हरिनाथ कुमार
समकालीन समाज और समय से सिनेमा का रिश्ता बहुत गहरा है। इसे इन दृश्यों में समझा जाए। साल 2019, भारत की 17वीं लोकसभा का चुनाव वर्ष। सत्तारूढ़ पार्टी की दोबारा सत्ता में आने की हुंकार। कांग्रेस के पिछले 70 साल पर भारी ‘राष्ट्रवादी पांच साल’ का प्रोपेगैंडा। यानी ‘उरी : सर्जिकल स्ट्राइक’ से लेकर ‘मिशन मंगल’ तक का कैसा कोलाज जिसमें ‘हाउ इज द जोश?’ एवं ‘पूरी दुनिया से बोलो कि कॉपी नाऽऽई’ की ललकार। मतलब कि सिनेमा ने इस समय की नब्ज को न सिर्फ पकड़ा है, बल्कि अपना प्रभामंडल भी तैयार किया है। दर्शकों की बेचैनी को भांप लिया है। उनकी आवाज में अपना सुर मिला लिया है। अर्थात् सिनेमा अपने न, मिजाज से दर्शकों को न सिर्फ अपनी तरफ खींच रहा है, बल्कि उन्हें न, तरीके से सोचने पर मजबूर भी कर रहा है। ऐसे में बीता साल 2019 सिनेमा के लिहाज से कितना हकीकत और कितना फसाना रहा, उस पर एक सरसरी नजर :-
हिन्दी सिनेमा की दृष्टि से साल 2019 का सिंहावलोकन करें तो ऐसा नहीं लगता कि इस साल जो कुछ हुआ है पहली मर्तबा हुआ है। लेकिन फॉर्म और कंटेंट, दोनों ही स्तर पर सिनेमा बदला है। पहले भी समय-समय पर बदलाव होते रहे, लेकिन वर्तमान में जो बदलाव परिलक्षित हुए या हो रहे हैं, वह पहले से पूरी तरह जुदा हैं। दरअसल आज का मेनस्ट्रीम या व्यावसायिक सिनेमा अपने भीतर राष्ट्र की सादगी एवं जनभावनाओं के सौंदर्य को समेटे हुए है।
इस साल की शुरुआत दो बड़ी फिल्मां से हुई। एक ‘उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’ तो दूसरी ‘द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर’। पहली एक्शन फिल्म तो दूसरी बायोपिक। दोनों फिल्में न केवल बॉक्स ऑफिस पर सिक्के खनका बल्कि खूब झंडे भी गाड़े और राजनीतिक गलियारों में हलचल भी मचाई। फिल्म ‘उरी : द सर्जिकल स्ट्राइक’ की कहानी साल 2016 में उरी हमले के जवाब में भारतीय जवानों द्वारा पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर आधारित है। फिल्म में विक्की कौशल के अलावा यामी गौतम, परेश रावल, कीर्ति कुल्हारी और मोहित रैना लीड रोल में नजर आए। वहीं दूसरी फिल्म संजय बारू की किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर’ पर आधारित है। यह पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और पत्रकार संजय बारू के जीवन पर अधारित है। जनवरी महीने के तीसरे सप्ताह में ‘सामना’ समाचार पत्र के संपादक और शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के जीवन पर आधारित बायोपिक ‘ठाकरे’ रिलीज हुई। अभिजीत पन्से निर्देशित ठाकरे की मुख्य भूमिका में नवाजुद्दीन सिद्दीकी हैं। अर्थात् कहा जा सकता है कि जनवरी माह में राष्ट्रवाद और हिन्दुत्व का बोलबाला रहा।
उसके बाद आलिया भट्ट और रणवीर सिंह की फिल्म ‘गली ब्वॉय’ 14 फरवरी को रिलीज हुई। इस फिल्म ने धांसू कमाई की। यह फिल्म रैपर डिवाइन और नैजी की रियल लाइफ पर बनी है। फिल्म में रणवीर सिंह ने मुराद का किरदार निभाया है, जो तमाम मुसीबतों को पार कर एक बड़ा रैपर बनता है और इसमें उसका साथ उसकी गर्लफ्रेंड सफीना देती है। फिल्म में सफीना का किरदार अलिया भट्ट ने निभाया।
21 मार्च को अक्ष्य कुमार की फिल्म केसरी रिलीज हुई। फिल्म में अक्ष्य कुमार हवलदार ईशर सिंह के रोल में नजर आए थे। फिल्म की कहानी सन् 1894 में हुए सारागढ़ी युद्ध पर आधारित है। इस युद्ध में 21 सिख रेजिमेंट ने 10 हजार अफगान सैनिकों को मार गिराया था। इसी महीने के अंत में सनोज मिश्रा निर्देशित ‘राम की जन्मभूमि’ रिलीज हुई। यह एक्शन फिल्म अयोध्या स्थित राम जन्मभूमि विवाद पर अधारित है। हालांकि इस फिल्म को कम स्क्रीन मिली लिहाजा लोगों के दिलों में मंदिर न बना सकी।
अप्रैल माह में जो फिल्म चर्चा का विषय बनी रही वह है विवेक अग्निहोत्री निर्देशित सनसनीखेज फिल्म ‘ताशकंद फाइल्स’। यह फिल्म भारत के वितीय प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के रहस्यमयी ‘मौत’ पर आधारित है। कांगेस के शासन काल में किस तरह से शास्त्री जी के ‘मौत’ का रहस्य फाइल दर फाइल में उलझता रहा है, को यह फिल्म उजागर करती है। फिर मई महीने में उमंग कुमार निर्देशित और विवेक ओबराय अभिनित बायोपिक ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ रिलीज हुई। यह वही महीना है जब 17वीं लोकसभा चुनाव का परिणाम घोषित हुआ। यानी 23 मई को चुनाव नतीजे आए जिसमें सत्तारूढ़ दल भाजपा को फिर से प्रचड़ बहुमत प्राप्त हुआ और 24 मई को फिल्म ‘पीएम नरेंद्र मोदी’ रिलीज हुई जो वर्तमान प्रधानमंत्री के जीवन पर आधारित है। इस तरह जनवरी से मई तक सिलसिलेवार ढंग से नजर दौड़ा, तो यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि हिन्दी सिनेमा का पर्याय बन चुका बॉलीवुड हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद से भरपूर लवरेज रहा। इस तरह कहा जा सकता है कि साल का प्रथम आधा हिस्सा हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद को समर्पित रहा। शुरू एक और गर्म पछुआं हवाओं का महीना जून में सिनेमा प्रेमियों को यथार्थ के चपेटों से रू-ब-रू कराती हुई फिल्म ‘आर्टिकल-15’ रिलीज हुई। अनुभव सिन्हा निर्देशित और आयुष्मान खुराना अभिनित यह फिल्म कई जगह उद्वेलित करती है तो कई जगह भावुक भी, और कुछ जगहों पर मनुष्य के रूप में शर्मसार भी करती है। यह फिल्म हमारे देश की गहरी जड़ वाली जाति व्यवस्था को यथावत प्रस्तुत करती है। साथ ही जाति व्यवस्था से संबंधित मानदंड निर्धारित नियमों का पालन न करने के परिणाम को भी उजागर करती है। जून महीने में ही संदीप वंगा निर्देशित और शाहिद कपूर अभिनीत ‘कबीर सिंह’ भी रिलीज हुई। कबीर सिंह ने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा दिया। फिल्म में शाहिद कपूर ने एक कांग्रेस से शख्स का किरदार निभाया, जो प्यार के लिए पागलपन की सारी हदें पार कर देता है। इस फिल्म को कई विवादों का सामना भी करना पड़ा था। फिल्म में प्यार के नाम पर दिखाई गई हिंसा लोगों को पसंद नहीं आई।
विकास बहल निर्देशित और ऋतिक रोशन अभिनित बायोपिक ‘सुपर- 30’ जुलाई में रिलीज हुई। फिल्म बिहार के गणितज्ञ आनंद कुमार के जीवन पर आधारित है। 15 अगस्त के मौके पर रिलीज हुई ‘मिशन मंगल’ ने बॉक्स ऑफिस पर जमकर राज किया। फिल्म की कहानी असली इसरो के मार्स प्रॉजेक्ट पर बेस्ड है। इसी साल सितंबर महीने में आयुष्मान खुराना की दूसरी फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ रिलीज हुई। फिल्म को राज शांडिल्य ने डायरेक्ट किया। फिल्म में आयुष्मान खुराना कांग्रेस लड़के का किरदार निभा रहे हैं, जो लड़कियों की आवाज निकाल सकता है, वो कॉल सेंटर में ‘पूजा’ बनकर काम करता है और लोगों से लड़की की आवाज में बातें करता है। कुछ लोग तो पूजा के प्यार में पड़ जाते हैं। पूजा को पाने के लिए कुछ तो अपनी पत्नी तक को छोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं। ये फिल्म कॉमेडी मूवी है। इसी महीने अजय बहल निर्देशित ‘सेक्शन 375’ मर्जी या जबरदस्ती रिलीज हुई जो बालात्कार के विभिन्न पहलुओं पर अपना पक्ष रखती है।
अक्टूबर महीने की शुरुआत ऋतिक रोशन की एक्शन और सनसनीखेज फिल्म ‘वार’ से होती है। इसी महीने ‘हाउसफुल 4’ भी पर्दे पर रिलीज हुई। फिल्म की कहानी 1419 के सितमगढ़ की है। उस दौर में अक्षय कुमार, बॉबी देओल, रितेश देशमुख, कृति सेनन, पूजा हेगड़े और कृति खरबंदा एक दूसरे से प्यार करते हैं। लेकिन, इस जन्म में उनका प्यार अधूरा रह जाता है। 600 साल बाद सभी का पुनर्जन्म होता है। और फिर शुरू होती है कॉमेडी की दास्तां- पुनर्जन्म के बाद मिस मैच कपल्स के मिस मैच होने से कॉमेडी का तड़का लगता है।
नवंबर महीने में एक ही थीम पर दो कॉमेडी फिल्में रिलीज हुईर्ं-‘उजड़ा चमन’ और ‘बाला’। ‘बाला’ आयुष्मान खुराना अभिनित इस साल की तीसरी फिल्म है। कम बाल या गंजेपन किस तरह से एक पुरुष की जिंदगी में तबाही मचाता है, को ‘उजड़ा चमन’ और ‘बाला’ दोनों फिल्में उजागर करती हैं। अब दिसंबर महीने में तीन फिल्में ज्यादा चर्चा में हैं, पहली आषुतोश गोवारिकर निर्देशित ‘पानीपत’, दूसरी मुदस्सर अजीज निर्देर्शित ‘पति- पत्नि और वो’, तीसरी प्रभुदेवा निर्देशित और सलमान खान अभिनित ‘दबंग 3’।
वैसे साल 2019 को दो हिस्सों में बांट कर देखा जाए, तो प्रथम हिस्से में हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद का बोलबाला दिखता है तो दूसरे हिस्से में यथार्थ और जीवन की कड़वी सच्चाई परिलक्षित होती है। यह बदलाव सिनेमा में ही नहीं, बल्कि हिन्दी फिल्मों के दर्शकों में देखने को मिलता है। न, दर्शक वर्ग ने सिनेमा के इस परिवर्तित और अपेक्षाकृत समृद्ध रूप को तहेदिल से स्वीकार किया है। फलस्वरूप लोगों के ‘खास किस्म’ वाली फिल्में में हलचल हुई है। आज भी बहुसंख्य फिल्में उसी ‘खास किस्म’ की श्रेणी में आती और बनाई जाती हैं। बावजूद इसके कई ऐसी फिल्में भी बन रही हैं, जिन्होंने सिनेमा और समाज के बने- बना, ढांचे को हिलाने की जुर्रत की है। इन फिल्मों ने अपने समय को संयमित ढंग से गायब किया है और सफलता के नए मानदंड भी गढ़े हैं। कुल मिलाकर हिंदी सिनेमा ने अपने समय की नब्ज को पहचानते हुए उसे प्रोत्साहित किया है और अपने लिए दर्शक वर्ग तैयार किया है।
साल 2019 को स्टार किड का फिल्म इंडस्ट्री में एंट्री लेने के मामले में भी याद किया जाएगा। इस साल कई स्टार किड्स ने अपना डेब्यू किया। हालांकि उनमें से कुछ की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं, तो कुछ ने सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरी। जिनमें से 90 के दशक के एक्टर और आजकल के कॉमेडियन एक्टर चंकी पांडे की बेटी अनन्या पांडे का नाम सबसे ऊपर है। क्योंकि स्टार किड्स के हिसाब से यह साल अनन्या पांडे के नाम रहा। दबंग स्टार सलमान खान ने ’दबंग 3’ में सई मांजरेकर को मौका दिया है। सई एक्टर और डायरेक्टर महेश मांजरेकर की बेटी हैं। देओल खानदान से इस बार उनकी थर्ड जनरेशन ने इंडस्ट्री में एंट्री मारी है। धर्मेंद्र के पोते और सनी देओल के बेटे कर.ा देओल ने रोमांटिक फिल्म ‘पल- पल दिल के पास’ से बॉलीवुड में कदम रखा। इस साल अमरीश पुरी की तीसरी पीढ़ी ने भी सिने-जगत में कदम रखा। हिंदी सिनेमा के बेहतरीन विलेन में से एक अमरीश के पोते वर्धन ने बतौर हीरो बॉलीवुड में एंट्री की। वर्धन ने अपनी पारी की शुरुआत फिल्म ‘ये साली आशिकी’ के साथ की।
इस साल का सिंहावलोकन सिलसिला फिल्म के कथानक, विषय-वस्तु और स्टार किड तक ही सीमित नहीं है बल्कि उन हस्तियों को भी याद करता है जो इस साल दुनिया से अलविदा कहेगा। फिल्म और थिएटर पर्सनालिटी गिरीश कर्नाड, म्यूजिक कंपोजर मोहम्मद जहूर खय्याम इस दुनिया को छोड़कर चले गए थे।
अजय देवगन के पिता और एक्शन डायरेक्टर वीरु देवगन, सूरज बड़जात्या के पिता राज कुमार बड़जात्या, शबाना आजमी की मां शौकत कैफी, जाने- माने एक्टर विजु खोटे, जानी-मानी एक्ट्रेस विद्या सिन्हा, ‘राजा हिंदुस्तानी’ के एक्टर और डांस ट्रेनर वीरु कृषणन, शाहरुख खान को पहला टेलीविजन ब्रेक देने वाले कर्नल राज कुमार कपूर और दिग्गज अभिनेता श्रीराम लागू आदि ने इस साल अलिविदा कह दिया। इन्हें सिने प्रेमी नमन करते हैं और इनके योगदान को याद करते हैं।