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देश के रत्न बने रहेंगे ‘भारत’

मनोज कुमार की विरासत उनकी फिल्मों और उनके संदेशों में जीवित है। वे एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने सिनेमा को समाज के उत्थान का जरिया बनाया। उनकी फिल्मों के गीत जैसे ‘मेरे देश की धरती…’, ‘है प्रीत जहां की रीत सदा’, और ‘ये देश है वीर जवानों का’ आज भी लोगों के जहन में हैं। वे सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि एक विचारधारा थे। उनके निधन के साथ एक युग का अंत हुआ, लेकिन उनकी फिल्में और उनका संदेश हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे

बाॅलीवुड के दिग्गज अभिनेता मनोज कुमार का गत् 4 अप्रैल को 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया। वो लम्बे समय से बीमार चल थे। उन्होंने मुम्बई के कोकिलाबेन धीरूभाई अम्बानी अस्पताल में अंतिम सांस ली। मनोज कुमार को ‘भारत कुमार’ के नाम से भी जाना जाता था, वो भारतीय सिनेमा के ऐसे कलाकार थे जिन्होंने देशभक्ति से ओत-प्रोत फिल्मों के माध्यम से न केवल दर्शकों का मनोरंजन किया, बल्कि उन्हें राष्ट्रप्रेम और सामाजिक चेतना का संदेश भी दिया। उनकी फिल्मों के देशभक्ति गीत खासकर ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती’ आज भी हर भारतीय के दिल में देशप्रेम की भावना को जागृत करता है। उनके निधन पर प्रधानमंत्री से लेकर कई अन्य फिल्मी हस्तियों ने शोक व्यक्त किया। प्रधानमंत्री ने दुख प्रकट करते हुए अपने सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर लिखा, ‘मुझे यह जानकर अत्यंत दुख हुआ कि दिग्गज अभिनेता और फिल्म निर्माता श्री मनोज कुमार जी का 87 वर्ष की आयु में निधन हो गया है। वे भारतीय सिनेमा के एक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व थे, जिन्हें विशेष रूप से उनकी देशभक्ति से ओत-प्रोत फिल्मों के लिए जाना जाता था। उनकी कृतियों ने राष्ट्रीय गर्व की भावना को जागृत किया और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी। इस दुखद घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके परिवार और प्रशंसकों के साथ हैं ‘¬ शांति’।

मनोज कुमार का निधन हिंदी सिनेमा के लिए एक अपूरणीय क्षति है। आइए, उनके जीवन, करियर और योगदान के बारे में विस्तार से जानें। मनोज कुमार का जन्म 24 जुलाई 1937 में हुआ था। उनका मूल नाम हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी था। वे उस समय के एबटाबाद (अब पाकिस्तान) में पैदा हुए थे, जो तब भारत का हिस्सा था। 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के दौरान उनका परिवार शरणार्थी बनकर दिल्ली आया। यह उनके जीवन का पहला बड़ा संघर्ष था। दिल्ली में उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और हिंदू काॅलेज से ग्रेजुएशन किया। लेकिन उनका सपना अभिनेता बनने का था। बचपन में दिलीप कुमार की फिल्म ‘शबनम’ (1949) देखकर वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपना नाम बदलकर मनोज कुमार रख लिया और फिल्मी दुनिया में कदम रखने का फैसला किया।

उनके शुरुआती दिन आसान नहीं थे। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और फिल्म इंडस्ट्री में बिना किसी गाॅडफादर के जगह बनाना चुनौतीपूर्ण था। फिर भी उनकी लगन और मेहनत ने उन्हें मौका दिलाया। उनकी पहली फिल्म ‘फैशन’ (1957) में वे एक छोटे से किरदार में नजर आए। इसके बाद ‘कांच की गुड़िया’ और ‘पांच बीघा जमीन’ जैसी फिल्मों में भी दिखे, लेकिन ये फिल्में ज्यादा सफल नहीं हुईं।

करियर की शुरुआत

मनोज कुमार का करियर तब बदला जब उन्हें 1965 में फिल्म ‘शहीद’ में क्रांतिकारी भगत सिंह की भूमिका निभाने का मौका मिला। इस फिल्म ने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया। उनकी संजीदा अभिनय शैली और देशभक्ति की भावना ने दर्शकों का दिल जीत लिया। ‘शहीद’ ने उन्हें एक ऐसे अभिनेता के रूप में स्थापित किया जो न सिर्फ मनोरंजन करता है, बल्कि समाज को जागृत भी करता है। इसके बाद आई उनकी सबसे प्रतिष्ठित फिल्म ‘उपकार’ (1967)। इस फिल्म का विचार तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नारे ‘जय जवान, जय किसान’ से प्रेरित था। मनोज कुमार ने इसमें एक किसान की भूमिका निभाई, जो देश के लिए अपने कर्तव्य को सर्वोपरि मानता है। फिल्म का गाना ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती’ आज भी देशभक्ति का पर्याय है। इस फिल्म में उन्होंने अभिनय के साथ-साथ निर्देशन भी किया, जिसके लिए उन्हें बहुत सराहना मिली। ‘उपकार’ ने उन्हें ‘भारत कुमार’ की उपाधि दिलाई, क्योंकि उनकी फिल्मों में देशभक्ति और भारतीय संस्कृति का गहरा प्रभाव दिखता था।

देशभक्ति और सामाजिक संदेश

मनोज कुमार की फिल्में सिर्फ मनोरंजन तक सीमित नहीं थीं। वे उस दौर में आए जब भारत आजादी के बाद अपनी पहचान और आत्मनिर्भरता की तलाश में था। उनकी फिल्मों ने देश के युवाओं को प्रेरित किया। ‘पूरब और पश्चिम’ (1970) में उन्होंने भारतीय संस्कृति और पश्चिमी प्रभाव के बीच संतुलन को दिखाया। इस फिल्म में उनका किरदार ‘भारत’ पश्चिम में रहते हुए भी अपनी जड़ों से जुड़ा रहना है। ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ (1974) में उन्होंने गरीबी, बेरोजगारी और सामाजिक असमानता जैसे मुद्दों को उठाया। ‘क्रांति’ (1981) में उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम की भावना को फिर से जीवित किया। उनकी फिल्मों की खास बात थी कि वे आम आदमी की भाषा में गहरे संदेश देती थीं। उनके किरदार अक्सर किसान, मजदूर, सैनिक जैसे साधारण होते थे। लेकिन उनकी सोच और कर्म असाधारण होती थी। वे अपनी फिल्मों में बार-बार ‘भारत’ नाम का इस्तेमाल करते थे जो उनके देश के प्रति प्रेम को दर्शाता था।

निजी जीवन : मनोज कुमार ने शशि गोस्वामी से शादी की और उनके दो बेटे विशाल और कुणाल हैं। कुणाल ने भी कुछ फिल्मों में अभिनय किया, लेकिन वे अपने पिता की तरह सफल नहीं हो सके। मनोज कुमार एक निजी जीवन जीने वाले व्यक्ति रहे हैं। फिल्मों से दूर रहने के बाद उन्होंने सार्वजनिक जीवन में कम ही हिस्सा लिया है। उन्होंने 1980 के दशक के बाद फिल्मों में कम काम किया और 1990 के दशक में वे पूरी तरह फिल्मी दुनिया से दूर हो गए। उनकी आखिरी बड़ी फिल्म ‘क्लर्क’ (1989) थी। इसके बाद वे स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे।

मनोज कुमार की विरासत उनकी फिल्मों और उनके संदेशों में जीवित है। वे एक ऐसे कलाकार थे जिन्होंने सिनेमा को समाज के उत्थान का जरिया बनाया। उनकी फिल्मों के गीत जैसे ‘मेरे देश की धरती…’, ‘है प्रीत जहां की रीत सदा’, और ‘ये देश है वीर जवानों का’ आज भी लोगों के दिलों में हैं। वे सिर्फ एक अभिनेता नहीं, बल्कि देशप्रेम, सादगी और मानवता की विचारधारा थे। उनके निधन के साथ एक युग का अंत हुआ, लेकिन उनकी फिल्में और उनका संदेश हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे।

सम्मान और पुरस्कार

मनोज कुमार को उनके योगदान के लिए कई सम्मान मिले। 1992 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया। 2015 में उन्हें भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान ‘दादासाहब फाल्के पुरस्कार’ दिया गया। फिल्म ‘बेईमान’ (1972) के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर पुरस्कार भी मिला। ये सम्मान उनके कला के प्रति समर्पण और समाज के प्रति उनकी जिम्मेदारी को दर्शाते हैं।

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