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एजेंडा फिल्मों चलते संकट में बॉलीवुड

एजेंडा फिल्में अब बॉलीवुड में नया ट्रेड बन उभर रही है। किसी खास मकसद को हासिल करने के लिए बनाई जा रही इन फिल्मों से अक्सर विवाद पैदा होता है और समाज का एक बड़ा वर्ग आंदोलित हो जाता है। ‘द कश्मीर फाइल्स’, ‘द केरल स्टोरी’, ‘आदिपुरुष’ और ‘पठान’ के बाद अब इन दिनों ‘हमारे बारह’ और ‘महाराज’ ने नए विवादों को जन्म दे दिया है। हाल-फिलहाल दोनों ही फिल्मों को अदालती आदेश बाद प्रदर्शित होने से रोक दिया गया है

बॉलीवुड में इन दिनों ‘एजेंडा सिनेमा का दौर शुरू हो चला है। कभी अपने गीतों और नृत्यों, रोमांस और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले नायकों के लिए प्रसिद्ध बॉलीवुड अब ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर फिल्में बनने लगा है जिनका राजनीतिक एजेंडा होता है। ‘द केरल स्टोरी’’, ‘कश्मीर फाइल्स’, ‘एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ आदि फिल्में इसी श्रेणी में आती हैं। इसी कड़ी में शामिल हैं दो नई फिल्में ‘महाराज’ और ‘हमारे बारह’ जिन्हें हाल-फिलहाल अदालती हस्तक्षेप के बाद रीलीज होने से रोक दिया गया है।

Juned khan

दोनों ही फिल्मों पर धार्मिक भावनाएं आहात करने का आरोप लगा हैं। ‘महाराज’ फिल्म के कंटेट पर हिंदू समुदाय विरोध कर रहा है जबकि फिल्म ‘हमारे बराहा’ पर मुस्लिम समुदाय आहत है। धार्मिक कंटेंट को लेकर पहले भी विरोध होता रहा है फिल्म ‘द केरल स्टोरी’, ‘द कश्मीर फाइल’, ‘आदिपुरुष’, ‘पठान’ आदि कई फिल्में ऐसी हैं जिनसे धार्मिक भावनाएं आहत हुई थी और कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद कई दृश्यों को काटकर फिल्मों को रिलीज किया गया था। लेकिन ऐसा क्यों होता है? किसी धर्म विशेष को लेकर बनी फिल्म पर सेंसर बोर्ड खामोश होता है और उसके बाद फिल्म की रिलीज को कोर्ट में चुनौती दी जाती है। फिर कोर्ट के हस्तक्षेप बाद सेंसर बोर्ड जागता है। पिछले साल लखनऊ बेंच ने फिल्म ‘आदि पुरुष’ पर सुनवाई करते हुए फिल्म निर्माताओं पर सख्त टिप्पणी की थी। कोर्ट ने कहा था कि फिल्म निर्माता ऐसी विवादित फिल्में बनाते ही क्यों हैं? जो लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाती हैं। कोर्ट ने यह भी कहा था कि सेंसर बोर्ड को बुद्धि आनी चाहिए और आम कहानियों पर बनी फिल्मों की अपेक्षा जब वे धर्म विशेष से जुड़ी फिल्मों को रिलीज की मंजूरी दे तो लोगों की भावनाओं का भी ख्याल रखें।

‘हमारे बराहा’ को लेकर क्या हैं आपत्ति?

फिल्म ‘हमारे बराहा’ का टीजर जब से रिलीज हुआ है तब से खूब सुर्खियां बटोर चुका है। फिल्म की घोषणा 5 अगस्त की गई थी इसी दिन पहला पोस्टर जारी किया गया था। पोस्टर में प्रोड्यूसर अनु कपूर के साथ अन्य कलाकारों को दिखाया गया था। अनु कपूर मुस्लिम परिवार के मुखिया के तौर पर दिखाई दे रहे थे। इस पोस्टर की सोशल मीडिया पर खूब आलोचना हुई थी। इसके बाद 30 मई की शाम को फिल्म का ट्रेलर रिलीज किया गया था। ट्रेलर में अनु कपूर मंसूर अली खान का किरदार निभा रहे हैं उनकी पहली पत्नी बच्चा पैदा करते हुए मर जाती है। दूसरी पत्नी छठी बार प्रग्नेंट होती हैं लेकिन इस बार प्रग्नेंसी में मुश्किल है। डॉक्टर का कहना हैं कि अबॉर्शन जरूरी है, लेकिन अनु कपूर मनाकर देते हैं। वो कहते हैं अबॉर्शन धर्म के खिलाफ है। बड़ी बेटी अलफिया अपनी सौतेली मां की जान बचाने के लिए अपने पिता को कोर्ट में ले जाती है ताकि उसकी मां को अबॉर्शन कराने का अधिकार मिल सके, उसकी जान बचाई जा सके। ट्रेलर पर मुस्लिम समुदाय ने कड़ा विरोध किया था। सोशल मीडिया पर अनु कपूर की आलोचना होनी लगी थी। विरोध के स्वर इतने तेज थे कि 24 घंटों के अंदर ही सभी प्लेटफार्म से इसका ट्रेलर हटा दिया गया था।

याचिकाकर्ता अजहर बाशा तंबोली ने बॉम्बे हाईकोर्ट में इस फिल्म पर रोक लगाने के लिए अर्जी डाली थी। उनका कहना है कि ये फिल्म मुस्लिम समुदाय की भावना को आहत करती है। ये कुरान को

Annu kapoor

भी गलत ढंग से दिखा रही है। मुस्लिम महिलाआंे का किरदार गलत तरीके से दिखाया गया है। वहीं सेंसर बोर्ड का कहना है कि फिल्म को सर्टिफिकेट देने से पहले सारे फैक्ट चेक किए गए थे, काफी सीन कट भी किए गए हैं। टीजर में जो दिखाया गया था उन सबको हटा दिया गया है। अब फिल्म में ऐसा कुछ हैं नहीं है जिससे इसकी रिलीज को रोका जा सके। सुनवाई के बाद बॉम्बे हाईकोर्ट 6 जून को फिल्म की रिलीज पर स्टे लगाकर एक कमेटी का गठन किया। कमेटी को फिल्म देखकर 7 जून की सुबह तक हाईकोर्ट को रिपोर्ट देनी थी। 7 जून को कोर्ट की सुनवाई हुई। कमेटी हाईकोर्ट की अपेच्छाओं पर खरा नहीं उतर सकी। कोर्ट द्वारा कमेटी बनाने का मकसद फिल्म को देखना और उस पर अपने ओपिनियन को सिनेमेटोग्राफी एक्ट के तहत देना था। कमेटी ने एक्सपर्ट और विशेषज्ञों से बात कर अपनी रिपोर्ट देने के लिए हाईकोर्ट से समय की दरकार मांगती है जिसे हाईकोर्ट खारिज कर देता है।

याचिकाकर्ता के वकील मयूर खांडेपार्कर ने अपना पक्ष रखते हुए कोर्ट से फिल्म रिलीज पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी जिसे अस्वीकारते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने फिल्म को हरी झंडी दे दी। याचिकाकर्ता इसके बाद उच्चतम न्यायालय की शरण में गए। उच्चतम न्यायालय में 13 जून को सुनवाई के दौरान फिल्म के कंटेंट पर अपनी सख्त नाखुशी जाहिर करते हुए न्यायाधीशों ने फिल्म के रिलीज को रोक दिया है। कोर्ट कहना है कि हमने सुबह फिल्म का ट्रेलर देखा। ट्रेलर में सभी आपत्तिजनक संवाद अभी भी बरकरार है तो अभी के लिए इस फिल्म पर रोक लगाते हैं। बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा याचिका का निपटारा किए जाने तक फिल्म की रिलीज पर रोक लगी रहेगी। बेंच ने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) को समिति गठित करने का निर्देश नहीं दे सकता क्योंकि सीबीएफसी खुद भी मामले में एक पक्षकार हैं। दोनों पक्षों के लिए समिति का चयन करने के लिए सीबीएफसी को निर्देश देने पर आपत्ति सहित सभी आपत्तियों को उच्च न्यायालय के समक्ष उठाने का विकल्प खुला रखा गया है।

फिलहाल इस फिल्म पर रोक लगी है। बॉम्बे उच्च न्यायालय इस पर जल्द ही फैसला सुना सकता है। लेकिन इससे जुड़े कलाकारों को जान से मरने की धमकियां, गालियां और आलोचना मिल रही है। अभिनेता अनु कपूर ने पत्रकारों से बातचीत में कहा है कि ‘किसी ने भी फिल्म नहीं देखी है, हमारे कलाकारों को जान से मरने की धमकी मिल रही है। लोकतंत्र में विरोध करना एक अधिकार है, लेकिन जान से मारने और बलात्कार की धमकियां देना अस्वीकार्य है। इसके लिए सजा होनी चाहिए। पहले फिल्म देखो और फिर अपनी राय बनाओ। फिल्म मातृत्व, जनसंख्या के बारे में बात करती है।’
फिल्म ‘महाराज’ भी अदालत में आमिर खान के बेटे जुनैद खान ‘महाराज’ फिल्म से डेब्यू करने जा रहे हैं। यह फिल्म 14 जून को ओटीटी प्लेटफॉर्म ‘नेटफ्लिक्स’ पर रिलीज होनी थी। लेकिन गुजरात हाईकोर्ट ने इस फिल्म पर 18 जून तक रोक लगा दी थी। गुजरात हाईकोर्ट में पुष्टिमार्ग सम्प्रदाय के आठ सदस्यों ने फिल्म की रिलीज के खिलाफ याचिका दायर की, जिसमें तर्क दिया कि यह फिल्म वैष्णव समुदाय के धार्मिक प्रमुख के इर्द-गिर्द घूमती है। फिल्म मेकर्स ने फिल्म का ट्रेलर प्रचार कार्यक्रम के बिना गुप्त तरीके से रिलीज करने का प्रयास किया ताकि इसकी कहानी किसी तक ना पहुंच सके।
क्यों हो रहा है महाराज पर विवाद
वर्ष 1832 में गुजरात के भावनगर में जन्में करसनदास स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्ति थे। 1851 में पत्रकारिता के रूप में एंग्लो-गुजराती समाचार पत्र ‘रास्ट गोफ्तार’ में योगदान देना शुरू किया। यह समाचार पत्र दादाभाई नौरोजी ने शुरू किया था। पत्रकारिता करते हुए करसनदास के सामने बड़ी चुनौती तब आई जब उन्होंने विधवा पुनर्विवाह की वकालत करते हुए एक साहित्यिक प्रतियोगिता के लिए निबंध लिखा। तब समाज और परिवार में खूब विरोध हुआ। मां की मृत्यु के बाद चाची ने ही उनकी देखभाल की थी। उन्होंने भी उनको घर से निकाल दिया था। इतना कुछ होने के बाद भी उन्होंने ‘रास्ट गोफ्तार’ में योगदान देना बंद नहीं किया, बल्कि 1855 में अपनी पत्रिका सत्यप्रकाश शुरू की जिस पर उन्होंने पुरानी परम्पराओं और सामाजिक समस्याओं पर खुलकर लिखा। इसके बाद उन्होंने वैष्णव पुजारियों के ‘कुकर्मों’ पर लिखना शुरू किया, जिसमें महिला भक्तों का शोषण भी शामिल था। वर्ष 1861 में करसनदास का ‘सत्यप्रकाश’ में एक लेख छपा, जिसका शीर्षक था-‘हिंदुओं का असली धर्म और मौजूदा पाखंडी नजरिया’। इसमें उन्होंने पुष्टिमार्गी कहे जाने वाले वल्लभ सम्प्रदाय पर सवाल उठाया था।

उन्होंने पहला आरोप लगाया था कि वल्लभ सम्प्रदाय के तत्कालीन संत जदुनाथजी बृजरतनजी महाराज अपनी महिला श्रद्धालुओं का यौन शोषण करते हैं। दूसरा गंभीर आरोप यह था कि इस सम्प्रदाय में कहा जाता था कि जो भी पुरुष श्रद्धालु अपनी पत्नी को महाराज के साथ सोने के लिए राजी होगा, उसी से उसकी श्रद्धा प्रदर्शित होगी’। यह मामला इतना उछला कि लंदन में बैठी ब्रिटिश सरकार तक हिल गई थी। करसनदास के इस रिपोर्ट पर 25 जनवरी 1862 से मानहानि का मुकदमा शुरू हुआ। अदालत में काफी भीड़ इक्कठी हो गई थी। उन पर काफी दवाब था लेकिन वो अपनी बात पर अड़िग रहे। पक्ष की ओर से 31 गवाहों और विपक्ष की ओर से 33 गवाहों की जांच की गई। जदुनाथ महाराज को भी अदालत में बुलाया गया। 22 अप्रैल 1862 को अदालत का फैसला आया। न्यायाधीश अर्नोल्ड ने फैसला सुनाया करसनदास पर लगा मानहानि के आरोप खारिज किया जाता है। न्यायाधीश ने कहा ‘यह धर्मशास्त्र का सवाल नहीं है, जो हमारे सामने है। यह नैतिकता का सवाल है। जो नैतिक रूप से गलत है वह धार्मिक रूप से सही नहीं हो सकता’। करसनदास और उनके सहयोगियों की अदालत सराहना करती है और अदालत करसनदास को 11,500 रुपए का मुआवजा देने का भी हुक्म देती है। इस केस को ‘महाराज लिबेल केस’ के नाम से जाना जाता है। फिल्म ‘महाराज’ इस केस से सम्बंधित तथ्य पर आधारित है जिसमें जुनैद करसनदास का किरदार निभा रहे हैं और फिल्म पर गुजरात के वैष्णव सम्प्रदाय पुष्टिमार्ग के अनुयायियों ने आपत्ति जताई है।

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