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चौतरफा साम्प्रदायिकता का जहर

भारतीय सिनेमा पहले सामाजिक मुद्दों को उठाता था। ‘गर्म हवा’ और ‘पड़ोसी’ जैसी फिल्मों ने साम्प्रदायिक सदभाव को बढ़ावा दिया, जबकि हालिया समय में प्रदर्शित ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘केरल स्टोरी’ जैसी फिल्मों ने विवादास्पद मुद्दों को उजागर कर ध्रुवीकरण को बढ़ाया है। ‘छावा’ इस कड़ी में एक नया अध्याय है जिसमें इतिहास को मनोरंजन के साथ जोड़कर साम्प्रदायिकता की ओर बढ़ावा मिल रहा है। क्या सिनेमा अब समाज को जोड़ने के बजाय उसे तोड़ने का जरिया बन रहा है?

भारतीय सिनेमा में इतिहास से जुड़ी फिल्मों का एक समृद्ध इतिहास रहा है। ये ऐसी फिल्में हैं जो न केवल मनोरंजन प्रदान करती हैं, बल्कि समाज को ऐतिहासिक घटनाओं और किरदारों से परिचित कराती हैं। इन फिल्मों ने कभी इतिहास को गौरवान्वित किया, तो कभी विवादों को जन्म दिया। इसी कड़ी में फिल्म ‘छावा’ भी जुड़ गई है। यह फिल्म छत्रपति सम्भाजी महाराज के जीवन पर आधारित है जिसने बाॅक्स आॅफिस पर तहलका मचा रखा है। पहले दिन से दर्शकों का प्यार पाने वाली यह फिल्म न केवल एक व्यावसायिक सफलता बनकर उभरी, बल्कि इसने सामाजिक और साम्प्रदायिक संवेदनाओं को भी प्रभावित किया है। इस फिल्म पर इतिहास को गलत तरीके से प्रस्तुत करने और साम्प्रदायिक तनाव भड़काने के आरोप लगे हैं। ‘छावा’ पहली ऐसी फिल्म नहीं जिस पर साम्प्रदायिकता भड़काने के आरोप लगे हैं, बल्कि इससे पहले भी कई फिल्मों ‘द केरल स्टोरी’, ‘कश्मीर फाइल्स’, ‘72 हुरे’ पर भी विवाद हुए, साथ ही इन पर यह भी आरोप लगे कि ये एक प्रोपगेंडा सेट करने के उद्देश्य से बनाई गई।

फिल्मों पर साम्प्रदायिकता फैलाने का मुद्दा देश में हमेशा से संवेदनशील रहा है। कुछ फिल्में धार्मिक या सांस्कृतिक भावनाओं को भड़काकर तनाव पैदा करती हैं, जिससे समाज का सद्भाव बिगड़ जाता है। बाॅलीवुड सिनेमा पिछले कुछ वर्षों से ऐसी फिल्मों पर काम कर रहा है जिससे उस फिल्म पर काॅन्ट्रोवर्सी शुरू हो जाती है। फिल्म ‘छावा’ ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित है लेकिन फिल्म निर्माताओं ने इसे तोड़-मरोड़ कर पेश किया है जिस पर काॅन्ट्रोवर्सी हो रही है।

‘छावा’ ने मराठा इतिहास और सम्भाजी महाराज की वीरता को बड़े पर्दे पर प्रस्तुत किया, जिसमें औरंगजेब के अत्याचारों को भी दर्शाया गया है। फिल्म ने मनोरंजन के साथ-साथ ऐतिहासिक जागरूकता फैलाने का काम किया। लेकिन इसने धार्मिक और साम्प्रदायिक तनाव को भी हवा दे दी है। कुछ लोगों का मानना है कि फिल्म में मुगल शासक औरंगजेब को खलनायक के रूप में चित्रित करने से हिंदू-मुस्लिम सम्बंधों में दरार पैदा हुई। उदाहरण के लिए नागपुर में हुए दंगे और औरंगजेब की कब्र को हटाने का मुद्दा अभी भी संवेदनशील बना हुआ है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर में हुए दंगों के लिए ‘छावा’ फिल्म को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि अब सिनेमा केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह सामाजिक भावनाओं को उत्तेजित करने का माध्यम भी बन गया है। नागपुर की हिंसा सोची-समझी साजिश लग रही है। भीड़ ने पहले से एक धर्म विशेष के लोगों के घर और दुकानों को टारगेट किया। इस फिल्म ने लोगों के मन में औरंगजेब के प्रति गुस्सा भड़का दिया है। अफवाह की वजह से भी हिंसा भड़की। इसके बाद आॅल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिखकर इस फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उन्होंने इस फिल्म पर आरोप लगाते हुए कहा कि फिल्म साम्प्रदायिक तनाव भड़का रही है और नागपुर में हुए दंगों के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार है। दूसरी ओर फिल्म के समर्थकों का तर्क है कि यह मराठा गौरव और उनके संघर्ष की कहानी है, जो ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित है। यह फिल्म 750 करोड़ रुपए से अधिक की कमाई के साथ बाॅक्स आॅफिस पर सफल रही। जिससे यह स्पष्ट होता है कि दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय रही है। हालांकि इसके ऐतिहासिक तथ्यों पर सवाल उठे हैं। कुछ आलोचकों का कहना है कि निर्देशक ने फिल्म में इतिहास को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया, जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को बढ़ावा मिला।

द कश्मीर फाइल्स

‘द कश्मीर फाइल्स’ 2022 में रिलीज हुई। तब से ही यह चर्चा में रही है। यह फिल्म 1990 के दशक में कश्मीरी पंडितों के पलायन और नरसंहार की घटनाओं पर आधारित है। आरोप है कि इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को दिखाकर एक खास समुदाय के खिलाफ नफरत को बढ़ावा दिया था। इस फिल्म को सत्तारूढ़ पार्टी का समर्थन मिला था जिसकी वजह से इसे टैक्स फ्री भी किया गया था जिसकी वजह से इसे राजनीतिक एजेंडे से जोड़ा गया था। दूसरी ओर विपक्षी दलों के नेताओं ने इसे हिंदू- मुस्लिम विभाजन और समाज में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाने वाली फिल्म करार दिया था।

आलोचकों का कहना था कि फिल्म में तथ्यों को एकतरफा ढंग से पेश किया गया और मुसलमानों को विलेन के रूप में चित्रित किया गया है। फिल्म में कश्मीरी मुद्दे को साधारण बनाकर सिर्फ एक पक्ष दिखाया गया है, जिससे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण बढ़ा है। कुल मिलाकर ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने अपनी रिलीज के बाद से ही भावनात्मक और राजनीतिक बहस छेड़ दी थी। यह फिल्म बाॅक्स आॅफिस पर सफल रही थी, लेकिन इसकी प्रस्तुति और प्रभाव को लेकर समाज में दो धड़े बन गए थे-एक जो इसे सच्चाई का दस्तावेज मानता था और दूसरा जो इसे पक्षपातपूर्ण और विभाजनकारी कहता था।

केरल स्टोरी

फिल्म ‘द केरल स्टोरी’ 5 मई 2023 को रिलीज हुई थी। सुदीप्तो सेन द्वारा निर्देशित और विपुल अमृतलाल शाह द्वारा निर्मित इस फिल्म की कहानी केरल की कुछ महिलाओं के बारे में थी, जो कथित तौर पर ‘लव जिहाद’ के जरिए इस्लाम में धर्मांतरित हुईं और फिर इस्लामिक स्टेट में शामिल हो गईं। फिल्म के शुरुआत में इन महिलाओं की संख्या 32,000 बताई गई थी जिसको लेकर विवाद हो रहा था। फिल्म के निर्माताओं ने इसे सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्म बताया तो कई आलोचकों, पत्रकारों और फैक्ट-चेकर्स ने इस फिल्म के तथ्यों को झूठा करार दिया। विवाद को बढ़ता देख फिल्म निर्माताओं द्वारा 32,000 महिलाओं के आंकड़ों को संशोधित कर सिर्फ 3 महिलाओं के जीवन पर आधारित करना पड़ा था, क्योंकि इन महिलाओं के आकड़ों की कोई ठोस पुष्टि नहीं थी। सरकारी आंकड़ों और जांच एजेंसियों ने भी ‘लव जिहाद’ की अवधारणा को खारिज किया था, जिस पर यह फिल्म आधारित है। केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन, कांग्रेस नेता शशि थरूर और अन्य राजनीतिक दलों ने फिल्म पर राज्य को बदनाम करने और साम्प्रदायिक तनाव फैलाने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि यह फिल्म संघ परिवार के प्रोपगेंडा को बढ़ावा देती है और मुस्लिम समुदाय को नकारात्मक रूप में चित्रित करती है। उस समय इस फिल्म पर इतना विवाद हुआ की पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु की सरकार ने इसे राज्य में स्क्रीनिंग करने पर बैन लगा दिया था जबकि दूसरी ओर उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इसे टैक्स-फ्री कर दिया गया था। इससे राजनीतिक समर्थन और विरोध का मुद्दा और गहरा गया था फिल्म को इस्लामोफोबिक प्रचार के रूप में देखा गया और इसने समाज में बहस छेड़ दी। जहां कुछ लोगों ने इस फिल्म को जागरूकता बढ़ाने वाला बताया। वहीं कई ने इसे प्रोपगेंडा करार दिया। केरल में फिल्म का ज्यादा असर नहीं दिखा, लेकिन अन्य राज्यों में इसे लेकर विरोध और समर्थन दोनों देखने को मिले थे। कुल मिलाकर यह फिल्म राजनीतिक एजेंडे और धार्मिक भावनाओं को आहत करने की आशंका के इर्द-गिर्द केंद्रित थी जोकि व्यावसायिक रूप से तो सफल रही थी लेकिन इसकी आलोचना और समर्थन ने इसे भारत में एक चर्चित और विवादास्पद मुद्दा बना दिया था।

पद्मावत

संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित फिल्म ‘पद्मावत’ भी विवादों के केंद्र में रही हालांकि फिल्म का मूल संदेश सांप्रदायिक नहीं था। यह फिल्म अलाउद्दीन खिलजी, राजा रतन सिंह और रानी पद्मावती की कहानी पर आधारित है, जो मूल रूप से मलिक मोहम्मद जायसी के काव्य पद्मावत से प्रेरित है। फिल्म का मुख्य विवाद रानी पद्मावती के चित्रण को लेकर था जिसको लेकर करणी सेना और राजपूत संगठनों ने फिल्म पर आपत्ति जताई थी, क्योंकि उन्हें लगा कि इस फिल्म में राजपूतों की वीरता और सम्मान को गलत तरीके से दिखाया गया है। करणी सेना और अन्य संगठनों ने फिल्म के सेट पर तोड़-फोड़ की। भंसाली पर हमला किया और रिलीज से पहले फिल्म पर प्रतिबंध लगाने की मांग की। प्रदर्शनकारियों ने सिनेमाघरों पर हमले किए, बसें जलाईं और धमकियां दीं, जिससे देशभर में तनाव बढ़ गया था।

द साबरमती रिपोर्ट

फिल्म ‘द साबरमती रिपोर्ट’ 15 नवम्बर 2024 को रिलीज हुई थी, यह फिल्म 2002 के गोधरा कांड और उसके बाद हुए गुजरात दंगों पर आधारित है। फिल्म में संवेदनशील मुद्दों पर बनी थी जिसकी वजह से ये कई विवादों में घिरी। फिल्म के लीड एक्टर विक्रांत मैसी को फिल्म में मुख्य भूमिका के लिए धमकियां मिलीं थी और उनके परिवार को भी निशाना बनाया गया था। कुछ समीक्षकों ने फिल्म को प्रोपगेंडा करार दिया था, जबकि अन्य ने इसे सच्चाई उजागर करने वाला बताया था। हालांकि विवादों के बावजूद ‘द साबरमती रिपोर्ट’ ने गोधरा कांड और गुजरात दंगों पर एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करने का प्रयास किया, जिसने समाज में व्यापक चर्चा को जन्म दिया।

भारतीय सिनेमा पहले भी सामाजिक मुद्दों को उठाता रहा है। ‘गर्म हवा’ और ‘पड़ोसी’ जैसी फिल्मों ने साम्प्रदायिक सदभाव को बढ़ावा दिया, जबकि ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘केरल स्टोरी’ जैसी हालिया फिल्मों ने विवादास्पद मुद्दों को उजागर कर ध्रुवीकरण को बढ़ाया। ‘छावा’ इस कड़ी में एक नया अध्याय है जिसमें इतिहास को मनोरंजन के साथ जोड़कर साम्प्रदायिकता की ओर बढ़ावा मिल रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या सिनेमा अब समाज को जोड़ने के बजाय उसे तोड़ने का जरिया बन रहा है?

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