[gtranslate]
Editorial

इतिहास बड़ा निर्मम होता है-1

मेरी बात

जो लोग इतिहास को याद नहीं रखते
वे इसे दोहराने के लिए अभिशप्त होते हैं।

-जॉर्ज सैंटायाना, दार्शनिक कवि और लेखक

‘Those who cannot remember the past are condemned to repeat it’ अमेरिकी दार्शनिक कवि और लेखक जॉर्ज सैंटायाना का यह कथन मुझे 2022 में मुख्य न्यायाधीश का पद सम्भालना और 2024 में सेवानिवृत्त होने से एक माह पहले दिए गए न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के कथनों चलते हो आया। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने 9 नवम्बर, 2022 को भारत के मुख्य न्यायाधीश पद की शपथ लेने के बाद भी कुछ ऐसा ही कहा था। तब उन्होंने कहा था, ‘इतिहास मुझे कैसे याद रखेगा यह देखा जाना बाकी है।’

9 अक्टूबर, 2024 को भूटान के जिग्मे लिंग्ये वांगचुक स्कूल ऑफ लॉ के दीक्षांत समारोह में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने इसे दोहराया। उन्होंने कहा- ‘न्यायाधीशों को इतिहास कैसे याद रखेगा यह उनके द्वारा लिए गए फैसलों और उन फैसलों के समाज पर पड़े प्रभाव पर निर्भर करता है।’

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ ने ऐसे समय में भारत के मुख्य न्यायाधीश पद का दायित्व सम्भाला था जब चौतरफा ‘लोकतंत्र खतरे में है’ कहा जाने लगा था और संवैधानिक संस्थाओं, जिनमें न्यायपालिका भी शामिल है, के संकटग्रस्त होने की आशंका चरम पर जा पहुंची थी। ऐसे कठिन समय में दो बरस के लिए मुख्य न्यायाधीश का पद सम्भालने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ से हर उस शख्स को जो लोकतांत्रिक मूल्यों और संस्थाओं का क्षरण होते देख रहा था, चिंतित था, बड़ी अपेक्षाएं थी। चंद्रचूड़ इन अपेक्षाओं में, मेरी दृष्टि में खरे नहीं  उतर पाए और इतिहास उन्हें इसके लिए माफ नहीं करेगा। अपनी सेवानिवृत्ति के अंतिम दिनों में सम्भवतः स्वयं न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को इसका आभास हो चला था और सम्भवतः कुछ-कुछ आत्मग्लानि का भाव भी उनके अंतःकरण में अंकुरित होने लगा था। चंद्रचूड़ इतिहास की निर्ममता से भलीभांति परिचित रहे हैं। उनके पिता वाईवी चंद्रचूड़ भी भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे थे। 1976 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा थोपे गए आपातकाल चलते सभी लोकतांत्रिक मूल्यों का पतन हो चला था और न्यायपालिका समेत सभी संवैधानिक संस्थाओं का गला घोंट दिया गया था, ऐसे काले दौर में उच्चतम न्यायालय के चार न्यायाधीशों ने एक बेहद विवादास्पद निर्णय दिया था। ऐेसा निर्णय जिसके चलते इतिहास उन चारों न्यायाधीशों को कभी माफ नहीं कर पाएगा। यह विवादास्पद निर्णय ‘एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला’ मामले में सुनाया गया था। इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने आपातकाल के दौरान नागरिकों के मौलिक अधिकारों को इंदिरा सरकार द्वारा निलम्बित किए जाने को सही ठहराया था। स्मरण रहे तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने तब यह व्यवस्था लागू कर दी थी कि आपातकाल के कारण नागरिकों को ‘हैबियस कार्पस’ याचिका दायर करने का अधिकार नहीं होगा। हैबियस कार्पस लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है ‘शरीर को प्रस्तुत करो।’ इसका कानूनी अर्थ है गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तार किए गए नागरिकों को न्यायालय के समक्ष पेश करना। हैबियस कार्पस याचिका के माध्यम से न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि सम्बंधित व्यक्ति की गिरफ्तारी वैध है या नहीं तथा गिरफ्तार व्यक्ति सुरक्षित है अथवा नहीं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 नागरिकों को सर्वोच्च न्यायालय में यह याचिका दायर करने का अधिकार देता है। अनुच्छेद 226 के तहत राज्यों के उच्च न्यायालय भी हैबियस कर्पस याचिका पर सुनवाई कर सकते हैं। इंदिरा सरकार द्वारा इस अधिकार को निलम्बित किए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर 1976 में उच्चतम न्यायालय ने अपना विवादास्पद फैसला सुनाया था। पांच सदस्यीय जिस पीठ ने यह फैसला सुनाया उसमें न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के पिता न्यायमूर्ति वाईवी चंद्रचूड़ भी शामिल थे। इस पीठ के एक सदस्य न्यायमूर्ति हंसराज खन्ना ने अकेले इसके खिलाफ निर्णय दिया था। न्यायमूर्ति खन्ना को इसी चलते इतिहास बेहद सम्मान के साथ याद रखता है। स्वयं निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने अपने पिता के फैसले को गलत करार देने का साहस दशकों बाद स्वयं उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनने बाद दिखाया था। मेरी दृष्टि में लेकिन वे भी इतिहास में ऐसे न्यायाधीश बतौर दर्ज किए जाएंगे जो जन अपेक्षाओं और समय की मांग अनुसार कई मामलों पर सही फैसला देने में या तो चूक गए या फिर उन्होंने ऐसे मामलों में फैसला सुनाया ही नहीं। हालांकि उनके कार्यकाल का निष्पक्ष आकलन करें तो उन्हें कई शानदार फैसलों के लिए सराहा भी जाना जरूरी है किंतु न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ के ऐसे महत्वपूर्ण फैसले जो उनके कार्यकाल की बड़ी उपलब्धि बतौर उन्हें इतिहास पुरुष बनाते हैं, उनके द्वारा राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील मुकदमों में दिए गए फैसलों चलते इस उपलब्धि को बौना करने का काम कर देते हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने भारत का मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहते कई ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय सुनाए थे जिनसे उनकी छवि एक बेहद निडर, निष्पक्ष, उदारवादी और आधुनिक सोच वाले न्यायाधीश बन उभरी थी। यही कारण था कि 2022 में जब वे दो बरस के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश बने तो उन पर जन अपेक्षाओं का भारी बोझ था। आमजन से लेकर खास तक, सभी को विश्वास था कि बतौर मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा को पुनर्स्थापित करने और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा करने वाले कड़े फैसले लेंगे ताकि लोकतंत्र सुरक्षित रह सके। 2018 में चंद्रचूड़ ने आधार कार्ड से जुड़े एक महत्वपूर्ण मसले पर आधार अधिनियम की वैधता के खिलाफ अपना निर्णय सुनाया था। उन्होंने आधार कार्ड को सरकारी सेवाओं के लिए अनिवार्य बनाने का निजता का उल्लंघन करार दिया था। उनका यह निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। हालांकि तब उच्चतम न्यायालय की पीठ ने इस अधिनियम को सही करार दिया था लेकिन न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के ‘असहमति निर्णय’  (Dissenting order) की सर्वत्र प्रशंसा हुई थी। 2018 में ही ‘नवतेज सिंह जौहर बनाम भारत सरकार’ मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने धारा 377 को असंवैधानिक घोषित करते हुए समलैंगिक समुदाय को समानता और स्वतंत्रता का अधिकार दे बड़ी राहत पहुंचाई थी। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपने इस फैसले में कहा था कि ‘यौन अभिव्यक्ति व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अभिन्न हिस्सा है और किसी भी व्यक्ति को उसकी यौन पहचान के आधार पर प्रताड़ित नहीं किया जा सकता है।’ उनके इस निर्णय की सर्वत्र प्रशंसा हुई थी। विश्व के कई देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को उनके इस फैसले पर जमकर सराहा था।

अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, जर्मनी और फ्रांस तथा संयुक्त राष्ट्र संघ और एमनेस्टी इंटरनेशनल सरीखे संगठनों ने इस फैसले की सराहना करते हुए कहा था कि यह निर्णय मानवाधिकारों की दिशा में उठाया गया एक अतिमहत्वपूर्ण कदम है जिससे समलैंगिक समुदाय के अधिकारों की रक्षा होती है। कई अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों और मीडिया आउटलेट्स ने भी इसे लोकतंत्र और मानवाधिकारों के समर्थन में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में प्रचारित किया था। निश्चित तौर पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के इस फैसले ने वैश्विक स्तर पर उनकी छवि को एक प्रगतिशील व्यक्ति के रूप में स्थापित करने का काम किया।

2020 में भारतीय वायुसेना में शामिल महिला अफसरों के स्थाई कमीशन मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए महिला अधिकारियों को स्थाई कमीशन दिए जाने का आदेश दिया। महिलाओं को भारतीय सशस्त्र बलों में स्थाई कमीशन दिलाने वाला यह निर्णय लैंगिक समानता की दिशा में मील का पत्थर साबित होने वाला निर्णय है। अगस्त, 2020 में उन्होंने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम के तहत बेटियों को भी पिता की सम्पत्ति में समान अधिकार होने सम्बंधी फैसला सुनाया जो लैंगिक समानता के सिद्धांत को विस्तार देेने वाला ऐतिहासिक निर्णय है। 2018 में ही उनके द्वारा दिया गया एक अन्य फैसला भी बेहद महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी फैसला है। ‘इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन बनाम केरल राज्य’ मामले में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी रोक को असंवैधानिक करार देेन का काम किया था।

उनके इस निर्णय की भी अंतरराष्ट्रीय मंच पर खासी सराहना हुई थी। संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसे महिलाओं के अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता के संरक्षण की दिशा में उठा एक महत्वपूर्ण कदम कह पुकारा था। ‘बीबीसी’, ‘न्यूयॉक टाइम्स’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’ और ‘द गार्जियन’ सरीखे प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मीडिया संस्थानों ने इसे भारत में पितृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ एक बड़ी पहल करार देते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को खासा सराहा था। हालांकि हमारे देश में इस फैसले का विरोध भी हुआ और इसको लेकर विवाद भी पैदा हुआ लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे लैंगिक समानता, धार्मिक अधिकार और मानवाधिकारों को मजबूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम माना गया।

इसी प्रकार पर्यावरण प्रदूषण से जुड़े कई मामलों में न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के फैसले पर्यावरण संरक्षण की दिशा में उठाए गए मील के पत्थर कहे जा सकते हैं। डीवाई चंद्रचूड़ लेकिन राजनीतिक दृष्टि से संवेदनशील मामलों मेें कठोर कदम उठाने से बचते नजर आते हैं। उन्होंने कई ऐसे फैसले सुनाए जिन्होंने आमजन से लेकर बुद्धिजीवियों और लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति संवेदनशील समाज को निराश करने का काम किया। इतिहास उनके इन्हीं फैसलों और उनके द्वारा कई मामलों में नहीं लिए गए फैसले चलते उन्हें सहृदयता से याद नहीं करने वाला। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ के ऐसे फैसलों पर और नहीं लिए गए फैसलों पर चर्चा अगले अंक में।

क्रमशः

You may also like

MERA DDDD DDD DD