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Editorial

जरा समझिए किसान के दर्द, कृषि कानूनों में संशोधनों को/भाग-दो

केंद्र सरकार द्वारा कृषि संबधित तीन कानूनों में संशोधन संविधान विशेषज्ञों में भी चर्चा का विषय बन चुका है। जानते हैं क्यों? इसलिए क्योंकि इन तीन कानूनों में कही गई कुछ बातें आम नागरिक के संविधान प्रदत्त अधिकारों का हनन् करती नजर आ रही हैं। इतना ही नहीं केंद्र और राज्य सरकारों के संविधान अनुसार तय अधिकार श्रेत्र का भी अतिक्रमण इन कानूनों के चलते होने की बात उठने लगी है। लेकिन इस पर बाद में बात, पहले कानून नंबर दो को समझा जाए ताकि समझ सके कि क्यों भारत का अन्नदाता इन संशोधित कानूनों को लेकर धरने पर हैं और क्यों वह सरकार द्वारा इन कानूनों में हालिया किए गए संशोधनों को एक सिरे से खारिज करने की मांग पर अड़ गया है। तो चलिए समझते हैं Essential Commodities  (Amendment) Act 2020 को।
यह कानून (आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955) नेहरू शासनकाल में बना था। इस कानून का बनाने की एकमात्र उद्देश्य आवश्यक खाद्य पदार्थों की जमाखोरी को रोकना था। स्मरण रहे 1947 में आजादी मिलने के बाद सबसे बड़ा संकट प्रथम सरकार के सामने अन्न आम जनता तक सही दाम में उपलब्ध करना था। 1943 के बंगाल में पड़े अकाल बाद से ही देश अन्न की कमी का सामना कर रहा था। नेहरू सरकार ने इस कानून के जरिए दाल, चावल, आलू, प्याज, दवाइयों, रसायनिक खाद, खाने के तेल समेत कई वस्तुओं की जमाखोरी पर रोक लगाई थी। इस कानून के भीतर आने वाली सभी वस्तुओं का कोई भी तय लिमिट से अधिक भंडारण करता है तो उस पर यदि भारी जुर्माना, यहां तक कि जेल तक का प्रावधान है। समय-समय पर इस कानून की मदद से सरकारों ने आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को न केवल नियंत्रण में किया, जमाखोरों के खिलाफ कठोर कार्यवाही भी की। ज्यादा पीछे जाने की जरूरत नहीं है। वर्तमान समय में यानी कोरोना संकट के दौरान ही केंद्र सरकार ने इसी कानून का सहारा लेकर मास्क, सेनिटाइजर आदि के अनाप-शनाप दामों को कट्रोल में किया है। इसलिए इस कानून में किया गया संशोधन जनता के, किसान के, मन में भारी संदेह उत्पन्न कर रहा है।
संशोधित कानून के अनुसार अब अनाज, दाल, दलहन तेल, आलू प्याज आदि को आवश्यक वस्तुओं की सूची से हटा दिया गया है। यानी अब व्यापारी जितना चाहे इनका भंडारण कर सकता है। इसका सीधा असर इन वस्तुओं की कीमत पर पड़ना तय है। व्यापारी अब इन्हें मनमाफिक कीमत में बेचने के लिए स्वतंत्र है। पिछले 65 बरसों से सरकार इन सभी वस्तुओं की ब्रिकी को कट्रोल करती आई हैं। अब लेकिन इन्हें Open market के हवाले कर दिया गया है। सरकार अब इनकी कीमतों को नियंत्रित नहीं करेगी। यही कारण है कि इनकी कीमतों मेें भारी उछाल आना तय है। सरकार कह रही है कि अब इस कानून का औचित्य नहीं है क्योंकि हम अब अन्न के मामले में आत्मनिर्भर हैं। इस कानून के चलते निजी श्रेत्र इसमें पूंजी लगाने से हिचकिचाता है। अब वह निवेेश करेगा तो बड़े कोल्ड स्टोरेज बनेंगे। फल-सब्जी की सप्लाई चेन देश भर में फैलेगी आदि-आदि। यानी अंबानी-अड़ानी का सपना पूरा हो जायेगा।
घर-घर फेरी लगाने वाले जाये भाड़ में अब ऐप के जरिए सारी चीजें बिकेंगी। कीमत बाजार तय करेगा। इस संशोधनों से पहले सरकार कोल्ड स्टोरिज बनाने का काम करती थी। उसके द्वारा नियुक्त एजेन्ट ही आवश्यक वस्तुओं का भंडार रख बजरिए राशन कार्ड उसे सस्ती दर में बेचा करते थे। अब सब कुछ निजी क्षेत्र के हवाले हो जायेगा। सीधी सी बात है, कृषि प्रधान कल्याणकारी अवधारणा वाले देश में अब सरकार कृषि क्षेत्र से अपना हाथ खींच रही है। धीरे-धीरे किसानों को मिलने वाली सहायता (Subsidy) भी खत्म कर दी जायेगी। कीमतें तब इन वस्तुओं की कितनी हो उठेगी यह आप स्वयं समझे। यह सार है दूसरे कानून यानी Essential Commodities Act  में किए गए बदलाव का।
हां एक बात और समझने की है। सरकार कहती है इस अधिनियम से आवश्यक वस्तुओं को हटाने के बाद जबरदस्त विकास कृषि क्षेत्र में निजी निवेशकों द्वारा किया जायेगा। विश्व भर इसके उदाहरण मौजूद है जहां सरकारों के कृषि क्षेत्र से हाथ खींचने के परिणाम सुखद नहीं रहे हैं। फ्रांस में, अमेरिका में डेरी के क्षेत्र में निजी कंपनियों ने भारी अथल-पुथल मचा दी है। अब ऐसे देशों की सरकारें फिर से इन आवश्यक वस्तुओं को अपने अधीन करने पर विचार कर रही हैं। हमारी सरकार रहती है बिचौलिए कम हो जायेगे। इन देशों का अनुभव बताता है कि किसानों के साथ निजी कंपनियों का संपर्क बिचौलिए ही कराते हैं। यदि निजी क्षेत्र के आने से कृषि क्षेत्र में बल्ले-बल्ले होती तो सोचिए भला क्योंकर अमेरिका में कृषि क्षेत्र का 46 बिलियन डालर यानी तीन लाख बाइस हजार करोड़ की Subsidy जाती है।
‘दि न्ययार्क टाइम्स’ के अनुसार यह Subsidy न हो तो अमेरिका का कृषि सेक्टर संकट में आ जायेगा। तो यह रहा कानून नंबर दो और उस मेरे विचार। अब कल होगी तीसरे कानून The farmers empowerment and protection agreement on price assurance and farm services bil 2020  की मीमांसा और क्योंक्र इन कानूनों के चलते हमारे सविधान प्रदत्त अधिकारों पर संकट आता नजर आ रहा है।

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