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आजकल बॉलीवुड की फिल्मों में आइटम सॉन्ग अनिवार्य हो गया है। बाजार की मांग के कारण ही फिल्म निर्माता कई बार जानबूझ कर आइटम सॉन्ग डाला करते हैं। इसके पहले रेप सीन, मुजरा जैसी विषय वस्तु भी बाजार की मांग पर फिल्मों में डाली जाती रही है। हिन्दी सिनेमा में लंबे समय तक कैबरे डांस भी बाजार की मांग के कारण बना रहा। बॉलीवुड में कैबरे डांसर से कई चर्चित अभिनेत्रियां बनीं। कैबरे डांस ही बदले रूप में आइटम सॉन्ग बन गया है। आज कई जानी-मानी अभिनेत्रियां ही आइटम सॉन्ग कर रही हैं मगर पुराने समय में कैबरे डांस टॉप अभिनेत्रियां नहीं करती थी, बल्कि कुछ अभिनेत्रियां कैबरे डांसर के रूप में ही चर्चित थीं। बहुत जल्द कैबरे डांसर पर एक फिल्म रिलीज हो रही है। इसलिए इस बार कैबरे डांसर और उनके डांस को खंगालते हैं।

भारतीय क्रिकेट के पूर्व गेंदबाज श्रीसंत बहुत जल्द एक फिल्म में नजर आने वाले हैं। इस फिल्म में श्रीसंत के साथ चर्चित अभिनेत्री ऋचा चड्ढा हैं। इस फिल्म में ऋचा चड्ढा कैबरे डांसर बनीं हैं। फिल्म का नाम है, ‘कैबरे’। इस फिल्म को कौस्तव नारायण नियोगी ने डायरेक्ट किया है और पूजा भट्ट फिल्म की प्रोड्यूसर हैं। यह 9 जनवरी को जी5 पर रिलीज की गई है।

‘कैबरे’ झारखंड के एक छोटे से गांव में रहने वाली एक ऐसी लड़की की कहानी है जो नृत्य की दुनिया में एक बड़ा नाम बनना चाहती है। ऋचा इसमें छोटे शहर की डांसर का किरदार निभा रही हैं, जिसके सपने बड़े हैं। फिल्म में नृत्य के अलावा प्यार और रोमांस का तड़का भी है। ऐसी अटकलें हैं कि यह ‘कैबरे क्वीन’ हेलन की जिंदगी से प्रेरित है, लेकिन फिलहाल पूजा और ऋचा में से किसी ने भी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।

हिंदी सिनेमा में 50 और 60 के दशक में कैबरे डांस का होना लाजिमी था। हेलेन को ‘कैबरे क्वीन’ कहा जाता था। इनके अलावा जयश्री टी, बिंदू, अरुणा ईरानी, पदमा खन्ना जैसी कई कलाकारों ने तब की फिल्मों में कैबरे डांस किया है। ये सभी जो फिल्मों में कैबरे करके मशहूर हुईं। कैबरे पर नजर डालें तो हिंदी फिल्मों में हेलेन से भी पहले एंगलो-इंडियन मूल की कुकु 50 के दशक में अपने डांस के लिए खूब मशहूर हुईं। चाहे वो राज कपूर की ‘आवारा’ और ‘बरसात’ हो या महबूब खान की ‘आन’।

गीता दत्त की आवाज और ओपी नैयर के संगीत में ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ का एक गाने में यूं तो मधुबाला है, लेकिन गाने में कैबरे करती कुकु की मौजूदगी कम दिलकश नहीं थी। कुकु ने ही हेलेन को फिल्मों में काम दिलवाया। जब हेलेन सिर्फ 12-13 साल की थीं। हेलेन कुकु के पीछे कोरस में डांस किया करती थी। कुकु की शार्गिदी में हेलेन सबसे मशहूर कैबरे डांसर बनकर उभरीं। चाहे 1969 में क्लब डांसर रीटा के तौर पर हल्के-फुल्के अंदाज में गाती ‘करले प्यार करले कि दिन है यही’ वाली हेलेन हों या फिर 1978 में ‘डॉन’ की कामिनी जो डॉन (अमिताभ) को लुभाने के लिए कैबरे का सहारा लेती है। ‘कारवां’ की ‘पिया तू अब तो आजा’ पर कैबरे करती हेलेन हो या फिर ‘अनामिका’ में कैबरे डांस करती हेलेन हो। गजब का लचीलापन, चमकीले कपड़े और भड़कीला मेकअप, खास जालीदार स्टॉकिंग और उस पर कैबरे ये हेलेन की खासियत थी।

50-60 के दौर की फिल्मों की कहानी में ही कैबरे डांस रचा-बसा होता था। आज के आइटम नंबर और तब के कैबरे में शायद ये बड़ा फर्क है। मसलन 1971 में आई फिल्म ‘कटी पतंग’ में बिंदू का वो हिट कैबरे अभिनेत्री बिंदू जहां कैबरे करती है। वहां आशा पारिख और राजेश खन्ना भी देखने आते हैं और कैबरे के जरिए बिंदू आशा पारिख को इशारों-इशारों में बता देती है कि वो उसकी जिंदगी का काला सच जानती हैं।

बिंदू की बात चली है तो उन्होंने भी कैबरे में नाम कमाया। चाहे 1973 में फिल्म ‘अनहोनी’ में या जंजीर की मोना डार्लिंग हो जब वो अमिताभ के सामने ‘दिल जलों का दिल जला के’ गाती हैं। या फिर जयश्री तलपड़े जो जयश्री टी के नाम से मशहूर हुईं। जैसे 1971 में ‘शर्मिली’ में जयश्री पर फिल्माया और आशा भोंसले की आवाज में गाया कैबरे। यहां अरुणा ईरानी का नाम लेना भी लाजिमी है। बाद में वो चरित्र किरदारों में नजर आने लगी। लेकिन 70 के दशक में उन्होंने कैबरे के जरिए काफी लोकप्रियता पाई जैसे ‘कारवां’ का गाना।

संगीत विशेषज्ञ पवन झा की मानें तो हेलेन कैबरे की सर्वश्रेष्ठ एम्बेसेडर थी। जबकि आशा भोंसले और गीता दत्त सबसे अच्छा कैबरे गाती थीं। उनके मुताबिक एसडी और आरडी बर्मन के साथ साथ ओपी नैय्यर ने शायद कैबरे से जुड़े गानों में सबसे अच्छा संगीत दिया है। फिल्म ‘अपना देश’ के कैबरे ‘दुनिया में लोगों को धोखा कहीं हो जाता है’ में तो संगीत आरडी ने दिया ही है, आशा भोंसले के साथ गाया भी है। जहां तक कैबरे की बात है तो लता ने कम कैबरे गाए हैं।

यूं तो शर्मिला टैगोर से लेकर कई हीरोइनों ने कैबरे किया है। 1967 में ‘एन इवनिंग इन पेरिस’ में शर्मिला टैगोर कैबरे करते हुई दिखती हैं। लेकिन उस दौर में अक्सर कैबरे फिल्म की वैंप या खलनायिका के हिस्से आया करता था। या फिर जहां औरत को बिगड़ी हुई या वैस्टर्न दिखाना हो।

हालांकि 80 के दशक तक आते-आते कैबरे का मिजाज। बदलने लगा। परवीन बॉबी और जीनत अमान जैसी हीरोइनें उस आदर्श नारी की इमेज से बिल्कुल अलग थीं। जो 50 और 60 के दौर में हीरोइन की होती थी। यहां वैंप नहीं हीरोइन भी कैबरे कर सकती थी। पवन झा के मुताबिक हीरोइन के तौर पर परवीन बॉबी को ‘नमक हलाल’ या ‘कालिया’ पर कैबरे करते देखना सहज लगने लगा। या फिर ‘द ग्रेट गैंबलर’ में जीनत अमान का कैबरे भी मुख्य अभिनेत्रियों का इन क्षेत्र में उतरने जैसा ही है।

जैसे-जैसे संगीत बदला 90 का दशक आते-आते कैबरे गायब सा होने लगे। 1992 में आई राम गोपाल वर्मा की ‘द्रोही’ में सिल्क स्मिता पर एक कैबरे फिल्माया गया था। ये शायद आरडी बर्मन के साथ आशा भोंसले का आखिरी कैबरे था। 2000 के बाद से तो आइटम सॉन्ग का ऐसा चलन शुरू हुआ कि कैबरे डांस बेदखल ही हो गया। न तो फिल्म की कहानी में कैबरे की कोई जगह बची न संगीत में। आइटम नंबर ने शायद कैबरे की जगह ले ली। ऐसे गाने जिनका कैबरे की तरह कहानी से कोई लेना देना नहीं होता। हां कभी-कभार एक-आध कैबरे जरूर देखने को मिल जाता है। जैसे ‘परिणिता’ में रेखा पर या ‘गुंडे’ में प्रियंका चोपड़ा पर फिल्माया गया था।

इसमें कोई शक नहीं कि कैबरे को बॉक्स ऑफिस पर दर्शक खींचने का भरोसेमंद तरीका माना जाता था। इन गानों में सेक्स अपील और सेंशुएलिटी का मिलन होता था। लेकिन ये भी सच है कि म्यूजिक और डांस के एक फॉर्म के तौर पर हिंदी फिल्मों में कैबरे एक खास कला मानी जाती थी। कैबरे के दायरे में रहते हुए भी कई जज्बात बयां किए जा सकते थे। मसलन ‘बॉन्ड 303’ में कैबरे करती हेलेन जासूस जितेंद्र को कैबरे में गूगल की तरह उनकी मंजिल का पूरा नक्शा बता देती हैं। या फिर 1978 की फिल्म ‘हीरालाल पन्नालाल’ का वो कैबरे जिसमें एक पिता बरसों से बिछड़ी बेटी जीनत अमान से दोबारा मिलता है, जब वो एक उदास कैबरे कर रही होती हैं। जाते-जाते जिक्र 1973 में आई एक फिल्म ‘धर्मा’ का जिसमें उस दौर की पांच कैबरे डांसर एक साथ दिखी थीं।

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