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Editorial

कश्मीर का भारत में विलय

पिचहत्तर बरस का भारत/भाग-40

लगातार बिगड़ते हालातों से घबराए महाराजा सर हरि सिंह ने जेल में कैद नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता शेख अब्दुल्लाह को 29 सितंबर के दिन रिहा कर दिया। शेख ने रिहा होते ही राजा सर हरि सिंह से संपूर्ण सत्ता कश्मीरियों के हवाले करने की मांग करते हुए एलान किया कि जम्मू- कश्मीर की जनता ही यह तय करेगी कि उसे अपना स्वतंत्र वजूद बरकरार रखना है या फिर भारत अथवा पाकिस्तान में से किसी एक संग विलय करना चाहिए। शेख ने यह भी एलान किया कि ‘जम्मू-कश्मीर की जनता सरकार किसी एक धर्म की न होकर हिंदू, मुसलमान और सिख की मिली जुली सरकार होगी’ नेहरू कश्मीर के बिगड़ते हालातों से किस हद तक अवसाद में थे यह उनके द्वारा 29 सितंबर को शेख अब्दुल्लाह को लिखे पत्र से स्पष्ट हो जाता है नेहरू ने शेख को लिखा ‘…All of us sit on the edge of a precipice and dangers surround us…I think we in India have a firm hold and keep ourselves going… Pakistan has no such hold and no strength or resources… we have to suffer for our own errors…not much good crying over spilt mild…But we must understand – clearly what has happened… Kashmir is, of course, of vital significance to this picture of India. What happens in Kashmir will effect rest of India…For me kashmir’s future is of the most intimate personal significance. On no account do I want Kashmir to become a kind of colony of foreign interests. I fear pakistan is likely to become that if it survives at all. It may well be that the Pakistan people look upon kashmir as a country which can yield them profit’s (हम सब एक चट्टान के किनारे पर बैठे हैं और चौतरफा खतरों से घिरे हुए हैं  …मुझे लगता है कि भारत एक मजबूत स्थिति में है और हमारी यात्रा जारी रह सकती है  …पाकिस्तान संग ऐसा नहीं है। उसके पास ताकत और संसाधनों की कमी है ….हमें अपनी गलतियों से सबक लेना होगा…. उन पर रोना व्यर्थ है ….लेकिन हमें यह समझना होगा कि आखिर हुआ क्या है….कश्मीर निसंदेह भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। कश्मीर में जो कुछ होता है उसका प्रभाव सीधे भारत पर पड़ना तय है …मेरे लिए तो निजी तौर भी कश्मीर का भविष्य बेहद महत्व रखता है। मैं किसी भी कीमत पर कश्मीर को विदेशी ताकतों के दोहन की जगह नहीं बनता देख सकता। मुझे डर है कि यदि पाकिस्तान जिंदा रह पाया तो उसके साथ ऐसा ही होगा और संभव है कि पाकिस्तान कश्मीर के संदर्भ में भी ऐसी ही चाह रखता है जहां से उसे आर्थिक लाभ मिलता रहे)। नेहरू आशंकित थे कि आर्थिक दृष्टि से खस्ताहाल पाकिस्तान कश्मीर को विदेशी ताकतों के सामने रख अपने लिए संसाधन जुटाने का काम करना चाहता है। जम्मू- कश्मीर के तत्कालीन प्रधानमंत्री एम .सी. महाजन को नेहरू ने 21 अक्टूबर को लिखे पत्र में इस आशंका का जिक्र करते हुए लिखा ‘For me it is both a personal and public matter. It would be a tragedy, so far as I am concerned, if Kashmir went to Pakistan…They are already a tottering state. They look to Kashmir for means of recovering. They intend to raise capital in America on the strength of Kashmir by giving special privileges, leases etc for development there to Americans. All there present policy is to get help from America…No Kashmiri can welcome this prospect’9 (मेरे लिए यह मुद्दा निजी और सार्वजनिक, दोनों है। इससे बड़ी त्रासदी और कुछ नहीं होगी यदि कश्मीर पाकिस्तान के संग चला जाता है….वह (पाकिस्तान) एक लड़खड़ाता राष्ट्र है। कश्मीर के जरिए वे अपने हित साधना चाहते हैं। उनका इरादा कश्मीर को अमेरिका के हवाले कर अपने लिए धन एकत्रित करना मात्र है। उनकी नीति अमेरिका से सहायता प्राप्त करने की है…कोई भी कश्मीरी ऐसा होते देना नहीं चाहेगा)। महाराजा सर हरि सिंह के सामने सबसे ज्यादा परेशानी पूंछ इलाके से आनी शुरू हुई। 14 अगस्त के दिन यहां पाकिस्तानी झंडा लहराया गया था। महाराजा की सेना में बगावत होनी शुरू यहीं से हुई। अधिकतर मुस्लिम अफसर और सैनिक बागी हो पाकिस्तान के साथ विलय की बात करने लगे थे। 22 अक्टूबर, 1947 के दिन भारी संख्या में पठान कबिलाइयों के जम्मू-कश्मीर रियासत की तरफ बढ़ने की खबर ने महाराजा को गहरे संकट में डाल दिया। कबिलाइयों को निश्चित तौर पर पाकिस्तानी सेना मदद कर रही थी। सबसे पहले इन्होंने मुज्जफराबाद शहर को अपने कब्जे में लिया। यहां तैनात महाराजा सर हरि सिंह की सेना ने खास प्रतिरोध इन आक्रमणकारियों का नहीं किया क्योंकि आधे से अधिक मुस्लिम और ब्रिटिश सैनिक राजा के खिलाफ हो चले थे। इन कबिलाई पठानों ने अब उरी की तरफ तेजी से बढ़ना शुरू किया। इस इलाके में राजा की सेना का नेतृत्व ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह कर रहे थे जिन्होंने दो दिन तक इन पठानों को रोके रखा लेकिन 24 अक्टूबर के दिन उरी पर भी पठानों का कब्जा हो गया। अब इन पठानों के जत्थों ने महूता शहर को अपने निशाने पर लिया। महूता में स्थित बिजली घर से ही श्रीनगर को बिजली की पूर्ति की जाती थी। 24 अक्टूबर के दिन पूरा श्रीनगर अंधकार में डूब गया क्योंकि महूता पर कब्जा करने के साथ ही वहां के बिजली घर को इन आक्रमणकारियों ने बंद कर डाला था। अब श्रीनगर मात्र कुछ मील दूर रह गया था जहां महाराजा सर हरि सिंह अपने महल में असहाय बैठे अपनी रियासत को बिखरते देख रहे थे। पठानों ने अपने इस आक्रमण के दौरान स्थानीय कश्मीरियों पर भयंकर अत्याचार और लूटपाट को अंजाम देना शुरू कर दिया था। इनके निशाने पर हिंदू, सिख और इसाइयों के साथ-साथ स्थानीय मुस्लिम में आने लगे। बारामुला में कब्जे के दौरान यहां की जनता संग लूटपाट, हत्या के साथ-साथ बच्चियों और महिलाओं संग बलात्कार को अंजाम इन कबिलाइयों ने दे डाला। इन सबसे घबराए महाराजा सर हरि सिंह ने भारत सरकार को टेलीग्राम भेज मदद की गुहार लगाई। यही गुहार जम्मू-कश्मीर रियासत के भारत में विलय का आधार बनी। महाराजा का टेलीग्राम पाते ही भारत सरकार सक्रिय हो गई। वीपी मेनन 25 अक्टूबर की सुबह श्रीनगर भेजे गए। मेनन महाराजा सर हरि सिंह और मुख्यमंत्री एमसी महाजन से हालात का जायजा ले 26 अक्टूबर को वापस दिल्ली पहुंचे जहां उन्होंने लॉर्ड माउंटबेटन, नेहरू, पटेल और शेख अब्दुल्लाह संग बैठक में सारे हालात सामने रखे। मेनन के अनुसार ‘Lord Mount Betten said that it would be improper to move Indian troops into what was at the moment an independent country, as Kashmir had not yet decided to accede to either India or Pakistan. If it were true that the Maharaja was now anxious to accede to India, then Jammu & Kashmir would become part of Indian territory. This was the only basis on which Indian troops would be sent to the resue of the state from further pillaging by the aggressors. He futher expressed the strong opinion that, in view of the composition of the population, accession should be conditional on the will of the pepole being assertained by a plebiscite after the raiders had been driven out of the State and law and order had been restored. This was readily agreed to by Nehru and other ministers’10 (लॉर्ड माउंटबेटन का कहना था क्योंकि कश्मीर अभी तक भारत अथवा पाकिस्तान का हिस्सा नहीं बना है इसलिए किसी स्वतंत्र देश में भारतीय सेना भेजना उचित नहीं होगा। उन्होंने कहा कि यदि यह सत्य है कि महाराजा भारत संग विलय के लिए तैयार हैं तो पहले उनसे विलय पत्र में हस्ताक्षर कराना उचित होगा ताकि भारतीय सेनाओं को वहां भेजा जा सके। उन्होंने यह भी राय व्यक्त की, कि जम्मू-कश्मीर की जनसंख्या का चरित्र देखते हुए, इन आक्रमणकारियों को खदेड़ने पश्चात् वहां विलय के मुद्दे पर रायशुमारी करानी जरूरी होगी। नेहरू एवं उनके अन्य मंत्रियों ने इस सुझाव पर अपनी सहमति दर्ज कराई)। मेनन इस बैठक के तुरंत बाद श्रीनगर पहुंचे जहां उन्होंने सर हरि सिंह से विलय पत्र पर हस्ताक्षर करा जम्मू-कश्मीर को भारत में विलय की वैधानिक कार्यवाही को अंजाम तक पहुंचा दिया। भारतीय सेनाएं हवाई मार्ग से 27 अक्टूबर की सुबह श्रीनगर पहुंचने लगी थीं। जम्मू- कश्मीर के भारत में विलय का समाचार पाकिस्तान के पहले गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना के लिए भारी सदमा था। उन्होंने तत्काल पाकिस्तानी सेना को कश्मीर भेजने का हुक्म जारी कर दिया जिसे पाकिस्तान के ब्रिटिश कमांडर इन चीफ ने मानने से स्पष्ट इंकार कर जिन्ना के क्रोध को सातवें आसमान में पहुंचाने का काम किया। जनरल डगलस ग्रेसी जो पाकिस्तानी सेनाओं के मुखिया थे, ने जिन्ना को स्पष्ट कह डाला था कि यदि वे अपना आदेश वापस नहीं लेते हैं तो उन्हें मजबूरन पाक सेना में मौजूद सभी ब्रिटिश सैनिकों को हथियार छोड़ने के आदेश देने होंगे। हतप्रभ और हताश जिन्ना ने इस धमकी के चलते अपने आदेश वापस ले लिए। भारतीय सेना, जिनका नेतृत्व मेजर जनरल थिमैय्या कर रहे थे, ने सबसे पहले श्रीनगर को सुरक्षित करने का काम किया। 8 नवंबर को बारामूला और 12 नवंबर को महूता पर भारतीय सेना का कब्जा हो गया। 13 नवंबर के दिन उरी भी भारतीय सेनाओं ने वापस ले लिया। पठान आक्रमणकारी अब तेजी से वापसी करने लगे थे। पूंछ, गिलगिट और राजौरी इलाकों को खाली कराने और अपने कब्जे में लेने के लिए भारतीय सेनाओं को खासा वक्त लगा क्योंकि तब तक सर्दी का मौसम शुरू हो चला था और भीषण बर्फबारी के कारण युद्ध कार्यों को चला पाना असंभव हो गया था। इस बीच नेहरू ने महाराजा सर हरि सिंह से शेख अब्दुल्लाह को जम्मू-कश्मीर की कमान सौंपने का आग्रह किया। नेहरू ने 11 नवंबर को लिखे अपने पत्र में कहा ‘The only person who can deliver the goods in Kashmir is Sheikh Abdullah…He is obviously the leading popular personality in Kashmir. The way he has risen to grapple with the crisis has shown the nature of the man. I have a high opinion of his integrity and general balance of mind. He has striven hard and succeeded very largely in keeping communal peace’  (शेख अब्दुल्लाह अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो कश्मीर में सार्थक काम कर सकते हैं ….वह इस समय कश्मीर के सबसे लोकप्रिय व्यक्ति हैं। जिस प्रकार उन्होंने वर्तमान संकट का सामना किया उससे उनके चरित्र का पता चलता है। मैं उनकी निष्ठा और बुद्धिमता का कायल हूं। उन्होंने बहुत मेहनत और लगन से साम्प्रदायिक शांति बनाए रखी)।

क्रमशः

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