वैसे पहले की फिल्मों में ‘नायक’ को नायिका के हाथों थप्पड़ खाते हुए न के बराबर दिखाया गया है। ये भी कह सकते हैं उस दौर के दर्शक ऐसे सीन के लिए मानसिक तौर पर बिल्कुल तैयार नहीं थे, यही कारण था कि निर्देशक भी अपनी फिल्म के साथ रिस्क नहीं लेना चाहते थे। इसलिए भी ‘अमर’ फिल्म का यहां ज़िक्र करना और यह सीन कई मायनों में खास है।
कहते हैं कि अमर प्रेम वो होता है जो किसी रिश्ते में नहीं बंधता यानी किसी भी बंधन से मुक्त। एक तरफा प्यार हो या प्रेम में ताउम्र दोनों ओर से एक दूसरे को पा लेने की शिद्दत ही किसी प्रेम को मुकम्मल बनाती है। अगर अमृता प्रीतम और साहिर लुधियानवी ने शादी कर ली होती तो उनके प्रेम के किस्से अभी तक हवाओं में किसी रहस्यमयी इत्र की तरह नहीं तैरते। इसी तरह दिलीप कुमार और मधुबाला की लव स्टोरी। लड़कपन की नासमझी में हुए इश्क के कई हादसों से गुजरकर आई मधुबाला इस बार इस रिश्ते को लेकर बेहद संजीदा थीं और इस बार कोई कमी नहीं रखना चाहती थीं। इस इश्क में वह दीवानगी की हद तक जाने का माद्दा रखती थीं। इस मोहब्बत की शुरुआत भले ही मधुबाला ने की हो लेकिन दिलीप कुमार की दीवानगी भी किसी कोने से भी कम न थी। उनके लिए मधुबाला के बिन एक दिन गुजारना लगभग नामुमकिन हो चुका था। हालात यह थे कि वे अपनी फिल्म की शूटिंग छोड़-छोड़ कर वहां पहुंच जाते जहां मधुबाला की शूटिंग चल रही होती।

इन दोनों के प्यार की इंतेहा से तो हर कोई परिचित है। बेपनाह मोहब्बत, फिर दुनिया के सामने एक दूसरे से प्रेम का इकरार, फिर तकरार, कोर्ट, थप्पड़ और फिर एक खूबसूरत जोड़े के प्रेम का दुःखद अंत। प्रेम में एक दूसरे पर मर मिटने की अथाह चाहत होती है तो दूसरी तरफ एक दूसरे से उतनी ही नाराजगी भी। मुगल-ए-आजम के सेट पर एक सीन में दिलीप कुमार ने मधुबाला को असल में जोरदार थप्पड़ मार दिया था। वो थप्पड़ ऐसा था कि मधुबाला को संभलने में कई समय लग गए थे।
लेकिन ये किस्सा बहुत कम लोग जानते हैं कि मधुबाला ने भी एक बार दिलीप कुमार को जोरदार थप्पड़ मारा था। क्या मुगल-ए-आजम का थप्पड़, इसी थप्पड़ का बदला था! प्रेम में बदला लेने के भी कई खौफनाक किस्से हैं। यह तो अभी भी पहेली ही है कि प्रेम,बंधन है या मुक्ति! यह भी तो प्रेम है कि ‘मुझे तुमसे मोहब्बत है, लेकिन कोई रिश्ता नहीं है।’
निर्देशक के आसिफ की मुगल-ए-आजम साल 1960 में आई थी। दिलीप कुमार का इस फिल्म के सेट पर मधुबाला को थप्पड़ मारने की घटना इसी दौरान की है। दरअसल दोनों के बीच दूरियां इतनी बढ़ गयी थीं कि अब इन दोनों के बीच गुस्से और झटपटाहट के अलावा कुछ नहीं बचा था।
जब मधुबाला ने मारा था दिलीप कुमार को थप्पड़
साल 1954 में दिलीप कुमार, मधुबाला और निम्मी की एक फिल्म रिलीज हुई श्अमरश्। इस फिल्म को एस अली रजा ने लिखा था। इस फिल्म की कहानी वकील अमर (दिलीप कुमार), वकील अंजू (मधुबाला) और एक दूध बेचने वाली, गरीब किसान की बेटी सोनिया (निम्मी) के त्रिकोणीय प्रेम और जीवन के स्याह घटनाओं पर आधारित होती है।
खैर, अमर फिल्म के शुरुआत में ही एक सीन है जहां अंजू, अमर को एक झूठे आदमी का केस न लड़ने के लिए कहती है। पर दिलीप कुमार मना कर देते हैं, इस पर मधुबाला गुस्सा हो जाती हैं। और दिलीप कुमार कहते हैं कि ऐसा हसीन गुस्सा उन्होंने पहले नहीं देखा कभी। दिलीप कुमार मधुबाला को वहीं दिल दे बैठते हैं, इससे पहले उनके पास एक लड़की की तस्वीर भी आई रहती है शादी के लिए। वो तस्वीर मधुबाला की ही होती है।

इसलिए दिलीप कुमार यह सोचते हुए कि ये अंजू तो मेरी होने वाली बीवी है। इसी हक से वे मधुबाला को और छेड़ते हैं और हाथ पकड़ लेते हैं। स्क्रिप्ट के मुताबिक यहां मधुबाला उन्हें एक जोरदार थप्पड़ जड़ देती हैं। पर इस सीन को और जीवंत करने के लिए मैं यहां उस थप्पड़ के पहले तक के कुछ डायलाॅग लिख रही हूं। ये बातचीत दिलीप कुमार और मधुबाला के बीच हो रही है।
अंजू पहले धैर्य से अमर को शंकर का केस न लड़ने के लिए मनाती है। लेकिन जब अमर, अंजू को केस न वापस लेने का कहकर, रोमांस की समुंदर में गोते लगाने लगता है। तो सोशल एक्टिविस्ट कम एडवोकेट अंजू गुस्से से लाल हो जाती है। और अब डायलाॅग पढ़िए . . .।

अंजू: ‘शंकर जैसे बुरे आदमी की पैरवी क्यों कर रहे हैं। मैं समझती थी कि आप में शराफत और सच्चाई का माद्दा जरूर होगा लेकिन आपसे मिलकर मुझे मालूम हो गया कि दुनिया में बेइंसाफी आप ही जैसे आदमियों की वजह से होते हैं, चोरी, डाके और जुल्म आप ही लोगों के पनाह में होते हैं।’
अमर: ‘जी हां, पूरब से पश्चिम तक दुनिया में सारी बुराई की जड़ तो मैं ही हूं।’
अंजू: ‘मुझे खुशी है कि आप सच बोल रहे हैं।’
अमर: ‘सच तो यह है कि ऐसा हसीन गुस्सा पहले कभी नहीं देखा।’ (हाथ में अंजू से अंजू की तस्वीर को छुपा कर देखते हुए)
‘नाक, नक्शा भी खूब है। इन काली लटों में हिंदुस्तान की सारी शायरी कुर्बान।’
अंजू: ‘कहा कह रहे हैं आप?’
अमर: (अंजू के बेहद करीब आकर) ‘शंकर का मुकदमा तो क्या सिरे से वकालत छोड़ देंगे। आप ऐसा कीजिये मुझे बनारस ले चलिए। वहां गंगा नहाकर सारी जिन्दगी माला लेकर आपका नाम रटता रहूंगा।’
अंजू: ‘आपको बात करने की तमीज नहीं है या जान- बूझकर बदतमीज बन रहे हैं।’
अमर: (अंजू के आंखों में देखते हुए) ‘आप की आंखों में अपनी मिजाज को देख रहा हूं।’
अंजू: (गुस्से से) ‘बेहूदा हैं आप।’
अमर: (अंजू के थोड़ा और करीब आकर) ‘क्या करूं दिल के हाथों मजबूर हूं।’
अंजू: (गुस्से में तेज आवाज में बोलते हुए) ‘कुचल डालिये इस दिल को।’
अमर: ‘आपके पांव के नीचे एक दिल है, जरा आपकी जहमत होगी।’ (और अंजू का हाथ पकड़ लेता है)
अंजू: यहीं अपनी पूरी ताकत बटोर कर अमर को जोरदार थप्पड़ जड़ती है और हाथ छुड़ा कर गुस्से में चली जाती है।
बस और फिर क्या इस अदा पर तो अमर को अंजू से और प्यार हो जाता है।
यहीं पर दर्ज होता है ऐतिहासिक सीन जब मधुबाला अपने सिनेमा करियर में पहली और आखिरी बार दिलीप कुमार को थप्पड़ मारती हैं। फिर मुगल-ए-आजम में वो घटना होती है जो एक सीन के तौर पर लवख गया था लेकिन मोहब्बत की कश्ती ऐसे मोड़ पर थी कि सीन आॅन कैमरा होते हुए भी आॅफ कैमरा भी था। रील से रियल।
‘अमर’ फिल्म के दमदार डायलाॅग ‘आगा जानी कश्मीरी’ और ‘एस अली रजा’ ने मिलकर लिखे थे। कुछ लोगों का यह मानना है कि इसी थप्पड़ का बदला दिलीप कुमार ने आगे चलकर 1960 में आई फिल्म ‘मुगल-ए- आजम’ में मधुबाला को थप्पड़ मारकर लिया। पर यह भी हो सकता है कि उस समय दोनों की एक-दूसरे के प्रति नफरत का यह भावनात्मक प्रतिक्रिया रही हो!