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Editorial

जरा समझिए किसान के दर्द, कृषि कानूनों में संशोधनों को/भाग-एक

अंग्रेजी दैनिक हिंदुस्तान टाइम्स के वार्षिक आयोजन HT leadership summit 2017 का आयोजन स्थल था दिल्ली का भव्य हयात रिजेन्सी होटल। तीन दिवसीय इस मंथन शिविर के अंतिम दिन रिलांइस  समूह के मालिक मुकेश अंबानी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए जो कहा वह देश की राजधानी ‘दिल वालों की’ अरे, अरे माफ किजियेगा ‘संग दिल, तंग दिल’ वालों की दिल्ली के बार्डर पर जमें किसानों की आशंकाओं को प्रमणित करता है।
Agriculture, education and healthcare — all three are on our roadmap which are, to my mind, the most difficult areas and they impact majority of the people, We now have the opportunity to digitally reinvent all sectors of our economy? whether it is financial services, commerce, manufacturing, agriculture, education and healthcare. India can leapfrog the world in each of these sectors. First, I have chosen agriculture because we cannot ignore the reality of poverty and underdevelopment in rural India.”
माशाअल्लाह क्या खूब बात कहीं मुकेश धीरू भाई अंबानी ने। कुछ समझे आप की नहीं। भारत के गरीब गुरबा भारत के किसानों की दुर्दशा पर दिल्ली के पचंतारा होटल में मुकेश धीरूभाई के शब्द सुन आप झांसे में, मुगालते में तो नहीं आ गए? मुकेश भाई मुुंबई के जिस घर में रहते हैं उसकी कीमत है 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर यानि लगभग चौदह हजार करोड़ रुपया है। चार लाख स्कावयर फिट के इस घर में में तीन हैलीपेड, 168 कार गैरेज, नौ लिफ्रट, एक 50 सीट का फिल्म हाल, टैरेस गार्डन, स्वीमिंग पूल, स्पा, हैल्थ सेंटर, मंदिर आदि है। परिवार है कुल जमा पांच जनों का, नौकर हैं सैकड़ो इतनी अकूत संपदा वाले मुकेश भाई बात करते हैं गरीब-गुरबा की? इसलिए आना चाहते हैं खेतों के मैदान में। ताकि अपनी जादू की छड़ी से इस क्षेत्र में खुशहाली ला सकें।
अब जरा कृषि बिलों में हुए संशोधन के बाद केंद्रीय मंत्री और भाजपा के पंजाब में बरसों से सहयोगी रहे अकाली दल के नेता हकसिमरत कौर के इस्तीफे पर नजर डालते हैं। अपने इस्तीफे में पंजाब के एक किसान का उल्लेख करते हुए हरसिमरत कौर ने लिखा। “JIO CAME IN, THEYGAVE FREE PHONES. WHEN EVERYONE BOUGHT THESE PHONES, THE COMPETITION WAS WIPED OUT AND JIO JACKED UP THEIR RATES. THIS IS EXACTLY WHAT THE CORPORATES ARE GOING TO DO WITH AGRICULTURE”
चलिए अब बात अडानी साहब की। कौन अडानी? अरे आप नहीं समझे? मैं बात गौतम अडानी साहब की कर रहा हूं। जिन्होंने कोविड काल और 2016 के   Demonitization  के बाद सबसे ज्यादा तरक्की की है। जब देश का क्या आम, क्या खास गिरती अर्थव्यवस्था से त्रस्त हो त्रहिमाम्-त्रहिमाम् कर रहा है, 51 बरस के अड़ानी विश्व के 167 सबसे रईस व्यक्ति है और पिछले चार सालों में उनकी संपत्ति में पौने तइीन गुना इजाफा हुआ है। इत्तेफाक की बात है मुख्य विपक्षी दल के नेता जिन्हें मीडिया का एक बड़ा वर्ग ‘पप्पू’ साबित करने में जी जान से जुटा रहता है, इन दोनों उद्योगपतियों की प्रधानमंत्री संग दोस्ती पर तंज कसते हुए मोदी सरकार को ‘सूट-बूट की सरकार’ कहते हैैं। तो इन अंडानी साहब की नजरें भी इत्तेफाकन कृषिक्षेत्र पर जा टिकी हैं। इनका लक्ष्य है,  “AT ADANI, WE WANT TO BE KNOWN AS THE BIG AGRI-INFRASTRUCTURE PLAYER AND ADANI TO BE A BIG FOOD COMPANY IN INDIA.”
अजब-गजब  इत्तेफाक है इधर दोनों, अबानी-अडानी ने कृषि क्षेत्र में जाने का मन बनाया, उधर सरकार ने कृषि कानूनों में ‘क्रांतिकारी’ परिवर्त्तन लाकर कारप्रोरेट की राह आसान कर डाली। संसद में तो प्रचंड बहुमत चलते विपक्षी दलों के इन कानूनों पर आपत्ति को सरकार ने दरकिनार कर दिया लेकिन किसान सड़क पर उतर आये हैं तो मामला गजबजा गया। किसान भला क्यों इस ‘प्रगतिशील’, ‘क्रांतिकारी कदम की मुखाफत कर रहे हैं? क्या इसलिए क्योंकि विपक्षी दल और टुकड़े-टुकड़े गैंग उन्हें बरगला रहा है। या फिर इसलिए कि ‘दूध का जला छांछ भी फूक-फूक कर पीता है।’ किसानों को इससे पहले केंद्र सरकार की ‘फसल बीमा योजना’ के अनुभव बेहद खराब रहे हैं। यह परियोजना मुकेश अंबानी के भाई अनिल अंबानी की कंपनी को सरकार द्वारा दी गई थी। बहरहाल केंद्र सरकार ने तीन कृषि बिल संसद में सितम्बर-2020 में यानि कोविड काल में रखे और पास करा डाले। इन तीन कानूनों को भारत गणतंत्र के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने अपने हष्ताक्ष 27 सितम्बर 2020 को कर उन्हें कानून बना दिया। ये तीन कानून हैं क्या? चलिए इन्हें समझा जाये।
पहला कानून है ‘कृषि उपज व्यापार एवं वाणिज्य सर्वधन और सरलीकरण विधेयक-2020। अंग्रेज साहब बहादुर की दो सौ बरस की गुलामी चलते चुंकि हम दोगले हो गए है। इसलिए इस कानून की अंग्रेजी भी बता दूूं। “THE FARMERS PRODUCE TRADE AND COMMERCE (PROMOTION AND FECILITATION) BILL, 2020.”
बड़ा ही क्रांतिकारी कानून है यह। भारतीय मध्य वर्ग को बहुत अच्छा प्रतीत होता होगा यह कानून लेकिन किसान इसका विरोध कर रहे हैं। क्यों भला? इसलिए क्योंकि यह कानून पूरी तरह से ‘सूट-बूट’ वालों के लिए बनाया गया है। कानून कहता है कि किसनों की उपज की खरीद के लिए हर वह व्यक्ति, कंपनी समूह जिसके पास आयकर नंबर हो, इंटरनेट प्लेटफार्म के जरिये अथवा सीधे किसान से संपर्क कर मोलभाव कर उसकी उपज खरीदने का हकदार है। सरकार कहती है इस कानून के बाद अब पूरे देश में कोई भी, किसी भी राज्य के किसान से मूल्य तय कर उपज खरीदेगा तो इससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलने लगेगा।
सरकार बहादुर का किसान  प्रेम देखिए कानून के अध्याय दो की धारा 4 (3) में स्पष्ट लिखा है। कि ‘प्रत्येक व्यापारी जो कृषकों के साथ संव्यवहार करता है, व्यापार की गई अनुसूचित कृषक उपज का भुगतान उसी दिन या यदि प्रक्रियात्मक रूप से ऐसा अपेक्षित है, तो इस शर्त के अधीन रहते हुए कि कृषक को शोध्य भुगतान की रकम में वर्णित परिदान की रसीद उसी दिन दी जायेगी। अधिकतम तीन कार्यदिवस के भीतर भुगतान करेगा।’
यानी किसान को तीन दिन में उनकी उपज का उचित मूल्य देना जरूरी होगा। अब जनाब आपकी आंखों में आंसू तो आ ही गए होंगे, आप गद्गद् होंगे कि देश के अन्नदाता के लिए मोदी सरकार ने क्या जबर्दस्त कानून ला दिया है। आप नाराज भी हो रहे होंगे कि विपक्षी दलों और टुकड़े-टुकडे गैंग के बरगलाने में आकर किसान इसका विरोध कर रहे हैं। ठहरिए, ठहरिए जरा पूरी बात तो समझ लीजिए। इस कानून के अध्याय तीन को समझते हैं जो किसान और खरीददार के बीच किसी भी प्रकार के विवाद को ‘तुरंत समाप्त’ करने के लिए है। इसका अनुच्छेद 8 (1) कहता है- ‘इस अधिनियम की धारा 4 के अधीन कृषक और किसी व्यापारी के बीच किसी संव्यवहार से उद्भुत किसी विवाद की दशा में, पक्षकार, आवेदन फाइल करके उपखंड मजिस्टेªट से सुलह के मार्फत पारस्परिक प्रतिग्राहय समाधान की ईप्सा कर सकेंगे जो ऐसे विवाद के आबदधकर परिनिर्धारण को सुकर बनाने के लिए उसके द्वारा नियुक्त सुलह बोर्ड को निर्दिष्ट करेगा।’
वाह! वाह! क्या बात है। न्यायालय जाने से गरीब किसान को छुटकारा मिल रहा है। सारा समाधान नौकरशाही कर देगी। यदि एसडीएम नहीं कर पाएगा तो कलक्टर साहब के पास किसान जा सकता है, वहां से न्याय नहीं मिला तो उसके उपर के अफसर बैठे हैं। लेकिन इस कानून का अध्याय पांच के अनुच्छेद 13 आते-आते मामला समझ में आने लगता है कि सरकार की मंशा क्या है। अध्याय पांच अनुच्छेद 13 कहता है- ‘इस अधिनियम या उसके अधीन बनाए गए नियमों या किए गए आदेशों के अधीन सद्भावपूर्वक की गई या की जाने के लिए आशयित किसी बात के संबंध में कोई भी वाद, अभियोजन या अन्य विधिक कार्यवाही केंद्रीय सरकार या राज्य सरकार या केंद्रीय सरकार के किसी अधिकारी या किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध नहीं होगी।’
और अनुच्छेद 15 कहता है- ‘किसी सिविल न्यायालय को, किसी ऐसे विषय की बाबत जिसका इस अधिनियम या उसके अधीन गनाए गए नियमों द्वारा या उसके अधीन सशक्त किसी प्राधिकारी द्वारा संज्ञान लिया जा सकता है।  उसका निपटारा किया जा सकता है। कोई वाद या कार्यवाही ग्रहण करने की अधिकारिता नहीं होगी। ’मतलब बड़ा साफ है किसानों के भले ही आड़ में नौकरशाही को सारी ताकत सरकार ने दे डाली हैं और उनके खिलाफ कोई अदालत न चले जाए इसलिए इस कानून से संबंधित विवाद में सिविल कोर्ट का हस्तक्षेप प्रतिबंधित कर डाला है।
भाषा को समझिए न केवल नौकरशाहों के खिलाफ किसान अदालत जा पाएगा, बल्कि कॉरपोरेट के खिलाफ भी वह अदालत नहीं जा सकता है। आपातकाल में ऐसा इंदिराजी ने किया था जब हमारे सभी मूलभूत, संविधान प्रदत्त अधिकार खत्म कर दिए गए थे। फिर इंदिराजी का हश्र 1977 में जनता ने क्या किया था याद है आपको? तभी कल मैंने कहा था ‘धीमी-धीमी चाल यह कहीं भूचाल न बन जाए।’
आज के लिए बस इतना, कल चर्चा करूंगा कैसे यह एक कानून संविधान के आर्टिकल 19 यानी बोलने की स्वतंत्रता आदि के प्रतिकूल है और संविधान के अनुच्छेद 32 के भी जो हम यानी आम नागरिकों को न्यायालय के समक्ष्ज्ञ अपनी बात रखने की आजादी देता है। साथ ही कानून नबंर दो- Essential Commodities  (Amendment) Act 2020 पर प्रकाश डालने का प्रयास करूंगा।

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