नक्सलबाड़ी आंदोलन को तो वामपंथी समर्थन से बनी पश्चिम बंगाल सरकार ने पुलिस एवं अर्धसैनिक बलों की मदद से कुचलने में तात्कालिक तौर पर सफलता हासिल तो कर ली, इस श्रमिक भूमिहीन वर्ग का असंतोष लेकिन तेजी से देश के अन्य राज्यों में फैलने लगा था। आंध्र प्रदेश के तेलंगाना इलाके में नक्सलबाड़ी आंदोलन का प्रभाव सबसे पहले पड़ा। तेलंगाना वामपंथी संगठनों की मजबूत पकड़ वाला इलाका पहले से ही था। उड़ीसा से सटे आंध्र प्रदेश के जिलेे श्रीकाकुलम में भी सर्वहारा वर्ग का असंतोष हिंसक रूप लेने लगा था। नक्सल नेता चारु मजूमदार ने एक बार श्रीकाकुलम को ‘भारत का येनान’ की संज्ञा दी थी। येनान चीन के उत्तर पश्चिम में स्थित एक शहर है जहां से चीनी लाल क्रांति की शुरुआत हुई थी। नक्सलबाड़ी आंदोलन से प्रभावित होकर यहां के दो वामपंथी नेताओं वी ़सत्यानारायण उर्फ सत्यम और आदिभाटला कैलाशम् ने भी हथियार बंद विद्रोह शुरू कर दिया। 31 अक्टूबर, 1967 के दिन स्थानीय जमींदारों और वामपंथियों के मध्य हिंसा में सत्यम के दो करीबी कॉमरेड मारे गए। इसके बाद स्थानीय जमींदारों के खिलाफ यहां भारी हिंसा सत्यम और उनके समर्थकों ने शुरू कर राज्य सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती पेश कर डाली। स्थानीय आदिवासियों ने ऐसे जमींदारों की जमीन और अन्य सम्पत्ति को अपने कब्जे में लेने का अभियान शुरू कर राज्य सत्ता को खुली चुनौती देने का काम कर दिखाया। इस विद्रोह को दबाने के लिए केंद्र सरकार ने भारी संख्या में सुरक्षा बलों को आंध्र प्रदेश भेजा। मई माह तक चले इस विद्रोह को अंततः कुचल दिया गया और सत्यम एवं उनके सभी साथी मारे गए। नक्सलबाड़ी से निकली आग का असर देश के अन्य हिस्सों में देखने को मिलता है। उत्तर प्रदेश के नेपाल से सटे तराई इलाके में भी बड़े जमींदारों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह जून, 1968 में भारी पैमाने पर शुरू हुआ और लंबे अर्से तक चला। नक्सलबाड़ी और तेलंगाना आने वाले लंबे समय तक माओवादी विचारधारा से प्रभावित नवयुवकों को अपनी तरफ आकर्षित करते रहे। बाद के वर्षों में जब कभी भी जनआंदोलन हुए तब किसी न किसी रूप में नक्सलबाड़ी और तेलंगाना का असर ऐसे आंदोलनों में देखने को मिलता रहा है। जनकवि बल्ली सिंह चीमा का एक गीत ‘ले मशाले चल पड़े हैं’ ऐसे जनआंदोलनों में गाया जाने वाला एक प्रमुख गीत है जिसके बोल नक्सल आंदोलन की लोकप्रियता को रेखांकित करते हैं। गीत के बोल हैं-
अब अंधेरा जीत लेंगे लोग मेरे गांव के।
कह रही झोपड़ी और पूछते हैं खेत भी,
कब तलक लुटते रहेंगे लोग मेरे गांव के।
बिन लड़े कुछ भी यहां मिलता नहीं ये जानकर,
अब लड़ाई लड़ रहे हैं लोग मेरे गांव के।
हर रुकावट चीखती है ठोकरों की मार से,
बेड़िया खनका रहे हैं लोग मेरे गांव के।
एकता से बल मिला है झोपड़ी की सांस को,
आंधियों से लड़ रहे हैं लोग मेरे गांव के।
तेलंगाना जी उठेगा देश के हर गांव में,
अब गुरिल्ले ही बनेंगे लोग मेरे गांव में।
देख ‘बल्ली’ जो सुबह फीकी दिखे है आजकल।
लाल रंग उसमें भरेंगे लोग मेरे गांव के।
बस एक फ़िक्र दम-ब-दम
घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए
जवाब-दर-सवाल है कि इन्क़लाब चाहिए
इन्क़लाब ज़िन्दाबाद, ज़िन्दाबाद इन्क़लाब… ’
हिजड़ो के सुरताल से
राज शक्ति निकला करती है
बंदूकों की नाल से…’
समाजवाद को समाजवादी ही रोके हुए हैं।’
प्रदेश, मद्रास, (अब तमिलनाडु) और केरल में विपक्षी दलों की सरकार स्थापित होने से कांग्रेस भीतर चल रहा आंतरिक संघर्ष तेजी से गहराने लगा था। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा और बिहार में इन चुनाव बाद कांग्रेस अपनी सरकार बना पाने में सफल रही थी लेकिन भारी दलबदल चलते चारों ही राज्यों में उसकी सरकारें मात्र कुछ ही दिनों में अपदस्थ हो गईं। इन राज्यों में दलबदलुओं ने ‘संयुक्त विधायक दल’ गठित कर अपनी सरकार बना भारतीय राजनीति में निजी महत्वाकांक्षा और धन-बल के सहारे जनप्रतिनिधियों की खरीद-फरोख्त को नया आयाम दे डाला जिसके दुष्परिणाम आज अपने चरम पर देखने को मिल रहे हैं। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस नेता चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व में कई कांग्रेसी विधायकों ने दलबदल कर भारतीय जनसंघ, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, संयुक्त समाजवादी पार्टी संग गठबंधन कर सरकार बना डाली तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेता राजमाता विजयराजे सिंधिया और उनके पुत्र माधव सिंधिया ने बगावत कर कांग्रेस सरकार को सत्ता से बाहर करने का काम किया। वर्तमान दौर में बागी विधायकों को रिसॉर्ट आदि में एक साथ रखने का जो ‘खेला’ रोज होता है, उसकी शुरुआत 1967 में मध्य प्रदेश के दिग्गज कांग्रेसी गोविंद नारायण सिंह ने की थी। उन्होंने 28 विधायकों को विधानसभा में बहुमत परीक्षण से पहले अपने घर में एक तरह से नजरबंद रखा ताकि कांग्रेस नेतृत्व उनसे सम्पर्क ही न साथ पाए।