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पिचहत्तर बरस का भारत/भाग-29
वर्ष 1945 की शुरुआत मित्र शक्तियों (एलीज पावर) के मजबूत और धुरी राष्ट्रों (एक्सिस पावर) के कमजोर होने से हुई। 30 अप्रैल, 1945 को हिटलर ने अपनी हार निश्चित मान आत्महत्या कर ली। द्वितीय विश्व युद्ध अब समाप्ति की तरफ बढ़ने लगा था। इस दौरान ब्रिटिश भारत में हालात दिनों-दिन खराब होने लगे। बंगाल में आए अकाल का असर धीरे-धीरे पूरे भारत को अपनी चपेट में ले चुका था। हिटलर की आत्महत्या बाद 7 मई, 1945 के दिन जर्मनी ने मित्र राष्ट्रों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया, जिसका सीधा असर ब्रिटेन की राजनीति में देखने को मिलता है। युद्धकाल के लिए बनी राष्ट्रीय सरकार से लेबर पार्टी ने आम चुनाव कराए जाने का मांग कर स्वयं को अगल कर लिया, जिस चलते 23 मई, 1945 के दिन यह सरकार गिर गई। बंगाल में आए भीषण अकाल (1943-44) का असर अब अपने चरम पर पहुंच चुका था। इस अकाल में लगभग 40 लाख की मृत्यु होने और लाखों की तादात् में बंगालियों के देश के अन्य हिस्सों में पलायन करने चलते महंगाई, कालाबाजारी और लूटपाट से पूरा देश हाहाकार करने लगा था। बंगाल के तत्कालीन गवर्नर लॉर्ड रैसी द्वारा ब्रिटिश सरकार को भेजे एक पत्र से स्पष्ट होता है कि ब्रिटिश हुकूमत पूरी तरह से इस अकाल से आमजन को राहत पहुंचाने में विफल रही थी। लॉर्ड रैसी ने 1 मार्च, 1945 को वायसराय को भेजे अपने पत्र में लिखा- ‘In Bengal at least, after a century and half of British rule, we can point to no achievement worth the name in any direction’ (बंगाल के संदर्भ में तो कम से कम यह कहा जा सकता है कि करीब डेढ़ सौ साल के ब्रिटिश शासन के बाद भी हम किसी भी दिशा में कोई भी उपलब्धि का दावा नहीं कर सकते)। ऐसे नाजुक समय में वायसराय लॉर्ड वैवेल ने भारत में एक राष्ट्रीय सरकार बनाने की पहल शुरू की। 25 जून, 1945 को शिमला में सभी प्रमुख भारतीय नेताओं को इस विषय में बातचीत के लिए लॉर्ड वैवेल ने आमंत्रित किया। जिन्ना की हठधर्मिता चलते वैवेल का यह प्रयास बगैर किसी सार्थक नतीजे में पहुंचे समाप्त हो गया। वायसराय राष्ट्रीय सरकार के गठन से पहले अपनी सभा का विस्तार कर उसमें भारतीय नेताओं को शामिल करना चाहते थे। कांग्रेस और मुस्लिम लीग से उन्होंने इस सभा में शामिल किए जाने वाले नेताओं के नाम मांगे। कांग्रेस इसके लिए तैयार थी लेकिन जिन्ना इस बात पर अड़ गए कि इस सभा में कांग्रेस की तरफ से किसी मुस्लिम नेता को शामिल नहीं किया जाए और मुसलमानों का प्रतिनिधित्व केवल मुस्लिम लीग ही करे। वायसराय ने जिन्ना की इस मांग को सिरे से खारिज कर दिया। गतिरोध चलते यह कॉन्फ्रेंस 14 जुलाई तक के लिए स्थगित कर दी गई। 9 जुलाई को वैवेल ने जिन्ना को भेजे अपने पत्र में लिखा-I fully appreciate your difficulties, but  regret that I am unable to give you the guarentee you wish i.e. that all the muslim members of the proposed new council necessarily be members of the Muslim League… I have to attempt to form an Executive Council representative,  competent, and generally acceptable …it will help me greatly if you will let me have names’ (मैं आपकी दिक्कतों को भली-भांति समझता हूं, पर मुझे अफसोस है कि आप जो चाहते हैं उसकी मैं गारंटी नहीं दे सकता कि प्रस्तावित नई काउंसिल में सभी मुसलमान सदस्य केवल मुस्लिम लीग के ही हों।….मेरा प्रयास ऐसी कार्यकारी परिषद बनाने का है जो सभी का प्रतिनिधित्व करती हो, सक्षम हो और आमतौर पर स्वीकार्य हो।…यदि आप अपनी सूची मुझे दे दें तो काफी मदद मिलेगी) जिन्ना ने वायसराय के प्रस्ताव को एक बार फिर से यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि ‘अपने बुनियादी वसूलों से हटना हमारे लिए मुमकिन नहीं है।’
यूरोप में मई, 1945 आते-आते युद्ध लगभग समाप्त हो चला था। लेबर पार्टी के राष्ट्रीय सरकार से अलग होने के बाद हुए चुनावों में चर्चिल के नेतृत्व वाली कंसरवेटिव पार्टी की हार हो गई और लेबर पार्टी सत्ता में आ गई। क्लेमेंट रिचर्ड एटली ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री बने जिन्होंने अपने मंत्रिमंडल में लॉर्ड पैथिक लॉरेंस को भारत मामलों का मंत्री नियुक्त किया। लेबर पार्टी की सरकार अपने गठन के साथ ही भारत को स्वतंत्र किए जाने पर गंभीरतापूर्वक आगे बढ़ने लगी। इस बीच एक ऐसी घटना हो गई जिसने न केवल तात्कालिक तौर पर पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया बल्कि इस घटना ने वैश्विक स्तर पर राजनीतिक संबंधों को पुनर्भाषित करने का काम कर डाला। जर्मनी के आत्मसमर्पण बाद मित्र शक्तियों ने अपनी पूरी ताकत जापान को ध्वस्त करने में लगा दी थी। जुलाई, 1945 के मध्य में अमेरिका, इंग्लैंड और कनाडा के एक संयुक्त गुप्त मिशन जिसे ‘मैनहॉटन मिशन’ कह पुकारा जाता है, को एटम बम बनाने में सफलता मिल गई। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान 1939 में शुरू किए गए इस प्रोजेक्ट ने दो प्रकार के एटम बम विकसित किए। इनमें से एक बम का नाम रखा गया ‘फैट मैन’ (Fat Man) और दूसरे का ‘लिटिल बॉय’ (Little Boy)। 6 अगस्त, 1945 की सुबह ‘लिटिल बॉय’ को अमेरिकी बमवर्षक विमानों ने जापान की घनी नागरिक आबादी वाले शहर नागाशाकी में गिरा दिया। इस बम की चपेट में आया नागाशाकी पहले ही दिन आधे से अधिक तबाह हो गया। लगभग 146,000 नागरिक ‘लिटिल बॉय’ के हाथो मारे गए। 9 अगस्त के दिन ‘फैट मैन’ जापान के दूसरे बड़े शहर हीरोशिमा में गिराया गया जिसकी चपेट में आ लगभग 80,000 नागरिक अपनी जान से हाथ धो बैठे। इस एटमी हमले से स्तब्ध जापान ने 15 अगस्त, 1945 को मित्र राष्ट्रों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया। 2 सितंबर, 1945 के दिन जापान संग आत्मसमर्पण के दस्तावेजों में हस्ताक्षर के साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया। एक तरफ पूरी दुनिया जब इन दो एटमी धमाकों से दहली हुई थी और अमेरिका के इस कदम से संपूर्ण मानव सभ्यता पर मंडरा रहे खतरे का आकलन करने में जुटी थी, जिन्ना अपने एक सूत्रीय एजेंडे पर डटे हुए थे। गंभीर रूप से बीमार हो चले जिन्ना का मानो अंतिम उद्देश्य पाकिस्तान हासिल करने से कहीं ज्यादा खुद को गांधी के बरअक्स बड़ा नेता स्थापित करने का रह गया था। ब्रिटेन में लेबर पार्टी के गठन बाद भारत को स्वतंत्र किए जाने की कवायद के बीच वे गांधी को कमतर दिखाने की अपनी अदम्य इच्छा को पूरा करने का काम कर रहे थे। अगस्त, 1945 में बंबई में उन्होंने एक सभा में भाषण देते गांधी पर जमकर निशाना साधते हुए कहा- ‘When it suits him, he represents nobody, he can talk in individual capacity; he is not even a four-anna member by the Congress; he undertakes fast to decide the political issues… yet when it suits him, he is the supreme dictator of the Congress. He thinks he represents whole of India. Mr. Gandhi is an enigma… How can we come to an settlement with him? There was so much venom and bitterness against the Muslims and the Muslim League that the Congress were prepared to go to any length with two objectives; first to hammer down, humiliate and discourage the League… the second was to see Muslim league ignored’ (जब उन्हें अनुकूल लगता है तो वे किसी का प्रतिनिधित्व नहीं करते और निजी हैसियत से बात करने लगते हैं। वे कांग्रेस के चार आना सदस्य तक नहीं हैं लेकिन अनशन के जरिए वे राजनीतिक मुद्दों को तय करने लगते हैं।….और जब उन्हें सुविधाजनक लगता है, वे कांग्रेस के सबसे बड़े तानाशाह बन जाते हैं। वे मानते हैं कि वे संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व करते हैं। श्रीमान गांधी एक गूढ़ पहेली हैं उनके साथ कोई समझौता भला कैसे किया जा सकता है? मुसलमानों और मुस्लिम लीग के खिलाफ कांग्रेस के भीतर इतना जहर और इतनी कड़वाहट है कि वह अपने दो मकसदों की प्राप्ति के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। पहला, मुस्लिम लीग को ठोक-पीटकर, नीचा दिखाकर हतोत्साहित करना और दूसरा यह सुनिश्चित करना की लीग की उपेक्षा हो जाए)। जिन्ना गांधी से किस कदर डरते थे और उनके समकक्ष खड़ा होने की चाह रखते थे, इसे समय-समय पर दिए गए उनके वक्तव्यों से समझा जा सकता है। स्टेनली वोलपर्ट के अनुसार ‘जिन्ना को गांधी सरीखे अपमानजक ‘गूढ़ पहेली’ के साए में जीवित रहने के बजाए अपनी छोटी-सी पार्टी और राष्ट्र के मुखिया के तौर पर लड़ते हुए मर जाना ज्यादा पसंद था।’ इस कालखंड में रचित साहित्य के जरिए भी गांधी और जिन्ना के मध्य व्याप्त गहरे अविश्वास, गांधी का अपनी ही पार्टी भीतर कमजोर स्थिति में पहुंच जाना, ब्रिटिश व्यवस्था के खिलाफ उबल रहा जन आक्रोश, बंगाल में आए भीषण अकाल से उपजी परिस्थितियों और पाकिस्तान की मांग को समझा जा सकता है। हितेंद्र पटेल ने अपनी पुस्तक ‘आधुनिक भारत का ऐतिहासिक संदर्भ’ में भगवती चरण वर्मा, यशपाल, अमृतपाल नागर और गुरूदत्त के राजनीतिक उपन्यासों के जरिए ऐसा करने का सराहनीय और सफल प्रयास किया है। भगवती चरण वर्मा के उपन्यास ‘सीधी सच्ची बात’ जो 1939 से 1939 के मध्य की राजनीतिक घटनाओं को केंद्र बिंदु बना लिखा गया, उपरोक्त सभी बातों पर अपने पात्रों के जरिए तत्कालीन भारत के जनमानस को समझने का काम करता है।

इस उपन्यास का एक पात्र है जमील, जो कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य है। गांधी को लेकर उसके विचार जिन्ना के करीब हैं। उसका मानना है कि गांधी मुसलमानों के लिए दयानंद से अधिक खतरनाक है। गांधी ने आर्य समाज के सुधारवादी कार्यक्रमों को ही मोटे तौर पर अपनाया है। गांधी को पता है कि मुसलमान उनके साथ नहीं हैं। जमील को यह भी लगता है कि गांधी मुसलमानों की मदद मुसलमानों को हिंदुओं का गुलाम बनाने के लिए करना चाहते हैं। पटेल इस उपन्यास की गहरी मीमांसा करते हुए लिखते हैं ‘हिंदू-मुस्लिम के बीच बढ़ते विभेद और शिक्षित मुसलमानों के मुस्लिम लीग की तरफ झुकने के बारे में (इस उपन्यास में) विस्तार से चर्चा की गई है। बयालीस साल के अब्दुल बशीर कानपुर की रहने वाले हैं, जिनकी शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हुई है।…बशीर अहमद जैसों को लगता है कि मुसलमान मुस्लिम लीग के साथ हैं और कांग्रेस को लीग के साथ कोई समझौता कर लेना चाहिए। वे यह भी बोल गए कि कांग्रेस ही असली हिंदू महासभा है। उसमें जो मुसलमानों के नेता हैं वे असल में मुसलमानों के नेता नहीं हैं।’

क्रमशः

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