प्रिय श्री पुष्कर सिंह धामी जी,
बाईस बरस के राज्य उत्तराखण्ड के आप अब तक के सबसे युवा मुख्यमंत्री हैं। इस दृष्टि से आप पर जन अपेक्षाओं का भार अपने पूर्ववर्तियों से कहीं अधिक है। इस नवसृजित राज्य में पहली बार जनता ने किसी राजनीतिक दल की दोबारा सरकार बनाई तो वह आपकी सरकार है। इसके पीछे तीन फैक्टर रहे। पहला आपकी पार्टी के सर्वमान्य नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता। दूसरा आपके हाथों चुनाव से ठीक पहले दी गई सरकार की कमान और तीसरा मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की आंतरिक कलह। इन तीनों कारणों के चलते पूरी तरह विफल रही। #डबल इंजन की पहली सरकार को राज्य की जनता ने एक और अवसर देना उचित समझा। आप इस जीत में एक बड़ा फैक्टर थे, इसे आपकी पार्टी के आला नेतृत्व ने भी स्वीकारा जिसका नतीजा रहा अपनी खुद की सीट हारने के बावजूद आपको दोबारा मुख्यमंत्री बनाया जाना। यह एक बड़ी घटना और बड़ा फैसला है इसलिए आप पर जन अपेक्षाओं के साथ-साथ अपनी पार्टी के आलाकमान की निगाहों में खरा उतरने का भारी बोझ है। जैसा राजनीति का दस्तूर है, स्पष्ट नजर आ रहा है कि आपकी यह ताजपोशी विपक्ष से कहीं अधिक आपकी अपनी पार्टी भाजपा के दिग्गजों को रास नहीं आई, कांग्रेस की आंतरिक कलह सार्वजनिक तौर पर नजर आती है, किंतु कलह तो आपके यहां भी भारी मची हुई है। फर्क सिर्फ इतना कि ‘अनुशासित’ संगठन होने के नाते उसका कांग्रेस की भांति भोंड़ा सार्वजनिक प्रदर्शन नहीं होता है। कलह और घात-प्रतिघात लेकिन आपके घर भी सर्वत्र व्याप्त है। ऐसे में आप कैसे जन अपेक्षाओं और अपने आलाकमान की अपेक्षाओं में खरे उतर पाएंगे, यह समय बताएगा। इस पत्र के माध्यम से मेरा उद्देश्य आपका ध्यान कुछ ऐसे मुद्दों की तरफ आकर्षित करना भर हैं जिन पर यदि आपने सही समय पर सही निर्णय नहीं लिए तो #डबल इंजन की दूसरी पारी के भी डिरेल होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
पहला मुद्दा है #भर्ती घोटाले का, जिसके चलते इन दिनों आपकी सरकार की निष्ठा और विवेक पर प्रश्न खड़े होने लगे हैं। निश्चित ही अधीनस्थ चयन आयोग में व्याप्त भ्रष्टाचार और राज्य विधानसभा में की गई नियुक्तियों में भारी भाई-भतीजावाद आपकी सरकार से पहले के काले कारनामे हैं। राज्य गठन के बाद से ही विधानसभा सचिवालय में ‘अंधा बांटे रेवड़ी फिर, फिर अपनों को दे’ की लोकोक्ति प्रचलन में रही। ठीक इसी प्रकार सरकारी विभागों में नियुक्तियों को लेकर भारी भ्रष्टाचार राज्य गठन के बाद से होते हम सभी ने देखा है। पहली निर्वाचित सरकार से ही इस ‘खेला’ की नींव पड़ गई है जो त्रिवेंद्र सरकार के कार्यकाल में चरम् पर जा पहुंचा। आपके समक्ष सबसे बड़ी चुनौती इस #भर्ती घोटाले की निष्पक्ष जांच को लेकर सामने आ खड़ी हुई है। क्या आप इस चुनौती का सामना ईमानदारीपूर्वक कर पाएंगे? यह यक्ष प्रश्न न हरकेवल आपके समक्ष है बल्कि मुझ सरीखे असंख्य भी इससे जूझ रहे हैं।
पुष्कर भाई आपने ईश्वर को हाजिर-नाजिर मान कर शपथ ली है कि ‘मैं राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक और शुद्ध अंतःकरण से निर्वहन करूंगा तथा मैं भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना सभी प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा।’ यह शपथ संविधान में वर्णित
अनुच्छेद 75 के अनुसार तीसरी अनुसूची में दिए गए शपथ पत्र के अनुसार ली जाती है। आपके सामने संकट यह है कि ‘भय या पक्षपात’, ‘अनुराग या द्वेष’ के बिना ‘शुद्ध अंतःकरण’ से यदि आप इस विषय पर कार्यवाही करने का साहस दिखाते हैं तो विपक्षी दल के साथ-साथ आपकी पार्टी के कई नेता इसकी चपेट में आ जाएंगे। आप स्वयं जानते हैं कि ऐसे कौन-कौन से नेता हैं जिन्होंने सार्वजनिक जीवन की मर्यादा और शिष्टाचार का पूरी तरह अतिक्रमण करते हुए विधानसभा सचिवालय में ‘अपनों’ को रेवड़ी बांटने का काम किया है। ठीक इसी प्रकार अधीनस्थ सेवा चयन आयोग के जरिए की गईं नियुक्तियों में भारी हेरा-फेरी का मामला है जिसके तार भी राज्य के प्रभावशाली नेताओं से जुड़ते स्पष्ट नजर आ रहे हैं। मैं आपको साधुवाद देता हूं कि इस मुद्दे पर आपने सख्त कार्यवाही करते हुए एक विशेष जांच दल का गठन कर अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का परिचय दिया है। मामले से जुड़े कई आरोपियों की गिरफ्तारी कर इस जांच दल ने भी हाल-फिलहाल तक सराहनीय कार्य कर दिखाया है। प्रश्न यह है कि क्या आप इन आरोपियों को मिले राजनीतिक संरक्षण का सच भी सामने ला पाएंगे? यदि आप ऐसा कर पाए तो यकीन जानिए आप अपनी अलग छाप छोड़ने और इतिहास के पृष्ठों में सुनहरे अक्षरों से दर्ज होने वाले राज्य के पहले मुख्यमंत्री बन जाएंगे। महान विचारक डॉ राममनोहर लोहिया कहा करते थे कि ‘कमजोर हड्डी से राजनीति नहीं की जाती।’ यह मामला आपकी हड्डी की मजबूती को तय करने वाला साबित होने जा रहा है इसलिए आप पर बहुत संभलकर और बहुत ‘शुद्ध अंतःकरण’ से इसे इसके सही अंजाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है।
मैं दो अन्य मुद्दों की तरफ भी इस खुले खत के माध्यम से आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। आपको शायद याद हो कि आपके पहली बार मुख्यमंत्री बनने के पश्चात् मैं आपसे एक सुबह नाश्ते पर मिला था। तब कई अन्य बातों के साथ-साथ मैंने देवभूमि में तेजी से बढ़ रहे यौन-शोषण की घटनाओं का जिक्र करते हुए आपसे रुड़की स्थित राजकीय मुद्रणालय के घटित एक ऐसे ही घिनौने कृत्य की जानकारी देते हुए इस संस्था के एक वरिष्ठ अधिकारी सर्वेश गुप्ता पर कठोर कार्यवाही करने की बात कही थी। मैंने आपको बताया था कि किस प्रकार यह अधिकारी अपनी अधीनस्थ महिला कर्मचारी का यौन उत्पीड़न करने का दोषी पाया गया है और किस प्रकार आपके ही एक मंत्री इस अधिकारी को बचाने का कृत्सित प्रयास कर रहे हैं। मैं तब आपकी कार्यशैली का कायल हो गया जब आपने तत्काल ही संबंधित मंत्री श्री गणेश जोशी को फोन लगा कठोर शब्दों में न्यायोचित कार्यवाही करने को कहा था।
मुख्यमंत्री जी खेद की बात है कि आपके स्पष्ट निर्देश के बाद भी संबंधित मंत्री ने न्यायोचित कार्यवाही करने के बजाय उक्त अधिकारी को बचाने का हर संभव प्रयास किया जिसका नतीजा यह है कि निलंबित चल रहा यह अधिकारी अब बहाल हो गया है और उत्पीड़न की शिकार युवती हताश, हैरान और परेशान हो गंभीर अवसाद की स्थिति में पहुंच गई है। क्या वाकई आप देवभूमि के मुख्य सेवक हैं? यदि हैं तो ‘शुद्ध अंतःकरण’ से इस मामले की जांच करा, आरोपित को न्यायोचित दंड दिला मुझ सरीखे अपने शुभेच्छुओं की आशंकाओं का समाधान करें, ऐसा मेरा करबद्ध आग्रह है।
तीसरी बात उन आंदोलनकारियों के विषयक है जो जनहित के मुद्दों पर आपकी सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए राजधानी में धरनारत हैं। मैं ऐसे ही नवयुवक दीपक करगेती की बात आपके समक्ष रखना चाहता हूं। दीपक लंबे समय से राजकीय उद्यान चौबटिया के वर्तमान निदेशक के भ्रष्टाचार को लेकर आवाज उठा रहे हैं। इस विषय पर हमने भी लगातार मय सबूत समाचार प्रकाशित किए लेकिन सरकार ने दीपक की आवाज और हमारे समाचारों को तवज्जो नहीं दी। थक-हारकर दीपक बीते काफी दिनों से राजधानी में आप तक अपनी बात पहुंचाने के लिए अनशन पर बैठे रहे। पुष्कर जी, एक आदर्श शासन व्यवस्था वही है जिसमें शासक तक सीधी पहुंच संभव हो, शासक स्वयं जनता के मध्य जा उनकी सुध-बुध लेता हो। आप युवा सोच और जोश वाले नेता हैं इसलिए आपसे ज्यादा अपेक्षाएं होना स्वाभाविक है। कितना अच्छा हो कि यदि आप ‘मुख्यसेवक’ के भव्य महल से बाहर निकल दीपक सरीखे धरनारत प्रजाजनों तक पहुंच उनसे सीधा संवाद करें। अन्यथा त्रिवेंद्र सिंह रावत जी के शासनकाल में कथित ‘जनता दरबार’ में उनके और एक महिला शिक्षक के मध्य हुए ‘संवाद’ को जनता अभी तक भूली नहीं है। आपकी पार्टी भीतर ही आपको घेरने और अपदस्थ करने वालों की कमी नहीं है। इस सच से आप भी भलीभांति परिचित हैं और राज्य की राजनीति की समझ रखने वाले मुझ सरीखे लोग भी। इसके चलते आपको न हरकेवल फूंक-फूंक कर कदम रखने की आवश्यकता है बल्कि सुशासन की नई परिभाषा भी आपको गढ़नी होगी ताकि अपने प्रतिद्वंद्वियों के मनसूबे पूरे न हो सकें।
बंधुवर आपकी सबसे बड़ी पूंजी आपका जनसुलभ होना है, इस पूंजी को जिलाए रखेंगे तभी आप जनअपेक्षाओं में खरा उतर पाएंगे और #डबल इंजन की सरकार को दोबारा डिरेल होने से बचा पाएंगे। मुझे विश्वास है कि आप मेरे इस पत्र को आलोचना नहीं मानेंगे, बल्कि एक शुभेच्छु की सद्भावना मानते हुए ‘शुद्ध अंतःकरण’ से इसमें कही बातों पर विचार करेंगे।
स्नेह आपका!