मेरी बात
बैंगलुरू स्थित शोध संस्थान ग्लोबल एलाइंस फॉर मास एंटरप्रेन्योरशिप (Global Alliance for Mass Entrepreneurship) ने अपनी एक रिपोर्ट गत सप्ताह केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम आयोग मंत्रालय को भेजी है। इस रिपोर्ट के अनुसार कोविड संक्रमण के चलते सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग को बड़ी परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है। इन तीनों श्रेणियों के अंदर आने वाले उद्योगों का लगभग 8 ़7 लाख करोड़ रुपया फंस गया है जिस चलते इन श्रेणी के उद्योगों की कार्यक्षमता पर बेहद खराब असर पड़ना शुरू हो चुका है। भारतीय व्यापार जगत के लिए इस रिपोर्ट के आंकड़े जितने चौंकाने वाले और घबराहट पैदा करने वाले हैं, उससे कहीं अधिक भारतीय मुद्रा का अवमूल्यन होना है। अमेरिकी डॉलर की बनिस्पत भारतीय रुपया लगातार गिरता जा रहा है और अपने अब तक के सबसे न्यून्तम स्तर 80 रुपया प्रति डॉलर तक जा पहुंचा है। कोविड महामारी के चलते बेरोजगारों की संख्या में भी भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) की दिसंबर, 2021 में जारी रिपोर्ट के अुसार देश में कुल बेरोजगारों की संख्या 5 ़3 करोड़ तक जा पहुंची है। महंगाई भी कोविड काल के बाद लगातार बढ़ती जा रही है। अर्थव्यवस्था के चरमराने का बड़ा प्रभाव केंद्र सरकार को मिलने वाले राजस्व पर पड़ा है। केंद्रीय बजट में तय किए गए राजस्व लक्ष्यों को पाने में सरकार की विफलता का सीधा असर कई जनहितकारी योजनाओं के लिए स्वीकृत बजट में भारी कटौती के रूप में सामने आया है। केंद्र सरकार की सबसे महत्वपूर्ण जनहितकारी योजना ‘मनरेगा’ के बजट को वर्तमान वित्त वर्ष के बजट में 25 प्रतिशत कम धनराशि का आवंटन साबित करता है कि केंद्र सरकार का खजाना भारी संकट का सामना कर रहा है। गत वर्ष के बजट में इस योजना के लिए अन्ठानबे हजार करोड़ का प्रावधान रखा गया था जो इस वर्ष के लिए घटाकर पिचहत्तर हजार करोड़ कर दिया गया है। यूपीए शासनकाल में शुरू की गई इस महत्वाकांक्षी योजना के अंतर्गत प्रत्येक ग्रामीण घर को सौ दिन का रोजगार मिलता है। इस योजना का एक बड़ा लाभ ग्रामीण महिलाओं के आत्मनिर्भर होने से जुड़ता है। विश्व बैंक समेत दुनिया-भर की कई संस्थाओं और सरकारों ने भारत के इस प्रयास को एक रोल मॉडल माना है, जिसके कारण कमजोर तबके को जीवन यापन करने की दिशा में मजबूती मिली है। इसके बावजूद केंद्र सरकार का इस महत्वपूर्ण परियोजना के बजट में कटौती करना स्पष्ट संकेत देता है कि राजकोषीय धारा लगातार बढ़ने और पूंजी विनिवेश के जरिए इस खाली होते खजाने को भरने का सरकारी लक्ष्य पूरा न हो पाने चलते सरकार अर्थव्यवस्था को पटरी पर वापस लाने में सफल नहीं हो पा रही है। एक सामान्य व्यापारिक बुद्धि से यदि पूंजी विनिवेश के जरिए राजकोष को भरने की प्रक्रिया को अर्थव्यवस्था के जटिल आंकड़ों से परे रख समझा जाए तो इतना भर अवश्य कहा जा सकता है कि अपनी संपत्ति को बेचकर अपने घर की तात्कालिक दिक्कतों से तो निपटा जा सकता है लेकिन यह दीर्घकालिक समाधान नहीं है। जब सारी संपत्ति बिक जाएगी, जब बेचने को कुछ बाकी नहीं बचेगा तब आगे की जिंदगी का क्या होगा? केंद्र सरकार की पूंजी विनिवेश नीति भी कुछ ऐसी ही है। बीते कुछ वर्षों से व्यापार जगत में भारी अफरा- तफरी का माहौल है। ज्यादातर उद्योग सेक्टर मंदी की चपेट में है। कोविड महामारी ने वैश्विक स्तर पर इस आर्थिक मंदी को बढ़ावा देने का काम कर डाला है। ऐसे में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बढ़ोतरी दर्ज कराने के तमाम प्रयास केवल कागजों तक सिमटे नजर आते हैं। धरातल पर लगातार आर्थिक मंदी अपने पैर पसारते जा रही है जिसका सीधा असर आम भारतीय के जीवन पर पड़ रहा है। गौतम अडानी भले ही दिनों-दिन रईस होते जा रहे हों, आम भारतीय उतनी ही तेजी से कंगाल हो रहा है। देश की अर्थव्यवस्था इतनी खस्ताहाल हो चली है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के उन प्रतिष्ठित संस्थानों के लिए खरीददार तक नहीं तलाश पा रही है जिन्हें बेचकर वह
राजकोष को भरना चाहती है। वित्त वर्ष 2021-22 में केंद्र सरकार ने कई सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को बिक्री के लिए बाजार में डाला था। उसका लक्ष्य इस उपक्रमों की बिक्री के जरिए 1 ़75 लाख करोड़ जुटाना था। सरकार ने इस लक्ष्य को जनवरी 2021 में रिवाइज कर 78,000 करोड़ दिया था लेकिन वह इस लक्ष्य को भी नहीं पा सकी थी। उसके खजाने में वर्ष 2020-21 में मात्र 13,561 करोड़ रुपए ही जमा हो पाए थे जो उसे एयर इंडिया की बिक्री चलते मिले। वर्तमान वित्त वर्ष के लिए वित्त मंत्री ने अपने बजट में पूंजी विनिवेश का टारगेट मात्र 78,000 हजार करोड़ रखा है। मई, 2022 तक सरकार को जीवन बीमा निगम के पब्लिक इश्यू के जरिए 20,560 करोड़ मिले हैं तथा कुछ अन्य छोटे उपक्रमों की बिक्री से उसे 3,015 करोड़ रुपया इस पूंजी विनिवेश के चलते सरकार के पास आया है। उसका लक्ष्य बकाया 54,440 करोड़ रुपया पवन हंस लिमिटेड, शिपिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, सेंट्रल इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन, भारत अर्थ मुवर्स लिमिटेड, करेंनर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड तथा भारत पेट्रोलियम लिमिटेड की बिक्री कर प्राप्त करना है। साथ ही केंद्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक आईडीबीआई में अपने और जीवन बीमा निगम के शेयर बेचने का प्रयास भी कर रही है जिससे उसे लगभग 40 हजार करोड़ की प्राप्ति हो सकती है। केंद्र सरकार का लाभकारी उपक्रम भारत पेट्रोलियम लिमिटेड का बाजार मूल्य लगभग 41 हजार करोड़ है। सरकार लेकिन इसके लिए कोई ग्राहक अभी तक तलाश नहीं पा रही है। आर्थिक विशेषज्ञों की राय में ऐसा इसलिए है क्योंकि निजी निवेशकों को तेल की कीमत तय करने का पूरा अधिकार चाहिए जो भारतीय स्थितियों में दे पाना खासा कठिन काम है। यदि सरकार ऐसा करने की खुली छूट दे देती है तो पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान छूने लगेंगे जिसका सीधा और बहुत खराब प्रभाव आम नागरिक पर पड़ेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 में कहा था कि भारत 2024 तक पांच ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा। वर्तमान में हमारा कुल सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 3 ़18 ट्रिलियन डॉलर है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetry fund) के मुताबिक इस वर्ष भारत की अर्थव्यवस्था बढ़कर 3 ़53 अमेरिकी डॉलर हो जाएगी और वह ब्रिटेन को पछाड़ कर विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका वर्तमान में विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उसका सकल घरेलू उत्पाद 20 ़72 ट्रिलियन डॉलर है। आईएमएफ का अनुमान है कि 2027 तक भारत की अर्थव्यवस्था बढ़कर 5 ़53 ट्रिलियन अमेरिकी डालर हो जाएगी और वह ब्रिटेन और जर्मनी को पछाड़ विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा।
निश्चित ही यह बहुत कर्णप्रिय है कि हमारा भारत 2027 आते-आते विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका होगा। इससे ऐसा आभास होता है कि 2027 आते- आते हर भारतीय आर्थिक दृष्टि से संपन्न हो उठेगा, बेरोजगारी का दंश झेल रहा युवा रोजगार पा जाएगा और आर्थिक मंदी चलते कराह रही भारतीय अर्थव्यवस्था वापस पटरी पर लौट आएगी। यदि वाकई हमारा सकल घरेलू उत्पाद आने वाले पांच बरसों में निरंतर बढ़ता है तो उम्मीद अवश्य की जा सकती है कि गिरती, लगातार गिरती अर्थव्यवस्था को राहत पहुंचेगी जिसका कुछ न कुछ सकारात्मक प्रभाव आम नागरिक के जन-जीवन पर भी पड़ेगा। लेकिन अर्थव्यवस्था के सारे गणित को इतनी असानी से न तो समझा जा सकता है, न ही इतनी आसानी से निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। आज जब हम विश्व की सातवीं बड़ी अर्थव्यवस्था हैं, हमारे यहां आबादी के एक बड़े हिस्से के पास जीवन-यापन के लिए बुनियादी सुविधाओं का न होना और पूंजी का मात्र कुछ प्रतिशत के हाथों सिमटा होना इस खुशफहमी को दूर कर देने के लिए काफी है कि भले ही 2027 में हम पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था क्यों न बन जाएं, आम भारतीय की दशा- दिशा में कुछ खास फर्क पड़ने वाला नहीं। इसे सरल तरीके से कुछ यूं समझा जा सकता है कि वर्तमान में विश्व की छठी/सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद 140 करोड़ की भारी-भरकम आबादी वाले हमारे देश में बहुसंख्यक जनता को दो वक्त की रोटी तक मयस्सर नहीं है और विश्व के 194 देशों में प्रति व्यक्ति आय को लेकर हम छठे/सातवें स्थान पर नहीं बल्कि 128 स्थान पर हैं। सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश अमेरिका में प्रति व्यक्ति आय 63,416 डॉलर लगभग पांच लाख रुपया है और उसका स्थान प्रति व्यक्ति आय के मामले में दूसरा है। पहला स्थान एक छोटे से देश नार्वे का है जहां प्रति व्यक्ति आय 65,800 डॉलर, पौने 6 लाख रुपया है। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थ चीन में प्रति व्यक्ति आय 17,192 डॉलर पौने चौदह लाख रुपया है और वह 77वें स्थान पर है। हमारे यहां यह आय मात्र 6,461 डॉलर यानी 5 ़16 लाख रुपया है। इससे यह साफ हो उभरता है कि भले ही विश्व का चौथा सबसे अमीर व्यक्ति भारतीय क्यों न हो, भले ही पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश भारत 2027 तक क्यों न बन जाए, पूंजी चंद हाथों तक ही सिमटी रहेगी, आम आदमी की स्थिति में इस भारी-भरकम अर्थव्यवस्था का प्रभाव खास नहीं पड़ने वाला। इसलिए मेरी समझ से आगे अंधी गली है जिससे निकल पाने के लिए पूरी व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करने की दरकार है, अन्यथा दशकों पहले जो अदम गोंडवी ने कहा था, वह तब भी हकीकत था, आज भी हकीकत है और 2027 में भी हकीकत ही बने रहेगा। गोंडवी ने कहा था –
‘सौ में सत्तर आदमी फिलहाल जब नाशाद हैं
दिल पर रखकर हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है
कोठियों से मुल्क के मेआर को मत आंकिए
असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पर आबाद है।’
क्रमशः