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Editorial

नोटबंदी को भूल गए हैं प्रधानमंत्री जी

महीना था नवंबर, तारीख थी आठ, साल था 2016 और समय था रात के ठीक आठ बजे। चंद दिन पहले ही देश भर में दीपावली का त्यौहार धूमधाम से मनाया गया था। मोदी सरकार को सत्ता में आए 30 महीने बीत चुके थे। प्रधानमंत्री के कथन ‘अच्छे दिन आने वाले हैं’ पर जनता का भरोसा बना हुआ था। उसे यकीन था कि ‘सबका साथ-सबका विकास’ जरूर होगा। नरेंद्र मोदी इसे पूरा करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी अपनी चित परिचित शैली में आठ नवंबर की शाम आठ बजे बजरिए दूरदर्शन देश से मुखातिब हुए। उन्होंने अपने संबोधन की शुरुआत में ‘सबका साथ-सबका विकास’ का उल्लेख करते हुए उसे अपना मूल मंत्र बताया। देश सांस रोक कर अपने प्रिय, हर दिल अजीज नेता को सुन रहा था क्योंकि सभी को आशा थी कि यकायक ही देश को संबोधित करने जा रहे मोदी कोई बड़ा ऐलान अवश्य करेंगे। ऐसा ऐलान जो आम जनता के जीवन में बड़ा परिवर्तन, सुखद परिवर्तन लाने वाला होगा। पीएम ने अपने भाषण की शुरुआत में पहले तो उन योजनाओं का जिक्र किया जिन्हें उन्होंने प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरू कर ‘गरीबों का देश की अर्थव्यवस्था एवं संपन्नता में सक्रिय भागीदार’ का रास्ता खोल दिया था। फिर मोदी जी ने भ्रष्टाचार की बात शुरू करते हुए कहा, ‘पिछले दशकों में हम यह अनुभव कर रहे हैं कि देश में भ्रष्टाचार और कालाधन जैसी बीमारियों ने अपनी जड़ें जमा ली हैं और देश से गरीबी हटाने में ये भ्रष्टाचार, ये कालाधन, ये गोरखधंधे सबसे बड़ी बाधा है। एक तरफ तो विश्व में हम आर्थिक गति में तेजी से बढ़ने वाले देशों में सबसे आगे हैं। दूसरी तरफ भ्रष्टाचार की ग्लोबल रैंकिंग में दो साल पहले भारत करीब-करीब सौवें नंबर पर था। ढेर सारे कदम उठाने के बावजूद हम 76वें नंबर पर पहुंच गए हैं। यह इस बात को दर्शाता है कि भ्रष्टाचार और कालेधन का जाल कितने व्यापक रूप से देश में बिछा है। भ्रष्टाचार का बीमारी को कुछ वर्ग विशेष के लोगों ने अपने स्वार्थ के कारण फैला रखा है। गरीबों के हक को नजरदांज कर ये खुद फलते-फूलते रहे हैं। कुछ लोगों ने पद का दुरुपयोग करते हुए इसका भरपूर फायदा उठाया। दूसरी तरफ, ईमानदार लोगों ने इसके खिलाफ लड़ाई भी लड़ी है। देश के करोड़ों नागरिकों ने ईमानदारी को जीकर के दिखाया है। इस बात का ये सबूत है कि हिंदुस्तान का सामान्य से सामान्य नागरिक ईमानदार है, लेकिन प्यारे देशवासियों हर देश के विकास के इतिहास में ऐसे क्षण आए हैं, जब एक शक्तिशाली और निर्णायक कदम की आवश्यकता महसूस की गई। इस देश ने यह वर्षों से महसूस किया है कि भ्रष्टाचार, कालाधन, जाली नोट और आतंकवाद-ऐसे नासूर हैं जो देश को विकास की दौड़ में पीछे धकेलती हैं। देश को, समाज को अंदर ही अंदर खोखला कर देती है।’

देशवासी दिल थाम कर पीएम साहब को सुन रहे थे। सब इंतजार कर रहे थे कि प्रधानमंत्री उनके लिए क्या खास घोषणा करने जा रहे हैं। पीएम थे कि मुख्य मुद्दे पर सीधे आने से बच धीरे-धीरे मुख्य मुद्दे पर आ रहे थे। उन्होंने 20 मिनट ‘वार्मअप’ में लगाया। फिर अपने चित परिचित संबोधन ‘बहिनों और भाइयों’ कह बम फोड़ दिया। वे बोले थे, ‘देश को भ्रष्टाचार और कालेधन रूपी दीमक से मुक्त कराने के लिए एक और सख्त कदम उठाना जरूरी हो गया है। आज मध्य रात्रि यानी 8 नवंबर 2016 की रात्रि 12 बजे से वर्तमान में जारी 500 रुपए और 1,000 रुपए के करेंसी नोट लीगल टेंडर नहीं रहेंगे यानी ये मुद्राएं कानूनन अमान्य होंगी। 500 और 1,000 रुपए के पुराने नोटों के जरिए लेन-देन की व्यवस्था आज मध्य रात्रि से उपलब्ध नहीं होगी। भ्रष्टाचार, कालेधन और जाली नोट के कारोबार में लिप्त देश विरोधी और समाज विरोधी तत्वों के पास मौजूद 500 एवं 1,000 रुपए के पुराने नोट अब केवल कागज के एक टुकड़े के समान रह जाएंगे। ऐसे नागरिक जो संपत्ति, मेहनत और ईमानदार से कमा रहे हैं, उनके हितों की और उनके हक की पूरी रक्षा की जाएगी।’

आज आठ नवंबर 2016 को आठ बजे दिया गया भाषण याद रखना और याद दिलाना बेहद आवश्यक है ताकि विवेचना हो सके कि जो कदम सरकार ने भ्रष्टाचार, कालाधन, जाली नोट और आतंकवाद को समाप्त करने के लिए उठाया गया था, उसके नतीजे क्या रहे? जरा सोचिए, हरके ‘अच्छी बात’ के लिए प्रधानमंत्री मोदी को ‘थैंक्यू’ कहने की नई परंपरा में आठ नवंबर को शामिल क्यों नहीं किया जाता है? क्यों आठ नवंबर के दिन देश के अखबारों में ‘थैंक्यू यू पीएम मोदी’ का नारा लिखे इश्तहार नहीं छपते हैं? क्यों मुख्यधारा का मीडिया इस ‘महान दिन’ पर चर्चा आयोजित नहीं कराता कि कैसे अपने एक कठोर किंतु ‘दूरदर्शी’ निर्णय से पीएम साहब ने आतंकवाद, कालाधन, जाली नोट और भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ इन सभी को जड़ से साफ कर डाला? इसलिए क्योंकि इनमें से किसी भी समस्या का अंत तो दूर, मामूली-सा फर्क इस नोटबंदी के चलते नहीं पड़ा है। फर्क पड़ा तो देश की आर्थिकी पर। फर्क पड़ा तो रोजगार पर, आम आदमी की बदहाल स्थिति पर। व्यापार की गति पर, यह फर्क पॉजीटिव इम्पैक्ट न होकर निगेटिव रहा। नतीजा सामने है। बेरोजगारी, महंगाई, भ्रष्टाचार इत्यादि सब चरम पर हैं। इसलिए भाजपा और भाजपा के पैरोकार इस नोटबंदी को याद नहीं करना चाहते हैं। याद लेकिन इसको रखना जरूरी है। याद इसकी दिलाई जानी जरूरी है ताकि जुमलों के जाल में दोबारा फंसने से जनता जनार्दन को रोका जा सके। तो चलिए नोटबंदी के असर पर एक नजर डाली जाए।

केंद्र सरकार ने नोटबंदी का फैसला लेते समय जो अपेक्षाएं की थी उनमें सबसे महत्वपूर्ण था यह अनुमान कि तीन से चार लाख करोड़ का कालाधन जो देश की जीडीपी को खासा प्रभावित करता है, उसे समाप्त किया जा सके। यह जरा कठिन मसला है। इकॉनामिक्स को सरल भाषा में समझाना और समझना टेड़ी खीर है। फिर भी प्रयास कर रहा हूं। वर्ल्ड बैंक का अनुमान था कि 2016 तक भारत की काली अर्थव्यवस्था (Black Economy) जीडीपी की 23 ़2 प्रतिशत है। 2016 में भारत की जीडीपी थी 160 लाख करोड़। इसमें से 37 लाख करोड़ काला धन था। सरकार का अनुमान था, इस 37 लाख करोड़, जो इनकम टैक्स की चोरी कर देश में मौजूद था, उसमें से लगभग 10 प्रतिशत नकदी के रूप में जमाखोरों के पास है। यानी लगभग चार लाख करोड़ रुपया। तो यह अनुमान लगाया गया कि पांच सौ और हजार के नोटों को अवैध घोषित करते ही यह रकम नष्ट हो जाएगी और सरकार के पास इतनी ही नई रकम जारी कर उसे विकास कार्यों में लगाने का मार्ग मिल जायेगा। साथ ही यह भी अनुमान लगाया था कि पांच सौ और हजार के जाली नोट भी इस निर्णय के चलते स्वतः नष्ट हो जाएंगे। सरकार ने यह भी समझा था कि इस निर्णय के बाद डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा मिलेगा। नकदी को जमा कर रखने की भारतीय प्रवृत्ति पर रोक लगेगी और इनकम टैक्स समेत सभी टैक्सों की बढ़ोत्तरी होगी। इन सब अनुमानों, अपेक्षाओं के बरक्स नोटबंदी का नतीजा उल्टा रहा। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार 7 ़62 लाख करोड़ के जाली नोटों में से मात्र 41 करोड़ इस नोटबंदी के चलते पकड़े जा सके हैं। मात्र 41 करोड़। यानी जाली करेंसी पर चोट का दावा और अनुमान फेल हो गया। 8 नवंबर, 2016 के दिन पांच सौ और हजार के 15 ़44 लाख करोड़ रुपए प्रचलन में थे। सरकार का अनुमान था कि इनमें से चार लाख करोड़ कालाधन है जो नोटबंदी के बाद स्वतः नष्ट हो जाएगा। हुआ लेकिन अजब-गजब। ‘सेटिंग’, ‘जुगाड़’ वाले तंत्र में इस 4 लाख करोड़ में से मात्र 16 हजार करोड़ की रकम नष्ट हुई। बाकी सारी रकम बैंक के खातों में जुगाड़ से, सेटिंग से, जमा करा दी गई। सारा का सारा कालाधन, सफेद धन में बदल गया। टैक्स विभाग जरूर कह सकता है कि उसे इस नोटबंदी के चलते कालाधन पकड़ने में कुछ सफलता मिली। इनकम टैक्स के आंकड़ों अनुसार 17,526 करोड़ रुपयों का कालाधन इस नोटबंदी के बाद पकड़ा गया। यह लेकिन बहुत मामूली सफलता है। हां, एक फायदा अवश्य हुआ है। ‘पेटीएम’ सरीखे ई-पेमेंट एप्पस् का प्रचलन बढ़ा है। 8 नवंबर 2016 के दिन इन ई-पेमेंट एप्पस् का कारोबार लगभग 16 लाख प्रति दिन होता था यानी कुल 52 करोड़ जो दिसंबर 2016 आते-आते बढ़कर 63 लाख प्रति दिन यानी कुल 191 करोड़ इस अवधि में पहुंच गया। यह 267 प्रतिशत ग्रोथ रेट अवश्य नोटबंदी के बाद की एक बड़ी सफलता है।

नोटबंदी का सबसे खराब असर देश के सकल घरेलू उत्पाद पर पड़ा है। इसके साथ ही छोटे व्यापारी, कृषक, छोटे उद्योगों पर नोटबंदी ने कहर ढाया। रियल स्टेट सेक्टर, जो नकदी पर आश्रित सेक्टर है, इस नोटबंदी के चलते बर्बादी की कगार पर पहुंच गया। रिटेल सेक्टर पर भी इसका भारी निगेटिव असर रहा। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2016 के बाद से लगातार कमतर होती गई है। सरकार का अनुमान था कि जीडीपी की दर यूपीए काल के 8 प्रतिशत से बढ़कर 10 ़6 प्रतिशत तक पहुंचेगी। 2016-17 में यह घटकर 5 ़7 प्रतिशत रह गई थी। नोटबंदी के 5 बरस बाद 2020 में 7 ़6 प्रतिशत पहुंची। अब 2021-22 में सरकार का अनुमान इसका 9 ़1 प्रतिशत तक पहुंचने का है। हालांकि हालात देखते हुए इस टारगेट तक पहुंचना कठिन नजर आ रहा है। स्पष्ट है नोटबंदी ने बर्बादी ज्यादा की, लाभ इसके बेहद कम रहे हैं। आतंकवाद को लेकर भी यही स्थिति है। शुरुआती दिनों में आतंकी फंडिंग में जरूर कमी नजर आई। अब हालात 8 नवंबर, 2016 से पहले समान ही हो गए हैं।

कुल मिलाकर नोटबंदी का निर्णय एक अदूरदर्शी कदम था। अर्थशास्त्रियों की सलाह को दरकिनार कर केवल तात्कालिक राजनीतिक लाभ लेने अथवा वर्तमान सत्ता के शीर्ष पर विराजमान नेताओं की कम समझ का नतीजा देश के लिए घातक रहा इसलिए भाजपा, भाजपा प्रेमी मीडिया और भाजपा समर्थक इस दिन, 8 नवंबर 2016, रात आठ बजे के प्रधानमंत्री का भाषण भूल जाना चाहते हैं। यही कारण है ‘थैंक्यू पीएम’ के इश्तहार इस दिन प्रकाशित नहीं होते, न ही गोदी मीडिया इस पर कोई चर्चा आयोजित कराता है। इतिहास किंतु निर्मम होता है। मेरा ढृढ़ मत है इस नोटबंदी के फैसले का पोस्टमार्टम इसे मोदी सरकार के सबसे गलत निर्णयों में से एक साबित करेगा और यह इतिहास में दर्ज होगा। ‘भक्त गण’ मेरे इस कथन से कतई सहमत होंगे नहीं। उनसे निवेदन है कि 2016 के बाद लगातार इस विषय पर आर्थिक विशेषज्ञों के शोध जरूर पढ़े ताकि अंध भक्ति कुछ दूर हो सके।

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