दस अगस्त को संसद में विपक्षी दलों द्वारा लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर अपना जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था, ‘मैं देश के सभी नागरिकों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि जिस तरह प्रयास चल रहे हैं, शांति का सूरज जरूर उगेगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि, ‘मैं मणिपुर के लोगों से भी आग्रह करना चाहता हूं, वहां की माताओं और बेटियों से कहना चाहता हूं कि देश आपके साथ है। ये सदन आपके साथ है। हम सब मिलकर इस चुनौती का समाधान निकालेंगे। वहां फिर से शांति होगी। मैं मणिपुर के लोगों को विश्वास दिलाता हूं कि मणिपुर एक बार फिर विकास के रास्ते पर तेज गति से आगे बढ़े, उसके प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी।’ प्रधानमंत्री द्वारा संसद में दिए गए इस बयान के बाद हालांकि मणिपुर में हिंसा की कोई बड़ी वारदात नहीं हुई है लेकिन शांति पूरी तरह से वापस नहीं लौटी है और हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। खराब हालातों की पुष्टि गत् सप्ताह 29 अगस्त को मणिपुर विधानसभा के मानसून सत्र से होती है जो बमुश्किल मात्र एक दिन के लिए आहूत किया गया और मात्र 11 मिनट के भीतर जिसको अनिश्चितकाल के लिए स्थगित भी कर दिया गया। मात्र 11 मिनट का सत्र यह स्पष्ट करने के लिए काफी है कि मणिपुर कितना शांत है और वहां विकास की गंगा एक बार फिर बहने लगी है। इस सत्र में 10 कुकी-जोमी जनजाति के विधायकों की अनुपस्थिति और मात्र 11 मिनट बाद सत्र को स्थगित किया जाना गंभीर चिंता का विषय है जिस पर संसद में और संसद के बाहर आमजन के मध्य खुला संवाद जरूरी है ताकि यह समझा जा सके कि विश्व गुरू बनने को लालायित देश की असल तस्वीर क्या है और कैसे उसकी बुनियाद दरकने लगी है।
मणिपुर में कुछ भी ठीक नहीं-1

मेरी बात
मणिपुर की वर्तमान स्थिति को समझने के लिए वहां के सामाजिक ताने- बाने को समझना होगा। मणिपुर में 16 जिले हैं। इनमें से इम्फाल घाटी के मध्य स्थित चार जिले सबसे अधिक आबादी वाले हैं। मैती (मैते) समुदाय के लोग यहां बहुतायत में हैं। मैती हिंदू धर्म को मानते हैं। इम्फाल घाटी के बाहर स्थित जिलों की जनसंख्या बेहद कम है और इन जिलों में गैर मैती पहाड़ी जनजातियों के लोग जिनमें कुकी समुदाय शामिल है, वास करते हैं। ये पहाड़ी आदिवासी जनजातियां अधिकतर गैर हिंदू हैं। अधिकांश ईसाई धर्म को मानते हैं, कुछ इस्लाम धर्म का पालन करते हैं। इम्फाल घाटी जहां मैती समुदाय की बाहुल्यता है, राज्य का मात्र 10 प्रतिशत भूभाग है लेकिन यहां प्रदेश की लगभग 57 प्रतिशत आबादी रहती है। बाकि 90 प्रतिशत पहाड़ी भूभाग में 43 प्रतिशत लोग रहते हैं जो 34 आदिवासी समूहों में बंटे हैं। इन 34 आदिवासी समूहों में नागा आदिवासी और कुकी आदिवासी प्रमुख हैं। इन पहाड़ी आदिवासी समूहों को अनुसूचित जनजाति (एसटी) को दर्जा प्राप्त है। मैती समूह को अन्य पिछड़ी जाति (ओबीसी) के बतौर मान्यता मिली हुई है। मैती समूह लंबे अर्से से खुद के लिए एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग करता आया है जिसका पुरजोर विरोध कुकी एवं नागा जनजातियों द्वारा किया जाता रहा है। आजादी के बाद से ही मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में आदिवासी जनजातियों को विशेष भूमि कानून का संरक्षण रहा है जिसके अंतर्गत गैर आदिवासी समुदाय के लोग आदिवासियों की जमीन नहीं खरीद सकते हैं। 1960 में बने कानून ‘मणिपुर भूमि राजस्व और भूमि सुधार अधिनियम’ किसी भी आदिवासी जमीन को गैर आदिवासियों के हाथों बेचे जाने पर प्रतिबंध लगाता है। 2015 में इस कानून को शिथिल करते हुए सरकार की इजाजत के बाद गैर आदिवासियों को विशेष कारणों के चलते आदिवासियों की जमीन खरीदने का रास्ता निकाला गया जो कुकी और मैती के मध्य तनाव के कारणों में से एक है। कुकी-नागा आदिवासी जनजातियों का मानना है कि उनकी जमीन को हड़पने का प्रयास मैती समुदाय द्वारा किया जा रहा है ताकि आदिवासी इलाकों के प्रचुर प्राकृति संसाधनों का दोहन किया जा सके। राजनीतिक दृष्टि से मैती प्रभावशाली समूह है। राज्य की 60 सदस्यीय विधानसभा में 40 सीटें इम्फाल घाटी से हैं। मात्र 20 सीटें पहाड़ी इलाकों में स्थित हैं। इन 40 सीटों में से अधिकांश विधायक मैती समाज के हैं। आदिवासी जनजातियों को राज्य में मैती प्रभाव वाले इलाकों में बसने, जमीन खरीदने का अधिकार है जिसके चलते मैती समुदाय खुद के लिए आदिवासी दर्जा (एसटी) का दर्जा मांग रहा है ताकि वह भी पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदने का हकदार बन सके। मणिपुर की राजनीति में मैती समुदाय का दबदबा होने चलते विकास, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री ने संसद में अपने भाषण में किया, केवल इम्फाल घाटी के ईद-गिर्द सिमटा है, पहाड़ी इलाकों में अभी तक इसमें ‘दर्शन’ नहीं किए है। आजादी बाद कांग्रेस इस प्रदेश में लंबे अर्से तक राज करती रही। 2017 में उसके इस एकछत्र राज को तब भारी धक्का लगा जब राज्य विधानसभा चुनाव के नतीजों बाद सबसे बड़ी पार्टी बन उभरने के बावजूद सत्ता उसके हाथों से निकल भाजपा के पास चली गई। ऐसा दलबदल के सहारे संभव हो पाया था। केंद्र में तब तक भाजपा की सत्ता स्थापित हो चुकी थी। 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन शानदार रहा और वह 32 सीटों पर जीत बगैर किसी ‘खेला’ दोबारा सरकार बनाने में सफल रही। भाजपा की बढ़ी ताकत का और सत्ता में काबिज होने का असर राज्य में हिंदुत्व के उभार और मैती समुदाय की ताकत में विस्तार बतौर सामने आया। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने यहां पर अपनी गतिविधियों को बढ़ाने और अपने संगठन का फैलाव करना शुरू किया जिसके चलते सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और अल्पसंख्यकों के खिलाफ माहौल में तेजी आई है। नवंबर, 2022 में राज्य सरकार ने चुराचांदपुर-खौपुम संरक्षित वन क्षेत्र में कुकी बाहुल्य 38 गांवों को शामिल किए जाने का फैसला लिया जिससे पहाड़ी इलाकों में तनाव पैदा हो गया। कुकी जनसमुदाय ने सरकार के इस फैसले को अपने हितों के खिलाफ माना। दूसरी तरफ राज्य सरकार ने अपने इस निर्णय बाद बड़े पैमाने पर संरक्षित वन क्षेत्र में काबिज जनजाति के लोगों को अतिक्रमणकारी घोषित कर हटाने की कार्यवाही फरवरी 2023 में शुरू कर दी। सरकार और पहाड़ी जनजाति के मध्य इसके बाद तनाव बढ़ता गया। राज्य सरकार का कहना है कि उसका मुख्य उद्देश्य मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में म्यामार से आए अवैध शरणआर्थियों को वापस भेजने का है। राज्य सरकार ने मार्च 2023 में कुकी सशस्त्र संगठनों संग हुए एक त्रिपक्षीय शांति समझौते से बाहर निकालने का एकतरफा फैसला ले इस तनाव को गहराने का काम किया। 2008 में 25 कुमी सशस्त्र संगठनों, केंद्र सरकार और राज्य सरकार के मध्य यह समझौता राज्य में शांति बहाल करने और राजनीतिक वार्ताओं के जरिए कुमी समुदाय की मांगों को सुलझाने की नियत से किया गया था। मार्च 2023 में यकायक ही राज्य सरकार ने इस समझौते से बाहर निकलने का ऐलान कर दिया। हालांकि केंद्र सरकार ने राज्य सरकार के इस फैसले का समर्थन नहीं किया लेकिन दोनों जगह डबल इंजन की सरकार होने से यह संदेह होता है कि राज्य के इस निर्णय को केंद्र की सहमति अवश्य रही होगी। 20 अप्रैल 2023 को मणिपुर उच्च न्यायालय के एक आदेश ने मैती और गैर मैती समुदायों के मध्य अविश्वास की खाई को गहराने का काम कर डाला। अपने इस आदेश में उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देशित किया कि वह मैती समुदाय को एसटी का दर्जा दिए जाने पर विचार करे। कुकी समुदाय ने इसके बाद राज्य सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने शुरू कर दिए। 28 अप्रैल को मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह का कार्यक्रम चुराचांदपुर पवर्तीय क्षेत्र में एक जिम्नेजियम के उद्घाटन का था। उनके आगमन से पहले इस जिम्नेजियम को आग लगा दी गई। हालात इस तेजी से बिगड़े की राज्य में पांच दिन तक इंटरनेट सेवाओं को रोकना पड़ा ताकि अफवाहों के जरिए हालात ज्यादा खराब होने से रोकी जा सके। इसी दौरान मैती समुदाय ने राज्य में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) बनाए जाने की मांग उठानी शुरू कर दी। इसके बाद राज्य में हिंसा का दौर शुरू हुआ जिसकी चपेट में पूरा राज्य आ चुका है और सामाजिक सौहार्द पूरी तरह नष्ट हो चला है। प्रश्न यह है कि स्थिति इतनी बिगड़ी क्यों? उसे इस हद तक जाने क्यों दिया गया? प्रश्न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस पूरे प्रकरण पर लंबे अर्से तक चुप्पी का भी है। इन प्रश्नों का जवाब तलाशने के लिए जरूरी है कि राज्य में भड़की हिंसा, कुकी महिलाओं संग बलात्कार और भाजपा नेतृत्व द्वारा एन.बिरेन सिंह सरकार को हर कीमत बचाने के कारणों की पड़ताल की जाए।
क्रमशः