खटीमा कांड के बाद उत्तर प्रदेश के पर्वतीय इलाकों में मुलायम विरोधी गुस्सा अपने चरम पर पहुंच गया। 2 सितंबर के दिन पौड़ी में उत्तराखण्ड क्रांति दल ने एक विशाल जनसभा का आयोजन कर खटीमा कांड के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री #मुलायम सिंह यादव की पहाड़ विरोधी मानसिकता को जमकर कोसा। मसूरी में इसी दिन ठीक खटीमा की तर्ज पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोली चला दी। पुलिस लखनऊ से मिल रहे निर्देशों के इतने दबाव में थी कि उसने अपने ही एक अफसर तक को गोली मारने का दुस्साहस कर डाला। यह अधिकारी, उमाकांत त्रिपाठी आंदोलनकारियों पर गोली चलाए जाने का विरोध कर रहे थे। मसूरी गोली कांड में आठ लोग, जिनमें दो महिलाएं शामिल थीं, मारे गए और अनेकों गंभीर रूप से घायल हो गए। इन मृतकों में पुलिस उपाधीक्षक उमाकांत त्रिपाठी भी शामिल थे। पूरे सितंबर माह (1994) पर्वतीय इलाकों में मुलायम सिंह यादव के खिलाफ जनता सड़कों पर रही। मुलायम सिंह के पहाड़ विरोधी बयान उनके न रहने पर एक बार फिर से चर्चा का विषय बने हुए हैं लेकिन उत्तर प्रदेश की ही एक अन्य कद्दावर नेता के बयानों को भुला दिया गया है। बसपा अध्यक्ष #मायावती ने तो सभी हदों को पार कर 6 सितंबर 1994 के दिन उत्तराखण्डियों को देशद्रोही तक कह डाला। उनके इस बयान ने पहाड़ की जनता को खासा आक्रोशित करने का काम तब किया था। खटीमा और मसूरी कांड के विरोध और पृथक राज्य की मांग को लेकर उत्तराखण्ड संयुक्त संघर्ष समिति ने 2 अक्टूबर 1994 को दिल्ली में प्रदर्शन और विशाल रैली आयोजित करने का निर्णय लिया। यह आयोजन पूरी तरह शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक मर्यादाओं का पालन करते हुए आयोजित किया जा रहा था कि 28 सितंबर को भाजपा के सांसद मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) #भुवनचंद्र खण्डूड़ी ने एक विवादास्पद बयान दे दिया। उन्होंने कहा ‘प्रस्तावित प्रदर्शन में दो अक्टूबर को कूच कर रहे लगभग 20 हजार पूर्व सैनिक हथियार और बारूद साथ में लेकर चल सकते हैं और संकट के समय में वे हथियार उठा भी सकते हैं।’ एक सांसद के इस बयान ने दिल्ली से लखनऊ तक के सत्ता गलियारों को सकते में डालने का काम कर डाला। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उत्तर प्रदेश की दिल्ली से सटी सीमाओं में गहन तलाशी लिए जाने के आदेश उत्तर प्रदेश सरकार को दिए तो दूसरी तरफ मुलायम सिंह यादव सरकार ने अपने पुलिस बल को किसी भी कीमत पर आंदोलनकारियों को दिल्ली पहुंचने से रोकने के निर्देश जारी कर दिए। नतीजा रहा 1 अक्टूबर की रात और 2 अक्टूबर की सुबह का मुजफ्फरनगर कांड जिसने हमेशा-हमेशा के लिए #मुलायम सिंह यादव को उत्तराखण्डियों की नजरों में खलनायक बनाने का काम किया है। इस रात गढ़वाल से सैकड़ों बसों में कई हजार आंदोलनकारी दिल्ली के लिए अपने घरों से निकले थे। इन्हें पुलिस ने अलग-अलग स्थानों पर नाकेबंदी कर रोकने का प्रयास किया। हालात लेकिन मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा में तब विस्फोटक हो गए जब मेरठ परिक्षेत्र के तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक रुएसएम नसीम और डीआईजी रुबुआ सिंह के नेतृत्व में पुलिस हिंसक हो उठी। सैकड़ों बसों को रामपुर तिराहा के समीप नारसन बेरियर में घंटों रोके जाने से आंदोलनकारी उत्तेजित हो सरकार के खिलाफ नारेबाजी करने लगे थे। रात तकरीबन साढ़े ग्यारह बजे मुजफ्फरनगर के तत्कालीन डीएम रुअनंत कुमार सिंह ने पुलिस को पहले लाठीचार्ज और फिर गोली चलाने के आदेश दे डाले। इन आंदोलनकारियों में शामिल सैकड़ों महिलाएं और पुरुष जान बचाने के लिए खेतों की तरफ भाग गए। उत्तर प्रदेश पुलिस और पीएसी ने बसों में दुबकी महिलाओं को एक बस में जबरन ठूसा और इस बस को एक सुनसान इलाके की तरफ ले गए। यहां इन महिलाओं संग अभ्रदता की सारी सीमाएं लांघी गई और उनकी इज्जत के साथ खिलवाड़ किया गया। पुलिस की बर्बरता तब अपने चरम पर पहुंची जब पुरुषों को तो गिरफ्तार कर जेल ले जाने का सिलसिला शुरू हुआ लेकिन महिलाओं संग खेतों में पुलिस के जवानों ने बलात्कार करना शुरू कर दिया। आंदोलनकारियों ने जब इसका विरोध किया तो उनके सीने गोली से छल्ली कर दिए गए। मारे गए आंदोलनकारियों में छात्र रविंद्र रावत, राजेंद्र लखेड़ा, सूर्य प्रकाश थपलियाल, सतेंद्र चौहान, गिरीश भद्री, अशोक कुमार केशिव शामिल थे। इनमें से अधिकांश 20-25 वर्ष की आयु के थे। सतेंद्र सिंह चौहान की उम्र तो मात्र 16 बरस की थी।