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Editorial

जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं

बिहार का मुजफ्फरपुर शहर इन दिनों गलत कारणों के चलते पूरे देश भर में चर्चा का केंद्र बिन्दु बना हुआ है। राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार चौतरफा राजनीतिक हमलों का शिकार इसी मुजफ्फरपुर के चलते हो रहे हैं। प्रिंट से लेकर इलोक्ट्रॉनिक और सोशल मीडिया तक मुजफ्फरपुर छाया हुआ है। कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष समेत सभी बड़े-छोटे विपक्षी दल इस मुद्दे पर एकजुट हो बिहार सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल बैठे हैं। सच हालांकि यह है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूजयंते रमयंते तत्र देवता’ का जाप करने वाले देश में जो कुछ मुजफ्फरपुर में हुआ, वह होना बेहद आम बात है। इतनी आम कि यदि इस प्रकार की घटनाओं की शिकार लड़कियां खुलकर सामने आने का साहस करें तो नारी को देवी कहने वाले समाज का नंगा सच इतना भयावह होगा कि पूरी मानवता कराह उठेगी। 2017 में बिहार सरकार ने मुंबई के प्रतिष्ठत टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज को राज्य के एक सौ दस संस्थानों का निरीक्षण करने को कहा जिनमें वृद्ध आश्रम, अनाथ आश्रम एवं सुधार गृह शामिल थे। ये वे संस्थान हैं जिन्हें राज्य सरकार से आर्थिक मदद उपलब्ध कराई जाती है। मुजफ्फरपुर के एक ऐसे ही शेल्टर होम का जब इस संस्थान ने निरीक्षण किया तो नाबालिग लड़कियों के यौन शोषण का ऐसा दिल दहला देने वाला सच सामने आया जिसने हमारे समाज और प्रशासनिक व्यवस्था की नाकामी को सामने लाने का काम किया। टाटा संस्थान के मोहम्मद तारिक ने मई, 2018 में राज्य सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में इस यौन शोषण का विस्तार से जिक्र किया। इस शेल्टर होम में रह रही बयालीस लड़कियों में से चौतीस संग यौन शोषण की बात इस रिपोर्ट के बाद की गई सरकारी जांच में प्रमाणित हुई। यहां यह समझा जाना महत्वपूर्ण है कि टाटा इंस्टीट्यूट को राज्य सरकार ने ही अपने यहां सोशल ऑडिट करने का काम किया था और उनकी रिपोर्ट पर राज्य सरकार ने तत्काल कार्यवाही भी की। इस शेल्टर होम में चल रहे सेक्स रैकेट का पर्दाफाश राज्य की पुलिस के इन्वेस्टीगेशन बाद ही हुआ। टाटा इंस्टीट्यूट ने शेल्टर होम की बच्चियों संग अपनी बातचीत के आधार पर राज्य सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में इस सेक्स रैकेट की आशंका व्यक्त की थी। यदि राज्य सरकार तत्काल कार्यवाही ना करती तो शायद यह मामला कभी सामने आता ही नहीं। मुख्यमंत्री को, राज्य सरकार को कोसना, उन्हें सोशल मीडिया में गरियाना, जंतर-मंतर में कैंडल मार्च निकालना आदि मुझे मात्र ढकोसला प्रतीत होता है। निश्चित ही प्रशासनिक तंत्र इसके लिए दोषी है। पूरी संभावना है कि इस शेल्टर होम को चलाने वाले एनजीओ सेवा संकल्प एवं समिति के कर्ताधर्त्ता बृजेश ठाकुर को स्थानीय राजनेताओं और पुलिस प्रशासन का संरक्षण भी प्राप्त हो। लेकिन इन सबसे ज्यादा दोषी वे लोग हैं जो सब कुछ जानकर भी अंजान बने रहे। पुलिस की जांच के दौरान इस नारी संरक्षण गृह के आस-पास रह रहे लोगों ने स्वीकारा कि उन्हें बच्चियों की चीखें लगातार सुनाई देती थी, लेकिन उन्होंने बृजेश ठाकुर के भय के चलते पुलिस अथवा जिला प्रशासन से शिकायत करने का साहस नहीं किया। कैसा नपुंसक हमारा समाज बनता जा रहा है कि नारी को देवी मानने वालों ने अपने आंख-कान बंद रखने में ही खुद की भलाई समझी। पुलिस रिपोर्ट में जो तथ्य सामने आए हैं वह किसी भी संवेदनशील मुनष्य को आतंकित करने के लिए, शर्मसार करने के लिए काफी हैं। दस से अठारह साल की उम्र की इन अनाथ लड़कियों पर भारी जुल्म हर रोज किया जाता था। उन्हें कीड़े मारने की दवा के नाम पर बेहोशी की दवा दी जाती जिसके चलते वे अपना शोषण करने वाले का विरोध करने में अशक्त हो जातीं। संरक्षण गृह का मालिक अपने ऑफिस में इन लड़कियों संग जबरदस्ती करता, बाहर से लोग लगातार इस शेल्टर होम में आते और इन लड़कियों संग बलत्कार करते। इतना सब कुछ दिन-दहाड़े होता, लेकिन किसी ने इसका विरोध करने का साहस नहीं किया। तब प्रश्न उठता है कि ऐसे जघन्य अपराध को घटते देने में ज्यादा दोष राज्य की शासन व्यवस्था का है या कि समाज का, या फिर ऐसे नपुंसकों का जो सब कुछ जानते-बूझते हुए भी खामोशी की चादर ओढ़े सोते रहते हैं। भारत सरकार की संस्था नेशनल क्राइम ब्यूरो ने दिसंबर 2017 में बच्चों संग यौन उत्पीड़न के जो आंकड़े जारी किए वे हमारे समाज के इस घिनौने सच को सामने लाते हैं। ब्यूरो के मुताबिक 2016 में छत्तीस हजार ऐसे मामले सामने आए जिनमें नाबालिग बालिकाओं का यौन शोषण किया गया। एक अनुमान के मुताबिक भारत यानी नारी को पूजने वाले मुल्क में बच्चों के यौन उत्पीड़न की घटनाएं यदि पूरी तरह सामने आ जाएं तो पूरे विश्व में यह पहले स्थान पर होगा। 2007 में महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय ने एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी जिसमें 53 प्रतिशत बच्चों के कभी ना कभी यौन शोषण का शिकार होने की बात सामने आई थी।

बिहार के मुजफ्फरपुर के इस खुलासे के बाद उत्तर प्रदेश के देवरिया और बस्ती जिलों के नारी संरक्षण गृहों में कुछ इसी प्रकार की स्थिति होने की बात सामने आई है। देवरिया के शेल्टर होम का लाइसेंस 2017 में ही रद्द हो गया था। इसके बावजूद यह शेल्टर होम बंद नहीं कराया गया। स्थानीय पुलिस समय-समय पर इस शेल्टर होम में अनाथ लड़कियों को भेजती रही। इस शेल्टर होम में रह रही एक बालिका ने किसी तरह थाने पहुंच जब अपनी आपबीती पुलिस को सुनाई, तब कहीं जाकर सरकारी तंत्र जागा। फिलहाल इस संरक्षण गृह से अट्ठारह लड़कियां गायब बताई जा रही हैं। केंद्र सरकार भी कुछ अधजगी सी अब प्रतीत हो रही है। मुजफ्फरपुर और देवरिया के सच ने उसकी घनघोर निद्रा में थोड़ा-सा विघ्न डाला जिसके बाद उसने देशभर के लगभग नौ हजार ऐसे संरक्षण गृहों का सोशल ऑडिट कराने के निर्देश दिए हैं। यह रिपोर्ट साठ दिनों के भीतर केंद्रीय महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय को सौंपने के निर्देश भी इस आदेश का हिस्सा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि केंद्र और राज्य सरकारों की पहल के सार्थक नतीजे निकलेंगे।

संकट लेकिन इस बात का है कि नारी शोषण का अपना इतिहास सदियों पुराना है। यदि समय चक्र में थोड़ा अधिक पीछे जाएं तो हमारे समाज की लंपटता के असंख्य उदाहरण अपनी पौणारिणक कथाओं में पढ़ने को मिल जाएंगे। महाभारत काल को देखिए तो भरी राजसभा में द्रौपदी का चीर हरण किया जाता है। उसके पांच पतियों के समक्ष। कोई उसकी मदद को आगे नहीं आता। धर्मराज कहलाए जाने वाले उनके पति युधिष्ठर अपने चार बलशाली भाइयों सहित अपनी पत्नी का चीरहरण देखते रहे। द्रौपदी ने जरूर अपने अपमान का बदला लेने की घोषणा करने का साहस दिखाया। उन्होंने तब तक अपने केश न बांधने का फैसला किया जब तक दुशासन के खून से उन्हें धो न लें। हमारी पौराणिक कथाओं में ऐसे कई अन्य उदाहरण हैं जहां नारी शोषण की बात आती है। देश के प्रथम प्रधानमंत्री ने आजादी की रात अपने ऐतिहासिक भाषण में हर आंख से आंसू की आखिरी बूंद हर लेने का वादा किया था। आज सत्तर बरस बाद आंसुओं के समंदर का प्रवाह चारों तरह देख गुरुदत्त की फिल्म ‘प्यासा’ का नगमा याद आ रहा है ‘जिन्हें नाज था हिंद पर वो कहां है।’

1957 में गुरुदत्त निर्देशित इस फिल्म का यह गीत आज इक्सठ बरस बाद ज्यादा प्रासंगिक प्रतीत होता है। साहिर लुधियानवी की इस रचना को स्वर दिया था मोहम्मद रफी ने। कोलकाता के रेडलाइट एरिया की पृष्ठभूमि वाली इस फिल्म का यह गीत आज बरसों बाद मुझे यह आलेख लिखते समय याद हो आया। समझने का थोड़ा प्रयास जरूर करें कि कैसे इन इक्सठ वर्षों के दौरान भले ही ऊपरी तौर पर नारी मुक्ति की चमक- दमक दिखती हो, हालात बद्तर हुए हैं, उस भारत में जहां ‘अच्छे दिन’ अभी पहुंचे नहीं हैं। इस गीत की चंद पंक्तियों को आपके लिए छोड़े जा रहा हूं ताकि कुछ चिंतन कर सकें-

…मदद चाहती है ये हौवा का बेटी
यशोदा की हमजिंस, राधा की बेटी
पैयम्बर की उम्मत, जुलैखा की बेटी
जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं।

जरा मुल्क के रहबरों को बुलाओ
ये कुचे, ये गलियां, ये मंजर दिखाओ
जिन्हें नाज है हिंद पर उनको लाओ
जिन्हें नाज है हिंद पर वो कहां हैं।

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