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Editorial

देश को पुलिस स्टेट बनने से रोकिए-1

मेरी बात

ब्रिटिश भारत की बंगाल प्रेसिडेंसी के एक कस्बे मोतिहारी (अब बिहार के पूर्वी चम्पारण जिले का मुख्यालय) में 1903 में एक ब्रिटिश अधिकारी के घर 25 जून को बेटा पैदा हुआ। इस बेटे का नाम रखा गया एरिक आर्थर ब्लेयर। एरिक आर्थर ब्लेयर से आप, खासकर साहित्य में रूचि रखने वाले, सम्भवतः परिचित नहीं होंगे लेकिन निश्चित ही ऐसे सभी ने जॉर्ज ऑरवेल का नाम अवश्य सुना होगा। विश्व ख्याति प्राप्त लेखक, पत्रकार और आलोचक जॉर्ज ऑरवेल का ही असली नाम एकरिक आर्थर ब्लेयर था।

ऑरवेल की प्रसिद्ध रचनाओं में उनका उपन्यास ‘एनिमल फार्म’ और ‘नाइनटीन एटीफोर’ शामिल हैं। आज उनका जिक्र, उनकी याद उनकी किसी रचना को पढ़ते नहीं, बल्कि देश में तेजी से विस्तार पा रही उस प्रवृत्ति चलते हो आई है जिसे ‘त्वरित न्याय’, ‘बुल्डोजर नीति’ इत्यादि कह सराहा जा रहा है। जॉर्ज ऑरवेल ने दो बातें खासी महत्वपूर्ण कहीं। पहली- ‘If you want a vision of the future, imagine a boot stamping on a human face, forever’ (यदि आप भविष्य की कल्पना करना चाहते हैं, तो इंसान के चेहरे पर एक बूट की छाप की कल्पना करें)। दूसरी-  ‘Every record has been destroyed or falsified, every book has been rewritten, every picture has been repainted, every statue and street building has been renamed, every date has been altered. And that process is continuing day by day and minute by minute. History has stopped. Nothing exists except the endless present in which the party is always right (हर रिकॉर्ड को नष्ट कर दिया गया है या गलत साबित कर दिया गया है, हर किताब को फिर से लिखा गया है, हर तस्वीर को दोबारा रंग दिया गया है, हर मूर्ति सड़क और इमारतों का नाम बदल दिया गया है और यह प्रक्रिया दिन-ब-दिन, मिनट-पर -मिनट जारी है। इतिहास रूक गया है और उस अंतहीन वर्तमान के सिवा कुछ भी मौजूद नहीं है जिसमें पार्टी हमेशा सही होती है।) यह दोनों ही कथन उनकी पुस्तक ‘एनिमल फार्म’ से हैं। अपनी इस कालजयी रचना में ऑरवेल ने बोल्शेविक क्रांति की विफलता को निशाना बनाते हुए सुअरों को केंद्रीय चरित्र बना ऐसे समाज की कल्पना की थी जिसमें जानवरों और मनुष्यों का दर्जा बराबरी का हो।

बहरहाल ऑरवेल की याद का तात्कालिक कारण महाराष्ट्र के ठाणे में हुआ एक पुलिस  इनकाउंटर है जो एक लोकतांत्रिक देश के पुलिस स्टेट में बदलने की आशंका को गहराने का काम कर रहा है। यह पुलिस एनकाउंटर उन असंख्य एनकाउंटरों की याद भी दिला रहा है जहां ‘त्वरित न्याय’ राज्य पुलिस बलों ने कथित अपराधियों को गोली मार कर दिया और उसे एनकाउंटर कह पुकारा। पहले बात ताजातरीन ठाणे पुलिस एनकाउंटर की। मुम्बई के पूर्व पुलिस आयुक्त, पंजाब और गुजरात के पूर्व पुलिस महानिदेशक और रोमानिया में भारत के राजपूत रह चुके बेहद ईमानदार छवि वाले आईपीएस अधिकारी जुलियो रिबेरो ने अंग्रेजी दैनिक ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित अपने आलेख में इसे ‘A fraught encounter’ (एक भयावह मुठभेड़) की संज्ञा दी है। गत् पखवाडे़ बलात्कार का एक आरोपी पुलिस की गिरफ्त से भागने का प्रयास करते समय ठाणे पुलिस के हाथों मारा गया। यह व्यक्ति न तो गैंगस्टर था, न ही कुख्यात अपराधी। यह एक निजी शिक्षण संस्थान में नौकरी करता था। इसे चार बरस की दो अबोध बालिकाओं संग बलात्कार का आरोप चलते गिरफ्तार किया गया था। महाराष्ट्र में नवंबर माह में विधान चुनाव चुनाव होने जा रहे हैं इसलिए इस प्रदेश का राजनीतिक तापमान खासा गर्माया हुआ है। जैसे ही इन दो अबोध बालिकाओं संग यौन शोषण का समाचार सामने आया, पहले ठाणे, फिर पूरे प्रदेश में महायुति सरकार के राज में कानून व्यवस्था और महिला सुरक्षा की बिगड़ती स्थिति लेकर हो-हल्ला तेज हो गया। जन आक्रोश सड़कों पर उतर आया, रेलंे रोकी जाने लगीं और महाअघाड़ी गठबंधन ने इस मुद्दे को लेकर सत्तारूढ़ भाजपा-शिवसेना (शिंदे) गठबंधन को घेरना शुरू कर दिया। पहले से ही कमजोर प्रतीत हो रही सरकार और सरकार में शामिल भाजपा तथा शिवसेना (शिंदे) इस घटना चलते बैकफुट में आ गए। भाजपा नेता देवेंद्र फडणनवीस राज्य के गृह मंत्री हैं। वे राज्य के उपमुख्यमंत्री भी हैं। चूंकि विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और चूंकि मई में हुए लोकसभा चुनाव में इस गठबंधन को अपेक्षानुसार सफलता नहीं मिली है, इसलिए पुलिस का यह कथित एनकाउंटर बड़े सवाल खड़े करने का काम कर रहा है। बढ़ते जनाक्रोश के बीच यकायक ही यह खबर पूरे प्रदेश में आग की तरह फैली कि इस अपराध के आरोपी को ठाणे पुलिस ने गोली मार दी है। चौतरफा जश्न मनाया जाने लगा। मिठाईयां बांटी गईं। सरकार ने इस काम को अंजाम देने वाली पुलिस टीम के मुखिया वरिष्ठ पुलिस इन्सपेक्टर संजय शिंदे को एक लाख का ईनाम देने और इस ‘मुंठभेड़’ में घायल हुए अफसर को पचास हजार रूपए दिए जाने का ऐलान किया। फडणनवीस के बड़े-बड़े होर्डिंग्स मुंबई और ठाणे में लगाए गए जिनमें गृहमंत्री हाथ में पिस्तौल लिए नजर आते हैं। जनता इस ‘त्वरित न्याय’ से प्रसन्न है। उसकी यही प्रसन्नता बड़े संकट को जन्म दे रही है। यह संकट है इस देश के पुलिस स्टेट में बदलने का। ऐसा देश जहां संवैधानिक प्रक्रियाओं को दरकिनार कर फैसले लेने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है। इस मामले में जो कहानी पुलिस ने सुनाई है उसमें झोल ही झोल हैं। पुलिस का कहना है कि अभियुक्त को वह ठाणे जेल से तालोजा जेल लेकर जा रही थी जहां पर एक अन्य मामले में अभियुक्त से पूछताछ करनी थी। यह पूछताछ ठाणे जेल में भी हो सकती थी जैसा अधिकांशतः होता है। बहरहाल रास्ते में इस अभियुक्त ने पुलिस टीम से एक पिस्तौल छीन ली और पुलिस पर हमला करने का प्रयास किया। जवाबी कार्यवाही में इन्सपेक्टर शिंदे ने उसे मार गिराया। एक स्कूल में काम करने वाला कर्मचारी जो संभवतः हथकड़ी में होगा और जिसे पिस्तौल अनलॉक करना नहीं आता होगा, ऐसा कर कैसे पाया? इतना ही नहीं पुलिस टीम के मुखिया शिंदे का इतिहास भी पूरे मामले को अविश्वसीन बना रहा है। बकौल रिबेरो एक दशक पूर्व मंुबई के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर ने इस अधिकारी की सेवाएं समाप्त किए जाने की सिफारिश राज्य सरकार से की थी लेकिन उसे स्वीकारा नहीं गया था। इस विवादित पुलिस इस्पेक्टर पर अपने एक रिश्तेदार को पुलिस कस्टडी से भगाने का आरोप तब लगा था। इतना ही नहीं यह अधिकारी मुंबई पुलिस के खासे विवादित पूर्व पुलिस अधिकारी प्रमोद शर्मा का शार्गिद रहा है और इन दिनों अपने गुरू की भांति ‘इनकाउंटर स्पेशलिस्ट’ बन उभर रहा है। प्रदीप शर्मा वही पुलिस का पूर्व अधिकारी है जो इन दिनों एक व्यापारी की हत्या का आरोपी है और उद्योगपति मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटकों से भरी गाड़ी बरामद होने वाले बहुचर्चित मामले से जुड़ा है।

‘त्वरित न्याय’ कितना भ्रामक और घातक होता है यह दिसंबर 2019 में हैदराबाद पुलिस एनकाउंटर के सच से समझा जा सकता है। 6 दिसंबर, 2019 को हैदराबाद पुलिस ने एक महिला पशु चिकित्सक के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के चार गिरफ्तार आरोपियों को जांच के दौरान भागने की बात कह मार गिराया था। तब भी इस ‘त्वरित न्याय’ को जनता ने खासा सराहा था। मानवाधिकार संगठनों की मांग पर पूरे प्रकरण की जांच सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्ति एक समिति ने की थी। मई 2022 में इस समिति ने अपनी रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट में एनकाउंटर को पूरी तरह फर्जी पाया गया और पुलिस पर हत्या का मुकदमा दर्ज करने की सिफारिश की है। इस जांच समिति के अनुसार पुलिस ने जानबूझकर और पूरी तरह गैरकानूनी तरीके से आरोपियों को मार डाला था। रिपोर्ट में यह स्पष्ट तौर पर कहा गया है कि मुठभेड़ के वक्त पुलिस का दावा कि आरोपियों ने पुलिस बल पर हमला किया था, सही नहीं था। ठाणे पुलिस एनकाउंटर मामले की गूंज अब सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे जा पहुंची है। मुंबई उच्च न्यायालय पहले ही इस मुठभेड़ को लेकर सवाल खड़े कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट में भी एक जनहित याचिका दायर कर मांग की गई है कि राज्य सरकार की एजेंसी के बजाए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित कर इस मामले की जांच की जाए।

इस जांच समिति के अनुसार पुलिस ने जान-बूझकर और पूरी तरह गैरकानूनी तरीके से आरोपियों को मार डाला था। रिपोर्ट में यह स्पपष्ट तौर पर कहा गया है कि मुठभेड़ के वक्त पुलिस का दावा कि आरोपियों ने पुलिस बल पर हमला किया था, सही नहीं था। ठाणे पुलिस एन्काउंटर मामले की गूंज अब सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे जा पहुंची है। मुम्बई उच्च न्यायालय पहले ही इस मुठभेड़ को लेकर सवाल खड़े कर चुका है। सुप्रीम कोर्ट में भी एक जनहित याचिका दायर कर मांग की गई है कि राज्य सरकार की एजेंसी के बजाय एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित कर इस मामले की जांच की जाए।
‘त्वरित न्याय’ हर दृष्टि से बेहद घातक प्रवृत्ति है जो एक लोकतांत्रिक देश को पुलिस स्टेट (तानाशाही) की तरफ ले जा रही है। स्मरण रहे इस प्रकार की शासन व्यवस्था नागरिक अधिकारों को कम करने और सत्तारूढ़ पार्टी को अपने विरोधियों का दमन करने का कारण बनती है। जॉर्ज ऑरवेल के उपरोक्त वर्णित दोनों ही कथन इन दिनों हमारे देश में सच होते नजर आने लगे हैं। यदि हम ऐसा ही राष्ट्र चाहते हैं, अपनी आने वाली पीढ़ियों को पुलिस स्टेट के हवाला करना चाहते हैं तो ठीक, अन्यथा इस प्रवृत्ति का प्रतिरोध बेहद जरूरी है।
क्रमशः

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