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Editorial

अपेक्षा-आशंका के बीच नववर्ष

नववर्ष 2020 दस्तक दे रहा है। हर बार की भांति इस वर्ष का स्वागत भी कुछ अपेक्षाओं, कुछ खुद से किए गए वादों, संकल्पों के साथ होगा। नववर्ष एक बार फिर नववर्ष नव उत्साह को साथ लेकर आएगा। उम्मीद से ही दुनिया कायम है। इसलिए उम्मीद का दामन थामे हम सभी को नववर्ष का स्वागत करना चाहिए। लेकिन जाते हुए वर्ष की मीमांसा करूं तो आने वाला वर्ष उम्मीदों के साथ- साथ आशंकाओं को भी लिये नजर आ रहा। इसलिए जरूरी है कि एक बार बीते वर्ष पर नजर डाल ली जाए। शुरुआत करता हूं नागरिकता कानून में किए गए संशोधन के बाद उपजी स्थितियों से।

सदफ जाफर, एसआर दारापुरी, अनवर इलाही, ऐसे तीन नाम शायद जिनसे आप अभी तक परिचत नहीं होंगे। इनका परिचय आपसे कराना मैं आज के हालात में जरूरी समझता हूं ताकि सनद रहे जब सत्ता अपनी ताकत के गुरूर में थी, उस वक्त अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ रहे आम आदमी के साथ हम खड़े थे। ये तीनों इस मुल्क के आम नागरिक हैं। ये तीनों ही नागरिकता कानून संशोधन विधेयक के खिलाफ हैं और लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत मिले अपने अधिकार के तहत इस कानून की मुखालफत कर रहे हैं। किसी भी प्रकार की हिंसक गतिविधियों में ये लिप्त नहीं हैं। हाजी अनवर अली उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में जूतों का कारोबार करते हैं। 20 दिसंबर यानी जुमे की नमाज वाले दिन इनके घर पर एक हिंसक भीड़ ने हमला बोल दिया। 76 वर्षीय हाजी अनवर अली का कहना है कि घर में तोड़फोड़ करने वालों में बावर्दी और बगैर वर्दी पुलिसकर्मी थे। रात पुलिस हाजी को थाने ले आई, सुबह जब वे घर वापस पहुंचे तो पूरा घर तहस-नहस हो चुका था। सामाजिक कार्यकर्ता और कांग्रेस की सदस्य सदफ जाफर 19 दिसंबर के दिन नागरिक संशोधन कानून के खिलाफ चल रहे विरोध- प्रदर्शन में शामिल थीं और ‘फेसबुक लाइव’ के जरिए प्रदर्शन को कवर कर रही थीं। उन्हें लखनऊ पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी के दौरान अपराध पूछे जाने पर उनके साथ मारपीट की गई। सदफ जाफर से जेल मिलने गए लोगों का कहना है कि थाने में बेरहमी से उन्हें पुरुष पुलिसकर्मियों ने मारा। एसआर दारापुरी 1972 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अफसर हैं। 19 दिसंबर के दिन नागरिकता कानून का शांतिपूर्वक विरोध कर रहे इस वरिष्ठ नागरिक को भी पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कुछ ही दिन पहले ‘बदला लेने’ की बात कही थी। उन्होंने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ यह बात कही। यदि राज्य का सबसे ताकतवर व्यक्ति, सबसे महत्वपूर्ण पद में बैठा व्यकित ऐसी बात कहेगा तो उसका असर पुलिस पर निश्चित ही पड़ना तय है। यही इस समय उत्तर प्रदेश में हो रहा है। सरकारी मशीनरी अपने मुख्यमंत्री की भावना का सम्मान करने के लिए फुल फोर्स मैदान में है। राजधानी लखनऊ में तो गनीमत है पुलिस गिरफ्तारियों तक सीमित रही। बिजनौर, मुजफ्फरनगर और अलीगढ़ में तो जनता आरोप लगा रही है कि हिंसा भड़काने वालों में पुलिसकर्मी शामिल थे। राज्य के पुलिस महानिदेशक ने दावा किया कि पुलिस ने पूरे प्रदेश में कहीं पर भी हिंसक भीड़ पर फायरिंग नहीं की। उनके दावों की पोल खोलते वीडियो सोशल मीडिया में भरे पड़े हैं। देश की मुख्यधारा का मीडिया पूरी निर्लज्जता से इन घटनाओं से आंखें मूंदे बैठा है। कल्पना कीजिए यदि सोशल मीडिया न होता तो संचार क्रांति के युग में कितनी आसानी से यह सब दबा दिया जाता। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में हुई हिंसा की जांच करने पहुंची नागरिकों की जांच समिति ने जो कुछ अपनी रिपोर्ट में कहा है, वह उत्तर प्रदेश में सरकारी दमन की भयावह तस्वीर पेश कर रहा है। रिटायर्ड आईएएस व सोशल एक्टिविस्ट हर्ष मंदर ने इस रिपोर्ट को जारी करते हुए कहा पुलिस ने विश्वविद्यालय कैंपस में जमकर हिंसा की। इतना ही नहीं छात्रों पर लाठियां बरसाते, आंसू गैस के गोले छोड़ते पुलिसकर्मियों ने जय श्रीराम के नारे भी लगाए। हर्ष मंदर ने उन छात्रों से बातचीत की जो इस हिंसा के दौरान बुरी तरह घायल हो गए। मंदर का कहना है कि कई छात्रों के हाथ टूट गए हैं। एक छात्र की एक बांह को काटना पड़ा है तो कुछ छात्रों का ब्रेन हैमरेज हो गया है। उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक ने बकायदा मीडिया को दिए बयान में जोर देकर कहा है कि पुलिस बल ने कहीं भी गोलियां नहीं चलाई। उनके दावे के विपरीत राज्य के बिजनौर जिले में पुलिस फायरिंग में सुलेमान नाम के एक नवयुवक की मौत हो गई है। सुलेमान आईएएस परीक्षा की तैयारी कर रहा था। नमाज पढ़ने मस्जिद गए सुलेमान की घर वापसी नहीं हुई। वह मारा गया। अब अपने ही डीजीपी की बात को खारिज करते हुए पुलिस मान रही है कि स्वरक्षा में उसे गोली चलानी पड़ी जिसके चलते सुलेमान की मौत हो गई। ऐसे एक नहीं अनेक तथ्य अब सामने आ चुके हैं। अकेले उत्तर प्रदेश में इन प्रदर्शनों के दौरान पंद्रह की मौत हो चुकी है। सैकड़ों घायल हैं। देश के अन्य राज्यों में भी, खासकर भाजपा शासित प्रदेशों में पुलिस फायरिंग के दौरान प्रदर्शनकारियों की मौतें हुई हैं। प्रदर्शन करना हमारा लोकतांत्रिक अधिकार है। यही लोकतंत्र की खूबसूरती भी है। उसकी जान है। कोई शक नहीं कि ऐसे प्रदर्शनों में हिंसा का कोई स्थान नहीं। असामाजिक तत्वों के खिलाफ पुलिस को कठोर कार्यवाही करनी पड़ती है। उसे कठोर कार्यवाही करनी ही चाहिए, लेकिन निर्दोषों को जिस प्रकार निशाना बनाया जा रहा है वह पूरी व्यवस्था पर सवालिया निशान लगा देता है।

2019 इस दृष्टि से बेहद उथल-पुथल वाला वर्ष रहा। मोदी भारी बहुमत से केंद्र की सत्ता में वापस लौटे। उन्होंने कश्मीर पर बड़ा कदम उठाते हुए धारा 370 को समाप्त कर डाला। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला भी आ गया। एक तरफ मोदी एक के बाद एक कठोर निर्णय लेते रहे तो दूसरी तरफ कई राज्यों की सत्ता भाजपा के हाथों से निकल गई। महाराष्ट्र में तो भूतो ना भविष्यति चरिथार्थ हो उठी। दशकों से भाजपा की हमजोली रही शिवसेना का साथ छूट गया और घोर वैचारिक मतभेद वाले तीन दलों ने मिलकर सरकार बना डाली। राजनीतिक हाशिए में पड़े उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री ने महाराष्ट्र के राज्यपाल बनाए जाने का शुक्रिया भाजपा आलाकमान को देवेंद्र फडणवीस की ब्रह्ममुहूर्त में शपथ करा कर दिया जिसके चलते उन्होंने अपना नाम उन राज्यपालों की सूची में शामिल करा डाला जिन्हें इतिहास हमेशा उनके गलत निर्णयों, भेदभावपूर्ण आचरण के लिए याद रखेगा। राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर मुस्लिम समाज की प्रतिक्रिया संतुलित रही और देश में अमन-चैन बना रहा। शायद इससे प्रोत्साहित केंद्र सरकार ने नागरिकता कानून पर अपनी मनमर्जी का संशोधन संसद से पारित करा डाला। राम मंदिर मुद्दे पर आए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर संयम का परिचय देने वाला अल्पसंख्यक समाज इससे आंदोलित हो उठा। देशभर में इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। शुरुआती दिनों में जामिया मिलिया यूनिवर्सिटी के प्रदर्शन, वहां हुई पुलिस कार्यवाही का असर अन्य शिक्षण संस्थानों तक सीमित नजर आ रहा था। फिर झारखण्ड के दुमका में चुनावी रैली के दौरान पीएम साहब ने प्रदर्शनकारियों की पहचान उनकी पोशाक से कर डाली। नतीजा उनकी अपेक्षा के ठीक विपरीत पूरे देश भर के युवाओं का धर्म, जाति से इतर इस कानून की पुरजोर मुखालफत करने का रहा। आईआईटी, आईआईएम, बीएचयू, दिल्ली विश्वविद्यालय, समेत सभी ख्याति प्राप्त संस्थानों के छात्र जामिया, जेएनयू और एएमयू के छात्रों का समर्थन करते मैदान में उतर गए। इसी बीच झारखण्ड में भाजपा को करारी हार का सामना करना पड़ा। एक तरफ राज्यों के चुनावों में लगातार खराब होते प्रदर्शन का दबाव तो दूसरी तरफ देशभर में नागरिकता कानून को लेकर उठ खड़ा जन आक्रोश, कहीं ना कहीं भाजपा नेतृत्व के अति आत्मविश्वास के डिगने का कारण बनता नजर आ रहा है। प्रधानमंत्री राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर को नागरिकता संशोधन कानून से हटकर देखने की बात करने लगे हैं। गृह मंत्री अमित शाह इस मुद्दे पर अपने ही बयानों को नकार रहे हैं। इस सबके बीच दिनों दिन खराब होती अर्थव्यवस्था का दबाव केंद्र सरकार, सत्तारूढ़ भाजपा और उसके सहयोगी दलों पर असर दिखने लगा है। अलग-अलग कारणों के चलते ही सही, लेकिन भाजपा के सहयोगी दलों का आक्रोश सामने आने लगा है। कम होते रोजगार, चौपट होते उद्योग धंधों का बड़ा असर 2020 में देखने को मिलना तय है। यदि समय रहते केंद्र सरकार नहीं चेती, यदि समय रहते जन आक्रोश को थामने के सही उपाय नहीं किए गए तो आने वाला वर्ष, जाते वर्ष से ज्यादा उथल-पुथल का रहेगा। यदि भाजपा नेतृत्व बल प्रयोग के दम पर जन आक्रोश को थामने की सोच लिये रहा, तो यह उसका बड़ा मुगालता साबित होगा। अन्ना हजारे के आंदोलन की बड़ी सफलता का एक कारण, सबसे बड़ा कारण, कांग्रेस सरकार से देश के युवा का भारी आक्रोश था जो अन्ना की एक आवाज में एकजुट हो गया था। अबकी बार एक नहीं अनेक कारण हैं। तब केवल भ्रष्टाचार मुद्दा था, आज बेरोजगारी, छिनती नौकरियां यानी अनिश्चित भविष्य, अल्पसंख्यकों का असुरक्षा भाव, दम तोड़ती अर्थव्यवस्था और सरकारी दमन चक्र। इन सब कारणों ने कारक बन अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि 2020 हम सबकी आशाओं के परिपूर्ण होने का वर्ष हो, सत्ता प्रतिष्ठान जनहित में कार्य करे, अर्थव्यवस्था टै्रक पर आए और देश की गंगा- जमुनी संस्कृति बनी रहे। युवा की मनस्थिति पर इन दिनों जबरदस्त होता गीत बांचिए-गीत के रचयिता हैं स्टैंडअप कॉमेडियन वरुण ग्रोवरः

तानाशाह आके जायेंगे/हम कागज नहीं दिखायेंगे

तुम आंसू गैस उछालोगे/तुम जहर की चाय उबालोगे

हम प्यार की शक्कर घोल के/उसको गट गट गट पी जायेंगे

ये देश ही अपना है/हासिल है, जहां राम प्रसाद भी बिस्मिल है

मिट्टी को कैसे बांटोगे/सबका ही खून तो शामिल है

तुम पुलिस से लट्ठ पड़ा दोगे/तुम मेट्रो बंद करा दोगे

हम पैदल-पैदल आयेंगे/हम कागज नहीं दिखायेंगे

हम मंजी यहीं बिछायेंगे/हम कागज नहीं दिखायेंगे

हम संविधान को बचायेंगे/हम कागज नहीं दिखायेंगे

हम जन गणमन भी गायेंगे/हम कागज नहीं दिखायेंगे

तुम जात-पात से बांटोगे/हम भात मांगते जायेंगे

हम कागज नहीं दिखायेंगे/हम कागज नहीं दिखायेंगे।

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