मेरी बात
वर्ष 2017 में अमेरिका के शहर न्यूयॉर्क में एक कंपनी का जन्म हुआ जिसका नाम उसके संस्थापक नाथन एन्डरसन ने रखा #हिंडनबर्ग रिसर्च एलएलसी (#HindenburgResearchLLC)। इस कंपनी का काम पूंजीनिवेश के क्षेत्र में गहन शोध करना और फिर ऐसी कंपनियों में पूंजी निवेश करना है जिनके शेयर भविष्य में लुड़क सकते हैं। नाथन एन्डरसन ने अपनी इस कंपनी का नाम हिंडनबर्ग बहुत सोच-समझ कर 1937 में जर्मनी के एक विशेष प्रकार के वायुयान जिन्हें एयरिश्प कहा जाता है, के नाम पर रखा। एयरशिप का गैस से हवा में उड़ने वाला यात्री विमान को कहा जाता है जिन्हें ऐसी गैस द्वारा उड़ाया जाता है जो वायुमंडल की गैस से हल्की होती है। इसे हवा में उड़ने वाला गुब्बारा कह सकते हैं। हवाई यात्राओं के शुरुआती दिनों में ऐसे गुब्बारों के जरिए यात्री एक स्थान से दूसरे स्थान में जाया करते थे। 1937 में हिंडनबर्ग नामक एक ऐसा ही एयरशिप जर्मनी और अमेरिका के मध्य यात्री सेवाएं देता था। इस एयरशिप का नाम जर्मनी के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल पाल वॉन हिंडनबर्ग के नाम पर रखा गया था। 1937 में यह एयरशिप अमेरिका के मैन्चेस्टर शहर के पास दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और इसमें सवार सभी 35 लोग मारे गए थे। नाथन एंडरसन ने अपनी कंपनी का नाम इसी एयरशिप के नाम पर संभवतः उन कंपनियों को निशाने पर रखने की नीयत से रखा जिनकी ‘उड़ान’ जमीनी मजबूती नहीं, बल्कि गैस भरे गुब्बारे समान होती है जिसमें यदि एक छोटी-सी सुई चुभो दी जाए तो वह अर्श से सीधे फर्श में आ गिरती है। अडानी समूह की 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर संपत्ति का मात्र एक सप्ताह के भीतर स्वाहा हो जाना इसका ताजातरीन उदाहरण है। हिंडनबर्ग रिसर्च एलएलसी जैसी कंपनियों को शेयर बाजार में शॉर्ट सेलर अथवा शॉर्ट सेलिंग कंपनी (#Short Selling Company) कहा जाता है। यह एक अजीबो-गरीब वित्तीय ‘खेला’ है। इसमें किसी कंपनी के पूंजी निवेश करने वाले को तब लाभ होता है जब उस कंपनी के शेयरों का मूल्य घटता है। इस ‘खेला’ में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हिंडनबर्ग जैसी कंपनियां जिस किसी भी कंपनी में पूंजी निवेश करती हैं उस कंपनी के शेयर उसके पास होते ही नहीं हैं, बल्कि वह ऐसी कंपनियों के शेयर कुछ समय के लिए उधारी पर ले लेती है। इस उधारी के बाद जब कभी भी कंपनी के शेयरों का मूल्य कम हो जाता है तो ऐसे पूंजी निवेशक जितने शेयर उधारी पर लिए होते हैं, उतने ही शेयर कम कीमत पर खरीद कर उन्हें असली शेयर धारक को लौटा देते हैं। चूंकि उन्होंने कम कीमत पर शेयर खरीदे होते हैं इसलिए उन्हें उधारी लेते समय के शेयर मूल्य और उधारी वापस करते समय उन्हीं शेयरों के मूल्य में आए अंतर के चलते लाभ प्राप्त हो जाता है। यदि किसी कारणवश जिस कंपनी के शेयर उन्होंने एक निश्चित अवधि के लिए उधारी पर लिए होते हैं, उस अवधि के दौरान कंपनी के शेयर घटने के बजाय बढ़ जाते हैं तो निवेशक को बढ़े हुए मूल्य पर शेयर खरीदने होते हैं जिससे उसे नुकसान हो जाता है। अडानी समूह में हिंडनबर्ग ने इसी प्रकार का निवेश किया है। चूंकि वर्तमान में अडानी समूह के शेयरों में भारी गिरावट आ चुकी है इसलिए शॉर्ट सेलिंग के जरिए हिंडनबर्ग को वर्तमान परिस्थितियों में लाभ होना तय है। सवाल लेकिन हिंडनबर्ग को होने वाले या हो चुके लाभ का नहीं, बल्कि उसके द्वारा अडानी समूह पर लगाए गए उन गंभीर आरोपों का है जो न केवल इस समूह की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि भारतीय वित्तीय तंत्र की खामियों को भी सामने लाते हैं।हिंडनबर्ग ने दो वर्षों तक अडानी समूह की गतिविधियों पर कड़ा शोध कर जो निष्कर्ष निकाला और अपनी रिपोर्ट पर जो आरोप लगाए हैं उनके अनुसार यह समूह झूठ और धोखाधड़ी की बुनियाद पर टिका ऐसा औद्योगिक समूह है जिसकी नींव पूरी तरह खोखली है। हिंडनबर्ग ने इस समूह को ‘कॉरपोरेट इतिहास में सबसे बड़ा चोर’ (Largest con in corporate history) की संज्ञा दी है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट में कहा गया है कि अडानी समूह बड़े पैमाने पर धन शोधन, कालेधन को संरक्षण देने के लिए कुख्यात देशों में बेनामी संपत्ति जमा करने, फर्जी कंपनियों के जरिए अपने शेयरों का मूल्य बढ़ाने, अपनी कंपनियों का वार्षिक ऑडिट गुमनाम ऑडिट कंपनियों से करा पूरी तरह से फर्जीवाड़े पर टिका औद्योगिक समूह है। हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों ने विश्व के सबसे अमीर व्यक्तियों में शुमार हो चुके गौतम अडानी और उनके विशाल औद्योगिक समूह को तबाही की कगार में ला खड़ा किया है। अडानी समूह ने इस रिपोर्ट पर अपनी पहली प्रतिक्रिया देते हुए इस रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हुए हिंडनबर्ग पर कानूनी कार्यवाही किए जाने की बात कही, जिसके जवाब में हिंडनबर्ग ने ऐसी किसी भी कानूनी कार्यवाही का स्वागत करते हुए अडानी समूह से सभी आरोपों के जवाब के साथ-साथ प्रमाणिक तथ्य भी दिए जाने की मांग की है। अडानी समूह का विवादों संग पुराना नाता रहा है। वर्तमान समय में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी लंबे समय से प्रधानमंत्री मोदी पर गौतम अडानी को संरक्षण देने का आरोप लगाते रहे हैं। गत दिनों बजट सत्र के दौरान राहुल ने प्रधानमंत्री और अडानी के रिश्तों को लेकर संसद में जमकर प्रहार किए। गौतम अडानी का व्यवसाय निश्चित ही केंद्र में मोदी सरकार बनने के पश्चात् दिन-दूनी रात-चौगुनी रफ्तार से बढ़ा है। अडानी समूह की संपत्तियों में पिछले दो बरसों में 1,700 प्रतिशत की आश्चर्यजनक और अविश्वसनीय बढ़त इन आशंकाओं और आरोपों को पुष्ट करने का काम करती है कि उन्हें वर्तमान सत्ता द्वारा पोषित किया जा रहा है। लेकिन केवल मोदी सरकार के समय ही ऐसा नहीं हो रहा है। रिलायंस समूह पर हमेशा से केंद्र सरकार में सत्तारूढ़ रही विभिन्न सरकारों का वरदहस्त रहा है। धीरूभाई अंबानी कैसे रंक से राजा बने इसका विस्तृत इतिहास हामिश मैकडोनाल्ड की पुस्तक अंबानी एंड संस (#AmbaniAndSonsbyHamish Mcdonald) को पढ़ समझा जा सकता है। स्मरण रहे आज भले ही राहुल गांधी प्रधानमंत्री मोदी पर तंज कसते हुए ‘रुहम दो – हमारे दो’ की बात करते हैं, इन ‘हमारे दो’ में से एक रिलायंस समूह पर कांग्रेस काल के दौरान जमकर ‘सरकारी कृपा’ बरसी थी। ठीक वैसे ही आज अडानी समूह पर ‘कृपा’ बरस रही है। आजादी उपरांत भारत की नींव भले ही एक कल्याणकारी राज्य के रूप में रखने का सपना देखा गया और उसी अनुरूप हमारा संविधान अस्तित्व में आया, कटु सत्य यह है कि बीते पिचहत्तर बरसों के दौरान हम तेजी से एक क्ल्पेटोक्रेटिक (#kleptocratic) राज्य में बदलते चले गए। ग्रीक भाषा के इस शब्द का अर्थ है एक ऐसा देश जहां की सरकार का नेतृत्व अपने आर्थिक हितों की रक्षा करने वाले भ्रष्ट नेताओं के हाथों में होता है। अडानी-अंबानी और उन जैसे बहुत से औद्योगिक समूह इसी क्लपेटोक्रेसी की पैदाइश हैं। इस समूह ने कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए शासनकाल के दस वर्षों में 21 हजार करोड़ के सरकारी प्रोजेक्ट हासिल किए थे। 2013 में अंग्रेजी दैनिक ‘इकोनॉमिक्स टाइम्स’ ने अडानी समूह की बाबत एक विस्तृत खबर की थी जिसमें कहा गया था कि 2001 में गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने तय किया कि वे संगठन कार्यों के लिए भाजपा की निर्भरता तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ भाजपा नेता प्रमोद महाजन पर कम करेंगे। यही कारण था कि उन्होंने गुजराती मूल के उद्योगपति गौतम अडानी को आगे बढ़ाने का फैसला लिया। इसमें कोई शक-शुबहा नहीं कि मोदी के मुख्यमंत्रित्वकाल में अडानी समूह की तरक्की आश्चर्यजनक गति से तेज हुई। राज्य सरकार ने उनके समूह द्वारा तैयार किए गए मुन्द्रा पोर्ट में हुई भारी अनियमितताओं को नजरअंदाज कर उनकी इस तरक्की को संरक्षण देने का काम किया। समय-समय पर कैग द्वारा इस प्रकार की अनियमतताओं को अपनी वार्षिक रिपोर्ट में चिन्हित भी किया गया था। मुन्द्रा पोर्ट में बनाए गए स्पेशल इकोनॉमिक जोन को पर्यावरण मंत्रालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र लिए बगैर तैयार किया जाना इन आरोपों को बल देता है कि तत्कालीन राज्य सरकार द्वारा अडानी समूह हर कीमत पर, हर हाल में आगे बढ़ाया गया। तब यह आरोप भी मोदी सरकर पर चस्पा हुए थे कि राज्य द्वारा बनाए जा रहे कांडला पोर्ट की गति को जान-बूझकर कम रखा गया ताकि अडानी के स्वामित्व वाले मुन्द्रा पोर्ट को लाभ मिल सके। केंद्र में मोदी राज स्थापित होने के बाद तो गौतम अडानी चौतरफा छा गए। अडानी की वित्तीय क्षमता हमेशा से ही संदेहास्पद रही है। उदाहरण के लिए 2018 में उनके द्वारा कहा गया कि भविष्य की परियोजनाओं में उनका समूह 1,67,000 करोड़ की भारी-भरकम पूंजी का निवेश करने जा रहा है। जब यह घोषणा की गई थी तब उनके समूह का कुल शुद्ध लाभ मात्र 3,455 करोड़ था। जाहिर है कुल कुछ हजार के शुद्ध लाभ वाला समूह यदि लगभग पौने दो लाख करोड़ के पूंजी निवेश की बात करता है तो प्रश्न उठने लाजिमी हैं, वह भी तब जबकि ऐसी घोषणा के साथ यह स्पष्ट नहीं किया जाता है कि इतना भारी-भरकम पूंजी निवेश कहां से जुटाया जाएगा। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने अडानी समूह के पूंजी स्रोतों को ही अपने निशाने पर रखते हुए गौतम अडानी को ‘कॉरपोरेट इतिहास में सबसे बड़ा चोर’ कह पुकारा है।