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Editorial

शायद ग्लानिभाव से ग्रसित थे जिन्ना

पिचहत्तर बरस का भारत/भाग-34
 

लॉर्ड वैवेल ने वायसराय रहते मुस्लिम बाहुल्य इलाकों को चिन्हित करने का काम आईसीएस अफसर वी.पी.मेनन को सौंपा था। वी.पी. मेनन ने अपनी रिपोर्ट ‘पाकिस्तान के क्षेत्रों का चिन्हीकरण’(Demarcation of Pakistan Areas)  में सिंध, नॉर्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस और ब्लूचिस्तान के साथ-साथ पंजाब प्रांत के रावलपिंडी, मुल्तान और लाहौर को पाकिस्तान का हिस्सा चिन्हत करते हुए जलंधर और दिल्ली (तब पंजाब प्रांत का हिस्सा) को भारत में रखे जाने का प्रस्ताव दिया था। इस रिपोर्ट में लेकिन यह भी कहा गया था कि लाहौर डिवीजन के अंर्तगत आने वाले दो जिलों अमृतसर और गुरदासपुर में सिखों का बाहुल्य है इसलिए यदि इन दो जिलों को पाकिस्तान में रखा जाता है तो लगभग 22 लाख सिख पाकिस्तान में रहने को विवश हो जाएंगे। मेनन ने अपनी रिपोर्ट में इन दो जिलों को भारत में ही रखे जाने की सिफारिश की थी। सिख नेता और धर्मगुरु मास्टर तारा सिंह ने पंजाब के बंटवारे का पुरजोर विरोध तभी से करना शुरू कर दिया था। सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति के सदस्य ज्ञानी करतार सिंह ने तो अलग सिख देश बनाने की बात कह डाली थी। सिख बुद्धिजीवी डॉ. वीर सिंह भट्टी अलग राष्ट्र ‘खालिस्तान’ की मांग करने लगे थे। हालांकि कांग्रेस के आग्रह पर यह मांग तब शांत हो गई और मास्टर तारा सिंह समेत सभी सिख नेता भारत का हिस्सा बनने के लिए सहमत हो गए। ऐसी विषम परिस्थितियों में भारत पहुंचे रेडिक्लफ ने अपनी समझ अनुसार भारत के बंटवारे का काम शुरू करा। बंटवारे की अपनी इस योजना को रेडिक्लफ और तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने परम गोपनीय रखा ताकि बगैर किसी विवाद में पड़े वह अपना काम तय समय में पूरा कर वापस ब्रिटेन सकुशल पहुंच सके। इस आयोग को कितनी जद्दोजहद और कितने खतरनाक माहौल में काम करना पड़ा इसको इस आयोग के एक सिख सदस्य की पत्नी और दो बच्चों की लाहौर में उग्र मुसलमानों द्वारा की गई हत्या से समझा जा सकता है। आयोग की रिपोर्ट दोनों देशों के निर्माण बाद 16 अगस्त, 1947 को ही सार्वजनिक की गई।

पंजाब का विभाजन करते हुए मुस्लिम बाहुल्य लाहौर को पाकिस्तान का हिस्सा बनाया गया। लाहौर में 65 प्रतिशत आबादी तब मुस्लिम थी लेकिन व्यापार में हिंदू और सिखों की भागीदारी लगभग 80 प्रतिशत होने के कारण रेडक्लिफ आयोग लाहौर को भारत में रखने का मन लगभग बना चुका था लेकिन बाद में ऐसा नहीं कर उसे पाकिस्तान के हिस्से में रख दिया गया। बरसों बाद प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर जब भारत-पाक विभाजन पर तथ्यपरक जानकारी जुटा रहे थे तब 1971 में वे सर सिरिल रेडक्लिफ से लंदन में मिले। बकौल नैयर जब मैंने उनसे कहा पाकिस्तानियों को आपसे शिकायत है कि आपने उनके संग नाइंसाफी की तो रेडक्लिफ का जवाब था ‘They should be thankful to me because I went out of the way to give them Lahore which deserved to go to India…I nearly gave you Lahore…But then I realised that Pakistan would not have a large city. I had already earmarked Calcutta for India’118 (उन्हें मेरा धन्यवाद करना चाहिए क्योंकि मैंने अलग रास्ता पकड़ उन्हें लाहौर दिया जो कायदे से भारत को मिलना चाहिए था….मैंने लाहौर भारत के हिस्से में कर ही दिया था….लेकिन फिर मुझे एहसास हुआ कि पाकिस्तान के हिस्से एक भी बड़ा शहर नहीं आएगा। कलकत्ता को मैं पहले ही भारत के हिस्से कर चुका था)। गुरदासपुर जिले को लॉर्ड वैवेल अपनी रिपोर्ट में पाकिस्तान के हवाले कर चुके थे। रेडक्लिफ आयोग ने इस जिले की चार तहसीलों-शंकरगढ़, पठानकोट, गुरदासपुर और बराला में से केवल शंकरगढ़ को पाकिस्तान के हिस्से में रखा और बाकी तीन भारत के हिस्से कर दी। पाकिस्तानी इतिहासकारों का मानना है कि आयोग ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के दबाव में गुरदासपुर का बंटवारा कर पाकिस्तान के साथ धोखाधड़ी की। इन इतिहासकारों के अनुसार है ऐसा इसलिए किया गया ताकि पठानकोट के जरिए जम्मू-कश्मीर के लिए भारत को सीधा संपर्क मार्ग मिल जाए। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 जिसे 18 जुलाई, 1947 को ब्रिटेन की संसद ने पारित किया था, में गुरदासपुर को पाकिस्तान के हिस्से में रखने की बात थी। यही कारण है कि 17 अगस्त तक यहां पाकिस्तान की सरकार बनी हुई थी। आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद ही भारत की सेना ने यहां अपना कब्जा कायम किया था। बंगाल का बंटवारा भी विवादों से घिरा रहा। यहां आयोग का सबसे हैरतनाक फैसला चिटगांव की पहाड़ियों को लेकर रहा जहां 97 प्रतिशत आबादी गैर-मुस्लिम थी। इनमें से अधिकांश बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। चिटगांव हिल ट्रैक्ट्स पीपुल्स एसोसिएशन ‘(Chittagon Hill Tracts People’s Association’) ने आयोग के समक्ष प्रत्यावेदन किया था कि वे भारत के साथ रहना चाहते हैं लेकिन आयोग ने उन्हें पाकिस्तान के खाते में दर्ज कर डाला। 15 अगस्त 1947 के दिन यहां तिरंगा फहरा आजादी का जश्न मनाया गया था लेकिन 17 अगस्त के दिन इनकी आशाओं पर पानी फिर गया। रेडियो के जरिए जैसे ही यह घोषणा हुई कि चिटगांव क्षेत्र पाकिस्तान को दिया गया है, पूरे इलाके में मातम छा गया। एक सप्ताह बाद यहां पहुंची पाक सेना ने बंदूक की नाल के जोर पर तिरंगे की जगह पाकिस्तान का झंडा लहराया था। मालदा जिला मुस्लिम बाहुल्य होने के बावजूद कुछ हिस्से को छोड़ भारत के हवाले कर दिया गया। यहां पर भी ऊहापोह की स्थिति आजादी के तीन-चार दिन बाद तक बनी रही। बंगाल का ही खुल्ना जिला हिंदू बाहुल्य था लेकिन उसे पाकिस्तान का हिस्सा बना दिया गया तो दूसरी तरफ मुस्लिम बाहुल्य मुर्शिदाबाद को भारत में रहने दिया गया। यहां पर भी पाकिस्तानी झंडा 17 अगस्त तक लहराता रहा था। असम के सियालहट जिले में रायशुमारी के जरिए निर्णय लिया जाना था। इस जनमत संग्रह में नतीजा पाकिस्तान के पक्ष में आया लेकिन आयोग ने इस जिले की मुस्लिम बाहुल्य करीमगंज तहसील को भारत में रखने का फैसला दिया। करीमगंज अब असम में एक जिला है जहां आज भी 53 प्रतिशत जनसंख्या मुसलमानों की है। कुलदीप नैयर ने जब अपनी मुलाकात के दौरान सर सिरिल रेडक्लिफ से पूछा कि जिस प्रकार से उन्होंने भारत और पाकिस्तान के मध्य सीमा रेखा का निर्णय लिया, उससे क्या वे संतुष्ट हैं तो रेडक्लिफ का जवाब था ‘I had no alternative; the time at my disposal was so short that I could not do a better job. Give the same period I would do the same thing. However if I had two to three years, I might have improved on what I did’119 (मेरे पास कोई विकल्प नहीं था। जितना समय मेरे पास था वह इतना कम था कि मैं इससे बेहतर कुछ नहीं कर सकता था। दोबारा मुझे यदि इतना ही समय मिला मैं ऐसा ही करूंगा। हां यदि मुझे दो से तीन साल का वक्त मिलता, मैं शायद बेहतर कर पाता)।
एक तरफ आयोग अपने काम में जुटा था तो दूसरी तरफ लॉर्ड माउंटबेटन राजे-रजवाड़ों को साधने में जुटे थे। 25 जुलाई, 1947 के दिन गुलाम भारत के इस अंतिम वायसराय ने 565 ऐसे राजे-रजवाड़ों संग अहम बैठक की। माउंटबेटन ने सभी को स्पष्ट कर दिया कि उनके पास दोनों नए बनने जा रहे देशां में से किसी एक के संग विलय का ही विकल्प मौजूद है। हालांकि वह अपनी स्वतंत्रता बनाए रख सकते हैं लेकिन ऐसी अवस्था में उन्हें ब्रिटिश सरकार से किसी भी प्रकार की कोई सहायता उपलब्ध नहीं होगी। 15 अगस्त, 1947 आते-आते भारत के साथ ऐसी 550 रियासतों ने विलय को मंजूरी दे दी। केवल जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू-कश्मीर के राजा-नवाब ने आजादी मिलने के दिन तक ऐसा नहीं किया था। पाकिस्तान से जुड़ी रियासतों ने उसके साथ विलय में अधिक वक्त लिया। मार्च, 1948 तक इनमें से अधिकांश ने पाकिस्तान में विलय कर ही लिया। 1946 में गठित संविधान सभा का बहिष्कार करने वाली मुस्लिम लीग ने बंटवारे की घोषणा बाद अपनी अलग संविधान सभा का गठन किया जिसकी पहली बैठक 11 अगस्त, 1947 के दिन करांची में हुई। इस बैठक की अध्यक्षता जिन्ना ने की। जिन्ना के जीवनीकार स्टेनली वोलपर्ट अपनी पुस्तक ‘जिन्ना ऑफ पाकिस्तान’ में लिखते हैं कि संविधान सभा की इस पहली बैठक को संबोधित करते समय जिन्ना मानो खुद से सवाल कर रहे थे और सबके सामने खुद के विवेक को चुनौती दे रहे थे। उन्होंने कहा ‘…Any idea of a united India could never have worked and in my judgement it would have led us to terrific disaster. May be that view is correct, may be it is not; that remains to be seen’120 (…अविभाजित भारत जैसा कोई भी विचार कभी सफल नहीं हो सकता था। मेरे विवेक अनुसार यदि ऐसा होता तो इसके विनाशकारी परिणाम सामने आते। हो सकता है वह सोच सही हो, हो सकता है नहीं हो, सही-गलत देखा जाना अभी बाकी है)। वोलपर्ट कहते हैं कि ऐसा महसूस हो रहा था कि विभाजन का मुद्दा जिन्ना के मष्तिस्क में छाया हुआ था और वे खुद के फैसले को ही चुनौती दे रहे थे। एक दम पलटी मार वे एक बार फिर से पुराने जिन्ना बन हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करने लगे थे। जिन्ना ने कहा ‘You are free; you are free to go to your temples, you are free to go to your mosques or to any other place of worship in this State of Pakistan…you may belong to any religion or caste or creed, that has nothing to do with the bussiness of the State… we are starting in the days when there is no discrimination between one caste or creed or another. We are starting with this fundamental principle that we are all citizens and equal citizens of one State’121  (आप सब आजाद हैं, अपने मंदिरों में जाने के लिए, आप आजाद हैं अपनी मस्जिदों में जाने के लिए या फिर अपनी आस्थानुसार किसी भी धर्म स्थल में जाने के लिए। इस नए बने राष्ट्र पाकिस्तान में…. आप किसी भी धर्म, जाति या मजहब के हों, हुकूमत से उसका कोई वास्ता नहीं है।…हम उस वक्त की शुरुआत कर रहे हैं जहां किसी प्रकार का कोई भेदभाव धर्म, जाति अथवा मजहब के आधार पर नहीं होगा। हम इस बुनियादी सिद्धांत के साथ शुरुआत कर रहे हैं कि हम सब एक राष्ट्र के समान अधिकार संपन्न नागरिक हैं)। जिन्ना शायद ग्लानिभाव से ग्रसित थे कि धर्म को आधार बना उन्होंने ऐसी परिस्थितियां पैदा कर दी जिसका नतीजा चौतरफा खून-खराबे से सरोबार बंटवारे के रूप में सामने आ रहा है। उन्होंने आगे कहा ‘I think we should keep in front of us as our ideal and you will find that in course of time Hindus would cease to be Hindus and Muslims would cease to be Muslims, not in the religious sense because that is the personal faith of each individual, but in political sense as citizens of the State… My guiding principle will be justice and complete impartiality, and I am sure that with your support and co-operation, I can look forward to Pakistan becoming one of the greatest Nations of the world’ 122 (मुझे लगता है कि हमें अपने सामने एक आदर्श रखना चाहिए और आप पाएंगे कि समय के साथ हिंदू, हिंदू नहीं रहेंगे और मुसलमान मुसलमान नहीं रहेंगे। धार्मिक अर्थ में नहीं क्योंकि वह तो निजी आस्था की बात है, राजनीतिक अर्थ में सभी एक राष्ट्र के नागरिक बन जाएंगे…शत-प्रतिशत न्याय और पूरी तरह निष्पक्षता मेरे लिए मार्गदर्शक सिद्धांत रहेगा और मुझे पूरा यकीन है कि आप सभी के सहयोग से हम पाकिस्तान को विश्व के महानतम देशों में से एक बना पाएंगे)।
 
क्रमशः

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