प्रिय तीरथ जी,
एक सप्ताह के भीतर ही दोबारा आपसे संवाद कर रहा हूं, वह भी ‘खुले खत’ के जरिए ताकि सनद रहे, वक्त पर काम आवे। अपने गृह राज्य के मुख्यमंत्रियों संग मैं लगातार पत्र व्यवहार करता आया हूं। पहले यह पत्राचार ‘खुला खत’ नहीं होता था क्योंकि तब उन निजी पत्रों का मुझे अमूमन जवाब मिलता था, कुछेक सुझाव पर अमल भी होते मैंने देखा है। शायद ऐसा इसलिए था क्योंकि हमारे प्रदेश के पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री श्री एनडी तिवारी जी पुरानी और स्थापित परंपराओं को निभाने वाली पीढ़ी से थे। उदाहरणस्वरूप आपको बताना चाहूंगा कि एक बार श्री तिवारी को मैंने एक पत्र अपने हाथों से सौंपा। उस पत्र के साथ कुछ दस्तावेज भी थे जो तत्कालीन सरकार द्वारा बड़ी मात्रा में राज्य के विद्यालयों के लिए खरीदे गए कंप्यूटर्स से संबंधित थे। प्रथम दृष्टया मुझे उन दस्तावेजों को पढ़ ऐसा लगा था कि इस खरीद में भारी भ्रष्टाचार हुआ है। मामला खासा तकनीकी था इसलिए बजाय समाचार प्रकाशित करने, मैंने उक्त दस्तावेज और पूरे प्रकरण में भ्रष्टाचार की आशंका व्यक्त करते हुए एक पत्र तिवारी जी को सौंप दिया। सच पूछिए, मुझे बिल्कुल भरोसा नहीं था कि श्री तिवारी मेरे उक्त पत्र को गंभीरता से लेंगे। अगले ही दिन मैंने प्रातः ही देहरादून से नोएडा वापसी कर ली। रात मुझे तिवारी जी के ओएसडी श्री आर्येन्द्र शर्मा का फोन आया। कुछ नाराजगी भरे अंदाज में उन्होंने मुझे बधाई देते हुए कहा कि सीएम साहब ने आपके पत्र पर कार्यवाही करते हुए संबंधित विभाग के सचिव को हटा दिया और मामले की विभागीय जांच के आदेश दिए हैं। श्री एनडी तिवारी के पांच बरस के कार्यकाल के दौरान मुझे उन्हें भेजे गए हर पत्र का उत्तर मिलता था। तिवारी जी के बाद जब 2007 में भाजपा की सरकार बनी तो कई बार मेरे द्वारा जनरल खण्डूड़ी को पत्र भेजे गए लेकिन जब उनका कभी कोई उत्तर नहीं प्राप्त हुआ तो ‘खुला खत’ मेरे लिए मुख्यमंत्री संग संवाद का माध्यम बन गया जो आज तक जारी है। आपको अवश्य स्मरण होगा कि श्री खण्डूड़ी के प्रमुख सचिव श्री प्रभात सारंगी पर उस दौरान भ्रष्टाचार में लिप्त होने के आरोप लगे थे। मैंने इस विषय पर एक पत्र एवं कुछ दस्तावेज जनरल साहब के पास भिजवाए। पत्र में मैंने उनसे श्री सारंगी के कथित भ्रष्टाचार की बाबत कुछ जानकारियां साझा की थी। जनरल साहब को इस अखबार के देहरादून प्रतिनिधि ने अपने हाथों से उक्त पत्र को सौंपा था। जब तत्कालीन सीएम से कोई उत्तर लंबे अर्से तक नहीं मिला तब हमारे अखबार में एक विस्तृत समाचार ‘सारंगी की भ्रष्ट धुन’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। आगे की कहानी से आप भलीभांति परिचित हैं ही। जनरल खण्डूड़ी ने मुझे देहरादून भेंट करने के लिए बुलाया। जब मैं उनसे मिला तो मेरे प्रति उनकी नाराजगी स्पष्ट तौर से उनके चेहरे पर विराजमान मैंने महसूसी। ‘यू स्टैब्ड इन माई बैक’ (तुमने मेरी पीठ पर छूरा घोंपा है) जनरल साहब का पहला वाक्य था। मैंने पूरी विनम्रता से जब उन्हें स्मरण कराया कि इस ‘भ्रष्ट धुन’ की बाबत मैंेने अपने पत्र के जरिए आगाह किया था, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिलते देख अंततः समाचार प्रकाशित किया तो जनरल साहब चुप रह गए। बहरहाल, इसके बाद से ही मैंने ‘खुला खत’ को अपना माध्यम बना डाला है।
तीरथ जी मैंने अपने पहले ऐसे खत में आपको चेताया था कि आपके आगे एक अंधी गली है जिसे सकुशल पार पाना आपके लिए टेढ़ी खीर साबित होगा। आपको ‘मुगल-ए-आजम’ फिल्म के डायलाॅग का स्मरण भी कराया था-‘अनारकली, हम तुम्हें जीने नहीं देंगे, सलीम तुम्हें मरने नहीं देगा।’ इस डायलाॅग के स्मरण कराने का उद्देश्य उन खतरों से है जो आपके सामने स्वतः आएंगे भी और आपके लिए आपके ही संगी-साथियों द्वारा पैदा भी किए जाएंगे ताकि आप औंधेमुंह गिरें। आप तो लेकिन खुद के लिए ही संकट पैदा करने लगे हैं। भला क्या आवश्यकता आपको आन पड़ी थी जो आप ‘संस्कारों’ के प्रवक्ता बन बैठे। समयकाल और परिस्थिति हर चीज को बदल देती है। विचार और संस्कार भी इससे अछूते नहीं हैं। बाबा आदम के जमाने की सोच आज न तो प्रासांगिक है, न ही उसका संस्कारों से कुछ लेना-देना है। महिलाओं के परिधान पर आपकी टिप्पणी निहायत ही पुरातनपंथी सोच को प्रदर्शित करती है। मुझे स्वयं ‘फटी जीन्स’ बिल्कुल नहीं भाती लेकिन मैं किसी महिला या पुरुष के चरित्र को उससे नहीं मापता, क्योंकि मेरी दृष्टि में न तो इसका ‘संस्कार’ से कुछ लेना-देना है, न ही चरित्र से। यदि पूरे बदन ढककर चलना किसी कुत्सित सोच को रोक पाता होता तो ‘फटी जीन्स’ से पहले का दौर आदर्श दौर रहा होता जिसमें स्त्री पूरी तरह सुरक्षित, हर प्रकार के शोषण, विशेषकर यौन शोषण का शिकार नहीं होती। लेकिन ऐसा दौर तो कभी नहीं रहा।
आपको शायद ज्ञात न हो बुर्का परस्त समाज में सबसे ज्यादा यौन शोषण होता है। कनाडा की मेमोरियल यूनिवर्सिटी का एक अध्ययन बताता है कि हिजाब पहनने वाली महिलाओं और लड़कियों को ज्यादा यौन शोषण का शिकार होना पड़ता है, क्योंकि उन्हें कमजोर समझ ज्यादा शिकार बनाया जाता है।
मुख्यमंत्री जी कौन क्या पहने, खाए, शादी करे या न करे, लिव इन में रहे या साधु-साध्वी बन जीवन व्यतीत करे, इससे किसी को संस्कारी या असंस्कारी नहीं माना जा सकता। हर दिल अजीज हमारे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी विवाह नहीं किया लेकिन वे स्वयं कहते थे ‘अविवाहित हूं, कुंवारा नहीं।’ क्या आप अविवाहित पुरुष या स्त्री के यौन संबंधों को असंस्कारी मानते हैं?
आपने इससे पहले मुख्यमंत्री पद संभालने के साथ ही प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का स्तुतिगान करते हुए उनकी तुलना भगवान राम से कर डाली थी। मैंने आपको इतिहास से एक उदाहरण देना चाहूंगा। 1970 के दशक में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की लोकप्रियता वर्तमान प्रधानमंत्री समान चरम पर थी। बैंकों का राष्ट्रीयकरण, बांग्लादेश का गठन और ‘गरीबी हटाओ’ का जुमला देश के सिर चढ़ इंदिरा जी को मां दुर्गा का दर्जा दे चुका था। तब उनकी पार्टी के एक बड़े नेता देवकांत बरुआ ने ‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’ कह अपने नेता को आत्ममुग्धता के उस मुकाम पर पहुंचा डाला जहां से आगे का रास्ता नीचे की तरफ ही ले जाता है। 1977 में इंदिरा जी खुद का चुनाव तो हारी हीं, कांग्रेस का भी सूपड़ा साफ हो गया था। इस प्रकार का स्तुतिगान बेहद खतरनाक होता है। ‘लालू चालीसा’ और जयललिता के मंदिर अंततः उनके पराभव का कारण ही बने। स्मरण रहे तीरथ जी इतिहास के पन्नों में कहीं आप भी भाजपा के देवकांत बरुआ न दर्ज हो जाएं। नेतृत्व पर आस्था और नेतृत्व के अंधे अनुसरण में बड़ा महीन फर्क होता है। आस्था स्वागत योग्य है, अंधा अनुसरण बेहद खतरनाक।
आपने ‘फटी जीन्स’ प्रकरण पर ज्यादा हो-हल्ला देख जब माफी मांगी तो मुझे लगा था कि सही में आपको पश्चाताप हुआ होगा। अपने परिजनों, शुभेच्छुओं से अवश्य आपने सलाह-मशविरा किया होगा। माफी मांगना आसान काम नहीं। यह आत्मशुद्धि का कठिन मार्ग है। इसलिए आपकी माफी ने मुझे संतोष की अनुभूति कराई। लेकिन यह क्या? आपकी जुबान फिर से फिसल गई। मुस्लिमों पर व्यर्थ ही निशाना साध डाला। हिंदुओं को दो बच्चे पैदा करने के लिए तंज भी कसा और बढ़ती आबादी से त्रस्त मुल्क की बहुसंख्यक जनता को आपने ज्यादा बच्चे पैदा करने की सीख भी दे डाली। बार-बार जुबान फिसलने के दो ही अर्थ हैं तीरथ जी। या तो यह सब आपके विचारों का असली स्वरूप है या फिर जैसा कि कहा जाता है ‘मगध में विचारों की कमी है’ वाली बात झलकती है। अब फिर से निगेटिव कारणों के चलते आप सुर्खियों में हैं। ज्यादा हो-हल्ला मचेगा तो शायद आप एक बार और क्षमा याचना कर लेंगे। लेकिन इस बार-बार फिसल रही जुबान का सबसे ज्यादा नकारात्मक प्रभाव आपकी बतौर मुख्यमंत्री कार्य क्षमता पर पड़ेगा जिसका खामियाजा अंततः राज्य की जनता को उठाना होगा।
पत्र समाप्त करने से पूर्व आपसे करबद्ध प्रार्थना करना चाहता हूं कि कुछ ऐसा करिए कि आपको इतिहास उत्तराखण्ड का यशवंत परमार कह याद रखे, न कि उत्तराखण्ड का बाबुलाल गौड़। विकल्प आपके सामने है, चुनाव आपको करना है। मैं तो मात्र आपको अपनी सद्भावनाएं, शुभकामनाएं ही दे सकता हूं।