हिंदी सिनेमा में ‘राजश्री प्रोडक्शन’ पारिवारिक फिल्में बनाने के लिए जाना जाता है। वर्ष 1964 में राजश्री ने फिल्म ‘दोस्ती’ का निर्माण किया था। उस जमाने की वह सबसे सफल फिल्मों में से एक थी। लेकिन इस बार इस प्रोडक्शन ने दोस्ती की एक अलग परिभाषा गढ़ी है। फिल्म भले ही बुजुर्ग दोस्तों की कहानी पर आधारित है, मगर सूरज बड़जात्या ने फिल्म को ऐसे पेश किया है कि आज की युवा पीढ़ी भी दोस्ती के मायने और रिश्तों की अहमियत को भलि-भांति समझ सकती है
‘हिम आपके हैं कौन’ से लेकर ‘विवाह’ जैसी फिल्में बनाने वाला ‘राजश्री प्रोडक्शन’ हमेशा पारिवारिक फिल्में बनाता है। इनके द्वारा निर्मित फिल्मों का क्रेज दशकों बाद भी जारी है। इन फिल्मों को कितने भी समय के बाद देखा जाए यह हमेशा पहली बार देखने जैसा अनुभव देती हैं। अपने इसी टारगेट को आगे बढ़ाते हुए राजश्री प्रोडक्शन ने हाल ही में दोस्ती पर आधारित ‘ऊंचाई’ नामक फिल्म बनाई है। यह फिल्म दोस्ती के उस अटूट रिश्ते को दर्शाती है जो अपने दोस्त की अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए एवरेस्ट पर चढ़ने का फैसला लेते हैं। इस पूरी जर्नी के उतार-चढ़ावों पर यह फिल्म आधारित है।

सूरज बड़जात्या फिल्म के ट्रेलर लांच के दौरान कह चुके हैं कि ‘उनके प्रोडक्शन हाउस की परंपरा पारिवारिक फिल्में बनाने की रही है और इसी परंपरा का निर्वाह करते हुए ‘ऊंचाई’ फिल्म बनाई है क्योंकि मित्रता भी परिवारिक जीवन का एक हिस्सा होती है। मुसीबत आने पर परिवार के सदस्य एक बार साथ छोड़ देते हैं, लेकिन एक सच्चा दोस्त कभी साथ नहीं छोड़ता है। ‘ऊंचाई’ ऐसे ही चार दोस्तों की इमोशन कहानी है जो इस बात पर प्रकाश डालती है। साथ ही यह बात भी बताती है कि कोई भी काम कल पर मत छोड़ो, क्योंकि जीवन में कभी कल नहीं आता।’
दरअसल, इस फिल्म की कहानी है चार दोस्तों की जो एवरेस्ट बेस कैंप पर जाना चाहते हैं, मगर उनमें से एक दोस्त दुनिया को अलविदा कह देता है। फिर बाकी तीन दोस्त उसके सपने को पूरा करने में लग जाते हैं वह भी तब जब ये सारे दोस्त बुजुर्ग हो चुके हैं। जबकि जवान लोगों के लिए ही एवरेस्ट बेस कैंप पर जाना आसान नहीं होता है। लेकिन जिंदगी में अगर कुछ करने का जज्बा हो तो उम्र कोई मायने नहीं रखती है और आप हर ऊंचाई पर फतेह हासिल कर सकते हैं चाहे वह दुनिया का सबसे ऊंचा पहाड़ एवरेस्ट ही क्यों न हो?
दोस्ती की अनोखी कहानी
फिल्म ‘ऊंचाई’ की कहानी चार बुजुर्ग दोस्तों अमित श्रीवास्तव (अमिताभ बच्चन), ओम शर्मा (अनुपम खेर), जावेद सिद्दीकी (बोमन ईरानी) और भूपेन (डैनी डेन्जोंगपा) की है जो एक-दूसरे से बहुत प्यार करते हैं। इनमें से भूपेन की मौत हो जाने के बाद बाकी तीन दोस्त अपने भूपेन की ख्वाहिश को पूरा करने के लिए माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने का फैसला लेते हैं। भूपेन ने एक बार तीन दोस्तों से इच्छा जाहिर की थी कि फिर से बचपन जीने के लिए वह तीनों के साथ एवरेस्ट पर जाना चाहता है। दिल्ली का आरामदायक जीवन त्याग कर तीनों दोस्त बेस कैंप पर एकत्रित होकर कड़ाके की ठंड में इस सफर की शुरुआत कर दोस्त भूपेन की अस्थियां एवरेस्ट में विसर्जित करने निकल जाते हैं।

कहानी की शुरुआत दिल्ली से होती है, तीनों दोस्त रेंट पर कार लेकर कानपुर, आगरा, लखनऊ, गोरखपुर के रास्ते होते हुए काठमांडू पहुंचते हैं जहां से उनकी एवरेस्ट की जर्नी शुरू होती है। इस सफर में उनकी उम्र उनके लिए काफी कठिनाई पैदा करती है। हालांकि जो भी उनके इस सपने के बारे में सुनता है वह उन्हें वापस लौट जाने की सलाह देता है। अमिताभ बच्चन की खराब तबीयत को देखते हुए टूर की गाइड परिणीति चोपड़ा उन्हें ट्रैकिंग पर जाने से मना कर देती हैं। लेकिन जज्बे के आगे उसे अपना फैसला बदलना पड़ता है और उनके जज्बे की रोचक कहानी सच्ची दोस्ती की दास्तां बयां करती है।
अभिनय से जीता दिल
अमिताभ बच्चन फिल्म में लेखक के किरदार में हैं, उनकी लिखी किताब को हर मां-बाप अपने बच्चों को पढ़ने की सलाह देते हैं, ताकि जीवन को समझ सकें। अमिताभ का वह सीन बहुत ही इमोशनल है जब वह कहते हैं कि किताब में उन्होंने जो लिखा है, वह उनके जीवन के निजी अनुभवों से प्रेरित नहीं है। बच्चे जो करना चाहते हैं, मां-बाप उन्हें करने दें, उनके सपनों की जो ऊंचाई है उसे छूने दें। बोमन ईरानी ऐसे शख्स बने हैं जो अपनी पत्नी नीना गुप्ता से कह नहीं पाते कि उन्हें एवरेस्ट पर जाना है। बोमन ने भी अपने किरदार को जबरदस्त तरीके से निभाया है, काफी लंबे समय के बाद डैनी छोटी-सी भूमिका में नजर आए और वह कमाल के लग रहे हैं। अनुपम का किरदार आपको हर सीन में अपने किसी न किसी दोस्त की याद दिलाएगा। सारिका, नीना गुप्ता का रोल भी काफी अच्छा लगा, इतने दिग्गज कलाकारों के बीच परिणीति चोपड़ा अपनी मौजूदगी दर्ज कराने में सफल रहीं।
गौरतलब है कि राजश्री प्रोडक्शन साफ-सुथरा और पारिवारिक फिल्में बनाने के लिए जाना जाता है। राजश्री प्रोडक्शन ने वर्ष 1964 में एक फिल्म ‘दोस्ती’ का निर्माण किया था। उस जमाने की वह सबसे सफल फिल्मों में से एक थी। इस बार राजश्री प्रोडक्शन ने दोस्ती की एक अलग परिभाषा गढ़ी है। फिल्म भले ही बुजुर्ग दोस्तो की कहानी पर है, लेकिन सूरज बड़जात्या ने फिल्म को ऐसे पेश किया है कि आज की युवा पीढ़ी भी दोस्ती के मायने और रिश्तों की अहमियत को समझ सकती है। फिल्म का छायांकन बहुत ही बढ़िया है। दिल्ली, कानपुर, लखनऊ, गोरखपुर, काठमांडू से लेकर एवरेस्ट की खूबसूरत वादियों को बहुत ही खूबसूरती के साथ पेश किया गया है। फिल्म थोड़ी-सी लंबी है, जहां पर एडिटर को थोड़ी-सी मेहनत करने की जरूरत थी। अमित त्रिवेदी का संगीत भले ही हर सिचुएशन में फिट बैठता हो, लेकिन राजश्री प्रोडक्शन की फिल्मों में जिस तरह के मधुर गीत होते हैं, उसकी थोड़ी-सी कमी जरूर महसूस हुई है।