[gtranslate]
Editorial

बहने लगी है बदलाव की बयार

पूरा देश इस समय चुनावी रंग में रंगा हुआ है। परचून की दुकान हो या चौराहों पर खड़े दिहाड़ी मजदूर, कॉरपोरेट्स के ऑफिस हों या सरकारी दफ्तर, जहां देखिए चर्चा चुनावों की है। हरेक की अपनी गणित है। कोई भाजपा गठबंधन की सरकार बनने का दावा कर रहा है तो बहुत ऐसे भी हैं जिन्हें भाजपा सत्ता छोड़ती नजर आ रही है। इस सब कुहासे के बीच एक बात बहुत स्पष्ट हो उभरी है। नरेंद्र मोदी भले ही दोबारा प्रधानमंत्री बन जाएं, उनके पक्ष में 2014 जैसी लहर नहीं है। यदि लहर होती तो मोदी और भाजपा की चुनावी रणनीति राष्ट्रवाद पर न जा टिकी होती। मोदी अब 2014 के अपने वादों पर कुछ भी बोलने से बच रहे हैं। कारण स्पष्ट हैं। उनके पास रहने को कुछ है हीं नहीं। 2014 के भाजपा चुनावी घोषणा पत्र का पुनर्पाठ करें और फिर 2019 के घोषणापत्र पर नजर डालें, तो फर्क स्पष्ट नजर आ जाएगा। न तो अब कालाधन भाजपा के लिए कोई मुद्दा रहा है, न ही रोजगार सृजन पर बात हो रही है। राम मंदिर निर्माण का वादा जो पिछले तीस बरसों से भाजपा करती आई है, अभी भी धरातल पर ना उतार सकी है। यही कारण है ठीक चुनाव से पहले इसे एक बार फिर मुद्दा बनाने का प्रयास तो भाजपा ने किया लेकिन मामला न जमता देख रणनीति बदल राष्ट्रवाद पर फोकस कर डाला। वादा ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ और ‘सबका साथ, सबका विकास’ का था। अबकी बार यह नारे गायब हैं। हर गांव में इंटरनेट, देश भर में गेल ग्रिड, बुलेट ट्रेनों का जाल, जम्मू- कश्मीर से धारा 370 हटाने, समान नागरिक आचार संहिता आदि 52 पृष्ठ के इस दस्तावेज का हिस्सा थे। जिन मुरली मनोहर जोशी ने इस घोषणा पत्र को तैयार किया था, वे खुद ही अब हाशिए में डाल लिए गए हैं। तब उनके लिखे वादों की क्या बिसात। एक वादा अल्पसंख्यकों को समान अवसर उपलब्ध कराने का भी था जिस पर अमल कितना हुआ यह बहस का मुद्दा बन सकता है। पीलू पहलवान और अखलाक जरूर पिछले पांच सालों में मिले इस समानता के अवसरों का लाभ पाने से चूक गए। कालेधन पर दावा था कि भ्रष्टाचार न्यूनतम करके ऐसी स्थिति पैदा की जाएगी कि कालाधन पैदा ही नहीं हो पाएगा और विदेशों में जमा ऐसे धन को वापस भारत में लाया जाएगा। अब राफेल बमवर्षक विमानों की डील को लेकर स्वयं प्रधानमंत्री सवालों के घेरे में हैं। और भी बहुत सारे, बहुत-बहुत सारे वादे इस घोषणा पत्र में मिल गए थे। 2019 के घोषणा पत्र में नए वादों की तो भरमार है, पुरानों पर गहरी खामोशी पसरी है। अब बुलेट ट्रेन का जाल बिछाने के बजाए पुरानी पटरियों को दुरुस्त करने की बात कही गई है। इस बार इसे संकल्प पत्र का नाम दिया गया है। लेकिन नए रोजगार सृजन, कालाधन, बुलेट ट्रेन, हर गांव में इंटरनेट आदि का पिछला संकल्प इस संकल्प पत्र का हिस्सा नहीं है। यही कारण है कि भले ही देश का गोदी मीडिया इस बार भी ‘हर घर मोदी’ का जाप जप रहा हो, धरातल पर हालात 2014 जैसे कतई नहीं हैं। मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह इस संकट से न वाकिफ हों, ऐसा नहीं है। वे समझ रहे हैं कि सपनों का जो हिमालय उन्होंने जनता के समक्ष 2014 में खड़ा किया था, वह पिघल चुका है। ऐसे में नए वादों की दरकार जरूरी है, कुछ ऐसा उन्माद पैदा करना समय की मांग है जिससे सत्ता में वापसी का रास्ता प्रशस्त हो सके। राष्ट्रवाद का मुद्दा जुमला बनाकर इसीलिए उछाला-फैलाया गया है। गौर कीजिए पहले चरण के चुनाव की रैलियों में देश भर में प्रचार करते घूमे मोदी ने किन बातों पर अपना फोकस रखा। उनका फोकस तीन बातों पर रहा है, पहला गांधी परिवार पर भ्रष्टाचार का आरोप, दूसरा राष्ट्रवाद और तीसरा कुछ हद तक हिन्दुत्व की भावना को ललकारना। गांधी परिवार को भ्रष्टाचार की जद में लाने के लिए राजीव गांधी के शासनकाल में हुए बोफोर्स तोप सौदे और मनमोहन सिंह के समय में अगास्ता वेस्ट लैंड हेलीकॉप्टर सौदे में कथित कमीशनखोरी पर मोदी जमकर बोल रहे हैं। कारण स्पष्ट हैं। जिस राहुल गांधी का हरेक उपलब्ध मंच पर भाजपा पप्पू कह उपहास उड़ाती थी, उस पप्पू ने चौकीदार को चोर साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसे भाजपा और मोदी का बुरा समय भी कहा जा सकता है कि राफेल तोप सौदे में सुप्रीम कोर्ट से एक तरह की क्लीन चिट पा चुके पीएम, दोबारा उसमें फंसते-धंसते नजर आ रहे हैं। रोज एक नया खुलासा कभी फ्रांस के अखबार तो कभी भारतीय रक्षा मंत्रालय के गोपनीय दस्तावेजों के लीक होने से सामने आ रहा है जो इस विमान खरीद की प्रक्रिया को संदेह के घेरे में ला रहा है। अब तो सुप्रीम कोर्ट भी मामले की पुनः सुनवाई के लिए हामी भर चुका है। यही कारण है अपने दाग छुपाने के लिए विपक्षी के दाग उजागर करने की रणनीति भाजपा ने अपना ली है। साथ ही राष्ट्रवाद को भुनाने का काम जोरों पर है। चुनाव आयोग की सलाह दरकिनार कर शहीदों के नाम वोट मांगे जा रहे हैं। सेना की राष्ट्रीयता का खुला राजनीतिक लाभ लेते पहले किसी राजनीतिक दल को इस देश ने नहीं देखा। हालात इतने विकट हैं कि तीनों सेनाओं के सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारियों को इस बाबत राष्ट्रपति के नाम पत्र लिखकर अपनी चिंता व्यक्त करनी पड़ी है। एक ऐसा माहौल भाजपा और भाजपा पोषित मीडिया रचने का काम कर रहा है जिसमें देश भक्त होने का अर्थ मोदी भक्त होना है। जो मोदी का विरोध कर रहे हैं उनकी देश भक्ति को शक के दायरे में लाया जा रहा है। जो अमित शाह के इस दावे का प्रमाण मांग रहे हैं कि भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में सर्जिकल स्ट्राइक कर 300 से 400 आतंकी ढेर कर डाले, उन्हें गद्दार, पाकिस्तान परस्त कहा जा रहा है। यानी सच बोलने के आपके अधिकार, प्रश्न करने की आपकी संविधान प्रदत्त स्वतंत्रता अब खतरे में है। यह सब क्यों इस पर सोचने का समय किसी को न मिले इसके चलते सोशल मीडिया में फेक न्यूज का जाल बिछा दिया गया है। यदि 2014 में भाजपा ने जो वादे देश की जनता से किए, उनमें से पच्चीस प्रतिशत पर भी वह खरा उतर कर दिखा पाती तो आज उसे यह सब करने की जरूरत न होती। याद कीजिए प्रधानमंत्री के आठ नवंबर 2016 की शाम आठ बजे देश को किए संबोधन की जिसमें उन्होंने नोटबंदी को क्रांति बताते हुए काले धन की रीढ़ तोड़ने का दावा किया था। आज न तो मोदी, न ही उनकी पार्टी के अन्य नेता नोटबंदी पर कुछ कहने को तैयार हैं। रोजगार सृजन अब भाजपा के घोषणा पत्र का हिस्सा नहीं। बुलेट ट्रेन से भी उनका मोह भंग हो चला है। जीएसटी पर बोलने को वित्त मंत्री अरुण जेटली तक तैयार नहीं।

भाजपा को सबसे बड़ा नुकासान उत्तर प्रदेश से होना तय है। यहां उसे चालीस से पचास सीटों का नुकसान हो सकता है। योगी उत्तर प्रदेश में फ्लॉप साबित हो चुके हैं। हालात भाजपा की इतनी पतली है कि गोरख पीठ की परमानेंट सीट कहे जाने वाले लोकसभा क्षेत्र गोरखपुर से पार्टी को भोजपुरी फिल्मों के स्टार रवि किशन को मैदान में उतारना पड़ा है। 2014 में कांग्रेस के टिकट पर जौनपुर सीट से चुनाव लड़े और जमानत जब्त करा चुके रवि किशन अब गोरखनाथ मठ के पीठाधिपति महंत आदित्यनाथ के कवच बनाए गए हैं। जाहिर है योगी का जादू, यदि इसे जादू माना जाए तो अब स्वयं उनके गढ़ में टूट रहा है तब उत्तर प्रदेश के बाकी हिस्सों में भाजपा की स्थिति का अंदाजा लगाना कठिन नहीं। छत्तीसगढ़ की बारह सीटों पर भाजपा का आत्मविश्वास इस कदर कमजोर है कि दस सीटिंग सांसदों का टिकट काट डाला है। मध्य प्रदेश की 29 में से 26 सीटें 2014 में जीतने वाली पार्टी को आज भय है कि आंकड़ा कहीं घटकर 10 से नीचे न पहुंच जाए। 2014 में गुजरात और राजस्थान में शत प्रतिशत सीटें जीतने का रिकॉर्ड इस बार दोहरा पाना भाजपा के लिए असंभव है।

यानी कुल मिलाकर मोदी और उनकी पार्टी अब उन सपनों से भाग रही है जो उसने 2014 में इस देश को दिखाये थे। तब इन सपनों से चकाचौंध देश ने एकमुश्त मोदी को वोट दिया, अबकी ऐसा नहीं है। इस चुनाव में जनता भले ही कुछ बोल न रही हो, उसका मन कहीं न कहीं खुद को ठगा जरूर महसूस रहा है। विकल्प की तलाश शायद उसे एक बार फिर हताश करे मोदी के नाम पर वोट डालने के लिए मजबूर कर दे, 2014 सा जनादेश इस बार कतई भाजपा को मिलने वाला नहीं।

You may also like

MERA DDDD DDD DD