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Editorial

इंदु से इंदिरा बनने का सफर

पिचहत्तर बरस का भारत/भाग-67
ग्यारह नवम्बर, 1917 के दिन संयुक्त प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के शहर इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में ख्याति प्राप्त बैरिस्टर और कांग्रेस नेता मोतीलाल नेहरू के घर आनंद भवन में जवाहर लाल और कमला नेहरू की पहली संतान ने जन्म लिया। इस संतान का नाम रखा गया इंदिरा प्रियदर्शिनी। सोवियत संघ की लाल क्रांति के वर्ष पैदा हुई इंदिरा ने जन्म से अपने घर में अंग्रेज हुकूमत के खिलाफ जबरदस्त खिलाफत का माहौल देखा जिसका भारी असर उनके व्यक्तित्व पर पड़ा। इंदिरा का बचपन जहां एक ओर स्वतंत्रता संग्राम की तैयारियों, उसके संघर्ष को देख बड़ा हो रहा था तो वहीं दूसरी तरफ इस बच्ची पर घर भीतर अपनी मां कमला नेहरू की उपेक्षा का भी गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा था। जवाहरलाल नेहरू पर उनकी बहन विजय लक्ष्मी पंडित का गहरा प्रभाव था। कमला नेहरू पारम्परिक कश्मीरी परिवार में जन्मी थी। उनके घर का माहौल पूरी तरह भारतीय था। इसके ठीक उलट मोतीलाल नेहरू के यहां पाश्चात्य संस्कृति का बोलबाला था। आनंद भवन में अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी खान-पान जीवन शैली थी। नेहरू की बहनें, विशेषकर विजय लक्ष्मी पंडित कमला को हेय दृष्टि से देखती और अपमानित करती थी। इंदिरा गांधी की मित्र और जीवनीकार पुपुल जयकर के अनुसार-‘Kamla’s entry in Motilal’s household generated tentions within the family. The marriage was a traumatic experience for Vijay Lakshmi, just one year younger than her sister- in- law. Vijay Lakshmi, a lovely girl, who brought up as the little fairy princess and was admired by all who met her. She adored her handsome young brother… suddenly Vijaya lakshmi found that an awkward young girl had taken her place at her brother’s side. For Vijay Lakshmi, Kamla was an outsider, she lacked the grace and sophistication necessary to be the chatelaine of her father’s home.’ (मोतीलाल के परिवार में कमला का प्रवेश गृहक्लेश का कारण बन गया। विजय लक्ष्मी के लिए विशेषकर यह विवाह एक दर्दनाक अनुभव समान था। कमला से मात्र एक बरस छोटी विजय लक्ष्मी का लालन-पालन एक राजकुमारी समान हुआ था। वह अपने भाई से बेहद प्रेम करती थी…अचानक उसने पाया कि एक अजीब-सी लड़की ने उसके भाई की जिंदगी में प्रवेश कर लिया है। विजय लक्ष्मी के लिए कमला एक बाहरी व्यक्ति थी जो उसके परिवार का सदस्य होने   लायक योग्यता नहीं रखती थी)। इंदिरा गांधी अपनी मां के प्रति अपने पिता और उनकी बहनों, विशेषकर विजय लक्ष्मी पंडित के व्यवहार को कभी भुला नहीं पाईं। कालांतर में जब वे प्रधानमंत्री बन गई थीं तब भी उनके मन में अपनी बुआ विजय लक्ष्मी पंडित के लिए नफरत कम नहीं हुई। बकौल पुपुल जयकर फरवरी, 1966 में इंदिरा ने एक शाम विजय लक्ष्मी पंडित की बाबत उनसे कहा-‘From my childhood, she did everything to destroy my confidance, she called me ugly, stupid. This shattered something within me. Faced with hostility, however well prepared I am, I get tongue- tied and withdraw’  (बचपन से ही उन्होंने मेरा आत्मविश्वास खत्म करने का काम किया था। मुझे बदसूरत और मूर्ख कहा जिसने मेरे भीतर कहीं कुछ तोड़ दिया। इस शत्रुतापूर्ण माहौल के चलते, मैं चाहे कितनी भी तैयारी क्यों न करूं, समय आने पर मैं खामोश हो जाती हूं)। अपनी बुआ से उनकी इस कदर नाराजगी ताउम्र बनी रही कि जब मोतीलाल नेहरू के आवास आनंद भवन को उन्होंने राष्ट्र के नाम समर्पित करने का फैसला 1970 में लिया तो अपने पैतृक घर में एक आखिरी बार ठहरने के विजय लक्ष्मी पंडित का अनुरोध तक उन्होंने नहीं स्वीकारा था और 1974 में अपने छोटे बेटे संजय गांधी के विवाह में भी विजय लक्ष्मी पंडित को आमंत्रित नहीं किया। 1926 में कमला नेहरू को तपेदिक की बीमारी ने जकड़ लिया। उन्हें इलाज के लिए स्विट्जरलैंड भेजा गया। इस दौरान इंदिरा अपनी मां के साथ रहीं। उन्हें स्विट्जरलैंड के एक स्कूल में जवाहर लाल ने भर्ती करा दिया था। एक बरस तक वे स्विट्जरलैंड में ही रहीं। 1934 में दसवीं की पढ़ाई बाद उन्हें रवींद्र नाथ ठाकुर द्वारा स्थापित विश्वविद्यालय शांंत निकेतन में पढ़ने भेज दिया गया। ठाकुर ने इंदिरा को खासा प्रभावित करने का काम किया। अभी उन्हें शांति निकेतन में दाखिला लिए कुछ ही अर्सा हुआ था कि कमला नेहरू की बीमारी चलते उन्हें इलाहाबाद वापस जाना पड़ा। कमला नेहरू एक बार फिर से तपेदिक की चपेट में आ चुकी थीं। जवाहर लाल ब्रिटिश जेल में बंद थे और आनंद भवन में कमला की देखभाल के लिए कोई समुचित इंतजाम नहीं थे। अपनी बीमार मां की दुर्दशा ने कहीं भीतर तक 15 बरस की इंदिरा को उद्वेलित कर डाला। शांति निकेतन वापस जाते समय उन्होंने रास्ते में ही एक कड़ा पत्र नेहरू को लिखा जिसका उनको कभी जवाब नहीं मिला। उन्होंने लिखा-‘Do you know anything about what happens at home when you are absent? Do you know that when mummie was in a very bad condition the house was full of people, but not one of them even went to see her or sit a while with her, that when she was in agony there was no one to help her?’ (क्या आपको कुछ पता भी है कि जब आप घर में नहीं रहते हैं तो वहां क्या होता है? क्या आपको पता है कि जब मम्मी बेहद खराब अवस्था में थी और घर में ढेर सारे लोगों का आना जाना होता था, एक भी व्यक्ति मम्मी से मिलने या घड़ी भर बैठने के लिए नहीं गया? जब वह गहरी पीड़ा में थी, कोई उनके पास नहीं था)। 1936 में कमला नेहरू की मृत्यु हो गई। मां की मौत ने कहीं गहरे इंदिरा को अवसाद में डालने का काम किया। अब उनका मन आनंद भवन से उचटने लगा था। वे उच्च शिक्षा के लिए हावर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला लेना चाहती थी। इंदिरा जब इग्लैंड पहुंची वहां पहले से ही उनके पारिवारिक मित्र फिरोज गांधी ‘लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स’ में दाखिला ले चुके थे। फिरोज एक सामान्य पारसी परिवार से ताल्लुक रखते थे। 6 अप्रैल, 1930 की सुबह महात्मा गांधी ने नमक कानून को तोड़ इतिहास रचने का काम किया था। उनके आह्नान पर पूरे देश भर में ब्रिटिश सत्ता के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए थे। विदेशी सामान का बहिष्कार और सरकार को टैक्स न दिए जाने से विचलित सरकार ने कांग्रेस नेताओं की धर-पकड़ शुरू कर दी थी। 14 अप्रैल, 1930 के दिन जवाहर लाल को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। नेहरू की गिरफ्तारी से आक्रोशित और आंदोलित कमला नेहरू आनंद भवन की दहलीज लांघ सड़क पर उतर आईं।
उन्होंने इलाहाबाद में इस सविनय अवज्ञा आंदोलन की कमान संभाल ली थी। कमला नेहरू के प्रशंसकों में युवा फिरोज गांधी भी शामिल थे जिन्होंने एक आम सभा के दौरान कमला नेहरू को पुलिस की लाठी से बचाने के लिए खुद को आगे कर दिया था। उन्हें उनके इस दुस्साहस के लिए गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। इस घटना के बाद फिरोज गांधी का आनंद भवन आना-जाना बढ़ा और वे कमला नेहरू के विश्वस्त सहयोगियों में शामिल हो गए। इंदिरा और फिरोज के मध्य प्रेम ऑक्सफोर्ड के दिनों में परवान चढ़ा। नेहरू शायद इस संबंध से बहुत खुश नहीं थे। इंदिरा गांधी की जीवनीकार कैथरीन फ्रैंक के अनुसार नेहरू इस बाबत अपनी पत्नी कमला से शत प्रतिशत सहमत थे। कमला नेहरू हालांकि फिरोज को अपना भरोसेमंद साथी मानती थी लेकिन बतौर अपना दामाद उन्हें फिरोज पसंद नहीं थे-‘ According to ‘Nanu’, Kamla told her husband that she was very worried about Indira’s relationship with Feroze and said that she didnot want Indira to marry Feroze because she was sure he was unstable. Nor did Kamla thing Feroze would enter any profession and be in a position to support Indira. Nehru tried to soothe kamala and banish her anxieties, but when he left the room, Kamla turned to Nanu and said, ‘Indu will listen to no one but me. I could have guided Indu gently away from Feroze. But my end is near. Jawahar will give no guidance to Indu. She will… be allowed to ‘ commit the mistake of her life.’
नानू (विजय लक्ष्मी पंडित) के अनुसार, कमला ने अपने पति से कहा था कि वे इंदिरा और फिरोज के संबंधों को लेकर बेहद चिन्तित हैं और नहीं चाहतीं कि इंदिरा की शादी फिरोज संग हो क्योंकि उनकी नजर में फिरोज भरोसेमंद नहीं है। कमला की राय में फिरोज कोई भी ऐसा कार्य नहीं कर पाएगा जिससे वह इंदिरा को सहारा दे सके। नेहरू ने कमला को आश्वस्त करने का प्रयास किया लेकिन जब वे कमरे से बाहर चले गए तब कमला ने नानू से कहा कि ‘इन्दु मेरे सिवाय किसी की बात नहीं मानेगी। मैं उसे समझ सकती थी और फिरोज से दूर कर सकती थी लेकिन अब मेरा अंत नजदीक आ चुका है। जवाहर इन्दु को नहीं समझाएंगे और उसे उसकी जिंदगी की भूल करने देंगे)।
कमला नेहरू की आशंकाएं सही साबित हुईं। नेहरू के कड़े विरोध बावजूद 1942 में इंदिरा नेहरू का विवाह महात्मा गांधी के हस्तक्षेप चलते फिरोज गांधी से हो गया। इंदिरा और फिरोज इस दौरान गांधी के आह्नान पर शुरू हो चुके ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में पूरी तरह सक्रिय हो चुके थे। जल्द ही दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया। इंदिरा पूरे एक बरस तक इलाहाबाद स्थित नैनी जेल में कैद रहीं। जेल से रिहा होने के बाद इंदिरा और फिरोज लखनऊ चले आए जहां फिरोज गांधी ने कांग्रेस के अखबार ‘नेशनल हेराल्ड’ का कामकाज संभाल लिया था। 1944 में इंदिरा की पहली संतान का जन्म मुंबई में हुआ जिसका नाम रखा गया राजीवरत्न बिरजीस नेहरू गांधी। 1946 में उनकी दूसरी संतान पैदा हुई जिसका नाम पड़ा संजय। इंदिरा का वैवाहिक जीवन उनके लखनऊ प्रवास के दौरान ही डगमगाने लगा था और वे गृहस्थ जीवन के बजाय सार्वजनिक जीवन की तरफ आकर्षित होने लगी थीं। नेहरू तब तक ‘काम चलाऊ सरकार’ के नेता बन चुके थे। इस दौरान उनके और इंदिरा के मध्य का पत्राचार में हालांकि सीधे तौर पर फिरोज गांधी संग इंदिरा की बढ़ती नाखुशी का कोई जिक्र नहीं पढ़ने को मिलता है लेकिन स्पष्ट इशारा मिलता है कि इंदिरा का मन लखनऊ से उचट चुका था और वे राजनीतिक गतिविधियों पर पैनी नजर रखते हुए खुद को सार्वजनिक जीवन में सक्रिय रखना चाहती थीं।
क्रमशः  

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