भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है। यहाँ लगभग 20 से भी अधिक धर्म और 100 से भी अधिक भगवानों को पूजा जाता है। भारत की ख़ूबसूरती इसमें रहने वाले अलग-अलग धर्मों के लोगों की एकता है। यहां सदियों से धर्म और भगवान को सबसे ऊपर रखा गया है। सभी धर्म के लोग एक दूसरे के धर्म की इज़्ज़त भी करते हैं और एक दूसरे की धार्मिक भावनाओं का ध्यान भी रखते हैं। लेकिन बदलते वक़्त के साथ यदि बदला न जाये तो धर्म एक गंभीर मुद्दा बन जाता है।
धार्मिक मुद्दों का यह सिलसिला दिन-प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। हर रोज़ आ रहे धार्मिक मुद्दों की श्रेणी में एक और मामला दर्ज हो चुका है।
दरअसल, फिल्म ‘मासूम सवाल’ के पोस्टर पर बड़ा विवाद छिड़ गया है। फिल्म के मेकर्स के खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने के आरोप में केस दर्ज किया गया है। मसलन इस फिल्म के पोस्टर पर भगवान् कृष्ण की फोटो सेनेटरी पैड पर
लगाई गई है। इस फिल्म का पोस्टर जैसे ही लांच किया गया वैसे ही इसको लेकर काफी बड़ा विवाद हो गया है। इस फिल्म के मेकर्स, निर्माताओं और निर्देशक संतोष उपाध्याय पर गाजियाबाद के एक पुलिस थाने में धार्मिक भावना आहत करने के आरोप में एफआईआर दर्ज हुई है जिससे मामला काफी गर्म हो गया है।
पीरियड्स के समय लड़कियों और महिलाओं के द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले सामान मे से एक को मेंस्ट्रुअल पैड कहा जाता है। पीरियड्स या माहवारी लड़कियों में 12 साल की उम्र से शुरू हो जाता है और 50 की उम्र तक रहता है। यह प्रक्रिया माह में एक बार 3 दिन से 10 दिन की अवधि तक रहता है। पुराने काल से ही माहवारी के दिनों में महिलाओं को अपवित्र और गन्दा माना जाता है। इस दौरान महिलाएं पवित्र स्थान जैसे मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च जैसे पवित्र स्थानों पर जाने की अनुमति नहीं दी जाती है। न ही वह कोई पवित्र ग्रन्थ और पूजा पाठ कर सकती हैं। यह माना जाता है कि महिलाएं माहवारी के समय अपवित्र होती हैं तो वह कोई भी पवित्र काम नहीं कर सकती है। माहवारी के समय अगर महिलाओं को इतना अपवित्र माना जाता है तो
पीरियड्स के समय इस्तेमाल की जाने वाली वस्तु पर भगवान् की फोटो का लगाए जाना अपवित्र माना जायेगा। भगवान की कल्पना भी हम एक पवित्र स्थान पर करते हैं तो किसी अपवित्र मानी जाने वाली वस्तु पर भगवान की फोटो लगाना बहुत गलत माना गया है। धार्मिक लोगों की भावनाओं पर इसका बहुत गहरा असर देखने को मिल रहा है।वैसे तो यह फिल्म इसी तरह की विचारधारणाओं के चलते बनाई गई है। पुराने तौर-तरीकों का असर आज के मॉडर्न ज़माने में भी देखने को मिलता है जिसे इस फिल्म की कहानी के द्वारा काम करने की कोशिश की गई है। पवित्रता और अपवित्रता को इस फिल्म में अच्छे से परिभाषित किया गया है।
पीटीआई की रिपोर्ट के अनुसार, एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने इस मामले की जानकारी देते हुए बताया कि फिल्म मासूम सवाल के निर्देशक संतोष उपाध्याय, उनकी कंपनी और उनकी पूरी टीम के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। पुलिस थाने
में ये केस हिंदू राष्ट्र निर्माण सेना के अध्यक्ष अमित राठौड़ द्वारा दर्ज कराय गया है। साहिबाबाद के सर्किल ऑफिसर स्वतंत्र सिंह ने कहा कि फिल्म के मेकर्स के खिलाफ आईपीसी की धारा 295 (किसी भी धर्म की भावनाओं को आहात पहुंचाना) के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई है।
फिल्म के निर्देशक संतोष उपाध्याय इस विवाद के चलते भी पोस्टर हटाने को राजी नहीं हैं। उनका कहना है इस पोस्टर में कुछ भी गलत नहीं है। उनका कहना है कि इस पोस्टर के पीछे उनका दुनिया को एक सन्देश देने की कोशिश की गई है अगर यह पोस्टर बदल या हटा दिया गया तो वह इसमें नाकामयाब हो जायेंगे जो वह होना नहीं चाहते हैं। हमने मासिक धर्म के दौरान मूर्ति स्पर्श को अनुमति दी है। हमारी फिल्म का विषय ही यही है कि मासिक धर्म अशुभ कैसे होता है। हमारा कहानी का आधार ही यही है। पूरी फिल्म 2 घंटे 25 मिनट की है, जिसको सेंसर बोर्ड ने सर्टिफिकेट दिया है। किसी भी उम्र के व्यक्ति इस फिल्म को देख सकते हैं। आज हो रहे विवाद कि मानसिक्ता को बदलने के लिए ही इस फिल्म को बनाया गया है और विवाद होने पर फिल्म का पोस्टर बदलने का मतलन है कि हम अपनी फिल्म में फ़ैल हो गए हैं जो में होने नहीं दूंगा। मासूम सवाल के पोस्टर पर इस तरह हंगामा होगा, इसका हमें बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था। और न ही ऐसा कुछ करने का हमारा उद्देश्य था।
हमारी फिल्म कोई कमर्शियल फिल्म नहीं है। हम इस फिल्म के जरिए एक मैसेज देना चाहते हैं। यह फिल्म मासिक धर्म के मुद्दे को उठाती है। इसलिए पैड पर हमने भगवान कृष्ण की फोटो का इस्तेमाल किया है।
इस फिल्म को लेकर हो रहे विवाद में अब राजनीतिज्ञों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ता भी शामिल हो चुके हैं। जिनमे से कुछ का कहना है कि ‘मैसेज के लिए मुरली वाले का अपमान क्यों? सनातन धर्म पर चोट संयोग या प्रयोग क्यों? प्रमोशन के लिए हिन्दू आस्था पर प्रहार क्यों? पहले माँ काली अब भगवान कृष्ण का अपमान क्यों? अभिव्यक्ति के नाम पर भगवान् के अपमान की
आज़ादी क्यों?
इनके जवाब में संतोष उपाध्याय का कहना है कि इस फिल्म का सेक़ुअल ही मासिल धर्म है तो इसमें पैड का आना बेहद स्वाभाविक है। इससे पहले भी कई फिल्में जैसे ‘पैड मैन’ आ चुकी हैं। इसी तरह पैड का फिल्म में इस्तेमाल होना बहुत
ज़रूरी है। और पोस्टर में सिर्फ पैड का आकार दिया गया है, वास्तव में पैड नहीं है। कान्हा जी हमारी फिल्म के पहले और अहम किरदार हैं इसलिए उनका होना भी स्वाभाविक है।
साध्वी शिवानी दुर्गा का कहना है कि ‘फिल्मों के उद्देश्य में यदि टॉयलेट आ जाए तो इसका मतलब यह नहीं की आप भगवान को टॉयलेट में बिठा देंगे। भगवान हर जगह हैं लेकिन उनके लिए एक स्थान सुनिश्चित किया गया है। ऐसे भगवान को कही भी बिठाया नहीं जा सकता। यदि ऐसा हुआ तो वह अपमान की श्रेड़ी में ही माना जायेगा।’
इस विवाद को लेकर हमने ‘दी संडे पोस्ट’ के एक इंटरव्यू में श्री अजीत राय से बात की, यह भारतीय फिल्म आलोचक हैं। हमने पूछा कि ‘मासूम सवाल फिल्म के पोस्टर के कारण हो रहे विवाद के पीछे क्या स्ट्रेटेजी है। क्या ऐसा फिल्म की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किया जाता है ? उन्होंने कहा ‘बेशक यह सब फिल्म की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किया जाता है। क्योंकि फिल्म का उद्देश्य अब सिर्फ पैसा कमाना रह गया है। उसके लिए निर्देशकों द्वारा ऐसे कार्य किये जाते हैं जिनसे उनकी फिल्म अधिक लोगों तक जा सके। दूसरा सवाल पूछा गया कि ‘फिल्म का हिट होना पूरी तरह से उसकी कहानी पर निर्भर करता है तो फिल्म के पोस्टर के द्वारा सन्देश देना या न देना कोई मायने रखता है या नहीं ? उन्होंने कहा ऐसी फिल्में जिन्हें विवादित रूप से लोकप्रियता मिलती है वह कुछ समय बाद दर्शकों की नज़रों से भी दूर हो जाती हैं लेकिन जिस फिल्मों की स्क्रिप्ट अच्छी होती है उन्हें लोग सदियों तक याद करते हैं। यही फर्क होता है जब फिल्में मनोरंजन के लिए नहीं पैसे कमाने के लिए बनाई जाती हैं।
भारतीय सिनेमा को लगभग 100 साल से भी अधिक हो चुके हैं। एक समय दुनिया भर में हिंदी सिनेमा का दबदबा रहा है लेकिन समय के साथ अब ये दबदबा ख़तम होता जा रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं कि फिल्म की बुनियादी ढांचा होती हैं
स्टोरी लेकिन भारत में लेखक की कभी महत्वपूर्ण भूमिका नहीं बन पाई है। इसकी यह एक बहुत बड़ी कमज़ोरी है। दूसरा है कि भारत में अभिनय सिखाने वाली संस्थाओं का कम होना, इसका असर हमें सिनेमा में देखने को मिलता है। और यही कारण भी है कि भारतीय सिनेमा में अब लगातार फिल्में फ्लॉप होने लगी हैं।