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Editorial

चौतरफा जाहिलियत का बोलबाला

मेरी बात

जाहिलियत अरबी भाषा का शब्द है। पैगंबर मौहम्मद से पूर्व के समय को ‘जाहिलियाह’ कहा जाता है जिसका अर्थ है अज्ञानता अथवा बर्बरता। मुझे इस शब्द की याद दीपावली की देर रात तक फूट रहे पटाखे के चलते हो आई। दीपावली की शाम चार बजे केंद्रीय प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड ने प्रमुख शहरों की हवा गुणवत्ता का आंकड़ा जिसे ‘एयर क्वालिटी इंडेक्स कहा जाता है, जारी किया था। इसमें दिल्ली का एयर क्वालिटी इंडेक्स 218 था जो ‘खराब’ की श्रेणी में आता है। इस आंकड़े के कुछ ही घंटों बाद दिल्ली के दिलवालों ने जमकर अतिशबाजी की जिसका नतीजा रहा इस एयर क्वालिटी इंडेक्स का 358 पहुंच जाना जो ‘बहुत खराब’ की श्रेणी में आता है। वायु प्रदूषण का इस गंभीर स्तर तक पहुंचना केवल दिल्ली तक सीमित नहीं था। नोएडा में 12 नवंबर की शाम यह इंडेक्स 189 था जो दीपावली की रात मचाए गए धमाल बाद 363 पहुंच गया। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र से सटे अन्य शहरों का भी यही हाल रहा। अपनी ही जीवनदायनी हवा को प्रदूषित करने वालों को जाहिल नहीं कहा जाए तो और क्या कहा जा सकता है। स्मरण रहे राष्ट्रीय राजधानी और उसे सटे इलाके जिन्हें राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र कहा जाता है, में पटाखों का फोड़ा जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। वर्ष 2018 में उच्चतम न्यायालय ने बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए दिल्ली समेत समूचे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में पटाखों को जलाने पर रोक लगा दी थी। न्यायालय ने तब अपने आदेश में सख्त निर्देश दिए थे कि ग्रीन पटाखों को ही इस्तेमाल में लाया जा सकता है और उन्हें जलाने के लिए रात आठ बजे से दस बजे तक का समय भी निर्धारित किया था। ग्रीन पटाखों से तात्पर्य ऐसे पटाखों से है जिनको जलाए जाने से प्रदूषण सीमित मात्रा में होता है। इन पटाखों में बेरियम नाइटेªट जैसे प्रदूषण फैलाने वाले पदार्थ नहीं होते हैं। उच्चतम न्यायालय के आदेश लेकिन पूरी तरह निष्प्रभावी रहे हैं। जाहिर है इस आदेश को लागू कराने के लिए जिम्मेदार एजेंसियां ऐसा होना नहीं देना चाहती हैं। यह भी स्पष्ट है कि केंद्र और राज्य की सरकारें भी इस आदेश के प्रति उदासीन हैं। यदि ऐसा नहीं होता तो देश की सबसे बड़ी अदालत के आदेश का यूं माखौल नहीं उड़ता। देश की राजधानी में जहां उच्चतम न्यायालय स्वयं विराजती है, 12 नवंबर की रात जमकर पटाखे जले, देर रात तक जले और पुलिस द्वारा मात्र 7 चलान किए गए। दिल्ली पुलिस इस मुद्दे पर पूरी तरह संवेदनहीन बनी रही। पटाखे फूटे हैं यह तथ्य है, सत्य है। इसका सीधा अर्थ है कि पटाखे जमकर बेचे- खरीदे भी गए हैं। उच्चतम न्यायालय ने जब 2018 में ही इन पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया हो, तब खुले में इनकी बिक्री-खरीद पूरी व्यवस्था को और समाज को भी कटघरे में खड़ा कर देती है। उच्चतम न्यायालय में पटाखे बनाने वाली कंपनियों ने 2018 में तर्क दिए थे कि दीपावली हिंदुओं की आस्था से जुड़ा त्योहार है और इस दिन पटाखे न जलाने से उनकी धार्मिक स्वतंत्रता का हनन हो सकता है। इस तर्क को कुतर्क मानते हुए उच्चतम न्यायालय ने तब कहा था कि पटाखे फोड़ना किसी धर्म की रीत का हिस्सा नहीं है। न्यायालय ने प्रश्न पूछा था कि क्या जब पटाखे नहीं थे, तब धर्म भी नहीं था? दिल्ली, नोएडा, गुरुग्राम समेत समूचे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण अपने चरम पर जा पहुंचा है। सांस लेने में भारी तकलीफ हो रही है। नाना प्रकार की बीमारियों को इस प्रदूषण ने पैदा करने का काम किया है। अस्पतालों और डॉक्टरों के लिए यह दीपावली का बोनस कहा जा सकता है। इसमें कोई शक नहीं कि कानून व्यवस्था के लिए जिम्मेदार संस्थाएं इस मामले में अपराधी की बगलगीर हैं, लेकिन मुख्य अपराधी नहीं हैं। मुख्य अपराधी हम स्वयं हैं। हम से मेरा तात्पर्य उस भीड़ से है जो खुद के लिए मौत का माहौल तैयार करती है। वह भी मुख्यतः केवल इसलिए क्योंकि इससे उनकी कथित धार्मिक आस्था जुड़ी है। इससे बड़ी
जाहिलियत भला और क्या हो सकती है? और ऐसों को जाहिल न कहा जाए तो क्या कह पुकारा जाए? इस भीड़ का कोई विवेक नहीं होता। यह केवल पीछे चलना जानती है। इनका नेतृत्व वे करते हैं जो धर्म को हथियार बना सत्ता में बने रहने की कला में परांगत हैं। वायु प्रदूषण से त्रस्त दिल्ली में पटाखों को फोड़े जाने की वकालत करने वाले ऐसे राजनेताओं का मानना है कि यह हिंदुओं की आस्था से जुड़ा है इसलिए इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती। दिल्ली भाजपा के उपाध्यक्ष कपिल मिश्रा ने तो अति कर दी। उन्होंने सोशल मीडिया पर बकायदा एक पोस्ट जारी कर दिल्लीवासियों को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उल्लंघन करने के लिए बधाई तक दे डाली। मिश्रा के अनुसार ‘ये प्रतिरोध की आवाजें हैं, आजादी और लोकतंत्र की आवाजें हैं। लोग बहादुरी से अवैज्ञानिक और अतार्किक तानाशाही पूर्ण प्रतिबंध का विरोध कर रहे हैं।’ यदि सत्ताधारी दल का एक नेता इस प्रकार की बयानबाजी करे, उच्चतम न्यायालय के निर्णय को अवैज्ञानिक और अतार्किक तानाशाही करार दे तो समझा जा सकता है कि हम किस कदर जाहिलियत की जद में आ चुके हैं।

जरा सोचिए दीपावली क्यों मनाई जाती है? धर्म केंद्रित सोचेंगे तो यह हिंदुओं का त्यौहार मात्र बन कर रह जाएगा। रावण पर राम की विजय उपरांत घर वापसी का उत्सव बन रह जाएगा। असल में दीपावली बुराई पर अच्छाई की जीत का, अंधकार पर प्रकाश की विजय का उत्सव है। जैन धर्मियों के लिए यह महावीर के निर्वाण बाद देव आत्माओं द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करने की स्मृति का प्रतीक है। बुद्ध के अनुयायियों के लिए यह बुद्ध के प्रसिद्ध सूत्र ‘अप्प दीपो भव’ की याद में मनाया जाने वाला उत्सव है। बुद्ध ने अपने अनुयायियों से कहा था ‘अपना दीपक स्वयं बनों’। क्या वास्तव में हम दीपावली की प्रसांगिकता को समझते हैं? मेरी दृष्टि में कतई नहीं। यदि समझते होते तो स्वयं के लिए, अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए मौत का कुआं खोदने का काम नहीं करते। हम इस त्योहार को मणिपुर में हिंसा की चपेट में आए भारतीयों की पीड़ा के नाम कर सादगीपूर्ण तरीके से मना सकते थे। करोड़ों रुपए जो पटाखे जलाने में हमने फूंके उन्हें हम अपने अभावग्रस्त भारतीयों के दारिद्रय को कम करने के लिए इस्तेमाल कर सकते थे। हम यूक्रेन और फिलिस्तीन में चल रहे मानवीय संकट के लिए अपनी तरफ से कुछ सार्थक पहल की शुरुआत इस दीपावली में कर सकते थे। इस समय दो बड़े युद्ध चल रहे हैं। यूक्रेन को नेस्तनाबूद करने के लिए बीते दो वर्षों से रूस ने वहां कहर बरपा रखा है तो इजरायल और फिलिस्तीन के मध्य भी भारी मारकाट जारी है। इन युद्दों में लाखों निरपराध मारे जा रहे हैं, बेघर हो चुके हैं। भगवान राम 14 बरस के वनवास काल दौरान वनों में रह रहे आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिए संघर्षरत रहे। उन्होंने देवशक्ति तक से टकराने का दुस्साहस किया। एक राजपरिवार में जन्म लेने के वाले राम सही अर्थों में जननायक बन उभरे। इसलिए वे भगवान कहलाए गए। उनकी घर वापसी का उत्सव पटाखे फोड़ मनाना राम के बताए मार्ग पर चलना नहीं है, बल्कि उनके मूल्यों और आदर्शों संग खुला खिलवाड़ है। इसलिए मेरी दृष्टि में हम एक बार फिर  ‘जाहिलियाह’ के दौर में पहुंच चुके हैं। प्रकाश के उत्सव की रात के बाद अब देश की आबोहवा में भारी घुटन है। बच्चों से लेकर बुर्जुगों तक सभी के स्वास्थ्य पर प्रदूषित हवा के चलते भारी गिरावट दर्ज की गई है। दिल्ली में तो हालात इतने विकट हैं कि स्कूल और कॉलेजों को बंद रखने, वाहनों के लिए ऑड-ईवन योजना दोबारा से शुरू करने समेत नाना प्रकार के प्रयोग किए जा रहे हैं लेकिन हालात जस के तस बने हुए हैं। आपदा में भी अवसर तलाशने का खेल राजनीतिक दलों के मध्य खेला जा रहा है। दिल्ली सरकार केंद्र को इन हालातों के लिए जिम्मेदार करार दे रही है तो केंद्र की सरकार और भाजपा के निशाने पर आम आदमी पार्टी है। जाहिलियत का चौतरफा बोलबाला है। सच सुनने और समझने के लिए कोई तैयार नहीं। संभवतः मैं ही नकारात्मकता का शिकार हो चला हूं और विश्व गुरु बनने की राह शायद इसी जाहिलियत से होकर गुजरती हो, ऐसा लेकिन है नहीं। दीपावली की रात पटाखों को जलाने से यदि धर्म का कोई रिश्ता होता तो वायु प्रदूषण का कहर हम पर यूं न बरसता। धर्म मनुष्य को मानवता की राह प्रशस्त करने का मार्ग मात्र है। जाहिलियत से जहीन बनाने की प्रक्रिया ने धर्म को जन्मा। इस प्रक्रिया को हम रूढ़िवादी हो नहीं अपना सकते। रूढ़िवादिता यहीं से जाहिल बनाने का काम करती है। जहीन से जाहिल बनाने का काम करती है। अफसोस हो लेकिन ठीक ऐसा ही रहा है। अंग्रेजी की कहावत है ‘Where ignorance is bliss, tis folly to be wise.’ (जहां अज्ञानता को परम आनंद समझा जाता हो, वहां ज्ञानी होना मूर्खता है।) विश्वगुरु बनने की चाह रखने वाले भारत में आज मूर्खता परम आनंद बन चुकी है।

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