अडानी समूह की बाबत #हिंडनबर्ग रिपोर्ट 24 जनवरी को सामने आई थी। अब एक माह होने जा रहा है और इस एक माह के दौरान लाख प्रयास करने के बावजूद अडानी साम्राज्य की उड़ान स्थिर नहीं हो पाई है। उसकी कंपनियों के शेयर बाजार का भरोसा खोते जा रहे हैं। 20 फरवरी के दिन दैनिक ‘लाइव मिंट’ में प्रकाशित एक खबर के अनुसार इस समूह का बाजार पूंजीकरण (Market Capitalization) 135 अरब अमेरिकी डॉलर कम हो चुका है। यानी एक खरब, 11 अरब, सात सौ तीस लाख करोड़ का नुकसान। इतनी भारी-भरकम रकम जिसे आप और हम समझ ही न पाएं। बाजार पूंजीकरण का अर्थ किसी भी व्यपारिक समूह के शेयरों का बाजारी मूल्य होता है। यदि इन शेयरों का मूल्य किसी भी कारण चलते गिरावट दर्ज करता है तो इसका असर उसकी साख पर पड़ता है और ऐसे शेयरों में जिन्होंने निवेश किया होता है उन्हें भी भारी नुकसान उठाना पड़ता है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट बाद अडानी समूह के शेयरों का भाव तेजी से कम हुआ जिस चलते समूह के बाजारी पूंजीकरण में भारी-भरकम कमी आई है और निवेशकों का पैसा डूब गया है। स्वयं गौतम अडानी जिन्हें उनके शेयरों के बाजारी मूल्य चलते विश्व का दूसरा सबसे बड़ा धनवान घोषित किया गया था, अब इस पायदान में सीधे लुड़क कर 25वें स्थान पर जा पहुंचे हैं। इस रिपोर्ट के सार्वजनिक होने से पहले गौतम अडानी की निजी संपत्ति 147 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी तो अब घटकर 49 ़ बिलियन रह गई है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में लगे आरोपों की सत्यता जांचने की बात विपक्षी दलों ने बजट सत्र के दौरान संसद में जोर-शोर से उठाई लेकिन सरकार ऐसी किसी जांच कराए जाने के लिए उत्सुक नजर नहीं आई। विपक्ष पूरे प्रकरण को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के हवाले करने की मांग कर रहा है। आमतौर पर ऐसे गंभीर आरोपों की जांच सरकारी एजेंसियों के साथ- साथ जेपीसी गठित कर कराए जाने की परंपरा हमारे लोकतंत्र में रही है। जेपीसी के पास संबंधित प्रकरण की जांच करने, सबूत एकत्रित करने, किसी भी व्यक्ति, संस्था इत्यादि को बतौर गवाह बुलाने इत्यादि के अधिकार प्राप्त होते हैं। यदि कोई भी ऐसी संसदीय समिति के साथ सहयोग नहीं करता तो उसे संसद की अवमानना का दोषी मान दण्डित किया जा सकता है। आजाद भारत में ऐसी पहली संयुक्त संसदीय कमेटी को 1987 में राजीव गांधी सरकार के समय बोफोर्स तोप सौदे में कथित दलाली के आरोप सामने आने पर गठित किया गया था। 1992 में हुए शेयर बाजार घोटाले जिसे हर्षद मेहता स्कैम कहा जाता है, दूसरी संसदीय समिति का गठन किया गया था। 2001 में एक बार फिर से शेयर बाजार में बड़ा घोटाला सामने आया और इस केतन पारेख शेयर बाजार घोटाले की जांच के लिए तीसरी संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया गया था। अब तक अलग-अलग मुद्दों पर आठ बार संयुक्त संसदीय समितियों का गठन किया जा चुका है। कई बार तत्कालीन सरकारों ने विपक्ष द्वारा किसी मुद्दे पर जेपीसी बनाए जाने की मांग को नहीं भी माना है। मोदी सरकार के कार्यकाल में विपक्षी दलों ने राफेल विमान खरीद सौदे में भारी भ्रष्टाचार की बात कह इस प्रकरण को जेपीसी के हवाले किए जाने का भारी दबाव बनाया था लेकिन केंद्र सरकार ने ऐसा नहीं होने दिया। हिंडनबर्ग रिपोर्ट सामने आने के बाद अब अडानी समूह को लेकर एक बार फिर से संयुक्त संसदीय समिति गठित किए जाने की मांग विपक्षी दल कर रहे हैं लेकिन केंद्र सरकार ऐसा करने के लिए तैयार नजर नहीं आती है। चूंकि अडानी समूह पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए आरोप बेहद संगीन हैं और चूंकि इन आरोपों के चलते भारतीय शेयर बाजार को नियंत्रित करने वाले सरकारी तंत्र की खामियां सामने आती हैं, इस चलते अब सुप्रीम कोर्ट एक विशेषज्ञों की समिति गठित कर पूरे प्रकरण की जांच कराने का निर्णय ले चुकी है। ऐसे में एक बात तो प्रथम दृष्टया स्थापित हो जाती है कि अडानी समूह भले ही अपने ऊपर लगे आरोपों को सिरे से नकार रहा हो, दाल में बहुत कुछ काला अवश्य है। इस ‘काले’ को समझने के लिए और यह भी समझने के लिए इस हिंडनबर्ग रिपोर्ट चलते क्योंकर हंगमा बरपा है, अडानी बंधुओं के अतीत को खंगालना जरूरी हो जाता है। अतीत की यह यात्रा गौतम अडानी और उनकी कार्यशैली की बाबत काफी कुछ ऐसी जानकारी दे रही है जिससे साफ नजर आता है कि देश के नियम एवं कानून तोड़ने का काम वे दशकों से करते आ रहे हैं। इस समूह के संस्थापक गौतम अडानी को 2002 में दिल्ली पुलिस द्वारा एक अन्य व्यापारिक समूह द्वारा दर्ज कराई गई आपराधिक धोखाधड़ी की शिकायत पर गिरफ्तार किया गया था। 2012 में केंद्र सरकार की एक जांच एजेंसी गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (#Serious fraud investigation office) ने अपने शेयर की फर्जी खरीद-फरोख्त करने और गलत तरीकों का इस्तेमाल कर शेयर बाजार को प्रभावित करने सरीखे अपराध का दोषी करार दिया था। अडानी समूह पर इस बाबत अभी मुकदमा अदालत में लंबित है। हिंडनबर्ग ने भी कुछ ऐसे ही आरोप इस समूह पर अब लगाए हैं। गौतम अडानी के छोटे भाई राजेश शांतिलाल अडानी को 1999 में कोयला आयात में करोड़ों का आयात शुल्क न देने के आरोप चलते केंद्र सरकार की एक अन्य जांच एजेंसी डीआरआई द्वारा गिरफ्तार किया गया था। 2010 में सीबीआई ने राजेश अडानी को आयात शुल्क चोरी के एक अन्य मामले में गिरफ्तार किया था। 2021 में अडानी समूह के स्वामित्व वाले मुंद्रा पोर्ट के जरिए भारी तादात में नशीली दवाओं की तस्करी का मामला उजागर हुआ था। इरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से इस पोर्ट के जरिए खरबों रुपयों की नशीली दवाइयों के भारत आने की बात को कांग्रेस नेता राहुल गांधी व अन्य विपक्षी दलों ने बड़ा मुद्दा तब बनाया था। मामले की जांच एनआईए को सौंपी गई थी जिसने मार्च, 2022 में अपनी जार्चशीट अदालत में दाखिल करते हुए 16 लोगों को आरोपी करार दिया था। अडानी समूह की बाबत लेकिन सरकार तब भी खामोश ही रही थी। गौतम अडानी के बड़े भाई विनोद शांति लाल अडानी पर दुबई में रह कई बेनामी कंपनियों को संचालित करने और इन कंपनियों के जरिए अडानी समूह में पूंजी निवेश करने के आरोप लगते रहे हैं। 2012 में भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परिक्षक (कैग) ने गुजरात की तत्कालीन सरकार को अपने करीबी उद्योगपतियों, जिनमें प्रमुख रूप से अडानी समूह को चिÐत किया गया था, को सरकारी उपक्रमों की कीमत पर आर्थिक लाभ पहुंचाने का दोषी माना था। कैग ने अपनी इस रिपोर्ट में राज्य सरकार की गलत नीतियों चलते 16,000 करोड़ का नुकसान सरकारी कंपनियों को होने की बात कही थी। 2012 में मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उनकी सरकार ने कैग की रिपोर्ट को सिरे से खारिज कर दिया था। स्पष्ट है कि अडानी समूह का अतीत दागदार है और उनके फर्श से अर्श तक पहुंचने की यात्रा में झोल ही झोल है। राजनीतिक संरक्षण का लाभ उन्हें बीते तीन दशकों के दौरान लगातार मिलता रहा जिस कारण गंभीर आरोप चस्पा होने के बावजूद वे दिन दूनी रात चौगुनी रफ्तार से तरक्की करते चलते गए। अब लेकिन हालात उनके लिए इसी तेजी से प्रतिकूल होते जा रहे हैं क्योंकि उन पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों की जांच का दायरा भारत तक ही नहीं सीमित रह गया है। बहुराष्ट्रीय कंपनी होने के चलते उनकी गतिविधियों पर विश्व के कई बड़े शेयर स्टाक एक्सचेंज नजर रख रहे हैं। अडानी समूह इस रिपोर्ट के प्रकाशित होने से पहले अपनी पांच कंपनियों को 2026 से 2028 के मध्य अंतरराष्ट्रीय शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराने की योजना पर काम कर रहा था। अब उसके लिए ऐसा कर पाना खासा कठिन होगा। फ्रांस की तेल कंपनी टोटलएनर्जी अडानी समूह में 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करने जा रही थी। अब लेकिन उसने अपने कदम पीछे खींच लिए हैं। कंपनी ने कहा है कि वह अडानी समूह में निवेश करने से पहले हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए आरोपों की सत्यता परखेगी। यह गौतम अडानी के लिए बड़ा झटका है। उनकी कई महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का भविष्य अब अधर में लटक गया है। ‘मूडी’, ‘फिंच’ सरीखी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां, जिनका काम व्यापारिक समूहों की वित्तीय स्थिरता के आधार पर उन्हें परखना और उनका वर्गीकरण करना होता है, अडानी की कंपनियों का वर्गीकरण बदल उन्हें ‘अस्थिर’ अथवा ‘नकारात्मक’ श्रेणी में रख चुकी हैं। इसका सीधा असर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजार में अडानी की साख कमजोर होने और अंतरराष्ट्रीय पूंजी निवेश एकत्रित करने पर उसे बड़ी दिक्कत आने का है।
हंगामा यूं ही नहीं बरपा-2
मेरी बात
कुल मिलाकर मामला केवल हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आने बाद कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों द्वारा भाजपा, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिए जाने तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके चलते अंतरराष्ट्रीय पूंजी बाजार में भारतीय कंपनियों की विश्वसनीयता कम होने और भारतीय नियामक एजेंसियों और कानूनों को लेकर उठ रहे सवालों का भी है। अगले वर्ष आम चुनाव होना है। इस वर्ष आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने बाकी हैं। ऐसे में इतना भर तो तय है कि हिंडनबर्ग की रिपोर्ट अगले एक बरस तक बड़ा मुद्दा बने रहने वाली है और इस एक बरस के दौरान अडानी समूह की दिक्कतें बढ़ती रहने वाली हैं।