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Editorial

नए मुख्यमंत्री के नाम खुला खत

प्रिय श्री पुष्कर सिंह धामी जी,

इंग्लैंड के राष्ट्रीय कवि का दर्जा पाए, विश्व विख्यात नाटककार, रंगकर्मी विलियम शेक्सपीयर के प्रसिद्ध नाटक ‘जुलियस सीज़र’ से आप अवश्य ही परिचत होंगे। इसका मुख्य पात्र कैसियस अपने करीबी साथी ब्रूटस से कहता है ‘Men at some time are masters of their fates. the fault, dear Brutus, is not in our stars, but in ourselves, that we are underlings. (पुरुष कभी-कभी अपने भाग्य का स्वामी होते हैं। प्रिय बू्रटस, दोष हमारे सितारों में नहीं है, बल्कि अपने आप में है कि हम उनके अधीन हो जाते हैं)

आपको इस प्रसिद्ध कथन की याद दिलाने के पीछे मेरा उद्देश्य मात्र इतना भर है कि आप अपनी नियति के स्वयं निर्माता हैं। कम उम्र में ही आपको राज्य का नेतृत्व करने का अद्भुत मौका मिला है। ऐसा मौका हरेक को प्राप्त नहीं होता है। आपकी पार्टी ने राज्य विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आपको राज्य सरकार का मुखिया चुना है। जाहिर है वरिष्ठता क्रम में कहीं निचले पायदान से आपको उठाने के पीछे आपके पार्टी नेतृत्व का आपकी नेतृत्व क्षमता पर विश्वास और कोई न कोई आंतरिक सर्वेक्षण रहा होगा जिसमें कई वरिष्ठ नेताओं की बनिस्पत आपकी योग्यता अधिक पाई गई होगी। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आप पर जनता जनार्दन की अपेक्षाओं का भार कम, अपनी पार्टी के आला नेतृत्व की अपेक्षाओं पर खरा उतरने का बोझ ज्यादा है। आपके प्रसंशक, मित्रगण और चाटुकार भले ही आपकी ताजपोशी से खासे उत्साहित होंगे, मैं समझता हूं कठिन समय में मिली जिम्मेदारी से कहीं न कहीं आप स्वयं को आक्रांत महसूसते होंगे। 2011 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था जब तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ ़ रमेश पोखरियल ‘निशंक’ की अलोकप्रियता और उनकी सरकार में चौंतरफा पनप चुके भ्रष्टाचार से चिंतित आपकी पार्टी के आला नेतृत्व ने उन्हें हटा मेजर जनरल (सेवा निवृत) भुवन चन्द्र खण्डूड़ी को दोबारा राज्य की कमान सौंपी थी। खण्डूड़ी जी को दोबारा राज्य की कमान सौंपा जाना एक रिस्की निर्णय था, क्योंकि अपने प्रथम कार्यकाल के दौरान खण्डूड़ी सरकार पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे। खण्डूड़ी जी लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल में ऐसे सभी आरोपों को धो पाने में सफल रहे। उन्हें भी आपकी भांति ठीक चुनावों से पहले दोबारा मुख्यमंत्री बनाया गया था। उन्होंने लेकिन इस संक्षिप्त समय का बड़ा सदुपयोग किया। देश उस काल में अन्ना आंदोलन से ओतप्रोत था। तत्कालीन केंद्र सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार से जनता त्रस्त हो चली थी। अन्ना हजारे भ्रष्टाचार निवारण के लिए एक सशक्त मंच बजरिए लोकपाल संस्था बनाने की मांग कर रहे थे। ऐसा परशेप्शन, ऐसी अनुभूति बना पाने में अन्ना आंदोलन सफल हो चुका था कि सारी बुराइयों को लोकपाल संस्था बना खत्म किया जा सकता है। जनरल खण्डूड़ी ने समय की नजाकत को खूब पहचाना और उत्तराखण्ड में अन्ना हजारे की पसंद वाला लोक आयुक्त कानून बना डाला। उन्होंने राज्य में एक कठोर ट्रांसफर नीति भी लागू कर डाली। एक पारदर्शी सिटिजन चार्टर भी लेकर वे आए। उन्होंने अपने इस संक्षिप्त दूसरे शासनकाल में भ्रष्टाचार की किसी ‘सारंगी’ को बजने नहीं दिया। भले ही उनके तमाम लोकहितकारी प्रयासों के बावजूद आपकी पार्टी 2012 के विधानसभा चुनाव में आशातीत सफलता पाने और दोबारा सरकार बनाने में विफल रही, स्वयं जनरल खण्डूड़ी भीतरघात का शिकार हो कोटद्वार से चुनाव हार गए। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि मात्र चन्द महीनों में ही खण्डूड़ी जी ने भाजपा को फाइट में ला खड़ा किया था।
प्रिय धामी जी, राजनीति परशेप्शन का खेल मात्र है। जनरल खण्डूड़ी के बनाए तमाम कानूनों पर आज कोई बात नहीं होती। लोक आयुक्त का अता-पता नहीं तो लोकपाल नामक सपना भी पूरी तरह धूल-धूसरित हो चुकी है। परशेप्शन लेकिन अभी तक यथावत है कि यदि खण्डूड़ी जी 2012 में सरकार बना पाते तो राज्य की दशा और दिशा कुछ और ही होती। 2012 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। विजय बहुगुणा कांग्रेस आलाकमान की पसंद पर राज्य के सीएम बनाए गए। उनके खाते में उपलब्धि के नाम पर ‘शून्य’ के सिवा कुछ नहीं। हिमालय पुत्र स्व ़ हेमवती नंदन बहुगुणा के पुत्र ने अपने शासनकाल में ऐसा कुछ भी नहीं किया जिसे देख स्व ़हेमवती नंदन यदि होते तो अपने पुत्र की पीठ थपथपाते।  कितना दुखद है कि बहुगुणा जी का पुत्र अपने पिता की सारी धरोहरों पर कालिख पोतने के सिवा कुछ न कर सका। स्व ़ हेमवती नंदन बहुगुणा कहा करते थे ‘तुम्हें पता होना चाहिए कि मैं किस धातु का बना हूं। मैं आसानी से नष्ट होने वाला नहीं हूं।’ विजय बहुगुणा लेकिन अपने पिता समान धातु के कतई नहीं हैं। हर कीमत सत्ता के साथ रहने की चाह ने उन्हें और उनकी बहन श्रीमती रीता बहुगुणा जोशी को आपकी पार्टी का हमराही बना डाला। केदारनाथ आपदा के दौरान बहुगुणा सरकार के लचर प्रदर्शन ने कांग्रेस आलाकमान की कुंभकर्णी नींद तोड़ी और हरीश रावत राज्य के नए मुखिया बनाए गए। रावत सरकार अपने गठन के पहले दिन से ही अस्थिर रही। हरीश रावत एक कदम आगे बढ़ाते दिखते तो उनके ही साथी उनके बढ़े कदम की राह में रोड़े अटका देते। बाकी कसर आपके दल ने पूरी कर डाली। बड़े स्तर पर कांग्रेस में तोड़-फोड़ हुई। भले ही सभी दल बदलू यह कहते फिरें कि उन्होंने अंर्तआत्मा की आवाज पर कांग्रेस का साथ छोड़ा, सच से सभी परिचत हैं। फिर आई डबल इंजन की सरकार। ऐसी ‘अद्भुत’ सरकार पहले कभी हमने नहीं देखी। सरकार के दोनों इंजन अलग-अलग दिशाओं में अपनी ताकत लगाते रहे। नतीजा सबके सामने है। त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटाए जाने और तीरथ सिंह रावत को सीएम बनाए जाने के पीछे एक बड़ा कारण त्रिवेंद्र सरकार का हर मोर्चे पर विफल रहना था। तीरथ भाई कुछ कर पाते उससे पहले ही उन्हें संवैधानिक बाध्यता के चलते त्याग पत्र देना पड़ा और तब तमाम जाने-पहचाने, बड़े और कद्दावर नेताओं के दावों और उनके जुगाड़ों को दरकिनार कर आपकी पार्टी के नेतृत्व ने आप पर अपना भरोसा जताया।
धामी जी, इस सत्य से आप भली-भांति वाकिफ हैं कि आपका विधायक से सीधे मुख्यमंत्री बनना कइयों को न तो रास आ रहा है, न ही उनके गले उतर रहा है। ऐसे सभी दिग्गज आपको किसी भी सूरतेहाल में सफल होते देखना नहीं चाहेंगे। इसलिए पुष्कर भाई आपकी राह बड़ी दुष्कर है। आपको अपने भाग्य का स्वामी स्वयं बनना होगा ताकि आपकी राजनीतिक यात्रा लंबी और सार्थक हो सके। आप पर अपनी पार्टी के आला नेतृत्व की आशाओं का बोझ तो है ही, अपने राजनीतिक गुरु भगत सिंह कोश्यारी की अपेक्षाओं पर भी आपको खरा उतरना होगा, क्योंकि आपकी सफलता अथवा असफलता का सीधा संबंध भगत सिंह कोश्यारी जी के विवेक से है। वह विवेक जिसका आदर करते हुए आपको राज्य की कमान सौंपने का निर्णय आपकी पार्टी आलाकमान ने लिया। भगत दा भले ही सक्रिय राजनीति से दूर मुंबई राजभवन में बतौर राष्ट्रपति प्रतिनिधि जा बसे हों, उनका मन- चित्त उत्तराखण्ड में ही विचरता है। आपकी ताजपोशी के पीछे कोश्यारी जी का आपकी नेतृत्व क्षमता पर जताया भरोसा है जिसे यदि आप पूरा कर पाए तो निश्चित ही आपकी राजनीतिक यात्रा दीर्घ और सार्थक रहेगी। मैं लेकिन ऐसा होते नहीं देख पा रहा हूं। कारण कई हैं। बहुत संभव है कि जो मैं देख-सुन रहा हूं वह पूर्वाग्रहों का खेल हो। यदि ऐसा है तो मैं आपका अपराधी रहूंगा लेकिन यदि ऐसा नहीं है तो निश्चित ही मैं इसे उत्तराखण्ड की, वहां की जनता की त्रासदी मानूंगा जो राज्य गठन के बीस बरस बीतने बाद भी खाली हाथ है।
प्रियवर, आपकी सरकार को लेकर नाना प्रकार की बातें देहरादून से दिल्ली तक में सुनने को मुझ सरीखों को मिल रही हैं। आपने शपथ लेते ही राज्य की महाभ्रष्ट, महानाकारा नौकरशाही को कसने का काम किया। एक योग्य नौकरशाह को मुख्य सचिव बनाया, त्रिवेंद्र राज में खासे ताकतवार माने जाने वाले अफसरों के कॉकस को भी आप तोड़ने का प्रयास करते नजर आ रहे हैं। केंद्र सरकार से कई सौ करोड़ की योजनाएं लाने की बात भी आपने कही है। मूलभूत प्रश्नों से लेकिन आप भी दो चार होने से बच रहे हैं। केंद्र सरकार की मदद से टिहरी झील और देहरादून के मध्य सुरंग निर्माण की बात आपने कही है। लेकिन दरकते पहाड़ों के दर्द पर आप खामोश हैं। जिस विकास की बात आप कर रहे हैं वह दरअसल कच्चे हिमालयी क्षेत्र में बड़े विनाश के बीज बोने समान है। पहाड़ी इलाकों में कृषि-बागवानी आधारित उद्योग लगाने की बात नहीं की जा रही है, न ही सड़क-स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतों पर काम हो रहा है। आप पिछले साढ़े नौ बरस से खटीमा विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व विधानसभा में कर रहे हैं।  आपके क्षेत्र में चौतरफा बदहाली का समाचार गत् सप्ताह हमने प्रकाशित किया था। जब मैदानी इलाकों का यह हाल है तो दुगर्म इलाकों की क्या स्थिति होगी अनुमान लगाना कठिन नहीं। त्रिवेंद्र रावत सरकार मेरी दृष्टि में एक बेहद निकम्मी सरकार थी लेकिन भ्रष्टाचार की बात जरूर उस सरकार में सुनने को कम मिलती थी। पुष्कर जी मुझे यह लिखते हुए खेद हो रहा है इसके ठीक उलट आपकी सरकार के बारे में नकारात्मक धारणा तेजी से पुख्ता होती जा रही है। कहा-सुना जा रहा है कि आपकी सरकार में शामिल कुछ माननीय खुलकर लूट- खसोट में लिप्त हैं। बहुत संभव है कि यह धारणा आपके विरोधियों द्वारा जानबूझ कर बनाने का प्रयास किया जा रहा हो, लेकिन जैसा मैंने कहा आज का दौर परशेप्शन आधारित दौर है। आपको ऐसे परशेप्शन पर लगाम लगानी होगी और जो अल्प समय आपको मिला है उसका लाभ उठाते हुए सरकार का ऐसा मॉडल सामने रखना होगा जो जनसरोकारी और संवेदनशील हो।
पुष्कर भाई आप युवा हैं, जोश से लबरेज हैं। इस जोश को उत्तराखण्ड की मूल अवधारणा से जोड़ कुछ ऐसा करने का प्रयास करें ताकि आपके चयन को लेकर उठे सवालों का जवाब प्रश्नकर्ताओं को स्वयं मिल जाए। आप ऐसा कर पाने में सफल हों इस शुभकामना के साथ।

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