पच्चीस जनवरी 1987 के दिन हिंदी फिल्म निर्माता-निर्देशक रामानंद सागर द्वारा निर्मित और निर्देशित टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ का प्रसारण दूरदर्शन पर शुरू हुआ था। यह धारावाहिक भारतीय टेलीविजन के इतिहास का सबसे लोकप्रिय शो आज भी माना जाता है। 31 जुलाई 1988 को इसका अंतिम एपिसोड दिखाया गया था। यह दशक मेरे बाल्यकाल से यौवन की तरफ बढ़ने का दशक था। मैं तब केंद्रीय विद्यालय रानीखेत में दसवीं का छात्र रहा हूंगा। मुझे अच्छी तरह याद है कि हमारे कस्बेनुमा शहर में इसके प्रसारण के समय सन्नाटा पसर जाता था। शहर के जिन धनाड्यों के घरों में टीवी हुआ करता था वहां भगवान राम के दर्शन करने के लिए सभी आस-पड़ोसी इकट्ठा हो जाते थे। इस धारावाहिक का जिक्र इसलिए क्योंकि इसी धारावाहिक ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम को राजनीति के दंगल में बतौर हथियार बनाने का काम किया। राम मंदिर आंदोलन को मजबूती देने का काम इस धारावाहिक ने जाने-अनजाने कर दिखाया था। राजनीति में हाशिए में पड़ी भारतीय जनता पार्टी को इस धारावाहिक ने संजीवनी देने का काम तब किया था। भाजपा, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और इनसे जुड़े हिंदुवादी संगठनों ने जमकर राम के नाम का दोहन इन बीते 38 बरसों में किया और आज भी कर रहे हैं। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है। उनको एक हथियार बना राजनीति के दंगल में लगातार विजय प्राप्त कर रही भाजपा ने हर वह काम किया है जिससे राम की मर्यादा तार-तार होती है। ‘सेंटर फॉर स्टडी ऑफ सोसाइटी एंड सेक्युलेरिज्म’ द्वारा गत् दिनों एक रिपोर्ट जारी की गई है। इस रिपोर्ट का शीर्षक मेरे इस कथन की पुष्टि करता है कि मर्यादा पुरूषोत्तम राम की मर्यादा को उनके आदर्शों को अक्षृण रख पाने में हम सभी, आजाद भारत के नागरिक, पूरी तरह विफल रहे हैं। रिपोर्ट का शीर्षक है- ‘Hegemony and Demolitions : The Tale of Communal Riots in India in 2024’ (आधिपत्य और विध्वंस: 2024 में भारत सांप्रदायिक दंगों की कहानी) यह रिपोर्ट मेरी और मुझ सरीखे बहुतों की इस आशंका को, इस भय को भी गहराने का काम करती है कि बीते 77 बरसों की हमारी यात्रा (आजाद भारत की यात्रा) पथभष्ट्र चली है और हम हर उस आदर्श, हर उस संकल्प से कोसों दूर जा पहुंचे हैं जिसकी बात हमारा संविधान करता है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 की तुलना में वर्ष 2024 में साम्प्रदायिक हिंसा में भारी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है और कौमी दंगों की घटनाएं भी 2023 के सापेक्ष 2024 में 84 प्रतिशत बढ़ी हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2023 में 32 साम्प्रदायिक दंगे हुए थे जबकि 2024 में 59 कौमी दंगे हुए जिनमें 13 लोगों की जान भी गई। इन 13 में 10 मुसलमान और 3 हिंदू थे। खास बात यह कि 59 दंगों में से 49 दंगे उन राज्यों में हुए जहां मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम का जाप करने वाली भाजपा का शासन है। रिपोर्ट कहती है- ‘Out of the 59 communal riots in the year 2024, 49 communal riots took place in states where the BJP is ruling either on its own, or in coliation with other parties…BJP ruled states have taken little action to deter communal violence and religious polarization. The state authorities in these states have used bulldozers as form of ”collective punishment” against Muslims. The non BJP ruled states have desisted from such actions and deterred communal riots to some extent’. (वर्ष 2024 में हुए 59 साम्प्रदायिक दंगों में से 49 साम्प्रदायिक दंगे उन जगहों पर हुए जहां भाजपा या तो अपने दम पर या अन्य पार्टियों के साथ गठबंधन में शासन कर रही है …भाजपा शासित राज्यों ने साम्प्रदायिक हिंसा और धार्मिक ध्रुवीकरण को रोकने के लिए बहुत कम कार्रवाई की है। इन राज्यों में अधिकारियों ने मुसलमानों के खिलाफ ‘‘सामूहिक दंड’’ के रूप में बुलडोजर का इस्तेमाल किया है। गैर भाजपा शासित राज्यों ने ऐसी कार्यवाहियों से परहेज किया है और कुछ हद तक साम्प्रदायिक दंगों को रोका है।) रिपोर्ट इस आशंका को पुष्ट करने का काम करती है कि वर्तमान समय में हो रही साम्प्रदायिक हिंसा किसी तात्कालिक घटना के प्रतिकार स्वरूप उत्पन्न नहीं वरन् एक सोची-समझी रणनीति के तहत आयोजित की जा रही है। इस रिपोर्ट में अमेरिकी गैर सरकारी संस्था प्यू रिसर्च सेंटर के हवाले से बताया गया है कि अल्पसंख्यकों के साथ राज्य का व्यवहार पक्षपात पूर्ण है। राज्य द्वारा अल्पसंख्यकों को डराने, धमकाने और दबाने के लिए ‘बुलडोजर नीति’ का सहारा लिया जा रहा है। रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती है कि वर्ष 2024 में हिंदुवादी ताकतों का जमकर असर देखने को मिला है। ये ताकतें सार्वजनिक स्थलों पर अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने, मुसलमान बाहुल्य इलाकों से जुलूस इत्यादि निकालने, मस्जिदों के समक्ष प्रदर्शन करने का काम कर मुसलमानों को अपमानित करने लगी हैं। रिपोर्ट में राजसत्ता द्वारा मुसलमानों को प्रताड़ित करने की मंशा से उन पर फर्जी मुकदमे दर्ज करने और ‘सामूहिक दंड’ के तहत उनकी सम्पत्तियों को बुलडोजर से ढहा देने का विस्तार से उल्लेख किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है- ‘The first aspect, area domination, involves provoking and humiliating the Muslim community by Hindu right-wing groups. When even the slightest retaliation from the Muslim community occurs, it is often used as a pretext to disproportionately arrest Muslims or impose severe charges on them. This has become a disturbing norm: even when Hindu right-wing groups march aggressively into Muslim- majority areas and vandalize property, a large number of Muslims are still namned in FIRs. These individuals are frequently charged with serious offences, and investigations are handed over to agencies like the NIA, likening these cases to terror-related cases. It is ironic that even in places where Muslims are named in large numbers in the complaints, the injured or dead are also Muslims and they also suffer the most damage to property. Muslims accused in such cases face long legal battles, making them vulnerable not only to imprisonment but also to extra-judicial killings as witnessed in Bahraich. Most of these accused come from economically disadvantaged backgrounds, with many being the sole breadwinners for their families. They often cannot afford to fight lengthy legal cases, leaving them in a state of ongoing hardship and fear’. (…पहला पहलू वर्चस्व का है जिसमें शामिल है हिंदू दक्षिणपंथी समूहों द्वारा मुसलमान समुदाय को भड़काना और अपमानित करना। जब मुसलमान समुदाय की ओर से थोड़ी-सी भी प्रतिक्रिया होती है तो इसे अधिकतर उन्हें गलत तरीकों से गिरफ्तार करने या उन पर गम्भीर धाराओं में मुकदमे दर्ज करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह एक बेहद परेशान करने वाली प्रवृत्ति अब बन चुकी है। यहां तक कि जब हिंदू दक्षिणपंथी समूह आक्रमक रूप से मुसलमान बाहुल्य इलाकों में जुलूस निकालते हैं और मुसलमानों की सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं, तब भी दर्ज मुकदमों में मुसलमानों का नाम बड़ी संख्या में शामिल किया जाता है और उन पर गम्भीर आरोप चस्पा कर दिए जाते हैं और जांच एनआईए सरीखी आतंकवादी घटनाओं की जांच करने वाली एजेंसियों को सौंप ऐसे मामलों को आतंकवाद से जोड़ दिया जाता है। यह विडम्बना ही है कि जिन शिकायतों में मुसलमानों को आरोपी बनाया गया है, उनमें सबसे ज्यादा घायल या मृत भी मुसलमान ही हैं और उनकी ही सम्पत्ति का भारी नुकसान भी होता है। ऐसे मामलों में आरोपी मुसलमानों को न केवल लम्बी कानूनी लड़ाई का सामना करना पड़ता है, बल्कि उन्हें इनकाउंटर सरीखी गैर न्यायिक हत्या का खतरा भी होता है जैसा बहराइच की घटना में देखा गया। ऐसे आरोपी मुसलमान अधिकाशतः आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि से आते हैं, जिनमें से कई अपने परिवारों के लिए एकमात्र कमाने वाले होते हैं। वे अक्सर लम्बे कानूनी मामलों को लड़ने का जोखिम नहीं उठा सकते इसलिए निरंतर कठिनाई और डर की स्थिति में रहते हैं।)
प्रभु पग पखारे जलु पान करि, कृतार्थ भयहिं नर नारी। जाति-पाति पूछे नहीं कोई, हरि का भजै सो हरिका होई एक दलित को गले लगाने वाले राम निम्म जाति की शबरी द्वारा भेंट दिए गए जूठे बेर भी खाते हैं-’
राम राज्य का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास कुछ यूं करते हैं-
राम राज नहिं काहुहिं ब्यापा।
सब नर करहिं परस्पर प्रीति
चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।
वर्तमान समय में बात तो रामराज्य स्थापित करने की हो रही है, खूब ढिंढोरा पीटा जाता रहा है लेकिन हालात ठीक उलट हैं।सामाजिक सौहार्द को राज शक्ति के सहारे समाप्त किया जाता देख मन आशंकित और आतंकित है। क्या होगा हमारे देश का? हमारे लोकतंत्र का?