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नस्ली भेदभाव का शिकार पूर्वोत्तर का सिनेमा

  •      प्रियंका यादव, प्रशिशु

 

भारत ने नॉर्थ ईस्ट राज्यों संग हमेशा से ही दोयम दर्जे का व्यवहार होता रहा है। यहां के नागरिकों को दिल्ली समेत देश के अन्य शहरों में नस्ली हिंसा का शिकार होना पड़ता है। कुछ ऐसा ही पूर्वोत्तरी सिनेमा का भी हाल है। बॉलीवुड को डैनी डेन्जोंगपा जैसा मंझा हुआ अभिनेता देने वाले पूर्वोत्तर का सिनेमा और इसके कलाकार गुमनामी के अंधेरे में जीने के अभ्यस्त हो चले हैं

भारत के पूर्वोत्तर से अच्छी फिल्मों और अभिनेताओं की कोई कमी नहीं है, लेकिन फिर भी मुख्यधारा की भारतीय फिल्में, टेलीविजन और यहां तक कि विज्ञापनों में भी इस क्षेत्र के लोगों का ज्यादा प्रतिनिधित्व नहीं है। इसका एक बड़ा कारण नस्ली भेदभाव का होना है। भारत से बाहर ही नहीं, बल्कि पूर्वोत्तर राज्यों के साथ देश में भी नस्ल भेदभाव होता रहा है। इन राज्यों के लोगों को भारत के अन्य हिस्से के लोग स्वीकार नहीं करते। नॉर्थ ईस्ट के लोगों को वे काफी हीन भावना से देखते हैं।
पूर्वोत्तर राज्यों से पढ़ाई एवं रोजगार के चलते यहां के युवा भारत के अन्य हिस्सों में जाते हैं जहां इन्हें अक्सर भेदभाव की दृष्टि से देखा जाता है। पूर्वोत्तर की लड़कियों पर अक्सर टिप्पणियां की जाती हैं। इनका ‘चीनी’, ‘मोमो’, ‘चाऊमीन’ कहकर मजाक बनाया जाता है। इनके साथ छेड़छाड़ की घटनाएं भी देखी जाती है। दिल्ली जैसे महानगरों में इन्हें किराए के लिए घर नहीं दिए जाते और दिए भी जाते हैं तो दोगुनी कीमत पर। पूर्वोत्तर क्षेत्रों के लोगों का रहन- सहन, पहनावा, इनकी गढ़न-सूरत, संस्कृति भारत के अन्य राज्यों से मेल नहीं खाती एवं हिंदी भाषी नहीं है, सिर्फ इसलिए ये अलग-थलग ही रहते हैं। अधिकतर लोगों को इन राज्यों एवं वहां रहने वाले लोगों के बारे में सही जानकारी का अभाव होने के कारण इन्हें हीन दृष्टि से देखते हैं।

‘बॉलीवुड’ में दिला सकता है पूर्वोत्तर राज्यों को हिस्सा

फिल्म ‘पिंक’ की एंड्रिया तायियांग

पूर्वोत्तर में अभिनय और प्रतिभा, कला की कमी नहीं है। बस बॉलीवुड क्षेत्रीय प्रतिभा को पहचानने से इंकार कर देता है। इनके द्वारा नॉर्थ ईस्ट के कलाकारों को न अपनाने के बहाने भी अधिकतर हास्यापद होते हैं। जैसे भाषा की समस्या के कारण पूर्वोत्तर के लोगों को लीड रोल में नहीं लेते। इस बात को गलत साबित करने के लिए कैटरीना कैफ, नोरा फतेही जैसे उदाहरण काफी हैं। नोरा फतेही मोरेक्को से आती हैं और कैटरीना हॉन्गकॉन्ग में जन्मी थीं जिनकी हिंदी भाषा इतनी ज्यादा अच्छी नहीं है फिर भी कैटरीना कैफ को बॉलीवुड की कई फिल्मों में मुख्य रोल में देखा जा सकता है। इन कलाकारों को बॉलीवुड ने सरलता से अपना लिया। बॉलीवुड की कई डायरेक्टर किसी न किसी अभियान में शामिल होते हैं। फिर वह अनुराग कश्यप हो या जोया अख्तर। अनुराग कश्यप ने तो एक बार अपनी आने वाली फिल्म के लिए बकायदा बयान जारी कर कहा था कि उनकी फिल्मों में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यकों को ही मुख्य रोल के अवसर प्रदान किया जाएगा। कश्यप ने तब यह भी माना था कि इन क्षेत्रों के लोग उत्तर भारतीयों से काफी भिन्न दिखाई देते हैं। उन्हें भारतीय समाज में हिस्सा बनाने के लिए बॉलीवुड अपना योगदान दे सकता है, पर वो ऐसा नहीं कर रहा। दरअसल, ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड में पूर्वोत्तर के अभिनेता नहीं रहे, पर उन्हें मुख्य किरदार के अवसर दिए गए हैं तो बहुत कम या न के बराबर। कई पूर्वोत्तरी अभिनेता बॉलीवुड फिल्मों में काम कर चुके हैं जिसमें आदिल हुसैन और डेनी डैनी डेन्जोंगपा दोनों सिक्किम से हैं। ये दोनों अपने विलेन के रोल के लिए बॉलीवुड में फेमस रहे हैं। दोनों ने कई फिल्मों में काम किया है। इसी प्रकार दिपानिता शर्मा, असम से हैं जो सुपर मॉडल एक्ट्रेस हैं। ये अभिनेता हिंदी सिनेमा का हिस्सा जरूर रहे लेकिन इन्हें लीड रोल नहीं दिया गया।

ओटीटी से भी नदारत पूर्वोत्तर
विज्ञापनों, हिंदी सिनेमा या ओटीटी में पूर्वोत्तर के किसी अभिनेता-अभिनेत्री को देखना भूसे में सुई ढूंढने के बराबर है। हालांकि कुछ सकारात्मक परिवर्तन हो रहे हैं पर अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। पूर्वोत्तर के लोग भारतीय सिनेमा, विज्ञापनों में अधिक से अधिक नहीं दिखाई देते। इन क्षेत्रीय भाषा में की गई फिल्में ओटीटी प्लेटफॉर्म से गायब है। बीते दिनों ‘पिंक’ में एंड्रिया तायियांग हो या अमेजॉन प्राइम सीरीज ‘द लास्ट आवर’ में कर्मा टकापा या ‘बधाई दो’ में चूमदरंग जैसे मंझे हुए अभिनेताओं को बामुश्किल ही काम मिल पाता है।  आठ बार बॉक्सिंग में विजेता रही मेरी कॉम मणिपुर से हैं उनके ऊपर बनाई गई फिल्म में लीड रोल के लिए किसी पूर्वोत्तर अभिनेत्री को नहीं लिया गया बल्कि बॉलीवुड, हॉलीवुड का जाना-माना चेहरा प्रियंका चोपड़ा को लिया गया जो कि इस किरदार के साथ न्याय नहीं करती क्योंकि प्रियंका पूर्वोत्तर के लोगों की तरह नहीं दिखती। यदि इसमें किसी पूर्वोत्तर राज्य के अभिनेत्री को लीड रोल करने का मौका देते तो ये फिल्म तब ज्यादा वजनदार होती।

भारतीय सिनेमा के इस रवैयां से लगता है कि ये विश्वसनीयता न अपनाकर केवल बिक्री का अनुसरण करती है। वहीं हम बात करें छोटे परदे की तो ‘नीमा’ नामक एक टीवी शो जो कलर्स चैनल पर आया था उसमें असम की अभिनेत्री सुरभि दास मुख्य पात्र के रूप में दिखी। इस शो का उद्देश्य था शहरी क्षेत्रों में पूर्वोत्तर से आने वाले लोगों के साथ नस्लीय भेदभाव को उजागर करना, पर बाद में ये अपना उद्देश्य भूलकर सास-बहू की कहानी पर आ गया। फिल्म निर्माता निकोलस खाकोगोर जिन्होंने ‘मंत्र’, ‘एक्सोन’ जैसी रियलिटी बेस्ड फिल्में बनाई का कहना है ‘मैंने टीवी, यूट्यूब पर उत्तरपूर्वी चेहरों के बहुत अधिक विज्ञापन देखे हैं। जो पहले हुआ करते थे। फैशन की दुनिया में पूर्वोत्तर के कई मॉडल देखे जा सकते हैं जिससे ये उम्मीद है कि चीजें बेहतर होंगी।’ छोटे पर्दे पर आने वाला एक और टीवी शो केबीसी जो अमिताभ बच्चन द्वारा होस्ट किया जाता है, में पूर्वोत्तर के एक प्रतिभागी ने पार्टिसिपेट किया जिसमें उससे सवाल भारत, भूटान, नेपाल, चीन के विकल्पों को दिखाते हुए पूछा कि कोहिमा किस देश का हिस्सा है? तब प्रतिभागी ने जनता की वोटिंग का सहारा लिया। उसके बाद बच्चन ने 100 प्रतिशत लोगों ने कहा था ‘भारत’ इसका सही जवाब है। उन्होंने प्रतिभागी से पूछते हुए कहा यह बात तो सब जानते हैं, (कोहिमा नागालैंड की राजधानी है) इसका जवाब उसने कुछ इस प्रकार दिया कि जानते सब हैं पर मानते कितने हैं?

फिल्म ‘बधाई दो’ अभिनेत्री की चूम दरंग

ओटीटी से गायब होती पूर्वोत्तर की फिल्में
ओटीटी प्लेटफॉर्म में कई क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में दिखाई जाती हैं। जैसे मलयालम, तमिल, हिंदी इत्यादि जैसी फिल्में इस प्लेटफार्म पर पूर्वोत्तर भाषा की फिल्में नहीं के बराबर नजर आती हैं। असमियों द्वारा पसंद की जाने वाली फिल्म ‘आमिज’ शुरू में ‘मूवीसैंट्स डॉट कॉम’ पर रिलीज की गई थी। बाद में से ‘सोनीलिव’ पर भी दिखाया गया लेकिन अधिकतर ऐसी फिल्में सही प्रचार न होने के कारण यदि इन प्लेटफार्म पर रिलीज होती भी हैं, तब भी इनको व्यावसायिक सफलता नहीं मिल पाती है। कुल मिलाकर न केवल पूर्वोत्तर के नागरिक अपने ही देश में नस्ली भेदभाव का शिकार हो रहे हैं, बल्कि पूर्वोत्तर की फिल्में भी इसी मानसिकता के चलते दर्शकों तक अपनी पहुंच और पकड़ बना पाने में असफल साबित हो रही है।

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