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सत्ता पक्ष का एजेंडा तय करती ‘द कश्मीर फाइल्स’

ऐसा शायद पहली बार हुआ है कि बॉलीवुड फिल्म की तारीफों के कसीदे भारत के किसी प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक भाषण में पढ़े हों। ‘मोदी है तो मुमकिन है’ पर भरोसा रखने वालों के लिए प्रधानमंत्री मोदी का हर कथन सच होता है इसलिए हालिया रिलीज ‘द कश्मीर फाइल्स’ की कहानी को भी शत-प्रतिशत सच मानने वालों की भीड़ सिनेमाघरों में टूट पड़ी है। आमतौर पर राजनीति से परहेज रखने वाला बॉलीवुड भी पिछले कुछ समय से हिंदुत्व और गैर हिंदुत्व खेमे में बंट चुका है। ‘द कश्मीर फाइल्स’ को लेकर सोशल मीडिया में जारी बयानों ने इस खेमेबाजी को और भी गहरा कर डाला है। फिल्म के समर्थन में कंगना रनौत, अक्षय कुमार, अनुपम खेर, यामी गौतम सरीखे कलाकार ताल ठोंकने लगे हैं तो स्वरा भास्कर और गौहर खान जैसे कलाकारों ने इस फिल्म को लेकर तल्ख टिप्पणियां कर सोशल मीडिया में खासी गर्मी पैदा कर डाली है

बॉलीवुड में कश्मीर को लेकर अब तक कई फिल्में बन चुकी हैं। लगभग सभी फिल्मों का विषय कश्मीर में आतंकवाद और राजनीति के इर्द-गिर्द ही रहा है। लेकिन कश्मीर घाटी से बड़ी तादात में पलायन करने वाले कश्मीरी पंडितों को केंद्रित कर कम ही फिल्में आज तक बनी हैं। संवेदनशील मुद्दे को उठाया है। दशकों से जो दर्द कश्मीरी पंडितों के सीने में शूल की तरह चुभ रहा था, उसे इस फिल्म में दिखाने की कोशिश की गई है। यह फिल्म है ‘द कश्मीर फाइल्स’। फिल्म में लाखों कश्मीरी पंडितों पर वर्ष 1991 में हुए जुल्म और उनके बेघर होने की दर्दनाक कहानी को दिखाती है। वह असहनीय दर्द आज भी कश्मीरी पंडितों के सीने में बदस्तूर बना हुआ है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे आतंकवादियों ने लाखों कश्मीरी पंडितों को अपने ही घरों को छोड़कर विस्थापित होने को मजबूर किया गया। कश्मीर को आजाद इस्लामिक देश बनाने के लिए यह सब किया गया।


अभिनेता अनुपम खेर ने इस फिल्म के मुख्य किरदार पुष्कर नाथ पंडित का रोल निभाया है। वहीं मिथुन चक्रवर्ती और पल्लवी जोशी का किरदार भी बेहद दमदार है। एक छात्र नेता के तौर पर दर्शन कुमार ने बहुत ही प्रभावशाली अभिनय किया है। शुरुआत में इस फिल्म को 700 स्क्रीन पर रिलीज किया गया था। दर्शकों की डिमांड को देखते हुए अब इसे 2 हजार स्क्रीनों पर दिखया जा रहा है। भाजपा शासित मध्य प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड और कर्नाटक में यह टैक्स फ्री भी कर दी गई है। इस फिल्म को अब तक दर्शकों का अच्छा रिस्पॉन्स भी मिल रहा है। जाहिर है हर समस्या के पीछे मुस्लिम आतंकवाद की बात कहने वालों को यह फिल्म अपनी तरफ खासा आकर्षित कर रही है। विशेषकर उन्हें जो आने वाले समय में भारत को एक हिंदू राष्ट्र देखने का सपना संजोय हुए हैं।

क्या हैं फिल्म की कहानी
फिल्म की कहानी कश्मीर के एक रियार्ड प्रोफेसर पुष्कर नाथ पंडित (अनुपम खेर) की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है। कृष्णा (दर्शन कुमार) अपने दादा पुष्कर नाथ पंडित की मृत्यु के बाद उनकी आखिरी इच्छा पूरी करने के लिए दिल्ली से कश्मीर आता है। वह अपने दादा के जिगरी दोस्त ब्रह्मा दत्त (मिथुन चक्रवर्ती) के यहां ठहरता है। उस दौरान पुष्कर के अन्य दोस्त भी कृष्णा से मिलने आते हैं। कृष्णा को नहीं पता होता है कि उसके माता-पिता को कैसे मारा गया। कश्मीर आने से पहले तक उसे यही पता था कि उसके माता-पिता एक एक्सीडेंट में मरे हैं। वह कश्मीरी पंडितों पर हुए जुल्म को सिर्फ एक कहानी समझता था। उसका मानना था कि अगर कश्मीरी पंडितों पर जुल्म हुए तो उन्होंने अपनी व्यथा उस समय समाज के सामने क्यों नहीं रखी। यदि उस समय मीडिया या सोशल मीडिया इतना पावरफुल नहीं था तो बाबरी मस्जिद जैसे प्रकरण कैसे देश के सामने आए। कृष्णा के इस तर्क पर पुष्कर का दोस्त ब्रह्मा दत्त उसके उस समय की सच्ची कहानी सुनाता है। फिल्म की कहानी 1990 में कश्मीर के फ्लैशबैक में जाती है। फ्लैशबैक में दिखाया जाता है कि 1990 से पहले कश्मीर कैसा था। कैसे खुलेआम कश्मीरी पंडितों का आतंकवादियों ने कत्लेआम किया था जिसमें कृष्णा के पिता भी उन कश्मीरी पंडितों में शामिल थे। जिनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। इसके बाद हत्या और बलात्कार के दहशत से कश्मीरी पंडितों का विस्थापन होना शुरू हो गया।

लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडित अपने घर, जमीन आदि को छोड़ दूर छोटे से टेंट में रहने को मजबूर हो गए। जहां पर कई शरणार्थियों की भूख से मौत हो गई। इस फिल्म में सबसे ज्यादा विचलित करने वाला दृश्य कृष्णा की मां और भाई को मारने वाला है। कृष्णा की मां को बीच चौराहे पर कपड़े फाड़कर उन्हें सबके सामने आरा मशीन से काट दिया गया। आठ वर्ष के बच्चे को भी गोली से मार दिया गया। यह दृश्य इतना भयावह दिखाया गया है, जो इस फिल्म में जान फूंकता है। कृष्णा को पूरी सच्चाई का पता चलता है। वह वापस दिल्ली लौटता है। वहां कॉलेज के प्रेसिडेंसियल इलेक्शन के चुनावी भाषण में सबके सामने कश्मीर की सच्ची व्यथा सुनाता है।

फिल्म पर क्या है विवाद
फिल्म की कहानी में उस समय की सरकार की नाकामी को दिखाया गया है। चाहे वो सरकार राज्य की हो या केंद्र की। लेकिन वर्तमान भाजपा सरकार इस फिल्म का खुलकर समर्थन कर रही है तो कई राज्यों में इसे टैक्स फ्री भी कर दिया गया है। यहां तक कि कई राज्यों में सरकारी कर्मचारियों को हॉफ डे की छूटी देकर फिल्म को देखने के लिए आदेश पारित किए जा रहे हैं। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद इसका जिक्र किया। उन्होंने कहा कि फिल्म में जो दिखाया गया, उस सत्य को दबाने की कोशिश की गई थी। जिस पर विपक्ष आरोप लगा रहा है कि इस फिल्म के जरिये सिर्फ सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिश की जा रही है।

केरल कांग्रेस ने ट्वीट में लिखा, ‘सामूहिक रूप से कश्मीरी पंडितों ने गवर्नर जगमोहन के निर्देश पर घाटी छोड़ा था जो आरएसएस के आदमी थे। भाजपा समर्थित वीपी सिंह सरकार के तहत पलायन शुरू हुआ था।’ इसके जवाब में भाजपा सांसद केजे अल्फोस ने मीडिया को दिए बयान में कहा, ‘हर कोई जानता है कि सांप्रदायिकता के आधार पर सत्ता पक्ष की शह में डेढ़ लाख कश्मीरी पंडितों को भगाया गया। उस समय कांग्रेस और उसकी समर्थन वाली सरकार थी। इस ट्वीट के बाद से सोशल मीडिया पर फिल्म को राजनीति से अलग रखने की सलाह दी गई। इस बीच क्रिकेटर सुरेश रैना ने ट्वीट किया और लिखा, ‘अगर यह फिल्म आपके दिल को छूती है तो न्याय के लिए अपनी आवाज उठाएं और कश्मीर में हुए नरसंहार के पीड़ितों का दर्द कम करने में मदद कीजिए।

दूसरी तरफ फिल्म के प्रोड्यूसर अभिषेक अग्रवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट की। फोटो पोस्ट करते हुए उन्होंने लिखा, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का सौभाग्य मिला। सबसे खास बात यह रही कि उन्होंने ‘द कश्मीर फाइल्स’ की तारीफ की जिसके लिए हम प्रधानमंत्री जी का धन्यवाद करते हैं। सुरेश रैना के ट्वीट के बाद कुछ लोगों ने उनसे सवाल किए और पूछा कि क्या हम गुजरात में मुसलमानों के नरसंहार की भर्त्सना करेंगे? इसके बाद 14 मार्च को केआरके के ट्वीट ने मामले को हवा दे दी। उन्होंने ट्वीट में लिखा, ‘मैं 100 फीसदी आश्वमस्तर हूं कि विवेक अग्निहोत्री की अगली फिल्म होगी ‘गोधरा फाइल्स’ जो इससे बड़ी ब्लॉक बस्टर साबित होगी।

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