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Editorial

बोल कि सच जिंदा है अब तक

मेरी बात

बोल कि लब आजाद हैं तेरे
बोल ज़बां अब तक मेरी है
तेरा सुत्वां जिस्म है तेरा
बोल कि जां अब तक तेरी है
देख कि आहन-गर की दुकां में
तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन
खुलने लगे कु़फ़्लों के दहाने
फैला हर इक जंजीर का दामन
बोल ये थोड़ा वक्त बहुत है
जिस्म ओ ज़बां की मौत से पहले
बोल कि सच जिंदा है अब तक
बोल जो कुछ कहना है कह ले
                                                           -फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

लबों की आजादी का मसला लोकतंत्र की मां कहे जाने वाले हमारे देश में एक बार फिर से सुर्खियों में है। यूं तो 2014 में केंद्र की सत्ता पर भाजपा के काबिज होने बाद से ही यह कहा जाने लगा था, महसूस किए जाने लगा था कि जम्हूरियत में अवाम को मिलने वाले सबसे खूबसूरत अधिकार जिसे हमारे संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी कह पुकारा गया है, पर अंकुश लगाने का प्रयास हो रहा है। प्रेस जिसे अब मीडिया कह पुकारा जाता है, का एक बड़ा हिस्सा ‘गोदी’ कहलाया जाने लगा। यह केवल कुछ सत्ता प्रतिष्ठान विरोधी दिलजलों का आरोप नहीं बल्कि कड़वा सच है कि सच को छिपाने, धारणाओं को पैदा करने और उन्हें पुख्ता करने का काम बीते कुछ वर्षों से मुख्यधारा का मीडिया कर रहा है। बहरहाल लबों की आजादी पर पाबंदी का मसला इस बार एप्पल आई फोन बनाने वाली कंपनी के चलते सुर्खियों में है। विपक्षी दलों के कई दिग्गज नेताओं, पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गत् दिनों एप्पल कंपनी ने एक चेतावनी संदेश भेजा। इस संदेश में कहा गया है कि ‘एप्पल का मानना है कि आपको सरकार-प्रायोजित हैकर्स (हमलावरों) द्वारा निशाना बनाया जा रहा है। यह हैकर्स आपके एप्पल आईडी से जुड़े आई फोन से छेड़छाड़ करने की कोशिश कर रहे हैं।’ जिन लेागों को यह संदेश भेजा गया है उनमें तृणमूल सांसद महुआ मोइत्रा, शिवसेना सांसद प्रियंका चतुर्वेदी, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, आम आदमी पार्टी सांसद राघव चड्डा, वामपंथी दिग्गज सीताराम येचुरी, कांग्रेस सांसद शशि थरूर, कांग्रेस नेता पवन खेड़ा, राष्ट्रवादी कांग्रेस सांसद सुप्रिया सुले, कांग्रेस सांसद के ़सी ़ वेणुगोपाल, कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के कई सहयोगी, एआईएआईएम सांसद असदुद्दीन औवेसी, पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन, श्रीराम कर्मी, आंदन मंगनाले आदि शािमल हैं। इस संदेश में यह आशंका जताई गई है कि ‘ये हैकर्स संभवतः यह जानने का प्रयास कर रहे हैं कि आप कौन हैं, क्या करते हैं। यदि सरकार-प्रायोजित ये हैकर्स सफल होते हैं तो वे आपके संवेदनशील डाटा, संचार प्रणाली और यहां तक कि कैमरा और माइक्रोफोन तक को हैक कर सब कुछ देख- सुन सकते हैं।’

इस संदेश का सीधा अर्थ है कि निजता और अभिव्यक्ति की मुन्ना भाई के शब्दों में वॉट लगने का पूरा खतरा है। आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि एप्पल कंपनी ने 2021 से ऐसे संदेश भेजने की शुरुआत की थी और तब से दुनिया के 150 देशों में वह ऐसे संदेश अपने उपभोक्ताओं को भेज चुकी है। जैसा अपेक्षित था इन संदेशों ने भारी खलबली मचाने का काम शुरू कर दिया है। विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार की नीयत पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिल्ली में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर मोदी सरकार पर गंभीर आरोप मड़े हैं। बकौल राहुल ‘सरकार को अडानी को बेच दिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि ‘आप चाहे जितना हमें हैक कर लें, हम आपसे सवाल पूछना बंद नहीं करेंगे।’ ऐसा ही अन्य विपक्षी नेताओं का भी कहना है। एप्पल कंपनी की तरफ से भेजे गए इस चेतावनी संदेश ने इस आशंका को गहराने का काम किया है कि केंद्र सरकार इजरायली कंपनी ‘एनएसओ गु्रप’ द्वारा निर्मित जासूसी स्पाईवेयर पेगासस के जरिए एक बार फिर से अपने विरोधियों की जासूसी करने का प्रयास कर रही है। हालांकि केंद्र सरकार ने एप्पल कंपनी द्वारा भेजे गए चेतावनी संदेश से उपजी आशंकाओं को सिरे से खारिज कर दिया है लेकिन ये आशंकाएं खारिज नहीं हुई हैं, ज्यादा गहरा गईं हैे। यहां यह स्मरण रखना और समरण कराना जरूरी है कि पेगासस स्पाईवेयर मामले की तह तक जाने के लिए उच्च्तम न्यायालय ने एक जांच समिति का गठन किया था। इस जांच समिति ने अगस्त 2022 में अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंप दी थी जिसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है।

एप्पल कंपनी द्वारा अपने उपभोक्ताओं को भेजे गए संदेश की सच्चाई, पेगासस सॉफ्टवेयर का सच चाहे जो भी हो, असल प्रश्न संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी और निजता की स्वतंत्रता से जुड़े मौलिक अधिकारों का है। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां लगातार कह रही हैं कि बीते कुछ वर्षों के दौरान इन दोनों-अभिव्यक्ति की आजादी और नागरिकों की निजता, के मुद्दे पर भारत में हालात खराब हुए हैं। इस वर्ष मई में ‘प्रेस फ्रीडम इंडेक्स’ नामक सूची जारी करते हुए अंतरराष्ट्रीय संस्था ‘रिपोर्ट्स विद्आउट बार्ड्स’ ने इन दो मामलों में भारत को विश्व के सबसे निकृष्टम देशों में शुमार किया है। इस सूची के अनुसार दुनिया के 180 देशों में भारत का स्थान 161वां है। वर्ष 2022 में भारत 150वें नंबर पर था। मात्र एक बरस के दौरान इस संस्था के अनुसार स्थिति बद से बदतर हुई है। इस रिपोर्ट में भारत की बाबत कहा गया है कि ‘The violence against journalists, the politically partisan media and the conentration of media ownership, all demostrate the press freedom is in crisis in ”the world’s largest democracy”, ruled since 2014 by Prime Minister Narender Modi, the leader of Bhartiya Janta Party (BJP) and the embodiment of Hindu nationalist right” (पत्रकारों के खिलाफ हिंसा, राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण मीडिया और मीडिया का स्वामित्व चंद्र हाथों में चले जाना यह दर्शाता है कि 2014 से भाजपा के नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शासित ‘‘दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र’’ में प्रेस की स्वतंत्रता संकट में है। इसके पीछे एक बड़ा कारण हिंदू राष्ट्रवादियों का वर्चस्व होना भी है।) इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ‘Legally too, there are several ways journalists are harassed by those in power- including the through charges of sedition and criminal defamation. Indian law is protective in theory but charges of defamation, sedition, contempt of court and endangering national security are increasingly used against journalists critical of government, who are branded as ”anti-national” (सत्ता में बैठे लोगों द्वारा पत्रकारों को कई तरीकों से परेशान किया जाता है जिसमें राजद्रोह और आपराधिक मानहानि के आरोप भी शािमल हैं। सैद्धांतिक रूप से भारतीय कानून सुरक्षात्मक है लेकिन सरकार की आलोचना करने वाले पत्रकारों के खिलाफ मानहानि, राजद्रोह, अदालत की अवमानना और राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के आरोप तेजी से लगाए जा रहे हैं और ऐसे पत्रकारों को ‘‘राष्ट्र विरोधी’’ करार दिया जा रहा है।)

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सत्ता द्वारा दबाए जाने की आशंका के पीछे अतीत का साया है। 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान प्रदत्त हमारे मौलिक अधिकारों को आपातकाल के बहाने पूरी तरह से कुचलने का काम किया था। भले ही इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाए जाने को यह कहकर सही ठहराने का भरसक प्रयास किया था कि देश की अखंडता खतरे में है, सच्चाई इसके ठीक उलट थी। सत्ता में हर कीमत बने रहने की जिद ने एक बेहद लोकतांत्रिक पिता की पुत्री को तानाशाह बना डाला था। कहावत है ‘दूध का जला छांछ भी फूंक-फूंक कर पीता है। हमें 75 की कड़वी यादें रह-रह कर डराती हैं इसलिए अभिव्यक्ति की आजादी पर सरकारी नियंत्रण की आशंका मात्र से हम सिहर उठते हैं। वर्तमान समय में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और निजता में अतिक्रमण भारत की बतौर लोकतांत्रिक राष्ट्र छवि को, बुनियाद को, कमजोर करने का काम कर रहे हैं।

फै़ज़ अहमद फै़ज का कहना कि बोल कि लब आजाद हैं तेरे, वर्तमान में हर भारतीय के लिए खासा मौजूं है। यह हमारे अधिकारों का ही प्रश्न नहीं, बल्कि विश्व गुरु बनने का सपना पाले भारत के भविष्य का प्रश्न है। उम्मीद की जानी चाहिए कि हालात इतने नहीं बिगड़ेंगे कि लोकतंत्र का दम घुट जाए। उम्मीद की जानी चाहिए कि संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों का क्षरण नहीं संरक्षण होगा और भविष्य का भारत सही अर्थों में एक समृद्ध, विकसित, संतुलित और लोकतांत्रिक भारत होगा।

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