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Editorial

तो किरण को किसने मारा!

मेरी बात

#किरण नेगी हत्याकांड के सभी अभियुक्तों को गत् सात नवंबर के दिन देश की सर्वोच्च अदालत ने दोषमुक्त करार देते हुए जेल की सलाखों से मुक्त करने का जो आदेश सुनाया है उसने मुझे #जेसिका लाल हत्याकांड पर बनी फिल्म #No One killed jessica की याद दिला दी। किरण नेगी संग सामूहिक बलात्कार के बाद उसकी हत्या 9 फरवरी, 2012 को की गई थी। हत्यारे इस कदर मानसिक विक्षप्तता के शिकार थे, इस हद तक क्रूर थे कि उन्होंने गाड़ी के साइलेंसर को गर्म कर किरण के शरीर पर दागा, उसके गुप्तांगों को जलाया और गाड़ी के लोहे के पाना और जैक से किरण के सिर पर लगातार वार किए। इन दरिंदो ने किरण के निजी अंगों में बीयर की टूटी हुई बोतल को भी घुसाया। बताया जाता है कि पोस्टमार्टम करने वाला डॉक्टर किरण के मृत शरीर की अवस्था देख बेहोश हो गया था। किरण की हत्या के ग्यारह महीने बाद ही दिल्ली में #‘निर्भया कांड’ सामने आया था। इस कांड में भी पीड़िता एक लड़की ही थी जिसके साथ चलती बस में पहले सामूहिक बलात्कार किया गया था और फिर उसकी भी बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। निर्भया कांड ने पूरे देश को शर्मसार करने का काम किया था। भारी जनदबाव चलते मामले की निष्पक्ष जांच हो गई और सभी आरोपियों को फास्ट टै्रक कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई थी। तब इस निर्भया कांड के चलते बलात्कार से संबंधित कानून को और ज्यादा कड़ा बनाने और बलात्कार की शिकार पीड़िताओं के लिए अलग से केंद्रीय बजट में ‘निर्भया फंड’ नाम से बजट की व्यवस्था का प्रावधान भी किया गया था। किरण नेगी मामले में लेकिन पीड़िता और उसके परिजनों को न्याय नहीं मिल पाया है। जनता एक बार फिर से सड़कों पर है, धरने-प्रदर्शनों का दौर शुरू हो चुका है। देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले को संदेह की दृष्टि से देखा-तोला तो जा ही रहा है, दिल्ली पुलिस की निष्ठा पर भी जनता सवाल खड़े कर रही है। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के संस्थापकों में शुमार प्रसिद्ध लेखक और विचारक बेंजामिन फ्रैंकलिन का एक कथन ‘सौ अपराधियों का छूट जाना कहीं बेहतर है एक निर्दोष को सजा होने से’ विश्व भर की न्याय प्रणाली का आदर्श माना जाता है। भारतीय न्याय प्रणाली भी इसी कथन को अपना आदर्श मानती आई है। इसलिए किरण नेगी मामले में सेशन कोर्ट और हाईकोर्ट, दिल्ली से मौत की सजा पाए कथित अपराधियों को सुप्रीम कोर्ट ने क्यों और किस आधार पर रिहा किया, यह समझने के बाद ही उच्चतम न्यायालय के फैसले पर टिप्पणी की जानी विवेक संगत होगी।

किरण नेगी का अपहरण 9 फरवरी, 2012 की शाम हनुमान चौक, कुतुब विहार, चावला, नई दिल्ली से किया गया था। दिल्ली पुलिस को किरण की सहेली सरस्वती ने यह जानकारी दी थी कि शाम 8 ़45 पर एक लाल रंग इंडिका कार में सवार तीन-चार लड़कों ने किरण को जबरन कार में डाल अपहरण कर लिया है। 12 फरवरी को यह मामला दिल्ली पुलिस के स्पेशल स्टाफ सेल को सौंप दिया गया। 13 फरवरी को स्पेशल सेल ने संदिग्ध अवस्था में इधर-उधर घूम रही एक लाल रंग की इंडिका गाड़ी को सेक्टर-9, द्वारका मेट्रो स्टेशन के समीप रोका और उसके चालक राहुल को इस मामले में आरोपी बता गिरफ्तार कर लिया। पुलिस के अनुसार राहुल ने पूछताछ के दौरान अपने अपराध को स्वीकारते हुए इस जघन्य कांड में अपने भाई रवि और एक दोस्त विनोद उर्फ छोटू के शामिल होने की बात कही। इन दोनों को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर इनके मोबाइल फोन, इंडिका कार इत्यादि जब्त कर लिए। पुलिस का कहना है कि इन अभियुक्तों के बताए स्थान पर ही उन्हें किरण का शव प्राप्त हुआ। शव के पास कुछ बाल, प्लास्टिक के गिलास, इंडिका कार के बंपर का एक हिस्सा इत्यादि और एक पर्स भी पाया गया था जिसे बतौर सबूत पुलिस टीम ने अपने कब्जे में ले लिया था। शव को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया। अभियुक्त राहुल की निशानदेही से पुलिस ने किरण का मोबाइल फोन और उसके निजी अंगवस्त्र भी बरामद किए जाने की बात अपनी रिपोर्ट में कही। लाल रंग की टाटा इंडिका कार को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजा गया। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर की रिपोर्ट में मृतका किरण के शरीर में पाए गए चोट के निशान और घाव किसी कार के जैक और पाना के होने की संभावना जताई गई। पुलिस ने पोस्टमार्टम रिपोर्ट, फॉरेंसिक रिपोर्ट और घटनास्थल पर पाए गए कुछ डीएनए सैम्पल की रिपोर्ट को आधार बना इन तीनों अभियुक्तों के खिलाफ फास्ट टै्रक कोर्ट में अपनी चार्जशीट दाखिल की। इस अदालत में चले मुकदमें के दौरान 49 गवाहों के बयान दर्ज किए गए। अभियुक्तों ने अपने अपराध को नहीं स्वीकारा लेकिन पुलिस की चार्जशीट और सबूतों के आधार पर पहले सेशन कोर्ट और फिर दिल्ली हाईकोर्ट ने इन तीनों को मुजरिम मानते हुए मौत की सजा सुनाई। इस तरह से मामला 2019 में सुप्रीम कोर्ट जा पहुंचा।
उच्चतम न्यायालय ने अपने विस्तृत आदेश  में ट्रायल कोर्ट के समक्ष रखे गए सबूतों को पूरी तरह से अविश्वसनीय करार दिया है। ट्रायल कोर्ट के समक्ष मुख्य रूप से 14 सबूत पुलिस ने रखे थे जिनके आधार पर पहले ट्रायल कोर्ट और बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने इन तीनों को मुजरिम करार देते हुए सजा सुनाई थी। इन सबूतों को क्योंकर सुप्रीम कोर्ट ने अविश्वसनीय और संदेहजनक माना इसको समझना जरूरी है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का इन तीनों को संदेह का लाभ देते हुए बरी करना इन सबूतों की विश्वसनीयता को तो संदेह के घेरे में लाता ही है, एक बड़ा सवाल यह भी खड़ा होता है कि यदि ये सबूत इस मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारियों द्वारा जानबूझ कर पैदा किए गए हैं तो क्या इन तीनों को फंसाने का ‘खेला’ हुआ था ताकि किसी रसूखदार को बचाया जा सके? माननीय उच्चतम न्यायालय के आदेश का गहन अध्ययन तो कुछ इसी तरफ इशारा कर रहा है। ट्रायल कोर्ट के सामने रखे गए सबूत और उन पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी कुछ यूं हैः
1. मृतका का अपहरण एक लाल रंग की इंडिका कार में 9 फरवरी, 2012 में किया गया। 13 फरवरी के दिन अभियुक्त राहुल एक लाल रंग की इंडिका कार संदिग्ध स्थिति में चलाते हुए पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया। दिल्ली पुलिस ने इसी लाल रंग की इंडिका में मृतका किरण का अपहरण राहुल और उसके दो साथियों द्वारा किए गए जाने की दलील दी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में इस सबूत को परिस्थितिजनक और संदेहास्पद करार दिया है क्योंकि न तो इस घटना के चश्मदीद गवाह इंडिका कार की शिनाख्त कर पाए और न ही उसमें बैठे तीनों मुजरिमों की। सुप्रीम कोर्ट ने इन गवाहों की गवाही में भी अंतर पाया है। एक गवाह सरस्वती के मुताबिक कार में सवार लोगों ने अपने चेहरे ढंक रखे थे जबकि दो अन्य गवाहों ने कहा कि अंधेरा होने के कारण वे इन कार सवारों के चेहरे नहीं देख पाए। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस द्वारा अभियुक्तों की शिनाख्त परेड न कराए जाने का जिक्र भी अपने निर्णय में करते हुए इस सबूत को संदेहास्पद माना। पुलिस के अनुसार उसने 13 फरवरी को द्वारका मेट्रो स्टेशन के समीप इस कार को संदिग्ध स्थिति में इधर-उधर घूमते पाया जिसे राहुल नाम का लड़का चला रहा था। पुलिस की हिरासत में राहुल ने अपने इकबालिया बयान में अपना अपराध स्वीकारा और अपने दो साथियों विनोद और रवि का नाम बताया। बकौल पुलिस इन दोनों को दो पुलिस के सिपाही पकड़ के थाने लाए। सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल के दौरान इन दो सिपाहियों के बयान दर्ज न किए जाने को गंभीर रूप से संदेहास्पद करार दिया है क्योंकि अभियुक्त राहुल ने मजिस्ट्रेट के समक्ष दिए बयान में पुलिस की थ्यौरी के ठीक विपरीत यह कहा था कि रवि को पुलिस ने पहले गिरफ्तार किया था और जब रवि से मुलाकात करने वह (राहुल) इंडिका कार में थाने पहुंचा तो उसे भी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और उसकी कार जब्त कर ली। विनोद और रवि ने भी ऐसा ही बयान मजिस्ट्रेट के समक्ष दिया।
2. पुलिस ने जब्त इंडिका कार की पिछली सीट पर एक लड़की के बाल पाए जाने और डीएनए रिपोर्ट में उस बाल के मृतका का होने का फॉरेंसिक सबूत कोर्ट के सामने रखा था। साथ ही कार की सीट में से बरामद वीर्य का राहुल के वीर्य से पुष्टि होने का प्रमाण भी ट्रायल कोर्ट के समक्ष रखा। सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों सबूतों को बेहद संदेहास्पद करार दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा है कि ये सारे सबूत पुलिस द्वारा 14, फरवरी और 16 फरवरी के दिन बरामद किए गए जिन्हें 27 फरवरी को जांच के लिए सेंट्रल फॉरेंसिक साइंस लैब (सीएफसीएल) को भेजा गया। 16 फरवरी से 27 फरवरी तक ये कथित सबूत पुलिस स्टेशन के मालखाने में जमा थे। सुप्रीम कोर्ट ने इस दौरान इन सबूतों के साथ छेड़छाड़ किए जाने की संभावना की तरफ इशारा करते हुए डीएनए परीक्षण के लिए अपनाई गई विधि को भी सही नहीं माना। कोर्ट ने विस्तारपूर्वक डीएनए परीक्षण की सही विधि का अपने आदेश में उल्लेख भी किया है। सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस द्वारा मृतका के शव पर अभियुक्तों के बालों का गुच्छा बरामद होने को भी संदेहास्पद करार दिया है। कोर्ट का कहना है कि मृतका का शरीर तीन दिन और तीन रात खुले में पड़ा था ऐसे में इन बालों का पाया जाना संदेहास्पद है।
3. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और हरियाणा पुलिस के बयानों में भी भारी अंतर को अपने निर्णय का आधार बनाते हुए दिल्ली पुलिस की जांच पर बड़े सवाल खड़े किए हैं। उल्लेखनीय हे कि मृतका का शव हरियाणा में पाया गया था। कोर्ट ने शव के समीप से बरामद किए गए कथित समान की पुष्टि पुलिस के गवाहों द्वारा न किए जाने और पुलिस द्वारा जब्त सामान की सूची में अभियुक्त राहुल का एटीएम, पैन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, इत्यादि का जिक्र न होने पर भी आश्चर्य जताया है। ये सभी वस्तुएं पुलिस चार्ज शीट के अनुसार शव की बरामदगी के समय जब्त की गई थीं लेकिन जब्तशुदा सामान के पुलिस रिकॉर्ड में इनका उल्लेख नहीं किया गया जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है- ‘पुलिस के जब्तशुदा सामान की लिस्ट में ऐसा कोई उल्लेख नहीं जो अभियुक्त राहुल को इस अपराध में जोड़ता है। यदि राहुल का एटीएम कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस, स्कूल प्रमाण-पत्रों की फोटो कॉपी और पैन कार्ड उसके पर्स से बरामद हुए थे तो कोई भी जांच अधिकारी ऐसी भयंकर भूल नहीं कर सकता कि वह इनका उल्लेख अपनी जब्तशुदा लिस्ट में न करे।’ राहुल ने भी अपने बयान में ये तमाम चीजें उससे पुलिस स्टेशन में लिए जाने की बात कही है।
3. सुप्रीम कोर्ट ने सेशन कोर्ट में चले मुकदमें के दौरान गवाहों के सही तरीके से बयान न दर्ज कराए जाने, सही तरीके से इन गवाहों संग जिरह न किए जाने और 49 गवाहों में से 10 महत्वपूर्ण गवाहों की क्रॉस क्वेशचिनिंग (प्रति परीक्षा) न किए जाने को भी स्पष्ट भूल करार देते हुए ट्रायल कोर्ट की भूमिका पर भी प्रश्न उठाए हैं। कोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने इस मुकदमे में उदासीन निर्णायक (Passive Umpire) सा बर्ताव किया जिस चलते अभियुक्तों को उनके न्याय के अधिकार से वंचित रखा गया और ट्रायल कोर्ट सच को सामने नहीं ला पाई।
माननीय उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली पुलिस की जांच को अविश्वसनीय और संदेहास्पद मानते हुए अपने निर्णय में इन तीनों अभियुक्तों को ‘संदेह का लाभ’ देते हुए बरी करा है। कोर्ट के आदेश से स्पष्ट प्रतीत होता है कि तीन न्यायाधीशों ने एकमत होकर दिल्ली पुलिस की जांच पर बड़े सवाल खडे़ करते हुए और इस सिद्धांत को सामने रखते हुए कि ‘भले ही सौ अपराधी छूट जाएं किसी निर्दोष को सजा न हों’, इन तीनों को रिहा किया है। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि यदि इन तीनों ने इस जघन्य हत्याकांड को अंजाम नहीं दिया तो किरण नेगी के अपराधी कौन हैं? यह भी प्रश्न उठता है कि दिल्ली पुलिस ने यदि जांच में वाकई कोताही बरती और जैसा सुप्रीम कोर्ट ने ‘सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने’ और अभियुक्तों के खिलाफ सबूत प्लांट (पैदा) करने की आशंका अपने आदेश में कही है तो दिल्ली पुलिस किस को, किस रसूखदार को बचाने का प्रयास कर रही है? जनाक्रोश अभी अपने चरम पर है, यदि यह जनाक्रोश बना रहा तो निश्चित ही केंद्र सरकार अथवा न्यायालय को इस कांड की पुनः जांच के आदेश देने पड़ेंगे। ऐसे में शायद सत्य सामने आ जाए। शायद। या फिर यह सच हमेशा के लिए दफन ही रहे और किरण नेगी को, उनके परिजनों को न्याय मिल ही न पाए।

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