एक तरफ फिल्म ‘आदिपुरुष’ ने पहले ही दिन रिकॉर्ड तोड़ कमाई की, तो दूसरी ओर फिल्म पर विवाद भी बढ़ गया है। लोगों ने उम्मीद नहीं लगाई थी कि निदेशक ओम राउत के निर्देशन में बनी फिल्म में मनोज मुंतशिर अभद्र भाषा में डायलॉग्स का इस्तेमाल करेंगे जिसके चलते फिल्म को लगातार आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि कई राजनीतिक दल और हिंदू संगठन इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग कर रहे हैं
हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ‘आदिपुरुष’ के विरोधाभासी संवादों और दृश्यों को हटाए जाने की मांग थमने का नाम नहीं ले रहा है। फिल्म ‘बाहुबली’ से दर्शकों के दिलों-दिमाग में जगह बनाने वाले प्रभास की फिल्म ‘आदिपुरुष’ रिलीज होते ही विवादों में आ गई है। सबसे ज्यादा विवाद रामायण के पौराणिक लुक और इसके डायलॉग को लेकर हो रहा है। दर्शकों का कहना हैं तुलसीदास द्वारा रचित रामायण को जब लोग देखते थे तो जूते- चप्पल भी बाहर उतार देते थे। उसके डायलॉग और कहानी दोनों ने ही दर्शकों का मन मोह लिया था। वहीं इसके उलट जब ‘आदिपुरुष’ को देख रहे हैं तो लगता है साउथ की कोई मसाला फिल्म देख रहे हों। फिल्म के एक दृश्य में जब बजरंग लंका पहुंचते हैं तो इंद्रजीत कहते हैं ‘क्या बुआ का बगीचा समझ रखे हो।’ फिल्म में ऐसे ही डायलॉग हैं। 600 करोड़ की लागत से बनी इस फिल्म पर लोग तथ्यों से छेड़छाड़ का आरोप लगा रहे हैं। हालांकि फिल्म की बंपर एडवांस बुकिंग हुई है और इसकी पहले दिन की कमाई भी 150 करोड़ रुपए हुई।
फिल्म ‘आदिपुरुष’ का जब टीजर रिलीज किया गया तो लोगों ने इसके विजुअल इफेक्ट्स पर सवाल उठाए थे जिसके बाद मेकर्स ने फिल्म में कुछ बदलाव किए जिसका खर्च लगभग 100 करोड़ के आस-पास बताया जा रहा है। अब यह फिल्म रिलीज हो चुकी है तो दर्शकों ने इसको प्रातः 4 बजे रिलीज करने का आग्रह किया। उनका कहना था कि फिल्म भगवान राम के चरित्र पर है तो हम प्रात 4 बजे उनके दर्शन करेंगे। जिसके बाद निर्माताओं ने आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में फिल्म का शो सुबह 4 बजे भारी भीड़ के साथ दिखाया।

फिल्म में ‘प्रभास’ ने राघव और कृति सेन ने जानकी (सीता) का रोल निभाया है। वहीं सैफ अली खान ने लंकेश और सनी सिंह ने लक्ष्मण का रोल निभाया है तो हनुमान के रोल में देव दत्त नागे हैं। बात फिल्म की कहानी पर करें तो इस फिल्म में नए जमाने की रामायण को दिखाने की कोशिश की गई है। इसे कलयुग की रामायण भी कह सकते हैं क्योंकि इस फिल्म में रामायण जैसा कुछ भी नहीं है, बल्कि उनके कैरेक्टर का मजाक उड़ाया गया है। जैसे कि इस फिल्म में एक डायलॉग है ‘कपड़ा तेरे बाप का, तेल, तेरे बाप का, आग भी तेरे बाप का तो जलेगी भी तेरे बाप की।’ यह वो डायलॉग है जो हनुमान रावण पुत्र मेघनाथ से कहते हैं। वहीं एक जगह हनुमान लंका लगाने की बात कहते हैं। जब हनुमान अशोक वाटिका पहुंचते हैं तो थाकड़ासुर उनसे कहता है कि ‘क्या ये तेरी बुआ का बगीचा है? तू अपनी जान से हाथ धोएगा’, जवाब में हनुमान जी कहते हैं, ‘और में धकड़ा को धोऊंगा।’ अब हनुमान जी ऐसे डायलॉग बोलेंगे तो हॉल में सीटियां उस वक्त जरूर बज जाएं, मगर धीरे-धीरे आपको एहसास होगा कि आप जो उम्मीद लेकर थियेटर में आए हैं वह उम्मीद पूरी नहीं होगी। फिल्म के डायलॉग मनोज मुंतशिर ने लिखे हैं और वे इसके लिए जिम्मेदार हैं।
फिल्म में दिखाया गया है कि राघव अपनी पत्नी जानकी और भाई शेष के साथ जंगल में वनवास काट रहे हैं। शूर्पणखा की नाक में शेष ने बाण चला दिया, राम शूर्पणखा के आगे हाथ जोड़ते हैं। और शूर्पणखा लंकेश को जानकी की खूबसूरती के बारे में बताती है। जानकी का अपहरण, शबरी के बेर, राघव बजरंग का मिलन, समुद्र सेतु से होते हुए फिल्म अपने आखिरी चरण युद्ध तक पहुंचती है। अब इन सीक्वेंस में बहुत सारी दिक्कतें हैं लेकिन पहले कुछ अच्छाइयों की बात करते हैं। पहले हाफ में कई ऐसे सीन हैं जो रोंगटे खड़ा कर देते हैं। जैसे राम और हनुमान का मिलन, राम सिया राम गाना और रावण का शिव जी के लिए गाया गाना। मगर फिल्म में इतनी दिक्कत है कि आप चाहकर भी फिल्म से खुद को जोड़ नहीं पाएंगे।
पहली बात तो फिल्म में प्रचलित नाम न इस्तेमाल कर उनके दूसरे नामों का इस्तेमाल किया गया है, लक्ष्मण को शेष कहने का क्या औचित्य है। वहीं राम सीता में जो बात है वो राघव और जानकी के साथ नहीं आती है। मेघनाथ को इंद्रजीत, रावण को लंकेश कहकर ही हर जगह संबोधित किया गया है। जटायू एक गिद्ध था मगर इस फिल्म में बाज दिखाया गया है। प्रभास को देखकर श्रीराम की फीलिंग कम बाहुबली की याद ज्यादा आती है। फिल्म के राक्षस किसी वीडियो गेम के विलेन लगते हैं। रावण, मेघनाथ, विभीषण का लुक देखकर भी हैरानी होती है।

शूर्पणखा जब मदिरा पीते हुए मंदोदरी से बात करती है तब ऐसा लगता है कि कॉकटेल पार्टी की दो महिलाएं बात कर रही हैं। इतना ही नहीं रावण की हाई-फाई लंका में लिफ्ट भी है। फिल्म में ऐसे सीन हैं जो न वाल्मीकि की ‘रामायण’ में हैं न ही तुलसीदास के ‘राम चरित मानस’ में। लक्ष्मण जब मूचि्र्छत होते हैं तो हम सभी को पता है वैद्य सुषेण को बुलाया जाता है मगर इस फिल्म में संजीवनी के बारे में न सिर्फ विभीषण की पत्नी बताती है, बल्कि इलाज भी वही करती हैं। रामायण लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं जिन्हें आहत करने की जरूरत ही नहीं थी। युद्ध का सीक्वेंस बहुत बोरिंग है, लंबे-लंबे सिर्फ ‘वीएफएक्स’ के सीक्वेंस चल रहे हैं जहां कोई डायलॉग नहीं हैं। ऐसा लगता है किसी वीडियो गेम में हीरो और विलेन की लड़ाई चल रही है। पूरी फिल्म किसी कार्टून फिल्म जैसी लगती है जिसमें विजुअल इफेक्ट्स की क्लालिटी भी खराब है।
हनुमान जी का राम को पीठ पर बैठाकर उड़ना, रावण का वध, मेघनाथ और कुंभकर्ण का वध, ये सारे सीन आपको सिर्फ और सिर्फ निराश ही करेंगे। कठघरे में खड़ा होना सम्मान की बात फिल्म के बढ़ते विवाद के कारण मनोज मुंतशिर का कहना है कि ‘जनता के बीच कटघड़े में खड़ा होना बड़े सम्मान की बात है। रामायण पर आधारित इस फिल्म के डायलॉग गलती से नहीं रखे गए हैं, बल्कि इनको जानबूझकर रखा गया। लोग बजरंग के डायलॉग पर चर्चा कर रहे हैं जबकि श्रीराम के डायलॉग पर कोई चर्चा नहीं हो रही है। हमने रामायण नहीं बनाई है हम रामयण से प्रेरित हैं। बाबा तुलसीदास कहते हैं नाना भांति राम अवतारा, रामायण शत कोटि अपारा। राम के अवतार के अनेकों- अनेक पहलू हैं और सैकड़ों तरीके से रामायण सुनाई जा सकती है। जो हम कर रहे हैं जिन लोगों ने रामानंद सागर द्वारा रचित रामयण देखी उनको शायद यह भाषा समझ में नहीं आए, हम उन से माफी मांग लेंगे लेकिन हमारा मकसद उन दस से बारह वर्ष के बच्चों को कनेक्ट करना है जिनको राम के बारे में नहीं पता है।’
फिल्म पर सियासत
सपा नेता एवं पूर्व मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या ने फिल्म के विषय में कहा कि ‘आदिपुरुष’ में महा ग्रन्थ रामायण के सभी कैरेक्टर जैसे कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम, रावण, लक्ष्मण और हनुमान के जरिए से लेखक मनोज मुंतशिर और ओम राउत ने अमर्यादित, स्तरहीन गुंडे, मवाली व टपोरियों की भाषा का उपयोग कर उपहास उड़ाया है। साथ ही मर्यादा को भी कड़ी ठेस पहुंचाई है। क्या इससे सनातन धर्म का कोई निरादर नहीं हुआ? आज उनकी बोलती बंद क्यों है? वहीं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने भी कठोर निंदा करते हुए कहा कि ‘जिस प्रकार पावन और पवित्र राम कथा का उपहास बनाया गया है उसका हमें दुख है। राजीव के वक्त की ‘रामायण’ देखिए और अब नरेंद्र मोदी के समय की ‘आदिपुरुष’। आरएसएस के लोग प्रभु राम को ईश्वर का स्वरुप नहीं मानते हैं। वे उन्हें ‘आदिपुरुष’ मानते हैं।’
भाजपा सांसद हरनाथ सिंह यादव ने भी फिल्म पर निशाना साधते हुए कहा, ‘एक सोची-समझी रणनीति के अंतर्गत हिंदुत्व के प्रति विश्वास और श्रद्धा पर आहत पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। फिल्म में भगवान राम, मां सीता और हनुमान जी की परिधान और डायलॉग बेहद निराशाजनक हैं। भगवान श्री राम और श्रीकृष्ण हमारे कण-कण में हैं, उनकी महिमा को विकृत तरीके से प्रस्तुत करने की कोई भी कोशिश मंजूर नहीं की जाएगी।’ उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सवाल उठाया कि क्या सेंसर बोर्ड धृतराष्ट्र बन गया है? यादव ने फिल्म की कड़ी निंदा करते हुए कहा ‘जो लोग सियासी आकाओं के पैसों से, एजेंडे वाली मनमानी फिल्में बनाकर आम आदमी की आस्था और श्रद्धा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं, उनके सियासी-चरित्र का सर्टिफिकेट भी देखा जाना चाहिए।’