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Editorial

‘रात्रि नौ बजे के न्यायाधीश’

कोरोना संकटकाल के दौरान 14 जून 2020 के दिन मुंबई के पॉश इलाके बांद्रा के एक फ्लैट में बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत का शरीर पंखे से लटका हुआ पाया गया। मुंबई पुलिस द्वारा शुरुआती जांच में इसे आत्महत्या करार दिया गया। दो माह के भीतर-भीतर अब इसे हत्या का प्रकरण कहा जाने लगा है और इस मामले में हाई-प्रोफाइल लोगों के कूदने के चलते जमकर राजनीतिक बयानबाजी भी शुरू हो चली है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के शूरवीर एंकरों ने मीडिया ट्रायल कर इस मौत को इतना रहस्यमयी और महत्वपूर्ण बना डाला है कि आम आदमी को प्रभावित करने वाले मुद्दे गौण हो चले हैं या फिर जानबूझकर उन्हें दबाने का प्रयास ऐसे मीडिया ट्रायल के जरिए किया जा रहा है। इन शूरवीर, महाज्ञानी रक्षा, अपराध, विज्ञान समेत नाना प्रकार के विद्याओं के विशेषज्ञ एंकरों को एक अद्भुत नाम एनडीटीवी के मुंबई ब्यूरो चीफ सौरभ गुप्ता ने दिया है-“9 o’clock Judges” यानी नौ बजे के न्यायाधीश। यह प्राइम टाइम में आने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के संपादकों/एंकरों के लिए दिया गया विश्लेषण मुझे सटीक लगा। तो चलिए थोड़ा विस्तार से, बगैर किसी पूर्वाग्रह के, बगैर किसी इमोशनल अत्याचार का शिकार हुए इस पूरे मामले को समझने का प्रयास किया जाए। साथ ही सीबीआई किस प्रकार के मामलों में जांच कर सकती है, इसकी कानूनी दृष्टि से पड़ताल की जाए।

मुंबई पुलिस ने एक फिल्मी सितारे की मौत की जब जांच शुरू की तब उसे शायद ही इल्हाम रहा होगा कि यह जांच ऐसा रंग ले लेगी। पुलिस ने अपनी जांच में अभी तक जो पाया उसे बिंदुवार समझते हैंः

1. शनिवार 13 जून की रात राजपूत ने देर से डिनर लिया। उस रात 2 बजे या 14 जून की सुबह दो बजे उन्होंने दो फोन किए। पहला अपनी मित्र रिया चक्रवर्ती को तो दूसरा अपने मित्र और टीवी कलाकार मेहरा शेट्टी को। दोनों फोन उठे नहीं। इसके बाद उसने गुगल में तीन शब्दों की बाबत जानकारी चाही। “Schizopheria” Painless death एवं “Bipolar Disorder”/Schizophrenia एक प्रकार की मानसिक बीमारी है जिसे Acute Depression भी कहा जा सकता है। Bripolar Disorder भी एक तरह क गंभीर डिप्रेशन है। तीसरी जानकारी उन्होंने शांति से मरने का तरीका की बाबत जानने के लिए गुगल को खंगाला। मुंबई पुलिस को यह सब उनके मोबाइल की फॉरेंसिक जांच से चला। उन्होंने एक फोन अपनी बहन को सुबह नौ बजे 14 जून को किया और उनसे बातें की। इसके बाद जूस पीने और दवाइयां खाने के बाद वे अपने बेडरूम में चले गए। 11ः30 बजे उनके नौकरों ने उन्हें पंखे से लटका पाया।
2. इसी दिन 14 जून को पोस्टमार्टम तीन डॉक्टरों ने किया। उनकी रिपोर्ट में मृत्यु का कारण लटकने के चलते दम घुटने से पाया गया। 25 जून को फाइनल पोस्टमार्टम रिपोर्ट में भी इस बात को कन्फर्म किया गया। 27 जुलाई को आई विसरा रिपोर्ट ने भी मौत का यही कारण बताया।

3. पुलिस ने अपनी जांच में पाया कि राजपूत अपनी पुरानी मैनेजर दिशा सेलियान की मौत के बाद से डिप्रेशन में थे। मुंबई की तिलिस्मी दुनिया में इस मौत को लेकर नाना प्रकार की चर्चा हो रही थी जिससे राजपूत परेशान थे। इसके चलते वे लगातार मानसिक चिकित्सकों के संपर्क में थे। इतना ही नहीं पुलिस ने अपनी आत्महत्या की थ्योरी के प्रमाण में यह भी जानकारी साझा की कि राजपूत ने पहले अपनी बेल्ट से फांसी लगाने का प्रयास किया, उसके बाद अपने हरे कुरते के जरिए मौत को गले लगाया।

4. मुंबई पुलिस की जांच के दौरान ही मीडिया ट्रायल शुरू हो गया। पहले बॉलीवुड में फैले भाई-भतीजावाद (Nepotism) को लेकर एक से एक मसालेदार बातें चरणी मीडिया ने परोसनी शुरू कर दी। फिल्म निर्माता करण जौहर, संजय लीला भंसाली, सलमान खान, एकता कपूर समेत कइयों के खिलाफ पटना हाईकोर्ट में मुकदमा दर्ज एक वकील सुधीर कुमार ओझा ने यह कहते हुए दर्ज कराया कि भाई-भतीजावाद के चलते सुशांत को फिल्में नहीं मिल रही थी। यह केस 8 जुलाई को खारिज हो गया। फिर बॉलीवुड की वीरांगना कंगना रनौत मैदान में उतरी। उन्होंने एक स्पेशल शो में रिपब्लिक टीवी के एंकर महाज्ञानी अर्णव गोस्वामी को बताया कि मूवी माफिया इस आत्महत्या के लिए जिम्मेदार है। महाज्ञानी अर्णव जो 9 वश्बसवबा श्रनकहमे में सबसे सीनियर हैं, ने तब तक अपना निर्णय बॉलीवुड के बड़े कथित माफियाओं के खिलाफ देने का मन बना लिया था। हत्या का कोई जिक्र, अंदेशा दूर-दूर तक नहीं तब तक सामने आया था।

5. 25 जुलाई से माहौल बदलने लगा। इस दिन राजपूत के पिता केके सिंह ने एक एफआईआर पटना में अपने मृत बेटे की प्रेमिका रिया चक्रवर्ती और उनके परिजनों के खिलाफ दर्ज कराई जिसमें आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप उन्होंने लगाया। उन्होंने रिया पर सुशांत के संग वित्तीय धोखाधड़ी और मानसिक उत्पीड़न का भी आरोप लगाया। 18 जुलाई, 2020 को रिया चक्रवर्ती एवं अन्य के खिलाफ मामला पटना में दर्ज कर लिया गया। यहीं से बड़े पैमाने पर सियासत भी शुरू हो गई। जो मामला पहले एक अवसाद (Depression) के चलते आत्महत्या का लग रहा था, उसके निशाने में पहले बॉलीवुड को रखकर नौ बजे के न्यायाधीशों ने ट्रायल शुरू किया फिर एकदम से पलटी मार सारा फोकस रिया चक्रवर्ती और महाराष्ट्र सरकार पर केंद्रित हो गया।

6. रिया चक्रवर्ती ने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। उन्होंने पटना में दर्ज एफआईआर को मुंबई में ट्रांसफर की गुहार भी लगाई। इस बीच केंद्र सरकार की एजेंसी ईडी ने भी बहती गंगा में डुबकी लगाने का निर्णय ले रिया पर Money Laundering का मामला दर्ज कर डाला। आधार था के.के. सिंह का आरोप कि रिया ने उनके बेटे के खाते से 15 करोड़ गायब किए हैं। मुंबई पुलिस कहती रह गई कि ऐसा कुछ सामने नहीं आया है लेकिन नौ बजे के न्यायाधीशों ने मुंबई पुलिस की बदनामी करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। अपनी साख पर आंच से परेशान मुंबई पुलिस ने सुशांत और रिया के खातों की फॉरेंसिक जांच के लिए अंतरराष्ट्रीय कंपनी ‘ग्रांट थोरटन’ को नियुक्त कर दिया।

7. इस बीच पूरे देशभर और विदेश में मौजूद कथित सुशांत के फैन्स ने पूरे प्रकरण की सीबीआई जांच की मांग शुरू कर दी। बिहारी मूल के अभिनेता शेखर सुमन भी इसमें कूद पड़े। उन्होंने “Justice for Sushant Forum” बना सीबीआई जांच की बात कही लेकिन यकायक ही वे इससे बैकआउट कर गए। ट्विटर पर “Candle4SSR” शुरू किया गया जिसमें 20 लाख से अधिक लोगों ने ट्विट कर सीबीआई-सीबीआई की रट लगानी शुरू कर दी। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी जो बेचारे हाशिए में पड़े होने का दंश झेल रहे हैं, इसमें कूद गए। उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिख सीबीआई जांच की मांग कर डाली। महाराष्ट्र सरकार ने ऐसा करने से लेकिन साफ मना कर दिया। महाराष्ट्र सरकार का कहना है कि मुंबई पुलिस पूरी निष्पक्षता से जांच कर रही है। अब तक लगभग 60 लोगों से पूछताछ कर चुकी है इसलिए सीबीआई जांच का कोई औचित्य नहीं।

8. इसके बाद बिहार सरकार, सुशासन बाबू नीतीश कुमार की सरकार अप्रत्याशित कदम उठाती है। वह के.के. सिंह की एफआईआर पर इस मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश केंद्र से कर देती है और आनन-फानन में 5 अगस्त, 2020 को भारत सरकार के महाधिवक्ता तुषार मेहता सुप्रीम कोर्ट को सूचित करते हैं कि सीबीआई की जांच का आदेश केंद्र सरकार ने दे दिया है।

9. अब सुप्रीम कोर्ट में इस प्रकरण पर बहस पूरी हो चुकी है कि मुंबई में हुए अपराध की जांच भला कैसे बिहार सरकार की सिफारिश पर सीबीआई जांच में तब्दील हो सकती है। हमारे नौ बजे के न्यायाधीश इस पर खामोश हैं। ठीक वैसे ही जैसे वे लगातार बढ़ रही बेरोजगारी, किसानों की आत्महत्या, डूबती अर्थव्यवस्था, जम्मू-कश्मीर में पिछले एक बरस से चले आ रहे लॉकडाउन पर यानी ऐसे हर मुद्दे पर जिससे वर्तमान सत्ता प्रतिष्ठान को असहूलियत होती है, खामोश हैं। वे लगातार प्राइम टाइम डिबेट में रिचा चक्रवर्ती, मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ अपना अभियान जारी रखे हैं। उनके पैनेलिस्ट भी वही सब होते हैं जो पहले बॉलीवुड के बड़े निर्माताओं, एक्टरों को राजपूत की मौत का जिम्मेदार ठहरा रहे थे, अब सारा फोकस रिया पर, पुलिस पर, राज्य सरकार पर है।

10. ऐसी बेहूदी काल्पनिक षड्यंत्रकारी थ्योरी सामने रखी, परोसी जा रही हैं जिनका कोई सिर-पैर नहीं। कभी खांटी शिव सैनिक रहे नारायण राणे जो पूर्व सीएम भी हैं, अब भाजपा नेता हैं, का आरोप वाट्सअप विश्वविद्यालय से होता हुआ आमजन के दिमाग में पसर चुका है। उन्होंने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर आरोप लगा डाला कि राजपूत की हत्या की गई। कारण बताया कि उनकी हत्या से कुछ अर्सा पहले 14वें माले से गिरकर मरने वाली उनकी पूर्व मैनेजर दिशा सेलियान की मृत्यु भी मर्डर थी। कुछ प्रभावशाली लोगों ने उसके संग बलात्कार किया, फिर उसे मार डाला। फिल्मी अंदाज में उन्होंने बताया मरने से पहले दिशा ने सारा सच राजपूत को बता दिया था इसलिए उसे भी मार दिया गया। राणे प्रेस कॉन्फ्रेंस में लेकिन पत्रकारों के सबूतों की बाबत प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं दे पाए। वाट्सअप विश्वविद्यालय ने लेकिन तत्काल फतवा जारी कर उद्वव ठाकरे के पुत्र आदित्य ठाकरे, जो सरकार में मंत्री भी हैं, दिशा के बलात्कार में शामिल होने का आरोप भी लगा डाला है।

11. ताजातरीन खबर इस पूरे मामले में जो सामने आई है उससे नौ बजे के न्यायाधीश और उनको सुनने-सुनाने वाले भक्तगण प्रसन्न नहीं, मायूस होंगे। ईडी के हवाले से “The Indian Expess” में छपा है कि रिया चक्रवर्ती के खाते में राजपूत के खाते से 15 करोड़ जैसी कोई रमक नहीं आई। राजपूत के खाते में 15 करोड़ की रकम का इस्तेमाल उनके जीवित रहते टैक्स की अदायगी और राजपूत की हवाई यात्राओं में हुआ। रिया के खाते में कोई पैसा ट्रांसफर नहीं हुआ। यह ईडी का कहना है, केंद्र सरकार की जांच एजेंसी का। यह भी साफ हो गया है कि रिया किसी भी खाते में न तो Authorised Signatory थी, न ही कोई Joint Account उनका राजपूत संग था। तब क्योंकर के.के. सिंह ने 25 जुलाई को दर्ज कराई एफआईआर रिया पर आरोप लगाया, यह जांच का विषय है।

अब बात करते हैं सीबीआई के अधिकार क्षेत्र की। सुशांत राजपूत की मौत के बाद उनके पिता की एफआईआर पर एक्शन लेते हुए बिहार सरकार ने मामले की जांच सीबीआई से कराने की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी। यहीं से प्रश्न उठने शुरू हुए हैं कि क्या बिहार सरकार का यह कदम As per Law कानून के दायरे के भीतर हैं या नहीं। सुप्रीम कोर्ट में इस बिंदु पर बहस पूरी हो चुकी है। न्यायालय ने निर्णय सुरक्षित कर दिया है। इस बीच केंद्र सरकार द्वारा सीबीआई जांच की मांग को तत्काल स्वीकारने के बाद केंद्र और राज्य सरकार के अधिकारों का मुद्दा उठ गया है। कानूनविदों की मानें तो सुशांत की मृत्यु का घटनास्थल मुंबई है इसलिए सीबीआई जांच तभी हो सकती है जब महाराष्ट्र सरकार ऐसी सिफारिश करे। चूंकि बिहार का इससे कोई लेना-देना नहीं इसलिए बिहार सरकार की सिफारिश गलत है। दरअसल, सीबीआई जिस कानून के तहत बनी है वह Delhi Police Special Police Establishment Act 1946 है। इसके अंतर्गत यह बाट्टयता है कि कानून व्यवस्था राज्य का विषय होने के चलते सीबीआई तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब राज्य सरकारें चाहे। एनआईए के साथ ऐसी बाध्यता नहीं है। वह संसद से पास कानून के तहत आतंकी गतिविधियों के लिए बनाई ऐसी केंद्रीय एजेंसी है जो बगैर राज्य सरकार के कहे भी ऐसे मामलों की जांच करने को स्वतंत्रत है।

DSP Act 1946 1946 का Section 6 कहता है “exercise powers and jurisdiction in any area in a State, not being a Union Territory or railway area, without consent of the Government of that State.”

स्पष्ट है बिहार सरकार ने गलत सिफारिश की और केंद्र सरकार ने गलत तरीके से सीबीआई को मुकदमा दर्ज करने को कहा है। हालांकि इस पर अंतिम फैसला सुप्रीम कोर्ट को करना है लेकिन प्रथम दृष्टया यह गलत है। राज्य सरकारों के अलावा केवल न्यायालयों के पास यह अधिकार है कि वे किसी भी राज्य के मामले में सीबीआई जांच का आदेश दे सकती है। केंद्र सरकार के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं। यह बात भी उठ रही है कि इस मौत को इतना तूल दिए जाने के पीछे इस वर्ष प्रस्तावित बिहार विधानसभा चुनाव हैं। चूंकि सुशांत बिहार मूल के थे, राजपूत थे इसलिए इतनी हाय-तौबा का एक कारण ये चुनाव हैं। यहां यह स्मरण करा दूं कि 2015 में जब नेपाल का लॉकडाउन भारत ने कर दिया था तब भी इसी प्रकार के आरोप लगे थे कि 2015 के बिहार विधानसभा चुनावों के चलते ऐसा कर बिहार मूल के नेपाल नागरिक ‘मधेशी’ के आंदोलन को लाभ पहुंचाया जा रहा है ताकि बिहार में वोटर प्रभावित हो सके।

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