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Editorial

सवाल संसद और लोकतंत्र की गरिमा का है

मेरी बात
कांग्रेस नेता और सांसद राहुल गांधी के बयानों को मुद्दा बना सत्तारुढ़ भाजपा संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण को चलने नहीं दे रही है। भाजपा की मांग है कि राहुल गांधी भारतीय लोकतंत्र की बाबत बीते दिनों ब्रिटेन में दिए अपने बयानों के लिए क्षमा याचना करें। दूसरी तरफ कांग्रेस और उसके समर्थक विपक्षी दल अडानी समूह के संदिग्ध वित्तीय लेन-देन और #हिंडनबर्ग रिपोर्ट में इस समूह पर लगाए गए फर्जीवाड़ों के गंभीर आरोपों की जांच एक संयुक्त संसदीय कमेटी (जेपीसी) द्वारा कराए जाने की मांग पर अड़े हुए हैं। पक्ष और विपक्ष की पैंतरेबाजी में भारतीय लोकतंत्र का शीर्ष मंदिर कराह रहा है, अपनी बेबसी पर आंसू बहा रहा है। नरेंद्र मोदी सरकार के कुछ मंत्री जिनमें दिग्गज और अनुभवी राजनेता राजनाथ सिंह भी शामिल है, लगातार राहुल गांधी से कुछ ऐसे पर माफी मांगने की बात कह रहे हैं जिसका निष्पक्ष आकलन यदि किया जाए तो स्पष्ट समझ में आ जाएगा कि सत्तारूढ़ दल विदेशी धरती पर दिए गए राहुल गांधी के बयानों की ओट में उन अप्रिय प्रश्नों से बचना चाह रहा है जिनका सीधा वास्ता पार्टी और सरकार के शीर्ष नेतृत्व को अहसज स्थिति में ला खड़ा करता है। पहले बात कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष के उन बयानों की जिन्हें राष्ट्र की अस्मिता के साथ छोड़ संसद में गतिरोध बना हुआ है। राहुल गांधी ने लंदन के ख्याति प्राप्त बौद्धिक संस्थान ‘चैटम हाउस’ में यूरोपीय बुद्धिजीवियों और विभिन्न विषयों के विशेषज्ञों संग अपनी बातचीत के दौरान भारतीय लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति पर चिंता जताने को लेकर जो कुछ कहा, उसे जमकर प्रचारित -प्रसारित कर यह माहौल बनाया जा रहा है कि उन्होंने आंतरिक मसलों को विदेशियों के समक्ष उठाकर उनसे हस्तक्षेप की गुहार लगाई है। सच यह कि अपनी वार्ता की शुरुआत में ही राहुल ने स्पष्ट कर दिया था कि लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का क्षरण हमारी आंतरिक समस्या है जिसका समाधान भी हमें ही तलाशना होगा। उन्होंने कहा -Look first of all, this is our problem (erosion of democratic institutions under Modi), it is an internal problem and it is India’s problem and the solution is going to come from inside, it is not going to come from outside. How ever, the scale of democracy in India means that democracy in India is a global public good. It impacts way further than our boundaries’ (देखिए, पहली बात तो यह कि यह हमारी आंतरिक समस्या है (मोदी के नेतृत्व में लोकतांत्रिक संस्थाओं का क्षरण), यह आंतरिक समस्या है और भारत की समस्या है जिसका समाधान भी भारत से ही निकलेगा, बाहर से नहीं। किंतु भारत का इतना विशाल लोकतंत्र होना विश्व भर के लिए महत्वपूर्ण है। इसका प्रभाव हमारी सीमाओं से बाहर भी पड़ता है)। राहुल ने यह बात एक प्रश्न के जवाब में कही थी। उन्होंने आगे कहा- ‘If Indian democracy collapses, in my view, democracy on the planet suffers a very serious, possibly fatal blow. So, it is important for you too. It is not just important for us. We will deal with our problem, but you must be aware that this problem is going to play out on a global scale. It is not just going to play out in India and what you do about it is, of course, up to you. You must be aware of what is happening in India- the idea of a democratic model is being attacked and threatened’ (यदि भारत में लोकतंत्र समाप्त होता है, तो मेरी नजरों में, पूरे धरती में इसका घातक, शायद बेहद घातक असर पड़ेगा। यह केवल हमारे लिए महत्वपूर्ण नहीं है। हम अपनी समस्या से स्वयं निपट लेंगे लेकिन आपको समझना होगा कि इस समस्या का वैश्विक स्तर पर असर पड़ेगा। यह केवल भारत तक सीमित नहीं रहेगा। आपको क्या करना चाहिए यह आप तय करें। आपको शायद पता होगा कि भारत में क्या हो रहा है।
लोकतांत्रिक ढांचे पर प्रहार और हमला किया जा रहा है।) राहुल गांधी ने भारतीय लोकतंत्र पर मंडरा रहे खतरे से जुड़े अपने विचार कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय समेत अन्य स्थानों में भी रखे। भाजपा संभवतः उनके बयानों को इतना तूल नहीं देती यदि राहुल के निशाने पर मोदी और भाजपा ही रहते। उन्होंने लेकिन इस कथित अलोकतांत्रिक व्यवस्था के विस्तार के तार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जोड़ते हुए अपनी आलोचना का केंद्र संघ को बना डाला जिससे न केवल भाजपा बल्कि संघ असहज हो उठा है। राहुल ने कहा-‘When I joined politics in 2004, the democratic contest in India used to be between political parties and I never imagined that the nature of the contest would change completely. The reason it changed is because one organisation called the RSS, a fundamentalist, fascist organisation has bassically captured pretty much all of India’s institutions. The RSS is a secret society. It is built along the lines of the Muslim Brotherhood and the idea is to use the democratic contest to come to power and then subvert the democratic context after-wards. It shocked me how successful they have been at capturing the different institutions of our country. The press, the judiciary, parliament, the election commission and all the institutions are under pressure, and are controlled in one way or the other” (जब 2004 में मैंने राजनीति में प्रवेश लिया था, तब राजनीतिक दलों के मध्य लोकतांत्रिक संघर्ष हुआ करता था। मैंने कल्पना तक नहीं की थी कि यह संघर्ष पूरी तरह से बदल जाएगा। ऐसा एक संगठन के चलते हुआ है। इस संगठन का नाम आरएसएस है जो एक कटरपंथी और फासीवादी संगठन है जिसने भारत की सभी लोकतांत्रिक संस्थाओं पर कब्जा कर लिया है। संघ एक गुप्त संगठन है जिसका निर्माण ‘मुस्लिम ब्रदरहूड’ की तर्ज पर लोकतांत्रिक तरीकों से सत्ता पाने और फिर लोकतंत्र को समाप्त करने के लिए हुआ है। आश्चर्यचकित हूं कि लोकतांत्रिक संस्थाओं को कब्जाने में यह कितना सफल हो चुका है। प्रेस, न्यायपालिका, संसद, चुनाव आयोग समेत सभी संस्थाएं भारी दबाव में हैं और संघ के कब्जे में हैं।) राहुल द्वारा विदेशी जमीन पर संघ की आलोचना करना और ‘मुस्लिम ब्रदरहूड’ से उसकी तुलना करना आरएसएस और भाजपा को खासा अखरा है। संघ की अप्रवासी भारतीयों के मध्य मजबूत पैठ है। इस पैठ का लाभ प्रधानमंत्री मोदी को भी उनके विदेश यात्राओं के दौरान मिलता रहा है। लोकतंत्र की खूबसूरती उसकी आलोचना करने की स्वतंत्रता है। यही उसकी सबसे बड़ी ताकत भी है। लोकतंत्र में यदि लोकतंत्र की आलोचना को गलत माना जाए तो यह बड़ा विरोधाभाष है जो राहुल गांधी के इस आरोप को ही बल देता है कि भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं के लिए खतरा पैदा हो गया है। भाजपा लेकिन संघ की विदेशी धरती पर आलोचना अथवा भारतीय लोकतंत्र पर लगाए गए प्रश्नचिन्हों चलते ही संसद में गतिरोध नहीं कर रही  है। एक अन्य कारण भी वर्तमान में भाजपा और केंद्र सरकार के लिए समस्या, बड़ी समस्या बन चुका है जिसकी बाबत संसद में विपक्षी दलों द्वारा उठाए जा रहे प्रश्नों से बचने का प्रचार करते दोनां नजर आ रहे हैं। यह समस्या हिंडनबर्ग की वह रिपोर्ट है जिसमें भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी पर बड़े स्तर के आर्थिक फर्जीवाड़े की बात कही गई है। विपक्षी दल सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी ‘जीवन बीमा निगम’ और देश के सबसे बड़े सरकारी बैंक ‘स्टेट बैंक ऑफ इंडिया’ द्वारा अडानी समूह में किए गए पूंजीनिवेश को निशाने पर रख आरोप लगा रहे हैं कि ऐसा इस समूह के मालिक और प्रधानमंत्री की मित्रता चलते किया गया जिससे एलआईसी और एसबीआई के शेयर होल्डर्स की पूंजी खतरे में पड़ गई है। विपक्ष इस पूरे प्रकरण को जेपीसी के हवाले करने की मांग पर अड़ा हुआ है। पूर्व में कई दफा जब भाजपा विपक्ष में थी तब उसने राष्ट्रहित से जुड़े मामलों पर जेपीसी बनाने का समर्थन किया था। आज लेकिन जब वह पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज है, जेपीसी की मांग उसे पसंद नहीं आ रही जिससे शक पैदा होता है कि विपक्ष के आरोपों में कुछ तो सच्चाई है। यदि भाजपा राहुल गांधी के विदेशी धरती पर दिए गए बयानों को गलत मानती है और यदि अडानी मुद्दे पर उसका दामन पाक साफ है तो उसे राहुल को संसद में अपनी बात रखने का मौका देना चाहिए, साथ ही अडानी प्रकरण की जांच के लिए संयुक्त संसदीय समिति बनाए जाने से परहेज नहीं करना चाहिए। संसद है ही इसलिए कि सत्तारुढ़ दल की जवाबदेही तय की जा सके। संसद, सरकार, सत्तारुढ़ दल और विपक्ष की विश्वसनीयता बनाए और बचाए रखने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष द्वारा इस मुद्दे का हल तलाशना जरूरी है। अन्यथा जैसा साठ के दशक में लोहिया ने कहा था ‘संसद स्वांग, पाखंड और रस्म अदायगी का अड्डा बन रह जाएगी’।

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