मेरी बात
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता में आरूढ़ हुए नौ बरस पूरे हो गए हैं। इन नौ वर्षों को भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री के प्रति अगाध श्रद्धा रखने वाले उनके करोड़ों प्रशंसक (भक्त) देश का स्वर्णिम काल करार दे रहे हैं तो दूसरी तरफ विपक्षी दलों और प्रधानमंत्री के कटु आलोचकों की नजर में यही नौ वर्ष अंधकार के नाम रहे हैं। एक समयकाल का इतनी विरोधाभाषी आकलन पहले कभी देखने को नहीं मिलता है। बीते नौ बरसों का सच आखिर है क्या? क्या जैसा केंद्र सरकार, भाजपा और प्रधानमंत्री के अंधभक्त दावा कर रहे हैं, भारत वाकई हर क्षेत्र में ‘अभूतपूर्व’ तरक्की करते हुए विश्व गुरु बनने की राह पकड़ चुका है या फिर सच इसके ठीक उलट है और धारणाओं के मकड़जाल में फंसा हुआ है? चलिए प्रयास करते हैं बीते नौ बरसों का लेखा-जोखा तैयार कर इस कुहासे से बाहर निकलने का।
पहले बात उन सरकारी दावों की जिनकी बिना पर केंद्र सरकार और भाजपा बीते नौ वर्षों को भारत का स्वर्णिम काल कह पुकार रही है। इन दावों में मुख्य रूप से नई संसद का, भव्य संसद का निर्माण, जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को हटाया जाना, भारतीय अर्थव्यवस्था का विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनना, जीएसटी प्रणाली को लागू किया जाना, 74 नए हवाई अड्डों का निर्माण होना, इंफ्रास्ट्रक्चर का तेजी से विकास होना, 1,400 पुराने और अर्थहीन हो चले कानूनों को समाप्त किया जाना, कोविड महामारी के दौरान 220 करोड़ वैक्सीनों को मुफ्त में आमजन को उपलब्ध कराना, 3.5 करोड़ बेघरों को पक्का घर और 11.72 करोड़ सार्वजनिक शौचालयों का निर्माण शामिल है। केंद्र सरकार का दावा है कि इन बीते नौ वर्षों में शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा काम हुआ है। नई शिक्षा नीति और 700 नए मेडिकल कॉलेज, 15 नए एम्स अस्पताल, 7 नए आईआईटी, 7 नए आईआईएम और 390 नए विश्वविद्यालयों का निर्माण इसमें शामिल है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के अनुसार इन बीते नौ बरसों के दौरान 3 ़99 करोड़ फर्जी राशन कार्ड और 4.11 करोड़ फर्जी गैस कनेक्शन समाप्त कर 2.73 लाख करोड़ रुपए की बचत की गई। प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांस्फर) स्कीम के चलते सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों को 29 लाख करोड़ सीधे पहुंचाए गए। प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के द्वारा महिला उद्यमियों को सस्ते दर और आसान शर्तों में ऋण उपलब्ध कराया गया। जन औषधी केंद्रों के द्वारा 27 करोड़ सैनेटरी पैड्स का वितरण किया गया। वित्त मंत्री 20 हजार करोड़ की लागत वाली ‘सेंट्रल विस्टा’ परियोजना जिसके अंतर्गत नई संसद, नया प्रधानमंत्री आवास एवं अन्य भवन निर्माण शामिल हैं, को भी केंद्र सरकार की बड़ी उपलब्धि करार देते हुए कहती हैं- ‘The Past nine years were dedicated to lifting India from a hopeless morass it had been thrown in to. The next 25 years leading to India@100 need similar dedicated, corruption- free governance. Policy stability and continuity are critical. PM modi, as a ‘Sevek’, has given India that stability’ (दि इंडियन एक्सप्रेस, 30 मई, 2023) (बीते नौ बरस भारत को उस निराशाजनक दलदल से बाहर निकालने के लिए समर्पित रहे, जिसमें उसे डाल दिया गया था। अगले 25 वर्षों के लिए भारत/100 को इसी तरह के समर्पित और भ्रष्टाचार मुक्त शासन की आवश्यकता है। नीतिगत् निरंतरता और स्थिरता महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री मोदी ने एक सेवक के रूप में भारत को यह स्थिरता देने का काम किया है।)
अपनी उपलब्धियों का बखान करते समय केंद्र सरकार और भाजपा हर उस मुद्दे से लेकिन कन्नी काटती नजर स्पष्ट आ रही है जो बीते नौ बरसों के दौरान आमजन की मुसीबतों में भारी इजाफा करने के कारक बनें। उदाहरण के लिए 2016 में यकायक की गई नोटबंदी है। इस नोटबंदी ने पूरी अर्थव्यवस्था को झकझोर कर रख दिया। आम भारतीयों को भारी परेशानी का सामना इस अकेले एक फैसले चलते उठाना पड़ा था। इस तुगलकी फैसले को 2016 में भाजपा द्वारा कालेधन को जड़ से समाप्त करने के दिशा में उठाया गया क्रांतिकारी कदम बताया था। आज 7 बरस बाद इस मुद्दे पर कोई मंत्री, कोई भाजपा नेता कुछ बोलने को राजी नहीं। कालाधन इस निर्णय चलते सफेद जरूर हो गया। अपनी महत्वपूर्ण उपलब्धियों में भाजपा और केंद्र सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाए जाने को शुमार करती है। हकीकत में लेकिन भ्रष्टाचार पहले से ज्यादा सरकारी तंत्र में हावी स्पष्ट नजर आता है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राफेल विमान सौदे को लेकर इसकी जद् में आ चुके हैं। भले ही सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पश्चात् इस विमान सौदे की जांच को दबा दिया गया है। आशंकाओं का, विपक्ष के प्रश्नों का संतोषजनक उत्तर दे पाने में केंद्र सरकार की विफलता और राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ लेकर इस रक्षा सौदे को संसदीय जांच समिति के हवाले न करना इशारा करता है कि कहीं न कहीं इस पूरे मामले में कुछ ऐसा जरूर है जिसको केंद्र सरकार हर कीमत पर बाहर आने से रोकना चाहती है। केंद्र सरकार और भाजपा कोविड महामारी को सफलतापूर्वक थामने और करोड़ों भारतीयों को मुफ्त वैक्सीन लगाए जाने को अपनी उपलब्धि बतौर सामने रखती है। सच्चाई हर भारतीय ने देखी-भोगी है। अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी, लावारिस लाशों का नदियों में बहना, दवाओं की कालाबाजारी इत्यादि सब कुछ हमारे सामने हुआ है। केंद्र सरकार द्वारा आज तक कोविड महामारी के चलते हुए मौतों का सही आंकड़ा तक सामने नहीं रखा जाना साबित करता है कि केंद्र और राज्यों की सरकारें इस महामारी के दौरान पूरी तरह अक्षम साबित हुई थीं। अपनी उपलब्धियों का बयान करती मोदी सरकार तीन कृषि कानूनों की बाबत कुछ भी कहने से कन्नी काट रही है। यह कानून क्योंकर लाए गए थे? और किन्हें लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से लाए गए थे? भले ही किसान आंदोलन के दबाव चलते इन्हें वापस ले लिया गया हो, प्रश्नों के उत्तर आने बाकी हैं। एक तरफ कोविड महामारी के चलते लाखों की नौकरियां चली गईं, उद्योग-धंधे तबाह हो गए, केंद्र सरकार का सेंट्रल विस्टा परियोजना से पीछे न हटना, उसकी असंवेदनशीलता का परिचायक बन उभरा। इस असंवेदनशीलता पर भी सत्ताधीशों का मौन स्तब्धकारी है। इसके कहीं अधिक स्तब्धकारी अडानी समूह को हर कीमत पर संरक्षण देने की नीति है। हिंडनबर्ग खुलासे के बाद अडानी समूह की जांच संसदीय समिति से कराए जाने से सरकार बहादुर का स्पष्ट इनकार करना दो आशंकाओं की पुष्टि करता है पहली आशंका इस समूह के वर्तमान सत्ताधीशों संग अनैतिक संबंधों की है जिसका आरोप कांग्रेस नेता राहुल गांधी संसद भीतर और बाहर खुलकर लगाते रहे हैं। दूसरी आशंका केंद्र सरकार का लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास न करने से जुड़ी है। विवादित मुद्दों पर संसदीय जांच समिति का गठन लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है जिससे बचने का प्रयास 18 जनवरी, 2018 की सुबह सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ न्यायाधीशों की प्रेस कांफ्रेंस को याद दिला देता है जिसमें इन न्यायाधीशों ने ‘लोकतंत्र खतरे में है’ कह डाला था।
बीते नौ बरस मेरी दृष्टि में कुहासे भरे हैं। ऐसा कुहासा जिसमें सच कहीं गहरे दफन हो गया है। ऐसा कुहासा जिसमें धारणाओं को सफलतापूर्वक गढ़ कर सच के ऊपर स्थापित करने का काम अपने चरम पर हुआ है। निश्चित ही इन नौ बरसों के भीतर बहुत कुछ अच्छा भी हुआ है। बहुत से क्षेत्रों में उल्लेखनीय तरक्की भी देखने को मिलती हैं। विश्व की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का गौरव मध्यम और उच्चतम मध्यम वर्ग को खासा सुहा भी रहा है। प्रश्न लेकिन उन करोड़ों का है जिन्हें आज भी दो वक्त की रोटी के लाले पड़े हुए हैं। कमरतोड़ महंगाई ने जिनकी जिंदगी को दुश्वार कर दिया है। प्रश्न लोकतांत्रिक मूल्यों के क्षरण का है। प्रश्न सरकारी जांच एजेंसियों के दुरुपयोग का भी है और संघीय प्रणाली में आए गंभीर विचलन का भी है। नौ बरसों का सही लेखा-जोखा इन सब प्रश्नों को समाहित करते हुए यदि तैयार किया जाए तो सही तस्वीर सामने आ पाएगी। मेरा मानना है कि यह तस्वीर बीते नौ वर्षों की उपलब्धियों को इसी समयकाल की व्याधियों के बरअक्स बौना साबित करने का काम करेगी। मोदी सरकार अपने दूसरे कार्यकाल की चार बरस पूरी कर चुकी है। 2024 के मध्य में आम चुनाव होने हैं। ऐसे में इस सरकार के कार्यकाल की गहरी पड़ताल किया जाना बेहद जरूरी है ताकि यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनअपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाए हैं और यदि बीते नौ वर्षों के दौरान लोकतांत्रिक मूल्यों का क्षरण हुआ है तो उसे सामने रखा जाना, आमजन को वास्तविकता से रूबरू कराना हर उस भारतीय का फर्ज है जिसकी आस्था लोकतांत्रिक मूल्यों पर अक्षुण्ण है और जो इन मूल्यों के कमजोर होने से आशंकित और भयभीत है। ऐसा कर पाना लेकिन खासा कठिन है। कारण है धारणाओं की मजबूत दीवार जिसने देश और समाज को पूरी तरह भ्रमित करने का काम सफलतापूर्वक कर दिखाया है। यह दीवार कब और कैसे टूटेगी यह खुद में एक यक्ष प्रश्न समान है।