विश्व सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित मंचों में शामिल कांस फिल्म फेस्टिवल 2025 इस बार न केवल ग्लैमर और सिनेमा की भव्यता का गवाह बना, बल्कि वैश्विक मुद्दों पर भारतीय प्रतिनिधित्व का भी प्रतीक रहा। इस फेस्टिवल में आरुषि निशंक की भागीदारी ने भारतीय सिनेमा, संस्कृति और स्थायित्व के प्रति वैश्विक स्तर पर एक सशक्त संदेश दिया। जहां फैशन में उनका चयन पर्यावरणीय चेतना को दर्शाता है वहीं मंच पर उनकी सहभागिता भारत की सशक्त महिला प्रतिनिधि के रूप में उन्हें स्थापित करती है।
कांस फिल्म फेस्टिवल 2025 के रेड कार्पेट पर आरुषि निशंक के कदम रखते ही कैमरों की फ्लैश लाइट्स और तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा था। आरुषि ने जिस परिधान में शिरकत की वह सिर्फ एक फैशन स्टेटमेंट नहीं, बल्कि पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक था। यह पोशाक विशेष रूप से शून्य अपशिष्ट तकनीक और नो केमिकल डाई प्रक्रिया से तैयार की गई थी। डिजाइन प्रक्रिया में प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया गया जिसमें पौधों की छाल, फूलों और हल्दी जैसे रंगों से रंग तैयार किए गए। इस परिधान में पारम्परिक भारतीय बुनाई और आधुनिक शैली का समावेश था जिससे यह पोशाक भारतीय संस्कृति की जड़ों से जुड़ी हुई और विश्व मंच के अनुरूप भी प्रतीत हुई। इसके अलावा आरुषि ने अपने इस लुक के माध्यम से यह साबित किया कि पर्यावरण के अनुकूल फैशन भी ग्लैमरस और स्टाइलिश हो सकता है।
‘भारत को वैश्विक फिल्म महाशक्ति बनाना’
कांस के मंच पर आयोजित महत्वपूर्ण पैनल डिस्कशन में ‘मेकिंग इंडिया ए ग्लोबल फिल्म पावर हाउस’ में आरुषि निशंक वक्ता के रूप में आमंत्रित थीं। इस चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि भारत में 20 से अधिक प्रमुख फिल्म उद्योग हैं जो क्षेत्रीय भाषाओं में सक्रिय हैं। यह भारत को बहुभाषिक फिल्म महाशक्ति बनाता है। दूसरा भारतीय सिनेमा में महिलाओं की भूमिका बढ़ रही है न केवल पर्दे पर बल्कि पर्दे के पीछे भी बतौर निर्माता निर्देशक और तकनीकी विशेषज्ञ में महिलाएं आगे आ रही हैं। तीसरा उन्होंने फिल्मों के निर्माण और प्रदर्शन में पर्यावरणीय दृष्टिकोण को अपनाना आवश्यक है वाली बातांे पर जोर दिया। उनकी बातों को न केवल भारतीय प्रतिनिधियों ने सराहा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय फिल्म विशेषज्ञों ने भी समर्थन दिया।
कथक की प्रस्तुति
एक विशिष्ट सांस्कृतिक कार्यक्रम में आरुषि ने कथक नृत्य की प्रस्तुति दी है जिसमें उन्होंने देवी गंगा के रूप में नृत्य किया। उनकी प्रस्तुति में भाव, लय और ताल की त्रिवेणी देखने को मिली। इस नृत्य के माध्यम से उन्होंने गंगा नदी की पवित्रता, संकट और संरक्षण का संदेश दिया। विदेशी दर्शकों ने इस प्रस्तुति को भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक विरासत की झलक के रूप में देखा। यह केवल एक कला प्रदर्शन नहीं था, बल्कि एक संदेश था ‘पर्यावरण और संस्कृति के बीच अटूट सम्बंध का।’
कांस में आरुषि निशंक की उपस्थिति ने इस बात को सिद्ध किया कि आज की भारतीय नारी ग्लोबल प्लेटफाॅर्म पर अपनी जड़ों को लेकर खड़ी हो सकती है ‘बिना झुके, बिना बदले।’
जहां एक ओर उन्होंने फैशन को पर्यावरण से जोड़ा, वहीं दूसरी तरफ कला को विचार से जोड़ा। यह केवल एक उपस्थिति नहीं थी, यह एक प्रक्रिया थी भारतीय पहचान को नए रूप में परिभाषित करने की।