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Editorial

अंततः बेदाग साबित होंगे संजय

मेरी बात
 

आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य संजय सिंह बीते दिनों केंद्रीय जांच एजेंसी प्रर्वतन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। संजय सिंह पर आरोप है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार द्वारा वर्ष 2021 में लागू की गई आबकारी नीति के चलते हुए कथित भ्रष्टाचार में उनकी सहभागिता रही है। ईडी ने उन्हें इस कथित भ्रष्टाचार में अभियुक्त एक ऐसे संदिग्ध चरित्र वाले व्यक्ति की गवाही के आधार पर बनाया है जो स्वयं इस मामले में मुख्य आरोपी था और अब वादामाफ गवाह बन ईडी का बगलगीर हो चला है। संजय सिंह की गिरफ्तारी पूर्वानुमित थी। कारण केंद्र सरकार के खिलाफ उनके बुलंद स्वर और तीखे तेवर हैं। संजय संसद और सड़क, दोनों में ही वर्तमान सरकार की नीतियों का खुलकर विरोध करते रहे हैं। उनके निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह रहते हैं। दिल्ली के आबकारी घोटाले में मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी बाद ही यह साफ हो चला था कि आने वाले दिनों में आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल तक इस जांच की आंच पहुंचेगी जरूर। ऐसे संकेत भाजपा नेताओं के उन बयानों से भी पुष्ट होते हैं जो खुलकर इस मामले में केजरीवाल की गिरफ्तारी होने के दावे आए दिन करते रहते हैं। केजरीवाल से पहले लेकिन संजय सिंह की गिरफ्तारी ने कुछ ऐसे सवाल खड़े कर दिए हैं जिनका संबंध ‘लोकतंत्र की मां’ कहे जाने वाले देश में लोकतंत्र की दशा और दिशा से है। इन सवालों का वास्ता बीते दिनों दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल टीम द्वारा कई जाने-माने पत्रकारों के घर पर दी गई दबिश से भी है। वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिषार शर्मा, भाषा सिंह, इतिहासकार सोहेल हाशमी, न्यूजक्लिक’ समाचार पोर्टल के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ आदि के घर पर की गई छापेमारी और प्रबीर पुरकायस्थ की आतंक निरोधी कानून ‘यूएपीए’ के तहत गिरफ्तारी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर प्रश्नचिन्ह लगाने का काम किया है।

पहले बात संजय सिंह की। संजय मेरे करीबी और घनिष्ठ मित्र हैं। अन्ना आंदोलन के दौरान उनसे मेरी पहली मुलाकात कवि डॉ. कुमार विश्वास के घर पर हुई थी। तब संजय  सुल्तानपुर से आकर कुमार के घर पर रह रहे थे। डॉ ़ कुमार विश्वास ने ही उनसे और अन्ना आंदोलन के अन्य मुख्य किरदारों संग मेरा परिचय कराया था जो कालांतर में प्रगाढ़ होता चला गया। संजय मुझे इस पहली ही मुलाकात में भा गए थे। उनका शिष्ट आचार-व्यवहार, उनका आंडबर रहित आचरण इत्यादि ने मुझे संजय के करीब लाने का काम किया। मैं उन्हें मजबूत हड्डी का नेता कह पुकारता हूं। एक बार उनके पूछने पर मैंने उन्हें डॉ. लोहिया से जुड़ा एक प्रसंग सुनाया। लोहिया जी के एक साथी थे रेवतीकांत सिंह। 1967 के चुनावों में लोहिया ने उन्हें अपनी सोशलिस्ट पार्टी की तरफ से चुनाव मैदान में उतारा था। कांग्रेस के एक दिग्गज नेता महामाया प्रसाद सिंह इन चुनावों से ठीक पहले कांग्रेस से इस्तीफा दे संयुक्त मोर्चे में शामिल हो गए थे। रेवतीकांत सिंह पर जोर डाला जाने लगा कि वे महामाया प्रसाद सिंह के पक्ष में अपना नाम वापस ले लें। लोहिया इसके लिए तैयार नहीं थे लेकिन उनकी सलाह के विपरीत रेवतीकांत ने अपना नामांकन वापस ले लिया। लोहिया ने तब रेवतीकांत को अपने पास बुलाकर कहा था- ‘ये सब पापी हैं। मगर मैं तुमसे भी नाराज हूं। राजनीति में इतनी कमजोर हड्डी से नहीं चला जाता। राजनीति करनी है तो अपनी हड्डी मजबूत बनाओ।’ मुझे संजय हमेशा से ही मजबूत हड्डी के व्यक्ति-राजनेता लगे हैं। उनमें सच बोलने का माद्दा है। वे निडर हैं और सच के साथ खड़े रहने के लिए अपनी पार्टी के नेतृत्व तक से टकराने की इच्छाशक्ति उनके भीतर है। यह मैं उनके मित्र प्रेम में नहीं कह रहा हूं। 2018 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब सरकार के तत्कालीन मंत्री बिक्रम सिंह मजेठिया द्वारा दायर आपराधिक मानहानी के मामले में क्षमा याचना कर ली थी, संजय लेकिन क्षमा याचना के लिए तैयार नहीं हुए। स्मरण रहे मजेठिया पर आप नेताओं ने ड्रग माफिया होने का गंभीर आरोप लगाया था लेकिन मानहानी का मुकदमा शुरु होते ही केजरीवाल समेत सभी आप नेताओं ने क्षमा याचना कर ली। संजय सिंह पर भी तब उनके नेतृत्व द्वारा ऐसा ही करने का भारी दबाव था।  केजरीवाल द्वारा इस मामले में क्षमा याचना किए जाने का प्रदेश आप नेताओं ने भारी विरोध किया था। संजय तब पंजाब के प्रभारी थे। वर्तमान में पंजाब के मुख्यमंत्री भगवत मान उन दिनों आप के प्रदेश अध्यक्ष हुआ करते थे। केजरीवाल की माफी से आहत मान ने तब प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा तक दे डाला था। संजय सिंह ने लेकिन क्षमा याचना करने से इंकार कर अपनी मजबूत हड्डी कर परिचय दिया था। ऐसा व्यक्ति जो केंद्र सरकार की नीतियों की कठोर आलोचना करने, यहां तक की अपने निशाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रखने का जज्बा रखता हो, खुलकर प्रधानमंत्री और अडानी समूह के मध्य दुःरभि संधि होने का आरोप लगाता हो, वह भला स्वयं भ्रष्ट कैसे हो सकता है? कांग्रेस से ताल्लुक रखने वाले कई दिग्गज नेताओं ने अपने भ्रष्टाचार का खुलासा होने के डर से भाजपा की शरण लेने और केंद्र की सत्ता में काबिज भाजपा द्वारा ऐसे नेताओं को गले लगाना एक स्पष्ट इशारा है कि यदि खुद को बचाना चाहते हो तो पाला बदल हो। फिर चाहे कांग्रेस के दागी हों, राष्ट्रवादी कांग्रेस के दागी हों या फिर तृणमूल के, सभी ने इस राह को पकड़ अपने पापों से ‘प्रायश्चित’ करने में देर नहीं लगाई थी। सीधा तर्क है कि यदि दिल्ली के आबकारी घोटाले में संजय सिंह शामिल हैं तो वे भला क्यों दिन-रात भाजपा नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोले बैठते? भाजपा में शामिल नहीं भी होते तो भी इतना भर तो कर ही सकते हैं कि रस्मअदायगी भर विरोध करते और खामोश रहते। उन्होंने लेकिन प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के अन्य वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ धुंआधार मोर्चा खोल रखा है। इसका सीधा अर्थ है कि उनके दामन में ऐसे किसी घोटाले के छीटें नहीं हैं। जब पाक-साफ दामन है तो फिर ईडी, सीबीआई अथवा अन्य किसी जांच एजेंसी से डर कैसा? एक बात और मेरी नजर में संजय सिंह की बेगुनाही की तरफ इशारा करने वाली है। गत् सप्ताह ही उच्चतम न्यायालय ने मनीष सिसोदिया की जमानत याचिका में बहस के दौरान केंद्र सरकार के महाधिवक्ता से कुछ ऐसे सवाल-जवाब किए जिनसे स्पष्ट होता है कि सिसोदिया को इस मामले में राजनीतिक विद्देष चलते फंसाया गया है। गत् 5 अक्टूबर को इस मामले में बहस के दौरान न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की बैंच ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा। ‘क्या जांच एजेंसी ने सिसोदिया और विजय नायर को रिश्वत की बात करते हुए देखा? एक वादामाफ गवाह का बयान कैसे सबूत माना जा सकता है? यह केस जिरह के दौरान दो मिनट में खारिज हो जाएगा।’ कोर्ट ने यह भी सरकार से पूछा कि ‘सिसोदिया के खिलाफ आपके पास सबूत क्या हैं?’ जाहिर है जिस वादामाफ गवाह दिनेश अरोरा के बयान को मुख्य सबूत मान सीबीआई और ईडी ने सिसोदिया को अभियुक्त बनाया है उस गवाह की विश्वसनियता पर उच्चतम न्यायालय ने सवाल खड़े कर दिए हैं। इसी गवाह के कहे को सबूत मान ईडी ने संजय सिंह को भी गिरफ्तार किया है। ऐसे में संदेह होना स्वभाविक है कि इस कथित घोटाले में संजय सिंह को राजनीतिक विद्वेष के चलते फंसाया गया है। ईडी के कामकाज की प्रणाली को लेकर विपक्षी दल लंबे अर्से से अपना प्रतिरोध दर्ज कराते रहे हैं। इन दलों का कहना है कि मोदी सरकार अपने राजनीतिक विरोधियों को कुचलने के लिए इन केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है। यही आरोप मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और लोकातंत्रिक मूल्यों के लगातार हो रहे क्षरण से चिंतित हर जागरूक भारतीय के भी हैं। बीते 3 अक्टूबर को तो सुर्प्रीम कोर्ट तक ने ईडी की कार्यशैली को लेकर अपनी चिंता प्रकट कर डाली है। रियल स्टेट कंपनी ‘एम 3 एम’ के निदेशकों की ईडी द्वारा गिरफ्तारी पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा कि ‘ईडी के आचरण में मनमाने पन की बू आ रही है।’
मैं जितना संजय सिंह को जानता हूं और उनकी राजनीति को समझता हूं उसके बिना पर मेरा मानना है कि दिल्ली के आबकारी घोटाले अथवा अन्य किसी आर्थिक अपराध में संजय सिंह का शामिल होना मुझे असंभव सा प्रतीत होता है। संजय मजबूत हड्डी के व्यक्ति हैं। उन्हें अंततः न्याय मिलेगा और वे बेदाग साबित होंगे ऐसा मेरा विश्वास है। रही बात ‘न्यूजक्लिक’ पोर्टल से जुड़े पत्रकारों की तो उस पर चर्चा अगले अंक में विस्तार से।

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