एक समय था जब बाॅलीवुड भारतीय सिनेमा का पर्याय माना जाता था, लेकिन हाल के वर्षों में इसकी चमक फीकी पड़ती जा रही है। इसके विपरीत, दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री और हाॅलीवुड फिल्मों की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है। बाॅलीवुड में मौलिक कहानियों की कमी देखी जा रही है। रीमेक फिल्मों और घिसे-पिटे फाॅर्मूलों पर अत्यधिक निर्भरता दर्शकों को उबाने लगी है। वहीं दक्षिण भारतीय फिल्म इंडस्ट्री दमदार स्क्रिप्ट और तगड़ी सिनेमैटोग्राफी के दम पर लगातार बेहतरीन फिल्में दे रही है। भाई-भतीजावाद, कमजोर संगीत, ओटीटी और हाॅलीवुड का प्रभाव इसके प्रमुख कारण हैं। बॉलीवुड को अगर अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा वापस पानी है तो उसे कुछ ठोस कदम उठाने होंगे
बाॅलीवुड इंडस्ट्री इस समय पिछले एक दशक के मुकाबले सबसे खराब दौर से गुजर रही है। अक्षय कुमार, आमिर खान और सलमान खान जैसे भारत के कई मेगास्टार्स की बड़ी बजट की फिल्में लगातार प्लाॅप हो रही हैं। लाॅकडाउन से शुरू हुआ बाॅलीवुड का खराब समय 2023 में फिल्म ‘जवान’, ‘पठान’, ‘गदर-2’ जैसी फिल्मों के सफल होने के बाद ट्रैक पर आता नजर आने लगा था लेकिन 2024 आते-आते बाॅलीवुड फिर वही लाॅकडाउन जैसे हालत पर पहुंच गया। 2024 में ‘स्त्री-2’ ने बाॅक्स ऑफिस पर बाॅलीवुड की थोड़ी लाज बचाई थी, लेकिन दक्षिण की फिल्म ‘पुष्पा -2’ के आगे सब फेल हो गए। अब ऐसे में देखना होगा कि 2025 बाॅलीवुड का बेड़ा पार कैसे लगेगा। वैसे 2025 में फिल्म ‘वार’, ‘रेड’, ‘दे दे प्यार दे’, ‘कीक’, ‘सिम्बा’ आदि फिल्मों के सीक्वल रिलीज होंगे। हालांकि इन फिल्मों से भी कोई खास उम्मीद नहीं हैं। साल की शुरुआत में बॉलीवुड ने फ्लाॅप फिल्मों का रिकॉर्ड बनाना शुरू कर दिया है जिसमें अक्षय कुमार की फिल्म ‘स्काई फाॅर्स’ कंगना रनोट की ‘इमरजेंसी’ शाहिद कपूर की ‘देवा’ अजय देवगन की ‘आजाद’ बाॅक्स ऑफिस पर फ्लॉप रही है। हालांकि ऐतिहासिक घटनाओं पर बनी फिल्म ‘छावा’ बाॅक्स ऑफिस पर कामयाब होती नजर आ रही है। वहीं दक्षिण सिनेमा की एक के बाद एक फिल्में बाॅक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही हैं। लोग इनके फिल्मों के इतने दीवाने हैं कि बाॅक्स ऑफिस से फिल्में उतरने के बाद ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज का इंतजार करते हैं। दक्षिण सिनेमा मजबूत और ओरिजिनल कहानियों के बलबूते बाॅलीवुड इंडस्ट्री पर भी कब्जा करता जा रहा है। वही बाॅलीवुड में दक्षिण सिनेमा की फिल्मों की काॅपी करने की प्रवृत्ति बढ़ गई है, बाॅलीवुड इंडस्ट्री के अभिनेता साउथ की फिल्में करने पर मजबूर हो गए हैं।
कमजोर कंटेंट और स्क्रिप्ट
बाॅलीवुड में कमजोर कंटेंट और स्क्रिप्ट का मुद्दा लम्बे समय से चर्चा में है। कई फिल्में बेहतरीन सिनेमैटोग्राफी, बड़े बजट और स्टार पावर के बावजूद असफल हो जाती हैं क्योंकि उनकी कहानी और पटकथा में दम नहीं होता। इसकी मुख्य वजह ओरिजिनल कंटेंट की कमी है जो फिल्मों में साफ दिखाई देती है। इसके अलावा बाॅलीवुड में कंटेंट से ज्यादा स्टारडम को प्राथमिकता दी जाती है। कई बार सिर्फ बड़े सितारों के नाम पर फिल्में बनाई जाती हैं भले ही कहानी में दम न हो। बाॅलीवुड में इन दिनों एक नया ट्रेंड और चल रहा है। अब हाॅलीवुड, साउथ इंडियन सिनेमा या पुरानी हिट फिल्मों के रीमेक बनाने में लगे हैं। नई और ताजा कहानियों पर कम ध्यान दिया जाता है। जबकि साउथ इंडस्ट्री ने ओरिजिनल कहानियों, कैरेक्टर डेवलपमेंट, इमोशन्स और एक्शन का सही बैलेंस बनाकर दर्शकों से मजबूत कनेक्शन बना लिया है। बाॅलीवुड यह नहीं समझ पा रहा कि ओटीटी प्लेटफाॅर्म के बढ़ते प्रभाव के कारण दर्शकों की पसंद बदली है। वे अब हाॅलीवुड, कोरियन सिनेमा और साउथ इंडियन फिल्मों की शानदार कहानियों के आदी हो चुके हैं जिससे बाॅलीवुड की कमजोर स्क्रिप्ट उन्हें आकर्षित नहीं करती।
स्टार सिस्टम और नेपोटिज्म
बाॅलीवुड में स्टार सिस्टम और नेपोटिज्म (भाई-भतीजावाद) लम्बे समय से विवाद का विषय रहे हैं। कई लोगों का मानना है कि यह इंडस्ट्री प्रतिभा से ज्यादा पारिवारिक कनेक्शन और बड़े स्टार्स के प्रभाव पर निर्भर करती है। बाॅलीवुड में ‘स्टार सिस्टम’ का मतलब यह है कि किसी फिल्म की सफलता सिर्फ उसके स्टार कास्ट पर निर्भर मानी जाती है, न कि कंटेंट या परफाॅर्मेंस पर। प्रोड्यूसर्स और डायरेक्टर्स अक्सर उन्हीं एक्टर्स के साथ काम करना पसंद करते हैं जिनकी पहले से बड़ी फैन फाॅलोइंग हो। बड़े बजट की फिल्मों में न्यूकमर्स को कम मौके मिलते हैं, क्योंकि प्रोड्यूसर्स रिस्क नहीं लेना चाहते। कई बार टैलेंटेड एक्टर्स को सिर्फ इसलिए साइड कर दिया जाता है क्योंकि वे इंडस्ट्री के अंदरूनी लोगों से जुड़े नहीं होते।
नेपोटिज्म भी बाॅलीवुड में एक बड़ी समस्या मानी जाती है। इसका मतलब है कि फिल्म इंडस्ट्री में पहले से मौजूद लोग अपने परिवार के लोगों को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं भले ही उनमें टैलेंट हो या न हो। नेपोटिज्म के प्रभाव के कारण उन स्टार किड्स को आसानी से बड़े बैनर्स की फिल्में ऑफर होती हैं मीडिया और सोशल मीडिया भी इन्हें ज्यादा कवरेज देता है जिससे ये आसानी से लोकप्रिय हो जाते हैं। जबकि इंडस्ट्री के बाहर से आने वाले टैलेंटेड एक्टर्स को ऑडिशन के जरिए काम पाने में सालों लग जाते हैं। अगर वे किसी तरह इंडस्ट्री में जगह बना भी लेते हैं, तो उन्हें लगातार संघर्ष करना पड़ता है। उन्हें बड़े बैनर की फिल्मों में कास्ट नहीं किया जाता, जबकि स्टार किड्स को बार-बार मौके मिलते रहते हैं।
स्टार सिस्टम और नेपोटिज्म बॉलीवुड की सच्चाई है, लेकिन अब समय बदल रहा है। ओटीटी प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया ने बाहरी टैलेंट को भी मौका देना शुरू कर दिया है। ‘पुष्पा’, ‘कांतारा’, ‘अंधाधुन’, ‘कहानी’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ जैसी फिल्मों की सफलता ने दिखाया है कि स्टार पावर से ज्यादा कंटेंट और टैलेंट मायने रखता है। अगर बाॅलीवुड को लम्बे समय तक दर्शकों का प्यार चाहिए तो उसे नेपोटिज्म से आगे बढ़कर टैलेंट को बढ़ावा देना होगा।
साउथ सिनेमा और हाॅलीवुड का प्रभाव
साउथ इंडियन फिल्म इंडस्ट्री (तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम) ने बाॅलीवुड से ज्यादा बेहतर और मास अपील वाली फिल्में बनाई हैं। ‘आरआरआर’, ‘पुष्पा’, ‘केजीएफ’, ‘कांतारा’ जैसी फिल्मों ने साबित कर दिया कि दर्शक मसाला फिल्मों में भी क्वालिटी की तलाश करते हैं। हाॅलीवुड फिल्मों की क्वालिटी और वीएफएक्स भी बाॅलीवुड को चुनौती दे रहे हैं।
टिकट के ऊंचे दाम और थिएटर एक्सपीरियंस
बाॅलीवुड फिल्मों के टिकट महंगे होते जा रहे हैं, जबकि ओटीटी पर कम कीमत में अच्छा कंटेंट उपलब्ध है। सिनेमाघरों में जाने का खर्चा (टिकट, पाॅपकाॅर्न, ट्रांसपोर्ट) इतना बढ़ गया है कि लोग केवल बड़ी और विजुअली शानदार फिल्मों के लिए थिएटर में जाना पसंद करते हैं।
बायकाॅट कल्चर और विवादित कंटेंट
सोशल मीडिया पर ‘बायकाॅट बाॅलीवुड’ ट्रेंड चलने से कई फिल्मों को नुकसान हुआ। धर्म, संस्कृति और समाज से जुड़े विवादों चलते दर्शकों में बाॅलीवुड के प्रति नकारात्मकता बढ़ी है। कुछ लोगों को लगता है कि बाॅलीवुड ने समाज से कटकर एक अलग ही एजेंडा चलाना शुरू कर दिया है। जबकि दक्षिण की फिल्में अपनी संस्कृति से खिलवाड़ नहीं करती, बल्कि वहां की संस्कृति को सिनेमा के माध्यम से प्रचार किया जा रहा है।
खराब म्यूजिक
बाॅलीवुड में ओरिजिनल म्यूजिक की जगह रीमिक्स गानों का ट्रेंड बढ़ गया है। नए और क्रिएटिव गानों की बजाय पुराने हिट गानों को रीक्रिएट किया जा रहा है, जिससे म्यूजिक की क्वालिटी गिर रही है। पहले गुलजार, जावेद अख्तर, आनंद बख्शी जैसे दिग्गजों की रचनाएं बाॅलीवुड गानों की जान होती थीं। लेकिन अब लिरिक्स में गहराई की बजाय बेतुके शब्दों पर जोर दिया जा रहा है। बॉलीवुड में अब गाने सिर्फ ट्रेंडिंग और सोशल मीडिया फ्रेंडली बनाने के लिए बनाए जाते हैं। उनका जोर अच्छे म्यूजिक की बजाय इस बात पर जोर दिया जाता है कि गाना इंस्टाग्राम रील्स पर वायरल होगा या नहीं। जबकि साउथ इंडियन फिल्म इंडस्ट्री में म्यूजिक को बहुत गम्भीरता से लिया जाता है। वहां ओरिजिनल साउंडट्रैक पर फोकस किया जाता है, जिसमें मेलोडी, लिरिक्स और इमोशन्स को ज्यादा अहमियत दी जाती है। ए.आर. रहमान, देवी श्री प्रसाद, अनिरुद्ध रविचंदर, एस, थमन जैसे साउथ के म्यूजिक डायरेक्टर अपने साउंडट्रैक्स में बहुत मेहनत और इनोवेशन लाते हैं। उनके गानों में रीजनल फ्लेवर के साथ-साथ वर्ल्ड म्यूजिक का भी इन्फ्लुएंस होता है। साउथ फिल्मों में गाने स्टोरी का अहम हिस्सा होते हैं और उन्हें फिल्म की इमोशनल डेप्थ के साथ जोड़ा जाता है। वहीं, बाॅलीवुड में कई बार गाने फिल्म से कटकर प्रमोशनल टूल बन जाते हैं। यही वजह है कि लोग अब साउथ का म्यूजिक ज्यादा पसंद कर रहे हैं और बाॅलीवुड का म्यूजिक अपनी चमक खोता जा रहा है।
मार्केटिंग और हाइप का फेल होना
बाॅलीवुड फिल्में की मार्केटिंग ज्यादातर स्टार पावर पर निर्भर होती है जिसमे बड़े-बड़े सितारों प्रमोशन के लिए जाते हैं। इसके आलावा सोशल मीडिया, टीवी शो और इंटरव्यू पर ज्यादा जोर दिया जाता है। टीजर और ट्रेलर फिल्म की रिलीज से पहले धीरे-धीरे लाए जाते हैं। कई बार रिलीज से पहले एक से अधिक टीजर भी लॉन्च किए जाते हैं। अब चाहे फिल्म का कंटेंट कमजोर क्यों न हो है। सोशल मीडिया पर हाइप बनाई जाती है, लेकिन जब दर्शक फिल्म देखते हैं तो उन्हें धोखा महसूस होता है। जबकि साउथ में कंटेंट-ड्रिवेन मार्केटिंग देखने को मिलती है भले ही बड़े स्टार्स हों, लेकिन फिल्म के काॅन्सेप्ट और मास अपील पर ज्यादा फोकस रहता है। फिल्मों में टीजर और ट्रेलर लाॅन्च एक इवेंट की तरह होता है। यहां ट्रेलर लाॅन्च को फेस्टिवल जैसा बनाया जाता है जिसमें फैंस की भागीदारी अधिक होती है। बड़े स्टार्स की फिल्में आने से पहले फैन क्लब्स पोस्टर, कटआउट्स और इवेंट्स के जरिए फिल्म को प्रमोट करते हैं। साउथ इंडस्ट्री ने सोशल मीडिया, ग्राउंड-लेवल प्रमोशन और फैंस की भागीदारी से एक मजबूत प्रमोशनल माॅडल बनाया है।
बाॅलीवुड को अगर अपना खोया हुआ जलवा वापस लाना है तो उन्हें मजबूत स्क्रिप्ट, नए टैलेंट को बढ़ावा देना, टिकट की कीमतों को संतुलित करना और दर्शकों की पसंद को समझना होगा। ‘पठान’, ‘गदर-2’ और ‘जवान’ जैसी फिल्मों की सफलता ने यह दिखाया है कि सही कंटेंट के साथ बाॅलीवुड अब भी वापसी कर सकता है। नहीं तो साउथ सिनेमा और ओटीटी प्लेटफाॅम्र्स उसे पूरी तरह रिप्लेस कर देंगे।