा क्या नाम है बसंती’ आज भी लोगों की जुबान पर है। इसी तरह एवरग्रीन डॉयलाग पर नजर डालें तो फिल्म ‘शोले’ का यह संवाद ‘बसंती, इन कुत्तों के सामने मत नाचना’ या फिर फिल्म ‘शहंशाह’ का यह संवाद ‘रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप लगते हैं।’ लोगों की जुबान पर रहते हैं। फिल्म ‘दीवार’ का यह संवाद कि ‘मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता।’ फिल्म ‘कालिया’ का किरदार कहता है कि ‘हम जहां खड़े होते हैं, लाइन वहीं से शुरू होती है।’ फिल्म ‘वान्टेड’ का यह संवाद कि ‘अगर मैंने एक बार कमिटमेंट कर ली तो मैं खुद की भी नहीं सुनता।’ इसी तरह फिल्म ‘दामनी’ का किरदार कहता है ‘ यह ढाई किलो का हाथ है जिस पर पड़ जाता है, वह उठता नहीं, उठ जाता है।’
देशभक्ति से संबधित डॉयलाग को देखें तो फिल्म ‘गदर’ का यह संवाद ‘हमारा हिन्दुस्तान जिंदाबाद था। जिंदाबाद है और जिंदाबाद रहेगा।’ इसी तरह फिल्म ‘पाकीजा’ का यह संवाद देखिए जिसमें राजकुमार, मीनाकुमारी के लिए कहते हैं ‘आपके पांव देखे बहुत हसीन हैं, इन्हें जमीन पर मत उतारिएगा मैले हो जाएंगे। फिल्म ‘शौले’ में अमजद खान ‘कितने आदमी थे’ इसी फिल्म में असरानी का संवाद ‘हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं। इसी फिल्म में हेमामालनी का संवाद-‘मुझे बेफिजूल की बात करने की आदत तो है नहीं।’ या फिर धर्मेंद्र का संवाद ‘गब्बर मैं तेरा खून पी जाऊंगा’ ये सब डॉयलाग आज भी हर उम्र के व्यक्ति को बोलते हुए आप सुन सकते हैं। कुल मिलाकर फिल्मी डॉयलाग व आम आदमी के बीच एक खास रिश्ता होता है। आम आदमी इन फिल्मी संवादों को भरपूर जीता है। यह उनकी जुबान पर ही नहीं दिलो-दिमाग पर भी बैठी होती है। चलो, फिल्मी डॉयलाग पर आधारित इस लेख का अंत भी फिल्म ‘जय हो’ के आम आदमी से जुड़े संवाद से करते हैं। जिसमें फिल्म का किरदार फरमाता है ‘आम आदमी सोता हुआ शेर है, जाग गया तो चीर कर फाड़ देगा।